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व्यक्ति विशेष

भाग - 71.

स्वतंत्रता सेनानी गोपी चन्द भार्गव

गोपी चन्द भार्गव, जिनका जन्म 8 मार्च 1889 को हुआ था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. वे मूल रूप से पंजाब के हिसार जिले से थे, जो अब हरियाणा में है. उन्होंने लाहौर मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई की और 1913 में चिकित्सा के क्षेत्र में अपना कैरियर शुरू किया. हालांकि, 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद, वे राजनीति में सक्रिय हो गए और महात्मा गाँधी, लाला लाजपत राय और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं से गहरे प्रभावित थे.

डॉ. भार्गव ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और 1921, 1923, 1930, 1940 और 1942 में विभिन्न अवसरों पर जेल गए. वे एक उदारवादी दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे, जो जातिवाद के खिलाफ और महिलाओं की समानता के पक्षधर थे. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभिन्न पदों पर काम किया और 1946 में पंजाब विधान सभा के सदस्य चुने गए.

भारत की आजादी के बाद, विभाजन के कारण उत्पन्न समस्याओं को संभालने के लिए, सरदार पटेल के अनुरोध पर उन्होंने संयुक्त पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उन्होंने तीन अलग-अलग अवधियों में पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. डॉ. भार्गव ‘गाँधी स्मारक निधि’ के प्रथम अध्यक्ष भी रहे और उन्होंने गाँधीजी की रचनात्मक प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने के लिए कई पहल की. विभाजन के कठिन समय में उन्होंने प्रशासन को सही दिशा में ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी मृत्यु 26 दिसंबर, 1966 को हुई. डॉ. गोपी चन्द भार्गव ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपने योगदान और उपलब्धियों के माध्यम से देश की सेवा की.

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गीतकार साहिर लुधियानवी

साहिर लुधियानवी, जिनका असली नाम अब्दुल हयी था, उनका जन्म 8 मार्च, 1921 को पंजाब के लुधियाना में एक पंजाबी मुस्लिम परिवार में हुआ था. वह 20वीं सदी के सबसे प्रमुख उर्दू कवियों और भारतीय गीतकारों में से एक बन गए. उनकी मां सरदार बेगम ने घरेलू मुद्दों के कारण उनके पिता को छोड़ दिया, जिसके कारण साहिर का बचपन और युवावस्था चुनौतीपूर्ण रही. वह अपनी अनूठी कविता के लिए जाने जाते थे, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के साथ रोमांस का मिश्रण था, जिससे उन्हें युवाओं के दिलों को हिलाने की क्षमता और फिल्मों में उनके साहित्यिक योगदान के लिए “अनफवान-ए-शबाब का शायर” की उपाधि मिली.

साहिर की शिक्षा लुधियाना में हुई, जहाँ उन्होंने खालसा हाई स्कूल और बाद में सरकारी कॉलेज में पढ़ाई की. उनकी कविता और भाषणों ने उन्हें अपने साथियों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिय.। हालाँकि, उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधियों और प्रेम जीवन के कारण कॉलेज से निष्कासित होने सहित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उन्हें शुरुआत में 1945 में अपने पहले प्रकाशित काम, “तल्खियां” (कड़वाहट) से पहचान मिली. भारत के विभाजन के बाद, साहिर लाहौर से दिल्ली चले गए और अंततः मुंबई में बस गए, जहां उन्होंने खुद को हिंदी फिल्म में एक सफल गीतकार के रूप में स्थापित किया.

साहिर लुधियानवी ने “ताज महल” (1964) और “कभी-कभी” (1977) में अपने गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. उन्हें 1971 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. अपनी सफलता के बावजूद, साहिर फिल्म उद्योग में अपनी मांगों के कारण एक विवादास्पद व्यक्ति बने रहे, जैसे कि इस बात पर जोर देना कि उनके गीत संगीत से पहले लिखे जाएं और उन्हें महान गायिका लता से अधिक भुगतान किया जाए.

साहिर का प्रेम जीवन जटिल और प्रगाढ़ रिश्तों से भरा था, विशेषकर कवयित्री अमृता प्रीतम और गायिका सुधा मल्होत्रा के साथ, लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की. उन्हें उनके गहरे और विचारोत्तेजक गीतों के लिए याद किया जाता है जो सामाजिक मुद्दों, व्यक्तिगत गुस्से और दार्शनिक चिंतन से संबंधित थे. 25 अक्टूबर 1980 को अचानक दिल का दौरा पड़ने से साहिर की मृत्यु हो गई और उन्हें मुंबई के जुहू मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाया गया. उनकी विरासत उनकी मार्मिक और कालजयी कविता और गीतों के माध्यम से जारी है.

