राजनीतिज्ञ बुर्गुला रामकृष्ण राव
बुर्गुला रामकृष्ण राव एक राजनैतिक व्यक्तित्व थे, जिनका जन्म 13 मार्च, 1899 को महबूबनगर, आंध्र प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 15 सितंबर, 1967 को हुई थी. उन्होंने अपनी शिक्षा धर्मवंत और एक्सेलसियर हाई स्कूल, हैदराबाद में पूरी की और बाद में 1923 में फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे और मुंबई विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की.
रामकृष्ण राव ने अपने कैरियर की शुरुआत 1924 में हैदराबाद में वकालत से की. वे ‘हैदराबाद सामाजिक सम्मेलन’ के सचिव, ‘हैदराबाद सुधार समिति’ और ‘हैदराबाद राजनैतिक सम्मेलन’ के सदस्य रहे. 1938 में उन्हें राज्य कांग्रेस का कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया और 1937 में वे प्यूपिल्स कन्वेंशन के सचिव निर्वाचित हुए. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और कई बार जेल गए. आन्ध्र प्रदेश सरकार में वे 1950- 52 तक राजस्व एवं शिक्षामंत्री और 1952-56 तक हैदराबाद राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
रामकृष्ण राव को 1956 में केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और वे 1960 तक इस पद पर रहे. उसके बाद, उन्हें 1 जुलाई, 1960 को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वे 15 अप्रैल, 1962 तक इस पद पर कार्यरत रहे.
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चिकित्सक चुनीलाल बसु
चुनीलाल बसु, जिनका जन्म 13 मार्च, 1861 को कोलकाता में हुआ था, एक प्रसिद्ध रसायनज्ञ, चिकित्सक और समाज सुधारक थे. उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज और कोलकाता मेडिकल कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की थी. उनकी आर्थिक स्थिति के बावजूद वे एक महान चिकित्सक बने और “चेचक की रोकथाम” और “भारत में मधुमेह के बारे में कुछ प्रेक्षण” जैसे लेखों के जरिए अपनी विद्वता का प्रमाण दिया.
बसु ने रसायन विज्ञान, खाद्य विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. वे बंगाल सरकार के 1889 से 1920 तक रासायनिक परीक्षक रहे और उन्होंने ‘भारतीय विष अधिनियम’ को पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके द्वारा विषकारक पदार्थों के मुक्त क्रय-विक्रय पर रोक लगाई गई थी. उनके इस उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 1898 में ब्रितानी सरकार द्वारा राय बहादुर की पदवी से सम्मानित किया गया था.
चुनीलाल बसु ने कई लेखन कृतियाँ भी प्रकाशित कीं, जिनमें ‘स्वास्थ्य पञ्चक’, ‘जल’, ‘वायु’, ‘फलित रसायन’, ‘पल्ली स्वास्थ्य’ (ग्रामीण स्वास्थ्य) और ‘शरीर स्वास्थ्य विधान’ (शरीर स्वास्थ्य के नियम) शामिल हैं. उन्होंने ‘गुरुदास बनर्जी की जीवनी’ भी लिखी, जो बांग्ला में है.
चुनीलाल बसु का जीवन और कार्य उन्हें एक अद्वितीय व्यक्तित्व बनाते हैं. उनकी चिकित्सा शिक्षा, सामाजिक सुधारों के प्रति योगदान और लेखन कृतियाँ उन्हें उनके समय से आगे का व्यक्ति दर्शाती हैं. उनकी कठिनाइयों से जूझते हुए सफलता पाने की कहानी आज भी प्रेरणादायक है. उनके द्वारा लिखित लेख “चेचक की रोकथाम” और “भारत में मधुमेह के बारे में कुछ प्रेक्षण” चिकित्सा क्षेत्र में उनकी गहरी समझ को दर्शाते हैं.
राय बहादुर की पदवी से सम्मानित होना और खाद्य एवं रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान ने उन्हें एक असाधारण स्थिति प्रदान की. ग्रामीण बंगाल में स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रसार के लिए उनके प्रयासों ने सामाजिक स्तर पर बड़े परिवर्तन किए.
