राजनीतिज्ञ बेनेगल नरसिंह राव
बेनेगल नरसिंह राव एक प्रमुख भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश थे. उनका जन्म 26 फरवरी, 1887 को मंगलोर, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान कर्नाटक) में हुआ था और उनका निधन 30 नवंबर, 1953 को स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में हुआ.
बी. एन. राव ने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने औपनिवेशिक शासन से एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के विकास को सुविधाजनक बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई. वे संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, लेकिन संविधान की ड्राफ्टिंग के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण सुचना प्रदान किए.
1946 में राव को संवैधानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने डॉ. बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में सात विशेषज्ञों की कोर ड्राफ्टिंग कमेटी के साथ काम किया. उन्होंने अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, और यूके की यात्रा की और विद्वानों, न्यायाधीशों और विधायी कानून के अधिकारियों के साथ चर्चा की. इसके बाद, उन्होंने 1948 की शुरुआत में संविधान का मूल मसौदा तैयार किया, जिस पर बाद में बहस हुई, संशोधित किया गया, और अंततः 26 नवंबर,1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया. इस प्रक्रिया में उन्होंने निर्देशक सिद्धांतों को संविधान में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने इस काम के लिए किसी भी पारिश्रमिक को स्वीकार करने से इंकार कर दिया.
अपने अंतिम वर्षों में, बी. एन. राव ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया, जिससे उन्हें एक वैश्विक कद प्राप्त हुआ.
उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें भारतीय संविधान के वास्तविक रचयिता के रूप में माना जाता है, जिसने देश के लोकतांत्रिक संविधान की नींव रखी. उनका यह योगदान भारतीय इतिहास में उन्हें एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है.
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भूतपूर्व उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक
गोपाल स्वरूप पाठक भारत के चौथे उपराष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल 31 अगस्त 1969 से 30 अगस्त 1974 तक था. उनका जन्म 26 फरवरी 1896 को बरेली, उत्तर प्रदेश में हुआ था, और उनका निधन 4 अक्टूबर 1982 को हुआ. पाठक ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. और एलएलबी. की डिग्री प्राप्त की थी. वे एक निर्दलीय राजनीतिज्ञ थे और उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया. इसके अलावा, वे राज्य सभा के सदस्य और कर्नाटक के राज्यपाल भी रहे. उनकी पत्नी का नाम प्रकाशवती था.
गोपाल स्वरूप पाठक का राजनीतिक और न्यायिक कैरियर विविधतापूर्ण था. वे 1945-1946 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे, 1960 से 1967 तक राज्य सभा के सदस्य रहे, और इस अवधि के दौरान 1966-1967 में केंद्रीय विधि मंत्री के पद पर भी आसीन थे. उन्होंने मैसूर राज्य (वर्तमान में कर्नाटक) के राज्यपाल के रूप में 1967 से 1969 तक सेवा की. उन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में भी सेवा करने का अवसर मिला, जिसमें मैसूर विश्वविद्यालय, बंगलोर विश्वविद्यालय, और कर्णाटक विश्वविद्यालय शामिल हैं.
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अभिनेता मनमोहन कृष्ण
मनमोहन कृष्ण भारतीय सिनेमा में एक प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में 1950 – 80 के दशक के दौरान अपनी अद्वितीय अभिनय प्रतिभा के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान सहायक भूमिकाओं में काम किया और अक्सर पिता, पुलिस इंस्पेक्टर, जज और अन्य प्राधिकरण वाले पात्रों के रूप में नजर आए.
मनमोहन कृष्ण की अभिनय क्षमता ने उन्हें फिल्म निर्देशकों और दर्शकों के बीच एक विश्वसनीय और सम्मानित व्यक्तित्व बना दिया. उन्होंने कई हिट फिल्मों में भाग लिया, जिसमें “दो बीघा ज़मीन”, “धूल का फूल”, “वक्त”, और “दीवार” जैसी कुछ प्रमुख फिल्में शामिल हैं.
उनके अभिनय ने न केवल उन्हें फिल्म उद्योग में प्रतिष्ठा दिलाई, बल्कि उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से भी नवाजा गया. मनमोहन कृष्ण ने अपनी उम्दा अभिनय क्षमता और अपने किरदारों के प्रति समर्पण के लिए दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया. उनका निधन उनके अभिनय कैरियर के बाद हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएँ आज भी भारतीय सिनेमा के प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं.