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प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा

नृपेंद्र मिश्रा एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस ) अधिकारी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रधान सचिव हैं. उन्होंने वर्ष 2014 में प्रधान सचिव के रूप में अपनी नियुक्ति प्राप्त की और प्रधानमंत्री मोदी के विश्वस्त सहयोगी के रूप में काम किया. मिश्रा का जन्म 8 मार्च 1945 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में हुआ था. वे उत्तर प्रदेश कैडर के 1967 बैच के अधिकारी हैं और उन्होंने राज्य में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है.

नृपेंद्र मिश्रा ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भी कार्य किया है. उन्होंने 1985 – 88 तक अमेरिका में भारतीय दूतावास में मंत्री के रूप में काम किया और वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक तथा नेपाल सरकार के लिए सलाहकार के रूप में कार्य किया है. मिश्रा ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री प्राप्त की है.

उन्होंने टेलीकम्युनिकेशंस रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) के चेयरमैन के रूप में भी सेवा प्रदान की और उनके प्रधान सचिव बनने के मार्ग में आ रही नियामक बाधाओं को दूर करने के लिए सरकार ने TRAI एक्ट में अध्यादेश के जरिए संशोधन किया. 2019 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद उन्हें नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल का चेयरमैन नियुक्त किया गया.

नृपेंद्र मिश्रा ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में अपनी सेवाएं देने के अलावा अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी विशेष योगदान दिया है. उनकी शिक्षा और अनुभव ने उन्हें विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विशेषज्ञता प्रदान की है. उन्हें विशेष रूप से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी, जो प्रधानमंत्री मोदी की उनमें गहरी विश्वास को दर्शाता है. उन्होंने इस महत्वपूर्ण परियोजना की निगरानी की और इसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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वसुंधरा राजे सिंधिया

वसुंधरा राजे सिंधिया एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. वसुंधरा राजे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं और वो भारतीय जनता पार्टी की एक प्रमुख सदस्य हैं जिनका राजस्थान में काफी प्रभाव है.

वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री के पद पर रह चुकी हैं, पहली बार 2003- 08 तक और दूसरी बार 2013 -18 तक. वह ग्वालियर राजघराने की सदस्य भी हैं और राजनीति में उनका एक लंबा कैरियर रहा है.

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वॉलीबॉल खिलाड़ी जिम्मी जॉर्ज

जिम्मी जॉर्ज एक प्रसिद्ध भारतीय वॉलीबॉल खिलाड़ी थे. उनका जन्म 8 मार्च 1955 को केरल के पेरावूर में हुआ था. जिम्मी जॉर्ज को वॉलीबॉल के इतिहास में भारत के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक माना जाता है. उन्होंने बहुत ही कम उम्र में राष्ट्रीय स्तर पर खेलना शुरू कर दिया था और जल्द ही उन्होंने अपने उत्कृष्ट खेल कौशल से खुद को साबित कर दिया.

जिम्मी जॉर्ज ने अपने वॉलीबॉल कैरियर में भारत के लिए कई अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और उन्होंने देश को कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में प्रतिष्ठित पदक दिलाए. उनकी खेल प्रतिभा ने उन्हें विश्व स्तर पर भी पहचान दिलाई और उन्हें इटली की वॉलीबॉल लीग में खेलने का मौका मिला, जहां उन्होंने अपने प्रदर्शन से कई लोगों को प्रभावित किया.

दुर्भाग्यवश, जिम्मी जॉर्ज का जीवन बहुत ही छोटा रहा और 30 नवंबर 1987 को, मात्र 32 वर्ष की उम्र में, वे एक दुखद कार दुर्घटना में अपनी जान गंवा बैठे. उनकी मृत्यु ने भारतीय वॉलीबॉल और उनके प्रशंसकों को गहरे शोक में डुबो दिया. उनकी याद में केरल में एक स्मारक भी बनाया गया है. उनकी उपलब्धियों और योगदान को भारतीय वॉलीबॉल जगत में हमेशा याद किया जाता है.

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अभिनेता फ़रदीन ख़ान

फ़रदीन ख़ान एक प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म अभिनेता हैं. जिनका जन्म आठ मार्च,1974 को हुआ था. वह दिग्गज अभिनेता  फिरोज खान के बेटे हैं. फरदीन ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत साल 1998 में आई फिल्म ‘प्रेम अगन’ से की थी.

प्रमुख फ़िल्में: –

“जस्ट मैरिड”, “हे बेबी”, “आर्यन”, “नो एंट्री”, “देव”, “फ़िदा”, “जानशीन”, “खुशी”, “कितने दूर कितने पास” जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया है​​.

