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व्यक्ति विशेष

भाग - 66.

उद्योगपति जमशेद जी टाटा

जमशेदजी टाटा एक प्रमुख भारतीय उद्योगपति थे जिन्हें भारतीय उद्योग जगत के जनक के रूप में माना जाता है. वे टाटा समूह के संस्थापक थे, जो आज भारत के सबसे बड़े और सबसे प्रतिष्ठित व्यावसायिक समूहों में से एक है. जमशेदजी टाटा का जन्म 3 मार्च 1839 को नवसारी, गुजरात में हुआ था.

उन्होंने भारत में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की और उनके द्वारा स्थापित उद्योगों में इस्पात, ऊर्जा, होटल और शिक्षा शामिल हैं. जमशेदजी टाटा ने भारत के पहले इस्पात मिल, टिस्को (अब टाटा स्टील), की स्थापना की और उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) बैंगलोर की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका मानना था कि शिक्षा और विज्ञान भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

जमशेदजी टाटा की विरासत आज भी उनके द्वारा स्थापित उद्योगों और संस्थानों के माध्यम से जीवित है. उनकी मृत्यु 19 मई 1904 को हुई थी, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य और उनकी विचारधारा आज भी भारतीय उद्योग और शिक्षा जगत में प्रेरणास्रोत बनी हुई है.

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संगीतकार रवि

संगीतकार रवि, जिनका पूरा नाम रविशंकर शर्मा था, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय संगीत निर्देशकों में से एक थे. उन्होंने 1950 के दशक से लेकर 1980 के दशक तक, हिंदी फिल्मों के लिए कई यादगार और लोकप्रिय गीत बनाए. उनके संगीत में एक विशिष्ट शैली और मिठास थी, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी.

रवि के संगीत में शास्त्रीय भारतीय संगीत के तत्वों का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन उन्होंने अपने गीतों में लोक संगीत के तत्वों को भी समावेश किया. उन्होंने बॉलीवुड की कई प्रसिद्ध फिल्मों जैसे ‘छोटी बहू’, ‘गुमराह’, ‘हमराज़’, ‘नील कमल’, और ‘खानदान’ के लिए संगीत दिया. उनके द्वारा रचित गीतों में ‘बाबुल की दुआएँ लेती जा’, ‘चौदहवीं का चांद हो’, और ‘तुम बिन जाऊं कहां’ जैसे क्लासिक हिट शामिल हैं.

रवि ने अपने संगीत के माध्यम से न सिर्फ भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया, बल्कि अपने समय के कई महान गायकों और गायिकाओं के साथ काम करके उन्हें भी एक नई पहचान दी. उनका संगीत आज भी लोकप्रिय है और भारतीय संगीत के प्रेमियों द्वारा बहुत सराहा जाता है.

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शास्त्रीय गायक ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान

ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान एक प्रतिष्ठित भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे, जिन्होंने अपने संगीत कैरियर में बहुत प्रशंसा और सम्मान प्राप्त किया. उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के ख़्याल और ठुमरी गायन शैलियों में महारथ हासिल थी. वे रामपुर-सहसवान घराने के एक प्रमुख गायक थे और उन्होंने इस घराने की परंपरा को आगे बढ़ाया.

ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान ने अपने गायन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, जिनमें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण शामिल हैं. उनकी गायकी ने न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया भर में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया.

उनके शिष्यों में कई प्रमुख गायक शामिल हैं, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत करते रहे हैं। उनकी गायनी में गहराई, भावना और तकनीक का अद्भुत संयोजन था, जिसने उन्हें अपने समय के सबसे विशिष्ट गायकों में से एक बना दिया.

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अभिनेता जसपाल भट्टी

जसपाल भट्टी एक प्रसिद्ध भारतीय टेलीविजन और फिल्म अभिनेता थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी सटायरिकल हास्य शैली के लिए जाना जाता था. वे 1980- 90 के दशक में अपने टीवी शो ‘फ्लॉप शो’ और ‘उल्टा पुल्टा’ के माध्यम से घर-घर में लोकप्रिय हुए. इन शोज में उन्होंने समाज की विभिन्न समस्याओं और विसंगतियों को हास्य के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को न केवल हंसाया बल्कि सोचने पर भी मजबूर किया.

जसपाल भट्टी की हास्य शैली विशेष रूप से उनके समय की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों पर तीखी टिप्पणी प्रस्तुत करती थी. उनके हास्य में व्यंग्य का ऐसा तत्व था जो आम आदमी की दैनिक चुनौतियों और विडम्बनाओं को उजागर करता था.

