साहित्यकार राधाचरण गोस्वामी
राधाचरण गोस्वामी, जिनका जन्म 25 फ़रवरी, 1859 को हुआ था, भारतीय साहित्य जगत में एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व रहे हैं. उनके पिता, गल्लू जी महाराज, भी एक प्रगतिशील भक्त कवि थे, जिनमें राष्ट्रवादी राजनीति की गहरी समझ थी. राधाचरण गोस्वामी ने विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई और नाना प्रकार की तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों पर तेज प्रहार किए. उनका साहित्यिक जीवन 1877 में उनकी पुस्तक ‘शिक्षामृत’ के प्रकाशन के साथ आरम्भ हुआ था, जो उनकी पहली पुस्तकाकार रचना थी. इसके बाद उन्होंने मौलिक और अनूदित मिलाकर पचहत्तर पुस्तकों की रचना की, साथ ही उनकी तीन सौ से अधिक विभिन्न कोटियों की रचनाएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं, जिनका संकलन अब तक नहीं किया जा सका है.
गोस्वामी जी ने सामाजिक रूढ़ियों के उग्र लेकिन अहिंसक विरोध के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन की कोशिश की. वे भारतेन्दु युग के प्रमुख व्यक्तित्व थे और उन्होंने हिन्दी भाषा की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक विषयों पर भी लेखन किया और कई महान क्रान्तिकारियों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे. गोस्वामी जी कांग्रेस के आजीवन सदस्य और प्रमुख कार्यकर्ता रहे, जिन्होंने विशेष रूप से वृन्दावन के विकास में अहम भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने नगरपालिका के सदस्य के रूप में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं की अगुवाई की. उन्होंने वृन्दावन की कुंज गलियों में छह पक्की सड़कों का निर्माण करवाया, जिससे इस पवित्र नगर की संरचनात्मक और सामाजिक उन्नति में योगदान मिला.
उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित संगोष्ठियाँ और शोध पत्र भी आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भारतेंदु युग और उनके योगदान पर विस्तृत चर्चा होती है. ब्रज संस्कृति शोध संस्थान जैसे मंचों पर उनके कार्यों और उनकी विरासत पर प्रकाश डाला जाता है, जो ब्रज के इतिहास, पुरातत्व, कला, साहित्य और लोक संस्कृति की शोध अकादमी है.
राधाचरण गोस्वामी की विरासत न केवल उनके साहित्यिक योगदान में निहित है, बल्कि उनके सामाजिक सुधारों, राजनीतिक जागरूकता और सांस्कृतिक उन्नति के प्रति समर्पण में भी परिलक्षित होती है. उनके कार्य आज भी भारतीय साहित्य और समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
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मेहर बाबा
मेहर बाबा, जिनका जन्म 25 फरवरी, 1894 को पुणे, भारत में मेरवान शेरियार ईरानी के रूप में हुआ था, एक प्रमुख आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने अपने युग में खुद को अवतार, या मानव रूप में भगवान घोषित किया था. उनकी शिक्षाओं और जीवन कार्यों ने भारत से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तक दुनिया भर में महत्वपूर्ण अनुयायियों को आकर्षित किया है. मेहर बाबा का प्रभाव पॉप संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में व्याप्त हो गया है, जिसमें बॉबी मैकफेरिन के 1988 के हिट गीत में प्रयुक्त वाक्यांश “चिंता मत करो; खुश रहो” को प्रेरित करना भी शामिल है. उनके अनुयायियों में उल्लेखनीय हस्तियों में संगीतकार मेलानी सफ़्का और पीट टाउनशेंड और पत्रकार सर टॉम हॉपकिंसन शामिल हैं.
10 जुलाई, 1925 से, मेहर बाबा ने अपने जीवन के अंतिम 44 वर्षों तक मौन रखा, शुरुआत में वर्णमाला बोर्ड के माध्यम से और बाद में इशारों के माध्यम से संवाद किया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह “सिखाने के लिए नहीं बल्कि जागृत करने के लिए आए हैं”, यह सुझाव देते हुए कि सबसे गहन सत्य मौन में बताए और समझे जाते हैं.