फ़रदीन ख़ान को उनकी पहली फिल्म के लिए 1999 में फ़िल्मफ़ेयर प्रथम अभिनय पुरस्कार से नवाज़ा गया था​​. हाल ही में फ़िल्म ‘विस्फोट’ के साथ बॉलीवुड में उनकी वापसी हुई है​​.

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महिला क्रिकेट खिलाड़ी हरमनप्रीत कौर

हरमनप्रीत कौर एक उल्लेखनीय भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जिनकी गेंदबाजी शैली दाहिने हाथ से मध्यम तेज है और वे मुख्य रूप से बल्लेबाज की भूमिका में रहती हैं. हरमनप्रीत ने 2009 में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला वनडे मैच खेला और 2014 में इंग्लैंड के खिलाफ अपने टेस्ट मैच में पदार्पण किया. उन्हें 2017 में प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया और नवंबर 2018 में वह महिला ट्वेंटी20 अंतरराष्ट्रीय मैच में शतक लगाने वाली भारत की पहली महिला बनीं.

हरमनप्रीत ने अपना क्रिकेट कैरियर पंजाब में शुरू किया और बाद में रेलवे महिला और सिडनी थंडर जैसी टीमों के लिए खेली. वे महिला क्रिकेट में ज्यादा मैचों में कप्तानी करने वाली खिलाड़ी बन गई हैं और वानखेड़े स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने वाली पहली महिला कप्तान हैं.

हरमनप्रीत कौर ने टी20 इंटरनेशनल मैचों में 150 से अधिक मैच खेले हैं, जो कि किसी भी पुरुष या महिला क्रिकेटर द्वारा खेले गए सबसे अधिक टी20 मैच हैं. इस उपलब्धि के साथ, उन्होंने रोहित शर्मा के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. हरमनप्रीत ने कहा कि 150 टी20 मैच खेलना उनके लिए बहुत मायने रखता है, और उन्होंने इस उपलब्धि के लिए बीसीसीआईसीसी और बीसीसीआई के लिए आभारी हैं.हरमनप्रीत ने अब तक टी20 में 3000 से ज्यादा रन बनाए हैं और उनके नाम एक शतक भी है. उन्हें तीसरी बार टी20 विश्व कप में भारत की अगुआई करने का अवसर मिला है और उनका प्रदर्शन बेहतर रहा है.

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लेखिका रश्मि बंसल

रश्मि बंसल एक प्रसिद्ध भारतीय लेखिका, उद्यमी और प्रेरक वक्ता हैं. उन्होंने अपनी पहली किताब ‘Stay Hungry, Stay Foolish’ से पहचान बनाई, जिसमें 25 उद्यमियों के जीवन संघर्ष और सफलता की कहानियां शामिल हैं. यह किताब बेहद लोकप्रिय हुई और 35 लाख से ज्यादा प्रतियां बिकीं. उन्होंने ‘Connect The Dots’, ‘Arise Awake’, और ‘Follow Every Rainbow’ जैसी कई प्रेरक किताबें लिखी हैं, जो खुद की मेहनत पर आधारित सफलता की असली कहानियों पर प्रकाश डालती हैं.

रश्मि अपनी रचनाओं के लिए प्रेरणा देशभर के स्कूलों और कॉलेजों से लेती हैं, विशेषकर ऐसी कहानियों से जो अलग-अलग पहलुओं को उजागर करती हैं. वह उन उद्यमियों की कहानियों में रुचि रखती हैं जिन्होंने पारिवारिक सहायता के बिना अपने व्यवसायों को सफल बनाया. वे विभिन्न स्थानों और संस्कृतियों से संबंधित उद्यमियों पर लिखना पसंद करती हैं. रश्मि ने जॅम (Just Another Magazine) नामक प्रकाशन कंपनी का सह-संस्थापन भी किया है​​​​.

रश्मि बंसल को उनकी किताब ‘I Have A Dream’ के लिए इकोनॉमिक क्रॉसवर्ड पॉपुलर अवॉर्ड में 2010 और 2012 में शोर्टलिस्ट किया गया था

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मेवाड़ की रानी कर्णावती

रानी कर्णावती मेवाड़ की एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व थीं, जिन्होंने 16वीं सदी में राजस्थान में अपने राज्य का नेतृत्व किया था. वह चित्तौड़गढ़ की रानी थीं और विक्रमादित्य विंध्याल की पत्नी थीं. उन्होंने अपने पति के मृत्यु के बाद अपने पुत्र उदय सिंह II के लिए राज्य का प्रबंधन संभाला था.

