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व्यक्ति विशेष

भाग - 53.

छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के सबसे महान योद्धाओं में से एक हैं और मराठा साम्राज्य के संस्थापक हैं. उनका जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. उन्हें उनकी वीरता, कूटनीति, और प्रशासनिक कौशल के लिए जाना जाता है. शिवाजी महाराज ने मुगल साम्राज्य, आदिलशाही, निजामशाही और यूरोपीय शक्तियों के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष किया और मराठा राज्य की नींव रखी.

उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने विस्तार किया और भारत के बड़े हिस्से पर अपना प्रभाव जमाया. शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का प्रयोग किया, जो उस समय के युद्ध कला में एक नवीन प्रवेश था. उन्होंने नवल शक्ति का विकास किया, जिससे मराठा नौसेना का जन्म हुआ. इसके अलावा, उन्होंने एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसमें राज्य राजस्व प्रणाली, न्याय प्रणाली, और सैन्य संगठन शामिल थे.

शिवाजी महाराज की धार्मिक नीतियाँ भी काफी उदार थीं. उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को सम्मान दिया और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया. उनके राज्य में हर धर्म के लोगों को समान अधिकार और सम्मान मिला.

छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु 03 अप्रैल 1680 को हुई थी. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी वीरता, प्रशासनिक कौशल, और उदार नीतियाँ भारतीय इतिहास में उन्हें एक महान नायक के रूप में स्थापित करती हैं. आज भी, उनका जीवन और कार्य भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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राजकुमारी इंदिरा राजे

राजकुमारी इंदिरा राजे (19 फरवरी 1892 – 06सितंबर 1968) भारतीय राजघराने की एक प्रमुख सदस्य थीं, जिन्होंने बड़ौदा के गायकवाड़ राजवंश और कूच बिहार के राजवंश के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित किया था. वह बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ III की बेटी थीं और उनका विवाह कूच बिहार के महाराजा जितेंद्र नारायण से हुआ था. इंदिरा राजे को उनकी सौंदर्य, बुद्धिमत्ता और सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता था.

इंदिरा राजे की शादी से उन्हें कूच बिहार की महारानी का दर्जा प्राप्त हुआ और वे इस क्षेत्र के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में कई पहल कीं. उनकी सामाजिक सेवा और परोपकारी कार्यों ने उन्हें जनता के बीच एक प्रिय व्यक्तित्व बना दिया.

राजकुमारी इंदिरा राजे की सबसे उल्लेखनीय संतान उनकी बेटी, महारानी गायत्री देवी थीं, जो जयपुर की महारानी बनीं और विश्वभर में अपनी सौंदर्य, शैली और सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हुईं. गायत्री देवी ने भारतीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे एक सम्मानित राजनीतिज्ञ के रूप में उभरीं.

राजकुमारी इंदिरा राजे का जीवन और कार्य भारतीय राजघरानों के इतिहास में एक रोचक अध्याय का निर्माण करते हैं, जिसमें उनकी विरासत आज भी उनके परिवार और उनके द्वारा सेवा किए गए समुदायों में जीवित है.

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भूतपूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह

बेअंत सिंह भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्व थे, जो पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर चुके हैं. उनका जन्म 19 फरवरी 1922 को हुआ था और उनकी मृत्यु 31 अगस्त 1995 को एक आतंकवादी हमले में हो गई थी. बेअंत सिंह का कार्यकाल 1992-95 तक रहा, जिस दौरान पंजाब में उग्रवाद की समस्या से निपटने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.

बेअंत सिंह के नेतृत्व में पंजाब सरकार ने उग्रवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाए, जिससे राज्य में शांति और स्थिरता की स्थापना में मदद मिली. उनकी नीतियों और कार्यों ने पंजाब में उग्रवाद को काफी हद तक कम करने में योगदान दिया, लेकिन इस प्रक्रिया में कई विवाद भी उत्पन्न हुए. उनके शासनकाल को कई बार मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा.

बेअंत सिंह की मृत्यु चंडीगढ़ में एक आत्मघाती बम विस्फोट में हुई, जिसमें उनके साथ कई अन्य लोग भी मारे गए. उनकी मृत्यु ने पंजाब और पूरे भारत में शोक की लहर दौड़ा दी. उनकी मृत्यु के बाद, पंजाब में उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रही, और धीरे-धीरे राज्य ने शांति की ओर कदम बढ़ाया.

बेअंत सिंह का जीवन और उनकी मृत्यु पंजाब के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय के रूप में याद की जाती है, जिसने राज्य में उग्रवाद के खिलाफ संघर्ष के दौरान शांति और स्थिरता की दिशा में उनके योगदान को पहचाना.