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अभिनेत्री दुर्गाबाई कामत
दुर्गाबाई कामत भारतीय सिनेमा की पहली महिला अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1900 के दशक की शुरुआत में, जब महिलाओं का थिएटर या फिल्मों में अभिनय करना समाज में निषेध था, उस वक्त उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा. दादा साहेब फाल्के की फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ (1913) में उन्होंने देवी पार्वती का किरदार निभाकर भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री का खिताब हासिल किया. उनकी बेटी, कमलाबाई गोखले भी इसी फिल्म में मोहिनी की भूमिका में थीं और वे भारतीय सिनेमा की पहली बाल कलाकार बनीं.
दुर्गाबाई का जीवन संघर्षपूर्ण रहा. उनकी शादी आनंद नानोस्कर से हुई थी, लेकिन यह विवाह ज्यादा दिनों तक नहीं चला और उन्होंने अपनी बेटी कमलाबाई के साथ अकेले जीवन यापन का निर्णय लिया. उस समय महिलाओं के लिए नौकरी पाना कठिन था, खासकर जब वे अकेली माँ हों. ऐसे कठिन समय में, दुर्गाबाई ने फिल्म उद्योग में काम करने का निर्णय लिया और समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हुए अभिनय के क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित की.
दुर्गाबाई कामत ने अपने समय में सिनेमा और समाज की परंपरागत भूमिकाओं को चुनौती दी और महिला अभिनेत्रियों के लिए नई राहें खोलीं. उनका योगदान और साहस आज भी कई महिला कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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कवि आत्मा रंजन
कवि आत्मा रंजन का जन्म 13 मार्च 1971 को शिमला, हिमाचल प्रदेश में हुआ था. वे हिमाचल प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग में हिन्दी के प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं.
उनकी मुख्य रचना ‘पगडंडियां गवाह हैं’ एक कविता संग्रह है. उन्होंने अपनी शिक्षा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला से प्राप्त की है. आत्मा रंजन को 2010 में ‘शिखर’ सम्मान से सम्मानित किया गया था.
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राजनेता वरुण गांधी
वरुण गांधी एक भारतीय राजनेता हैं जो भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं. उनका जन्म 13 मार्च 1980 को नई दिल्ली में हुआ था. वरुण गांधी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पौत्र और संजय गांधी तथा मेनका गांधी के पुत्र हैं. वे पीलीभीत और सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्रों से सांसद रह चुके हैं और बीजेपी के इतिहास में सबसे युवा राष्ट्रीय महासचिव बने.
उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा 2004 में शुरू की और पहली बार 2009 में पीलीभीत से सांसद चुने गए, जिसमें उन्होंने बड़ी जीत हासिल की. उनका राजनीतिक कैरियर विवादों से भरा रहा है, जिनमें से एक 2009 के चुनावी भाषण में दिए गए उनके भड़काऊ बयान शामिल हैं. उनके शैक्षणिक दावों को लेकर भी विवाद उठ चुके हैं.
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अभिनेत्री निम्रत कौर
निम्रत कौर एक भारतीय अभिनेत्री हैं जो मुख्यतः हिंदी फिल्मों में काम करती हैं. उन्हें उनकी फिल्म ‘द लंचबॉक्स’ में उनके प्रदर्शन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जिसमें इरफान खान भी मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म वैश्विक स्तर पर प्रशंसित हुई और निम्रत को एक विशेष पहचान दिलाई.
इसके अलावा, उन्होंने ‘एयरलिफ्ट’ फिल्म में अक्षय कुमार के साथ काम किया, जिसमें उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. निम्रत कौर ने अंतरराष्ट्रीय टीवी सीरीज ‘होमलैंड’ में भी अभिनय किया है, जो उनकी वैश्विक पहचान को और बढ़ाता है.
निम्रत कौर अपने चुनौतीपूर्ण रोल्स और सशक्त अभिनय के लिए जानी जाती हैं. निम्रत कौर का जन्म 13 मार्च 1982 को पिलानी, राजस्थान में हुआ था.
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राजनीतिज्ञ नाना फड़नवीस
नाना फडनवीस, जिनका वास्तविक नाम बालाजी जनार्दन भानु था, 1741 -1800 तक जीवित रहे. वे एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा राजनीतिज्ञ थे, जिनका जन्म सतारा में हुआ था. उन्हें अपनी स्वामिभक्ति, स्वाभिमान और स्वदेशाभिमान के लिए जाना जाता था. नाना फडनवीस के सामने मुख्य रूप से तीन प्रमुख समस्याएँ थीं: पेशवा पद को स्थिर रखना, मराठा संघ को बनाए रखना और विदेशी शक्तियों से मराठा राज्य की रक्षा करना.