रानी कर्णावती सबसे अधिक उस समय के लिए जानी जाती हैं जब उन्होंने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से चित्तौड़गढ़ को बचाने के लिए मुगल सम्राट हुमायूँ को रक्षा की गुहार लगाई थी. उन्होंने हुमायूँ को एक राखी भेजी थी, जिसे भारतीय संस्कृति में एक भाई के रूप में संरक्षण का अनुरोध माना जाता है. इस कार्य ने रक्षा बंधन त्यौहार की एक महत्वपूर्ण परंपरा को जन्म दिया, जो भाई-बहन के बीच प्यार और सुरक्षा के बंधन को मनाता है.

हालांकि, हुमायूँ चित्तौड़ पहुँचने में विलम्बित हो गया और जब तक वह वहाँ पहुँचा, चित्तौड़ पहले ही गिर चुका था और रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था, जो एक प्राचीन हिन्दू परंपरा है जिसमें महिलाएं अपनी आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपने आप को आग में होम कर लेती हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर खेर

बाल गंगाधर खेर, जिन्हें बी. जी. खेर के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी थे. वे मुख्यतः महाराष्ट्र में सक्रिय थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे. खेर को उनके प्रशासनिक कौशल और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए भी याद किया जाता है.

वे महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री भी बने थे और उन्होंने राज्य में कई सामाजिक और शैक्षिक सुधार किए. खेर ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ कई प्रदर्शन और आंदोलनों में भाग लिया था.

बी. जी. खेर ने भारतीय समाज के विकास और प्रगति में अपने विचारों और कामों के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी. उनके योगदान को भारत में उच्च सम्मानित किया जाता है और उन्हें एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है.

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साहित्यकार कृश्न चन्दर

कृश्न चंदर एक प्रमुख भारतीय साहित्यकार थे जिनकी रचनाएँ हिंदी और उर्दू भाषाओं में हैं. वे 20वीं सदी के मध्य के एक महत्वपूर्ण लेखक माने जाते हैं और उनकी लेखन शैली ने उस समय के समाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों को बखूबी प्रस्तुत किया है.

कृश्न चंदर की रचनाओं में उपन्यास, कहानियाँ, नाटक और निबंध शामिल हैं. उनकी लेखनी में मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विषमताओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण मिलता है. उनकी लोकप्रिय कृतियों में ‘एक गधा नेफा में’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘काली घटा’, और ‘गद्दार’ शामिल हैं.

कृश्न चंदर की रचनाएँ न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं बल्कि समाज में व्याप्त विषयों पर गहरी चिंतन करने के लिए भी प्रेरित करती हैं. उनके द्वारा लिखी गई कहानियों और उपन्यासों में मानवीय भावनाओं का सूक्ष्म चित्रण किया गया है, जो पाठकों को गहराई से प्रभावित करता है. उनकी लेखनी ने साहित्य की दुनिया में उन्हें एक अमिट स्थान दिलाया है.

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आउटलुक के संस्थापक विनोद मेहता

विनोद मेहता एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार और संपादक थे, जिन्हें विशेष रूप से आउटलुक मैगज़ीन के संस्थापक संपादक के रूप में जाना जाता है. मेहता का जन्म 1942 में हुआ था और उन्होंने अपने लंबे पत्रकारिता कैरियर में कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के साथ काम किया.

विनोद मेहता ने अपने संपादकीय दृष्टिकोण और निर्भीक रिपोर्टिंग के लिए ख्याति प्राप्त की. वे आउटलुक मैगज़ीन के लॉन्च में मुख्य भूमिका निभाने के अलावा, द पायनियर, द इंडियन पोस्ट और द संडे ऑब्जर्वर जैसे प्रकाशनों में भी अपनी सेवाएँ दीं.

मेहता को उनके बेबाक लेखन और साहसिक पत्रकारिता के लिए व्यापक रूप से सराहा गया. वे अपने स्तंभों और संपादकीय में विविध विषयों पर लिखते थे, जिसमें राजनीति, समाज, संस्कृति और व्यक्तिगत अनुभव शामिल थे. उनकी लेखन शैली और तीक्ष्ण विचारों ने पाठकों को गहराई से प्रभावित किया और उन्हें एक विशेष पहचान दिलाई.

विनोद मेहता ने अपनी आत्मकथा “Lucknow Boy: A Memoir” में अपने जीवन और करियर के अनुभवों को साझा किया, जिसे पाठकों और समीक्षकों द्वारा काफी सराहा गया. उनका निधन 8 मार्च, 2015 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत और योगदान आज भी भारतीय पत्रकारिता में जीवित है.

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