उन्होंने न केवल टेलीविजन पर बल्कि कई हिंदी और पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया. जसपाल भट्टी की अचानक मृत्यु ने उनके प्रशंसकों और समकालीन हास्य अभिनेताओं को गहरा दुःख पहुंचाया. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका काम और उनकी शैली भारतीय हास्य कला के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में याद की जाती है. उनके काम ने उन्हें भारतीय हास्य के एक अमर चरित्र के रूप में स्थापित किया.

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संगीतकार शंकर महादेवन

शंकर महादेवन एक भारतीय गायक और संगीतकार हैं, जो मुख्यतः हिन्दी, तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्मों के लिए अपने संगीत के लिए प्रसिद्ध हैं. वे शंकर-एहसान-लॉय (SEL) संगीत तिकड़ी के सदस्य के रूप में सबसे अधिक पहचाने जाते हैं, जो भारतीय फिल्म संगीत उद्योग में अपने अद्वितीय और नवीन संगीत शैली के लिए प्रसिद्ध है.शंकर महादेवन का जन्म  03 मार्च 1967 को चेंबूर, मुंबई में हुआ था.

शंकर महादेवन की शैली विविधतापूर्ण है, और वे क्लासिकल, जैज़, रॉक और इलेक्ट्रॉनिक संगीत के तत्वों को अपने संगीत में मिश्रित करते हैं. उन्होंने ब्रीथलेस जैसे गाने के साथ अपार लोकप्रियता प्राप्त की, जिसमें उन्होंने लगभग बिना रुके गाया, जिससे यह एक “ब्रीथलेस” प्रदर्शन की तरह प्रतीत होता है.

उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया है, जैसे ‘दिल चाहता है’, ‘कल हो ना हो’, ‘लक्ष्य’, ‘रॉक ऑन!!’,और ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’. उनके संगीत ने उन्हें न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्धि दिलाई है.

शंकर महादेवन ने अपने संगीत कैरियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं. वे एक प्रशिक्षित शास्त्रीय गायक भी हैं, और उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपने संगीत में एक आधुनिक स्पर्श दिया है. उनके संगीत और गायन का अनूठा मिश्रण उन्हें एक विशिष्ट पहचान देता है.

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राइफलमैन संजय कुमार

राइफलमैन संजय कुमार एक भारतीय सेना के जवान हैं, जिन्हें उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए प्रतिष्ठित परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया है. परम वीर चक्र भारतीय सेना में सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है, जो युद्ध के मैदान में असाधारण वीरता और बलिदान के लिए दिया जाता है.

संजय कुमार को यह सम्मान करगिल युद्ध (1999) के दौरान उनके असाधारण साहस और निडरता के लिए दिया गया था. वे उस समय 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स के साथ सेवा में थे और उन्होंने करगिल के पहाड़ी क्षेत्र में भारी गोलाबारी और मुश्किल परिस्थितियों में भी असाधारण वीरता दिखाई.

उनकी वीरता की कहानियां और उनकी बहादुरी भारतीय सैन्य इतिहास में उल्लेखनीय हैं और उन्हें देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत माना जाता है. उनका साहस और दृढ़ता उन्हें भारतीय सेना के सबसे सम्मानित सैनिकों में से एक बनाती है.

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अभिनेत्री तनीषा मुखर्जी

तनीषा मुखर्जी एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं जो हिंदी और तमिल फिल्म उद्योग में काम कर चुकी हैं. वह प्रसिद्ध अभिनेत्री काजोल और निर्माता-निर्देशक तनुजा की छोटी बहन हैं, जिससे उन्हें भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्म हुआ है.

तनीषा मुखर्जी ने 2003 में फिल्म “स्स्स्श… फिर कोई है” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने बाद में “नील एन निक्की”, “सरकार” और “तमिल फिल्म “उन्नाले उन्नाले” में भी अभिनय किया. हालांकि, वे अपनी बड़ी बहन काजोल या अपनी मां तनुजा की तरह बॉलीवुड में उतनी सफल नहीं हुईं, लेकिन उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में अपनी पहचान बनाई.

तनीषा रियलिटी टीवी शो “बिग बॉस 7” में अपनी उपस्थिति के लिए भी जानी जाती हैं, जहां उन्होंने अपनी मजबूत प्रतियोगिता और व्यक्तित्व के साथ काफी ध्यान आकर्षित किया. शो में उनके प्रदर्शन ने उन्हें घरेलू नाम बना दिया और उन्हें एक नई पहचान मिली. वे अपने फिल्मी कैरियर के अलावा विभिन्न टेलीविजन शो और इवेंट्स में भी सक्रिय रही हैं.