मेहर बाबा के प्रारंभिक जीवन में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक परिवर्तन हुआ, जिसकी शुरुआत 19 साल की उम्र में हज़रत बाबाजान से मुलाकात के बाद हुई, जिन्होंने उन्हें एक आध्यात्मिक नेता के रूप में पहचाना. समय के साथ, उन्हें अन्य आध्यात्मिक हस्तियों का सामना करना पड़ा जिन्होंने उन्हें अपने अनुभवों को एकीकृत करने में मदद की, जिससे उन्हें शिष्यों का एक समूह स्थापित करने और व्यापक धर्मार्थ और आध्यात्मिक कार्य करने में मदद मिली. उनका आश्रम, मेहराबाद, उनकी गतिविधियों का केंद्र बिंदु बन गया, जिसमें गरीबों की सेवा और एक अस्पताल और स्कूलों की स्थापना शामिल थी.
1931 से 1937 तक पश्चिम की उनकी यात्राओं का उद्देश्य नए पंथों या संगठनों की स्थापना के इरादे के बिना, लोगों को सभी जीवन की एकता की एक नई चेतना के लिए जागृत करना था. मेहर बाबा ने एक ऐसा संदेश देने की कोशिश की जो धार्मिक सीमाओं से परे हो, सार्वभौमिक प्रेम और सेवा पर जोर दे.
मेहर बाबा के काम में “मस्तूल” कहे जाने वाले व्यक्तियों के साथ गहरा जुड़ाव भी शामिल था, जो आध्यात्मिक रूप से उन्नत हैं लेकिन बाहरी तौर पर अपने गहन आध्यात्मिक अनुभवों के कारण असंतुलित दिखाई दे सकते हैं. उन्होंने उन्हें आध्यात्मिक प्रकाश के भंडार के रूप में देखते हुए, उन्हें व्यक्तिगत देखभाल की पेशकश की. इसके अलावा, मानवता के आध्यात्मिक उत्थान के लिए उनके प्रयास उनके मौन अभ्यास के माध्यम से जारी रहे, जिसे उन्होंने 31 जनवरी, 1969 को अपनी मृत्यु तक बनाए रखा. भारत के मेहराबाद में मेहर बाबा का मकबरा-मंदिर, दुनिया भर में उनके अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल बना हुआ है. .
जीवन के लक्ष्य पर उनकी शिक्षाएँ – ईश्वर के साथ एकता का एहसास करना – और उनके प्रेम और सेवा के जीवन, जिसमें गरीबों और कुष्ठरोगियों के साथ उनका काम भी शामिल है, ने उनके अनुयायियों और आध्यात्मिक परिदृश्य पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है.
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साहित्यकार अमरनाथ झा
अमरनाथ झा, जिनका जन्म 25 फ़रवरी, 1897 को बिहार के मधुबनी ज़िले में हुआ था और जिनका निधन 2 सितंबर, 1955 को हुआ, भारत के प्रमुख विद्वान, साहित्यकार, और शिक्षाविद् थे. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे, और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी थे. अमरनाथ झा को हिन्दी भाषा के प्रति उनके योगदान और इसे राजभाषा बनाने के उनके प्रयासों के लिए जाना जाता है.
उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद में पूरी की और अपने अकादमिक जीवन में कई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कीं. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिनमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति और उत्तर प्रदेश और बिहार के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष शामिल हैं.
उनकी रचनाओं में ‘संस्कृत गद्य रत्नाकर’, ‘दशकुमारचरित की संस्कृत टीका’, और ‘हिंदी साहित्य संग्रह’ जैसी कृतियाँ शामिल हैं, जो उनकी विद्वता और साहित्यिक प्रतिभा को दर्शाती हैं. उन्हें उनके अकादमिक योगदान के लिए इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालयों से एल.एल.डी. और पटना विश्वविद्यालय से डी.लिट् की उपाधि प्रदान की गई थी. 1954 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
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अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा
डैनी डेन्जोंगपा एक प्रमुख भूमिका निभाने वाले विश्व प्रसिद्ध अभिनेता हैं. उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों में अपनी शानदार अभिनय के लिए प्रशंसा प्राप्त की है. उनका जन्म 26 जुलाई 1946 को सिक्किम में एक बौद्ध परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 1970 के दशक में फिल्म ‘जरूरत’ से हुई थी. उसके बाद से ही वे फिल्म इंडस्ट्री के एक प्रमुख चेहरे बन गए.