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निर्देशक मनमोहन देसाई
मनमोहन देसाई भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के एक प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक और निर्माता थे, जिन्होंने 1970 – 80 के दशक में बॉलीवुड की कुछ सबसे यादगार और सफल फिल्मों का निर्देशन किया. उन्हें मसाला फिल्मों के पितामह के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, और रोमांस को एक सिंगल नैरेटिव में मिलाने की कला में महारत हासिल की थी.
मनमोहन देसाई का जन्म 26 फरवरी 1937 को मुंबई में हुआ था. उनकी फिल्में आम तौर पर बड़े पैमाने पर एंटरटेनमेंट प्रदान करती थीं और उनका लक्ष्य दर्शकों को खुशी और उत्साह की भावना से भर देना होता था. उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “अमर अकबर एंथनी” (1977), “नसीब” (1981), “कुली” (1983), और “धरम वीर” (1977) शामिल हैं. इन फिल्मों ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई, बल्कि आज भी वे क्लासिक के रूप में याद की जाती हैं.
मनमोहन देसाई का मानना था कि सिनेमा का मूल उद्देश्य मनोरंजन करना है. उनकी फिल्मों में अक्सर भाईचारे और पारिवारिक मूल्यों के संदेश होते थे, जो उस समय के भारतीय समाज में गहराई से जड़े हुए थे. उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ गहरा संबंध विकसित किया और उनके साथ कई सफल फिल्में बनाईं, जिससे अमिताभ के कैरियर में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
मनमोहन देसाई का निधन 1 मार्च 1994 को हुआ। उनकी मृत्यु के बावजूद, उनकी फिल्में और उनके योगदान को भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाता है. उनकी शैली और दृष्टिकोण ने भारतीय फिल्म निर्माण को एक नई दिशा प्रदान की और आने वाले वर्षों में कई निर्देशकों को प्रेरित किया.
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दसवें मुख्य न्यायाधीश कैलाश नाथ वांचू
कैलाश नाथ वांचू भारत के दसवें मुख्य न्यायाधीश थे, जिनका कार्यकाल 12 अप्रैल 1967 से 24 फरवरी 1968 तक रहा. उनका जन्म 26 फरवरी 1903 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. उन्होंने पंडित पिर्थि नाथ हाईस्कूल, कानपुर; मुइर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद और ऑक्सफ़ोर्ड के वाधम कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की. उन्हें भारतीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया था. उनकी मृत्यु 14 अगस्त 1988 को हुई.
वांचू की जीवनी और उपलब्धियां भारतीय न्यायिक इतिहास में उल्लेखनीय हैं, जहां उन्होंने अपने छोटे कार्यकाल के दौरान भी न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
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साहित्यकार मृणाल पाण्डे
मृणाल पाण्डे एक प्रतिष्ठित भारतीय पत्रकार, लेखक, और टेलीविजन हस्ती हैं, जिनका जन्म 26 फरवरी 1946 को मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में हुआ था. उन्हें उनके साहित्यिक कार्यों के साथ-साथ मीडिया और पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. अगस्त 2009 तक वे हिंदी दैनिक “हिन्दुस्तान” की सम्पादिका थीं, जो भारत में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबारों में से एक है. मृणाल पाण्डे की माँ, शिवानी, एक जानी-मानी उपन्यासकार और लेखिका थीं, जिससे साहित्य के प्रति उनकी रुचि विरासत में मिली.
मृणाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में पूरी की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. किया. उन्होंने अंग्रेजी और संस्कृत साहित्य, प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व, शास्त्रीय संगीत, और ललित कला में शिक्षा प्राप्त की. उनकी पहली कहानी 21 वर्ष की उम्र में हिन्दी साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित हुई थी. मृणाल पाण्डे ने समाज सेवा में भी गहरी रुचि दिखाई है और वह ‘सेल्फ इम्प्लायड वूमेन कमीशन’ की सदस्या रह चुकी हैं. अप्रैल 2008 में उन्हें पीटीआई (PTI) की बोर्ड सदस्या बनाया गया था.
उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ ‘अपनी गवाही’, ‘हमका दियो परदेस’, ‘एक स्त्री का विदागीत’, ‘रास्तों पर भटकते हुए आदि हैं. उन्होंने शहरी जीवन और सामाजिक परिवेश में महिलाओं की स्थिति पर केंद्रित कहानियां और उपन्यास लिखे हैं, जिसमें समाज में बदलते परिवेश और रिश्तों की उधेड़-बुन को दर्शाया गया है.