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अभिनेत्री सोनू वालिया

सोनू वालिया एक अभिनेत्री हैं, जिन्होंने 1980 और 1990 के दशक में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काम किया. वह एक पूर्व मिस इंडिया हैं और उन्होंने 1985 में इस खिताब को जीता था. सोनू वालिया को उनकी खूबसूरती और प्रतिभा के लिए जाना जाता है.

उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1985 में फिल्म “खून भरी मांग” से की थी, जिसमें उन्होंने रेखा और कबीर बेदी के साथ अभिनय किया. इस फिल्म में उनके प्रदर्शन की काफी सराहना की गई और इसने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में पहचान दिलाई.

सोनू वालिया ने अपने कैरियर में कई हिंदी फिल्मों में काम किया, जिनमें से कुछ ने उन्हें काफी लोकप्रियता दिलाई. हालांकि, उन्होंने एक अभिनेत्री के रूप में बहुत लंबा कैरियर नहीं बनाया और अंततः फिल्म इंडस्ट्री से दूर हो गईं.

सोनू वालिया की निजी जिंदगी भी मीडिया में काफी चर्चित रही है. उन्होंने बिजनेसमैन स्वर्गीय हर्षवर्धन बहल से शादी की थी. उनकी जीवनी और कैरियर पर उनके प्रशंसकों और फिल्मी दुनिया के अन्य लोगों की गहरी नजर रही है.

सोनू वालिया ने अपनी अभिनय प्रतिभा और सौंदर्य के जरिए फिल्म इंडस्ट्री में एक विशेष स्थान बनाया और वह आज भी अपनी फिल्मों के लिए याद की जाती हैं.

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वैज्ञानिक पी बलराम

प्रोफेसर पद्मनाभन बलराम, जिन्हें आमतौर पर पी. बलराम के नाम से जाना जाता है, भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में एक प्रतिष्ठित नाम हैं. वे एक प्रमुख बायोकेमिस्ट और मौलिक शोधकर्ता हैं, जिनका कार्य बायोकेमिस्ट्री और मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है.

उन्होंने अपनी शिक्षा भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने बाद में एक फैकल्टी के रूप में भी काम किया और वहाँ के निदेशक के पद पर भी आसीन हुए. उनके शोध कार्य ने पेप्टाइड्स और प्रोटीन्स के संरचनात्मक विश्लेषण और उनके बायोलॉजिकल फंक्शन पर गहन प्रकाश डाला है.

पी. बलराम ने वैज्ञानिक समुदाय में अपने अनुसंधान पत्रों और लेखों के माध्यम से अपने विचारों और खोजों को व्यापक रूप से साझा किया है. उनके काम को उनके पीयर्स द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया है, और उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया है, जिसमें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी शामिल है, जो भारत में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है.

पी. बलराम की अध्यापन और मार्गदर्शन शैली ने भी कई युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया है. उन्होंने अनुसंधान के क्षेत्र में उच्च मानकों और नैतिकता को बढ़ावा दिया है. उनका काम न केवल बायोकेमिस्ट्री और मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के विकास में योगदान देता है, बल्कि भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के स्तर को भी उन्नत करता है.

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स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले

गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे. वे 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के कोटलुक गांव में जन्मे थे. गोखले एक समर्पित समाज सुधारक और एक महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता की मांग की. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के अग्रणी सदस्य थे और इसके मॉडरेट गुट का नेतृत्व करते थे.

गोखले ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत देवधरमाध्यक्ष महादेव गोविंद रानडे के मार्गदर्शन में की थी. वे भारतीय समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सुधार पर विशेष ध्यान देते थे. गोखले ने ‘सर्वजनिक सभा’ और ‘भारतीय शिक्षण मंडल’ जैसे संगठनों की स्थापना की, जिससे भारतीय समाज में जागरूकता और शिक्षा के प्रसार में मदद मिली.

गोखले ने ब्रिटिश सरकार के सामने भारतीयों की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कई मांगें रखीं. वे भारतीय सिविल सेवा में अधिक भारतीयों की नियुक्ति, भारत में शिक्षा के स्तर में सुधार, और भारतीय किसानों के हितों की रक्षा के लिए वकालत करते थे.

गोखले का विशेष योगदान यह था कि उन्होंने महात्मा गांधी को भारतीय राजनीतिक आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया. गांधीजी ने गोखले को अपना राजनीतिक गुरु माना और उनके आदर्शों और शिक्षाओं का पालन किया.