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अभिनेत्री श्रद्धा कपूर

श्रद्धा कपूर एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं जो मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम करती हैं. वह अभिनेता शक्ति कपूर और शिवांगी कोल्हापुरे की बेटी हैं, और प्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे की भतीजी हैं. श्रद्धा की फिल्मी बैकग्राउंड उन्हें भारतीय सिनेमा में एक पहचान देती है.

श्रद्धा कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म “तीन पत्ती” से की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान 2011 में आई फिल्म “लव का दी एंड” से मिली. हालांकि, उनके कैरियर का बड़ा ब्रेक 2013 में आई फिल्म “आशिकी 2” से मिला, जिसमें उनके अभिनय और गायन ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई. इस फिल्म के लिए उन्हें कई पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया और उन्होंने इसमें अपनी गायन प्रतिभा भी प्रदर्शित की.

इसके बाद, श्रद्धा ने “एक विलेन”, “हैदर”, “एबीसीडी 2”, “बागी”, “स्त्री” और “छिछोरे” जैसी फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें उनके विविध अभिनय कौशल को सराहा गया. उनकी फिल्में न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, बल्कि आलोचकों ने भी उनके काम की भी प्रशंसा हुई.

श्रद्धा कपूर की अभिनय प्रतिभा के अलावा, वे अपने गायन कौशल के लिए भी जानी जाती हैं. उन्होंने अपनी कई फिल्मों में गाने गाए हैं और उन्हें एक प्रतिभाशाली गायिका के रूप में भी माना जाता है. श्रद्धा की फैशन सेंस और उनकी सार्वजनिक उपस्थितियाँ भी चर्चा में रहती हैं.

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छत्रपति राजाराम महाराज

छत्रपति राजाराम महाराज, मराठा साम्राज्य के एक महत्वपूर्ण शासक थे. वे छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे बेटे और छत्रपति संभाजी महाराज के भाई थे. राजाराम महाराज का शासनकाल मराठा साम्राज्य के लिए एक कठिन समय था, जब मराठा और मुगल साम्राज्य के बीच लंबे समय तक युद्ध हो रहे थे.

छत्रपति राजाराम महाराज ने 1689 में, अपने भाई संभाजी की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली. उनका शासनकाल मुगलों के साथ लगातार संघर्षों से भरा रहा. उन्होंने जिंजी के किले से अपने शासन की शुरुआत की और बाद में मराठा साम्राज्य को और मजबूत करने के लिए कई अभियान चलाए.

राजाराम महाराज के नेतृत्व में, मराठा सेना ने मुगलों के खिलाफ कई गुरिल्ला युद्ध लड़े और उन्होंने मराठा साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हालांकि, उनका शासनकाल लगातार युद्ध और संघर्षों से ग्रस्त रहा.

राजाराम महाराज की मृत्यु 1700 में हुई, और उनके निधन के बाद उनकी पत्नी, ताराबाई, ने अपने छोटे बेटे शिवाजी II के लिए रेजेंसी की और मराठा साम्राज्य की रक्षा और विस्तार के लिए संघर्ष जारी रखा. राजाराम महाराज का शासनकाल और उनकी वीरता मराठा इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद की जाती है.

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औरंगजेब

औरंगजेब भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद और प्रभावशाली सम्राटों में से एक थे, जिन्होंने 1658 से 1707 तक मुगल साम्राज्य पर शासन किया. वह मुगल सम्राट शाहजहां और मुमताज महल के तीसरे पुत्र थे. औरंगजेब का शासनकाल भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक उल्लेखनीय अवधि थी, जिसमें उन्होंने मुगल साम्राज्य को इसकी सर्वोच्च सीमा तक विस्तारित किया.

औरंगजेब अपनी धार्मिक नीतियों और इस्लामिक कानूनों (शरिया) के सख्त अनुपालन के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने साम्राज्य में धार्मिक नीतियों को सख्त किया, जैसे कि जजिया कर की पुनः स्थापना और गैर-इस्लामी धार्मिक स्थलों पर प्रतिबंध. उनकी इन नीतियों ने कई बार साम्राज्य के विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न किया.

औरंगजेब के शासनकाल में, मुगल साम्राज्य ने भौगोलिक रूप से अपना विस्तार दक्षिण भारत तक किया, जिसमें दक्कन, मैसूर और अन्य क्षेत्र शामिल थे. हालांकि, उनके शासन के अंतिम वर्षों में, साम्राज्य विभिन्न आंतरिक विद्रोहों और आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त हो गया. औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य की शक्ति धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगी, जिसने अंततः ब्रिटिश उपनिवेशवाद के लिए मार्ग प्रशस्त किया.