डेन्जोंगपा ने पहली प्रमुख नकारात्मक भूमिका फिल्म ‘धुंध’ में निभाई थी. उनकी कुछ महत्वपूर्ण फिल्में
जवाब, मेरा दोस्त मेरा दुश्मन, फ़िर वही रात, काली घटा और घातक.
डैनी डेन्जोंगपा ने हिन्दी फिल्मों के साथ साथ उन्होंने नेपाली, तेलुगु और तमिल फिल्मों में भी काम किया है. वे अपने खलनायक और सहायक अभिनेता के किरदारों के लिए जाने जाते हैं. फिल्म ‘घातक’ में उनके द्वारा निभाया गया किरदार ‘कात्या’ आज भी लोगों को भुलाए नहीं भूलता. डेन्जोंगपा को भारत के सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मान से सम्मानित किया गया था.
इसके अलावा, उन्होंने कई अन्य पुरस्कार जीते और उन्हें अपने योगदान के लिए सिनेमा के क्षेत्र में अनेक सम्मान भी प्राप्त हुए हैं। उनका अभिनय और काम उन्हें आधुनिक सिनेमा के एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कलाकार बना देते हैं.
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अभिनेता शाहिद कपूर
शाहिद कपूर एक अभिनेता हैं जो हिंदी फिल्म उद्योग में अपना कैरियर बनाया है. उनका जन्म 25 फरवरी, 1981 को मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था. उनके पिता, प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता पंकज कपूर और अभिनेत्री व शास्त्रीय नर्तकी नीलिमा अज़ीम,कपूर हैं.
शाहिद कपूर ने अभिनेता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने से पहले कई संगीत विडियो और विज्ञापनों में काम कर चुके थे.
कपूर ने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘इश्क विश्क’ से किया था. इस फिल्म से उन्हें फ़िल्म फेयर बेस्ट मेल डेब्यू पुरस्कार मिला. उनकी प्रमुख फ़िल्में :-
इश्क विश्क, फ़िदा, दिल मांगे मोर, दीवाने हुए पागल, वाह ! लाइफ हो तो ऐसी, शिखर, चुप चुप के, विवाह, जब वी मेट, चांस पे डांस ,फटा पोस्टर निकला हीरो, उड़ता पंजाब और पद्मावती आदि.
उनका वास्तविक फिल्मी उद्दीपन 2006 की फिल्म “जब वी मिले” के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने करीना कपूर के साथ अद्वितीय अभिनय किया। इस फिल्म ने उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए नामित किया और उन्हें भारतीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की नामांकन भी मिला.
शाहिद कपूर ने इसके बाद भी कई सफल फिल्मों में काम किया है, जैसे “हैदर”, “उड्डान”, “कबीर सिंह” आदि, उनका अभिनय और प्रतिभा का प्रशंसकों में बहुत उत्साह है, और वे भारतीय सिनेमा के महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध अभिनेता में गिने जाते हैं.
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अभिनेत्री उर्वशी रौतेला
उर्वशी रौतेला एक फिल्म अभिनेत्री और पूर्व मॉडल हैं. उनका जन्म 25 फरवरी 1994 को हुआ था. उन्होंने अपना कैरियर मॉडलिंग से शुरू किया और फिर बॉलीवुड में अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया।
उर्वशी रौतेला का फिल्मी डेब्यू 2013 में “सिंह साहब द ग्रेट” (Singh Saab The Great) में हुआ था, जिसमें उन्होंने एक साथ मेहरारा हार के साथ काम किया था. उन्होंने इसके बाद “सनम रे” (Sanam Re), “ग्रेट ग्रैंड मस्ती” (Great Grand Masti), “हासिना पार्कर” (Hate Story 4) जैसी कई फिल्मों में भी काम किया है.
उर्वशी रौतेला को उनकी खूबसूरती, गतिशीलता और फिटनेस के लिए भी प्रशंसा मिली है. उन्होंने मॉडलिंग के क्षेत्र में भी अपना नाम बनाया है और कई विज्ञापन कैम्पेन्स में नजर आई हैं. वे बॉलीवुड के युवा और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक हैं.