गोपाल कृष्ण गोखले का 19 फरवरी 1915 को निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा स्थापित आदर्श और सिद्धांत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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नरेन्द्र देव

आचार्य नरेन्द्र देव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. वे एक विद्वान, शिक्षाविद्, और राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने समाजवादी विचारधारा को भारतीय संदर्भ में अपनाने और उसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

नरेन्द्र देव का जन्म 30 अक्टूबर 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था. उन्होंने विधि और इतिहास में शिक्षा प्राप्त की और बाद में अपना जीवन भारतीय राजनीति और समाजवादी आंदोलन को समर्पित कर दिया. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे और उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

नरेन्द्र देव ने भारतीय समाज में शिक्षा, समानता, और समाजवादी सिद्धांतों के प्रसार के लिए काम किया. वे शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय थे और उन्होंने काशी विद्यापीठ और लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन किया. उनका मानना था कि शिक्षा समाज में बदलाव ला सकती है और वे इसे एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखते थे.

आचार्य नरेन्द्र देव ने अपने जीवन काल में अनेक लेख और पुस्तकें लिखीं, जिसमें उन्होंने भारतीय समाजवाद, राजनीति, इतिहास, और सांस्कृतिक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए. उनका निधन 19 फरवरी 1956 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय समाजवादी आंदोलन और शिक्षा क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत हैं.

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पार्श्व गायिका अमीरबाई

अमीरबाई कर्नाटकी भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध पार्श्व गायिका और अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1940 और 1950 के दशक में अपनी गायन और अभिनय प्रतिभा से नाम कमाया. उनका जन्म 19 मार्च 1912 को कर्नाटक के बिजापुर में हुआ था. अमीरबाई कर्नाटकी का मुख्य योगदान उनकी गायन प्रतिभा में था, और उन्होंने अपने समय की कई प्रमुख फिल्मों में पार्श्व गायन किया.

अमीरबाई की आवाज में एक विशेष मिठास और भावनात्मक गहराई थी, जिसने उन्हें उस समय के संगीत प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया. उन्होंने हिंदी, मराठी, गुजराती, और कन्नड़ सहित विभिन्न भाषाओं में गाने गाए. उनके गाए हुए गीत आज भी संगीत के शौकीनों के बीच पसंद किए जाते हैं.

अमीरबाई कर्नाटकी के कुछ प्रसिद्ध गीतों में “वादा करो नहीं छोड़ोगे तुम मेरा साथ”, “आयेगा आनेवाला”, और “भोली सूरत दिल के खोटे” शामिल हैं. उन्होंने अपने गायन करियर में विविध शैलियों में गीत गाए, जिसमें भजन, ग़ज़ल, और फ़िल्मी गीत शामिल हैं.

उन्होंने अभिनय भी किया, लेकिन उनकी पहचान मुख्य रूप से एक गायिका के रूप में रही. उनकी मधुर आवाज और गायन की शैली ने उन्हें उनके समय की सबसे प्रशंसित पार्श्व गायिकाओं में से एक बना दिया.

अमीरबाई कर्नाटकी का 5 मार्च 1965 को निधन हो गया. उनके निधन के बावजूद, उनका संगीत आज भी भारतीय सिनेमा और संगीत के इतिहास में जीवित है, और उन्हें उनकी असाधारण प्रतिभा और योगदान के लिए याद किया जाता है.

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संगीतकार पंकज मलिक

पंकज मलिक, जिन्हें अक्सर पंकज मुल्लिक के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संगीत के उन चुनिंदा संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने 20वीं सदी के पहले आधे भाग में भारतीय सिनेमा और संगीत को नई दिशा प्रदान की. उनका जन्म 10 मई 1905 को हुआ था और उनका निधन 19 फरवरी 1978 को हुआ. पंकज मलिक ने अपने संगीत करियर के दौरान अनेक यादगार गीतों और धुनों की रचना की, जो आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.

पंकज मलिक ने अपने संगीत में शास्त्रीय संगीत की गहराई को बरकरार रखते हुए आधुनिकता का स्पर्श जोड़ा. वे उन पहले संगीतकारों में से थे जिन्होंने भारतीय फिल्मों में पाश्चात्य संगीत के तत्वों को सफलतापूर्वक शामिल किया. उनकी संगीत शैली में नवीनता और पारंपरिकता का एक अद्वितीय मिश्रण था, जिसने उन्हें उस समय के अन्य संगीतकारों से अलग किया.

पंकज मलिक ने रवीन्द्र संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और रवींद्रनाथ टैगोर के साथ निकटता से काम किया. उन्होंने अनेक रवीन्द्र संगीत गाये और उन्हें अपनी अनूठी शैली में पेश किया.