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अभिनेत्री अमीरबाई कर्नाटकी

अमीरबाई कर्नाटकी भारतीय संगीत और सिनेमा की एक प्रतिष्ठित हस्ती थीं. वे मुख्य रूप से 1940 – 50 के दशक की फिल्मों में अपने गायन और अभिनय के लिए जानी जाती थीं. अमीरबाई मूल रूप से कर्नाटक की थीं और उन्होंने हिंदी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं में गाने गाए.

वे विशेष रूप से अपनी गायिकी के लिए प्रसिद्ध थीं, जिसमें उन्होंने कई भजन, ग़ज़ल और फिल्मी गीत गाए. उनका गायन शैली भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित थी, और उन्होंने अपने समय की कई प्रमुख फिल्मों में अपनी आवाज दी. उनके कुछ प्रसिद्ध गानों में “बईयाँ ना धरो” और “दूर पपीहा बोला” शामिल हैं.

अमीरबाई कर्नाटकी ने अपनी गायिकी के माध्यम से उस समय के संगीत प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया और उनके योगदान को भारतीय संगीत इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है. उनका निधन 3 मार्च1965 को हुआ, लेकिन उनके गीत और संगीत आज भी उनके प्रशंसकों द्वारा सराहे जाते हैं.

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बालकृष्ण शिवराम मुंजे

बालकृष्ण शिवराम मुंजे, जिन्हें डॉ. बी. एस. मुंजे भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास में एक जटिल व्यक्तित्व हैं. वे मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मेंटर के रूप में जाने जाते हैं और हिन्दु महासभा के प्रमुख सदस्य थे. उनकी गिनती स्वतंत्रता सेनानी के रूप में नहीं होती है, बल्कि वे एक राजनीतिक और सामाजिक विचारक के रूप में अधिक प्रसिद्ध हैं.

मुंजे एक शिक्षाविद और चिकित्सक थे और उन्होंने जापान और अन्य देशों की यात्राएं कीं, जहाँ उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण और राष्ट्रवादी शिक्षा प्रणालियों का अध्ययन किया. उनके विचारों ने बाद में RSS की स्थापना और इसके संगठनात्मक ढांचे पर गहरा प्रभाव डाला.

मुंजे ने भारतीय युवाओं में सैन्य अनुशासन और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने के लिए विद्यार्थी संघ और अन्य संगठनों की स्थापना की. उन्होंने भारतीय राजनीति और समाज में गहरे विचारों को प्रेरित किया.

हालांकि, उनका योगदान और उनकी विचारधारा विवादास्पद रही है, और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सम्मेलनीय स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में नहीं आते. उनका जीवन और काम भारतीय इतिहास में विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से देखा जाता है.

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उर्दू शायर फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी, जिनका असली नाम रघुपति सहाय था, उर्दू साहित्य के प्रसिद्ध शायरों में से एक थे. वे 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे थे और उन्होंने उर्दू शायरी में अपनी अनूठी शैली और गहरी फिलॉसफिकल अंतर्दृष्टि के लिए व्यापक प्रशंसा प्राप्त की. फ़िराक़ ने अपने शायरी में प्रेम, नैतिकता, और सामाजिक मुद्दों को स्पर्श किया और उनकी रचनाएँ उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपने लेखन में जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया, जिसमें व्यक्तिगत अनुभवों से लेकर राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान तक शामिल हैं. उनकी शायरी में गहरी मानवीय संवेदनाएँ और फिलॉसफिकल गहराई दिखाई देती है.

फ़िराक़ ने अपने शैक्षिक जीवन में भी उल्लेखनीय योगदान दिया. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे. उनकी शिक्षा और व्यावसायिक जीवन ने उनकी लेखनी को भी प्रभावित किया.

फ़िराक़ गोरखपुरी को उनके लेखन के लिए कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण शामिल हैं. उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों में ‘गुल-ए-नग़मा’, ‘रूबाइयात-ए-फ़िराक़’, और ‘शबिस्तान-ए-वजूद’ शामिल हैं. उनकी शायरी उर्दू साहित्य में उनकी अमर उपस्थिति को सुनिश्चित करती है और आज भी उनकी रचनाएँ उर्दू शायरी के प्रेमियों द्वारा पढ़ी और सराही जाती हैं.फ़िराक़ गोरखपुरी का निधन 3 मार्च, 1892 को हुआ था.

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