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अभिनेत्री दिव्या भारती
दिव्या भारती एक फिल्म अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में हिंदी और तेलुगु सिनेमा में काम किया. उनका जन्म 25 फरवरी, 1974 को हुआ था और उनका निधन 5 अप्रैल, 1993 को मात्र 19 वर्ष की उम्र में हो गया. दिव्या भारती ने अपने छोटे फिल्मी कैरियर में बहुत ही कम समय में बड़ी सफलता हासिल की. उन्होंने अपनी पहली फिल्म “बॉबी” (तेलुगु) से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और फिर “शोला और शबनम”, “दिल का क्या कसूर”, “दीवाना” जैसी हिंदी फिल्मों में अभिनय करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.
दिव्या भारती का निधन एक रहस्यमयी घटना थी, जब वह अपने मुंबई स्थित अपार्टमेंट की पांचवीं मंजिल से गिर गईं. उनकी मौत को लेकर कई अटकलें और सिद्धांत प्रस्तुत किए गए, लेकिन आज तक उनकी मौत का सही कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है. उनकी मौत के बाद, उन्हें फिल्म इंडस्ट्री और उनके प्रशंसकों द्वारा बहुत याद किया गया और उनकी अचानक और असमय मौत ने सभी को गहरा दुख पहुंचाया. दिव्या भारती का नाम आज भी उन चंद अभिनेत्रियों में गिना जाता है, जिन्होंने बहुत कम समय में अपने अभिनय से अमिट छाप छोड़ी.
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गीतकार एस. एच. बिहारी
एस. एच. बिहारी, जिनका पूरा नाम शमसुल हुदा बिहारी था, एक प्रसिद्ध भारतीय गीतकार थे जिन्होंने मुख्यतः हिंदी और उर्दू भाषाओं में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की. उनका जन्म 1922 में बिहार के आरा जिले में हुआ था, और उनका निधन 25 फरवरी 1987 को हुआ. उनका कैरियर 1954 से 1986 तक चला, जिस दौरान उन्होंने कई यादगार गीत लिखे. बिहारी ने अपनी शिक्षा कोलकाता में पूरी की और प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की. वह मोहन बगान की टीम के लिए फुटबॉल भी खेले. 1947 में वे बंबई (मुंबई) चले गए और वहां उन्होंने फिल्म उद्योग में अपना कैरियर शुरू किया.
एस. एच. बिहारी की प्रसिद्धि का एक बड़ा कारण उनका संगीतकार ओ.पी. नैय्यर, गायक मोहम्मद रफी, और गायिका आशा भोंसले के साथ सहयोग था. उन्होंने फिल्म ‘शर्त’ में “न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे” जैसे हिट गीत लिखे, जो उस समय काफी लोकप्रिय हुए. 1960 के दशक में ओ.पी. नैय्यर के साथ उनकी जोड़ी ने कई सदाबहार गीत दिए, जिनमें “रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना” और “आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया” शामिल हैं. उनके कुछ अन्य प्रसिद्ध गीतों में “कजरा मोहब्बत वाला” और “तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया” भी एस. एच. बिहारी के गीतों का योगदान हिंदी सिनेमा के संगीत में अमिट है. उनके द्वारा लिखित गीतों में जीवन की विविधताओं और भावनाओं का चित्रण मिलता है, जिसने संगीतप्रेमियों के हृदय को छू लिया. उनके गीतों में गहरी भावनाएं, सूक्ष्म अभिव्यक्तियां और सामाजिक संदर्भों का समावेश देखने को मिलता है. उनके द्वारा लिखे गए कुछ प्रसिद्ध गीत “न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे”, “कजरा मोहब्बत वाला”, और “तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया” आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी अमरता को दर्शाते हैं.
एस. एच. बिहारी की विशेषता उनकी विविध भाषाओं पर पकड़ और उनके गीतों में भावनाओं की गहराई थी, जिसने उन्हें समकालीन गीतकारों से अलग पहचान दिलाई. उनके गीतों में जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़ी खूबसूरती से पिरोया गया है, जिससे संगीतप्रेमियों को एक अनोखा अनुभव प्राप्त होता है. उनकी कृतियाँ संगीत के क्षेत्र में उनकी अमिट छाप और योगदान को दर्शाती हैं.