नाना ने 1774 से अपनी मृत्यु तक 1800 ई. में मराठा राज्य का संचालन किया. उन्होंने मराठा संघ के विभिन्न घटकों, जैसे कि सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ और भोसले के बीच के विवादों और अंतर्द्वंद्वों को सुलझाने के लिए अपनी राजनीतिक चतुराई और कूटनीतिक कौशल का प्रयोग किया. उन्होंने अंग्रेजों और अन्य विदेशी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध करके मराठा राज्य की रक्षा की और समय-समय पर विभिन्न संधियों के माध्यम से अपने राज्य को सशक्त बनाया.
नाना फडनवीस को उनकी मृत्यु के बाद ही मराठा संघ का अंत हो गया था, जो उनके नेतृत्व और प्रबंधन की क्षमता को दर्शाता है. वे न केवल एक योग्य राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक ईमानदार और उच्च आदर्शों से प्रेरित व्यक्ति भी थे.
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अभिनेता शफ़ी ईनामदार
शफ़ी ईनामदार एक प्रसिद्ध हिन्दी फिल्मों के अभिनेता थे. जिनका जन्म 23 अक्टूबर 1945 को दापोली में हुआ था.
शफ़ी ईनामदार ने 1984 में ‘पार्टी’ और 1990 में ‘घायल’ जैसी प्रमुख फिल्मों में काम किया था. उनका निधन 13 मार्च 1996 को हुआ था.
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सितार वादक विलायत ख़ाँ
उस्ताद विलायत खाँ, जिनका जन्म 28 अगस्त, 1928 को गौरीपुर, बांग्लादेश में हुआ था, भारतीय संगीत जगत में एक प्रसिद्ध सितार वादक के रूप में जाने जाते हैं. उनके पिता उस्ताद इनायत हुसैन ख़ाँ भी एक प्रख्यात सितार वादक थे. विलायत ख़ाँ ने अपनी संगीत शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की और उनकी मृत्यु के बाद उनके चाचा और अन्य पारिवारिक सदस्यों से संगीत की शिक्षा जारी रखी.
उस्ताद विलायत ख़ाँ ने सितार वादन में अपनी एक विशिष्ट शैली विकसित की, जिसे ‘गायकी शैली’ कहा जाता है. उन्होंने अपनी वादन शैली में गायकी की बारीकियों को समाविष्ट किया, जिससे उनका संगीत और भी गहरा और भावपूर्ण बन गया. उनकी इस विशेषता ने उन्हें संगीत जगत में एक अलग पहचान दिलाई.
विलायत खाँ ने अपने जीवन में दो शादियाँ कीं और उनके दोनों बेटे सुजात हुसैन ख़ाँ और हिदायत ख़ाँ भी प्रसिद्ध सितार वादक बने. उन्होंने अपनी शैली को और विकसित किया और अपने प्रदर्शनों में अक्सर गायन भी शामिल किया. उनके योगदान के सम्मान में उन्हें ‘आफताब-ए-सितार’ का सम्मान दिया गया था.
विलायत ख़ाँ की आलोचनात्मक सोच भी उन्हें विशेष बनाती है. उन्होंने भारतीय सम्मान प्रणाली और आकाशवाणी के प्रचालन को लेकर कटु आलोचना की. उन्होंने पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान भी ठुकरा दिए थे, क्योंकि वे मानते थे कि भारत सरकार ने उनके संगीत में योगदान को सही तरीके से सम्मानित नहीं किया. उन्होंने अपने जीवनकाल में केवल ‘आफताब-ए-सितार’ सम्मान को स्वीकार किया था.
उस्ताद विलायत खाँ का निधन 13 मार्च, 2004 को मुंबई में फेफड़ों के कैंसर के कारण हुआ था. उनकी मृत्यु के समय वे 75 वर्ष के थे. उनका अंतिम संस्कार कोलकाता में किया गया था, जहाँ वे अधिकतर अपने जीवन का समय बिताते थे.