फिल्म संगीत के अलावा, पंकज मलिक ने रेडियो पर भी काम किया और उनके द्वारा रचित और प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय हुए. उनकी आवाज और संगीत शैली ने उन्हें उस समय के सबसे प्रशंसित संगीतकारों में से एक बना दिया.

पंकज मलिक की विरासत उनके गीतों, धुनों और संगीतमय प्रस्तुतियों के माध्यम से आज भी जीवित है, जो संगीत के प्रति उनके अनूठे दृष्टिकोण और योगदान को दर्शाती है.

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अभिनेता निर्मल पांडे

निर्मल पांडे एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने 1990 के दशक में भारतीय सिनेमा में अपनी अनूठी अभिनय शैली और चुनिंदा भूमिकाओं के लिए पहचान बनाई. उनका जन्म 10 अगस्त 1962 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था. निर्मल पांडे को उनके विविध चरित्रों और शक्तिशाली प्रदर्शनों के लिए जाना जाता था.

निर्मल पांडे ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत थिएटर से की थी और बाद में फिल्मों में अपना नाम बनाया. उन्होंने अपनी फिल्मी यात्रा की शुरुआत 1996 में आई फिल्म “बैंडिट क्वीन” से की, जिसमें उन्होंने विक्रम मल्लाह का किरदार निभाया. इस फिल्म ने उन्हें काफी पहचान दिलाई और उनके अभिनय कौशल की सराहना की गई.

निर्मल पांडे की अन्य प्रमुख फिल्मों में “इस रात की सुबह नहीं” (1996), “दायरा” (1996), “गॉडमदर” (1999), और “प्यार की धुन” (2002) शामिल हैं. उन्होंने अपनी फिल्मों में विविध भूमिकाएं निभाईं, जिसमें वे अक्सर जटिल और गहरे चरित्रों को चित्रित करते थे.

निर्मल पांडे की अभिनय क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना गया था. उन्होंने फ्रांसीसी फिल्म “लेस बांडीट्स” में भी अभिनय किया था. उनकी अद्वितीय अभिनय शैली और समर्पण ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशेष स्थान दिलाया.

दुर्भाग्यवश, निर्मल पांडे का निधन एक छोटी उम्र में ही 18 फरवरी 2010 को हार्ट अटैक के कारण हो गया. उनका असामयिक निधन भारतीय सिनेमा जगत के लिए एक बड़ी क्षति थी. उनके निधन के बावजूद, निर्मल पांडे का काम और उनकी फिल्में उन्हें एक यादगार और प्रशंसित अभिनेता के रूप में जीवित रखती हैं.

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नामवर सिंह

  नामवर सिंह भारतीय साहित्यिक जगत में एक प्रमुख आलोचक और विचारक के रूप में जाने जाते हैं. उनका जन्म 28 जुलाई, 1926 को वाराणसी के निकट जीयनपुर में हुआ था. नामवर सिंह का निधन 19 फरवरी, 2019 को हुआ. उन्होंने हिंदी साहित्यिक आलोचना में नई दिशाएँ और परिप्रेक्ष्य प्रदान किए.

नामवर सिंह ने विशेष रूप से हिंदी आलोचना के क्षेत्र में अपना एक अद्वितीय स्थान बनाया. उनकी आलोचना शैली में गहनता और विस्तार होता था, जिसमें वे साहित्य के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करते थे. उनके विचार और आलोचना ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया.

नामवर सिंह की प्रमुख कृतियों में ‘कविता के नए प्रतिमान’, ‘दूसरी परंपरा की खोज’, ‘छायावाद’, ‘इतिहास और आलोचना’, और ‘वाद, विवाद, संवाद’ शामिल हैं. इन कृतियों में उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न युगों और धाराओं का गहन अध्ययन और विश्लेषण प्रस्तुत किया.

नामवर सिंह ने अपने जीवनकाल में अनेक सेमिनारों, व्याख्यानों और विद्वत सभाओं में भाग लिया और युवा लेखकों और आलोचकों को प्रेरित और मार्गदर्शन किया. उनका व्यक्तित्व और कार्य हिंदी साहित्य के छात्रों, शोधकर्ताओं और प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ और प्रेरणा स्रोत बना हुआ है.

नामवर सिंह के योगदान को हिंदी साहित्यिक जगत में व्यापक रूप से सराहा गया है, और उन्हें आधुनिक हिंदी आलोचना के सबसे प्रभावशाली आलोचकों में से एक माना जाता है.

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