मृणाल पाण्डे ने अपनी लेखनी से न केवल साहित्यिक जगत में अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है बल्कि मीडिया और समाज सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनका काम समाज में महिलाओं के अधिकारों और स्थिति की बेहतर समझ प्रदान करता है और लोगों को प्रेरित करता है. उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य के अध्ययन और शोध के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बनी हुई हैं.
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फ्रीस्टाइल पहलवान बजरंग पुनिया
बजरंग पुनिया एक प्रसिद्ध भारतीय फ्रीस्टाइल पहलवान हैं, जिन्होंने 65 किलोग्राम वर्ग में कई अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं, जिसमें टोक्यो 2020 ओलंपिक्स में कांस्य पदक भी शामिल है. उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते हैं और कुश्ती में भारत के सबसे होनहार पहलवानों में से एक माने जाते हैं. बजरंग ने अपनी पहलवानी यात्रा बहुत कम उम्र में शुरू की थी और वे भारतीय रेलवे में भी कार्यरत हैं.
उन्होंने अर्जुन पुरस्कार (2015) और पद्म श्री (2019) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किए हैं. टोक्यो 2020 ओलंपिक्स में उन्होंने कांस्य पदक जीता. वे कई अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में स्वर्ण पदक विजेता रहे हैं, जिनमें 2018 और 2022 के कॉमनवेल्थ गेम्स शामिल हैं. बजरंग ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा झज्जर, हरियाणा में पूरी की.
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प्रथम महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी
आनंदीबाई जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर में से एक थीं. उनका जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने अमेरिका में मेडिसिन की पढ़ाई की और 1886 में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की, जिससे वे भारतीय मूल की पहली महिला डॉक्टर बनीं. आनंदीबाई ने इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने के लिए समाज की परंपरागत धारणाओं और बाधाओं को पार किया.
उनका विवाह गोपालराव जोशी से हुआ था, जो एक प्रगतिशील विचारक थे और आनंदीबाई के शिक्षा प्राप्त करने के सपने का समर्थन किया. आनंदीबाई के अमेरिका जाने और वहां शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय समाज में काफी विवादास्पद था, परंतु उन्होंने अपने लक्ष्य की ओर निरंतर प्रगति की.
वह Women’s Medical College of Pennsylvania में अध्ययन करते हुए अपने देश और विशेष रूप से महिलाओं की सेवा करने के अपने संकल्प को मजबूत करती रहीं. भारत लौटने के बाद, उन्होंने महिलाओं और बच्चों के लिए मेडिकल केयर प्रदान करने की दिशा में काम करना शुरू किया, परंतु दुर्भाग्यवश वे बहुत युवा उम्र में ही चल बसीं. आनंदीबाई जोशी का 26 फरवरी 1887 को निधन हो गया.
आनंदीबाई जोशी ने न केवल भारतीय महिलाओं के लिए शिक्षा और पेशेवर कैरियर के नए द्वार खोले, बल्कि उन्होंने विश्व स्तर पर महिलाओं के समर्थन और प्रेरणा का एक मजबूत स्रोत बनकर दिखाया. उनकी उपलब्धियां और जीवन की कहानी आज भी अनेक लोगों को प्रेरित करती हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर
विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, कवि, लेखक और राजनीतिक विचारक थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक माने जाते हैं. सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक जिले के भागुर गाँव में हुआ था.
सावरकर का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुआयामी था. उन्होंने हिन्दुत्व की अवधारणा को प्रोत्साहित किया और ‘हिन्दुत्व: हिन्दू राष्ट्रवाद की संकल्पना’ नामक पुस्तक लिखी. वे भारतीय इतिहास, संस्कृति, और समाज पर भी गहन अध्ययन करते थे.
सावरकर को उनके राजनीतिक गतिविधियों और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उनके विद्रोही विचारों के लिए दो बार काला पानी की सजा सुनाई गई. उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सेलुलर जेल में रखा गया था, जहाँ उन्होंने कई वर्षों तक कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत किया.
उनके विचारों और कार्यों ने भारतीय राजनीतिक विचारों पर गहरा प्रभाव डाला. हालांकि, उनकी विचारधारा और रणनीतियाँ विवादित रहीं हैं, और उन्हें अक्सर उनके विचारों के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है. वे आज भी भारतीय राजनीति और समाज में एक विभाजनकारी आकृति माने जाते हैं.
सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था. उनके जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद किए जाते हैं.