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व्यक्ति विशेष

भाग - 50.

विद्वान राजेन्द्रलाल मित्रा

राजेन्द्रलाल मित्रा (1817-1891) भारतीय पुरातत्वविद्, इतिहासकार और लेखक थे. उन्हें बंगाल के पुरातत्व और सांस्कृतिक इतिहास पर उनके व्यापक शोध और लेखन के लिए जाना जाता है. मित्रा बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे और उन्होंने अपनी शिक्षा कोलकाता में पूरी की. वे एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के पहले भारतीय अध्यक्ष थे और उन्होंने इस संस्था के लिए कई महत्वपूर्ण योगदान दिए.

राजेन्द्रलाल मित्रा का काम भारतीय पुरातत्व, इतिहास, साहित्य और धर्म पर केंद्रित था. उन्होंने संस्कृत, पालि और प्राकृत जैसी प्राचीन भारतीय भाषाओं पर भी काम किया. उनके द्वारा की गई खोजों और शोध कार्यों ने भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन में नई दिशा प्रदान की.

मित्रा की कुछ प्रमुख कृतियों में ‘The Antiquities of Orissa’, ‘Buddha Gaya’, और ‘Notices of Sanskrit Manuscripts’ शामिल हैं. उन्होंने भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में अपने अनुसंधान और लेखन के माध्यम से भारतीय संस्कृति और इतिहास की बेहतर समझ विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी

विश्वनाथ त्रिपाठी एक प्रमुख हिंदी लेखक, आलोचक और शिक्षाविद् हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका जन्म 16 फरवरी 1931 को उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ था. विश्वनाथ त्रिपाठी को उनके गहन शोध, सूक्ष्म विश्लेषण और साहित्यिक आलोचना के लिए जाना जाता है. उन्होंने हिंदी साहित्य में विविध विधाओं पर काम किया है, जिसमें आत्मकथा, आलोचना, निबंध और संस्मरण शामिल हैं.

विश्वनाथ त्रिपाठी की कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं ‘नंगातलाई का गाँव’, जो उनकी आत्मकथा है, और ‘व्योमकेश दरवेश’, जो व्योमकेश शास्त्री की जीवनी है. ‘व्योमकेश दरवेश’ के लिए उन्हें 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी लेखन शैली में गहराई, संवेदनशीलता और सूक्ष्म विश्लेषण की विशेषताएं होती हैं, जो पाठकों को गहराई से छूती हैं.

त्रिपाठी ने हिंदी साहित्य के इतिहास और उसके विकास पर भी महत्वपूर्ण काम किया है. उनके शोध और आलोचनात्मक कार्यों ने हिंदी साहित्य की समृद्धि में योगदान दिया है. उनका काम हिंदी साहित्य के छात्रों, शोधकर्ताओं और साहित्य प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री के रूप में देखा जाता है.

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अभिनेता आई.एस. जौहर

आई.एस. जौहर, जिनका पूरा नाम इंदर सेन जौहर था, एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, और लेखक थे. वह 1920 के दशक में जन्मे थे और 1980 के दशक में उनका निधन हो गया. जौहर अपने विनोदी और विचारोत्तेजक किरदारों के लिए प्रसिद्ध थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में व्यंग्य और हास्य को एक नई पहचान दी.

उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1950 के दशक में की थी और अपनी अद्वितीय शैली और प्रतिभा के साथ जल्द ही एक मान्यता प्राप्त कलाकार बन गए. आई.एस. जौहर ने विभिन्न प्रकार की फिल्मों में काम किया, जिसमें वे अक्सर ऐसे किरदार निभाते थे जो अपनी बुद्धिमत्ता और हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने कई फिल्मों में लेखन और निर्देशन का कार्य भी किया, जिससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा का पता चलता है.

प्रमुख फिल्मों: –

अफ़साना, तीन देवियाँ,छोटी बहू,दो आँखें, प्रेम शस्त्र, प्रियतमा और प्रेमी गंगाराम आदि. इन फिल्मों में उनका अभिनय और निर्देशन दोनों ही सराहा गया.

आई.एस. जौहर ने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने कुछ अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी काम किया, जिसमें उनके अभिनय की सराहना की गई. उनकी विशिष्ट आवाज और अभिनय शैली ने उन्हें एक अनूठी पहचान दी.

आई.एस. जौहर की कॉमेडी और सामाजिक व्यंग्य के प्रति उनकी समझ ने उन्हें अपने समय के सबसे प्रभावशाली और यादगार कलाकारों में से एक बना दिया। उनकी विरासत आज भी भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के रूप में जीवित है.

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गुलाम मोहम्मद शेख़

गुलाम मोहम्मद शेख़ एक प्रतिष्ठित भारतीय चित्रकार, कवि, और कला समालोचक हैं, जिनका जन्म 16 फरवरी 1937 को हुआ था. वे विशेष रूप से अपनी पेंटिंग्स, विचारशील लेखन और कला के प्रति गहरी समझ के लिए जाने जाते हैं. शेख़ ने बड़ौदा स्कूल ऑफ आर्ट्स से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में वहां शिक्षक के रूप में काम किया. उनका काम आधुनिक और समकालीन कला दोनों में योगदान देता है, जिसमें वे विभिन्न माध्यमों और शैलियों का प्रयोग करते हैं.

शेख़ की कलाकृतियाँ अक्सर इतिहास, साहित्य, और व्यक्तिगत स्मृतियों से प्रेरित होती हैं, और उन्होंने भारतीय कला परिदृश्य में अपनी अनूठी पहचान बनाई है. उनकी कला में आमतौर पर गहरे सांस्कृतिक संदर्भ और व्यक्तिगत अनुभवों का मिश्रण होता है, जो उन्हें दर्शकों के साथ गहराई से जोड़ता है.

गुलाम मोहम्मद शेख़ ने कला समीक्षा और समालोचना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनके लेखन में कला के प्रति उनकी सूक्ष्म समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण का परिचय मिलता है. वे भारतीय कला और संस्कृति के विकास में आधुनिकता और पारंपरिकता के संबंधों की पड़ताल करते हैं.

उनकी कलात्मक और साहित्यिक प्रतिभा ने उन्हें नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर सम्मान और पुरस्कार दिलाए हैं. उनके काम को व्यापक रूप से प्रदर्शनियों, कला संग्रहालयों और गैलरीज में प्रदर्शित किया गया है, जो उनके विविध और समृद्ध योगदान को दर्शाता है.

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क्रिकेटर वसीम जाफ़र

वसीम जाफ़र एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्हें भारतीय घरेलू क्रिकेट में उनके उल्लेखनीय योगदान और लंबे समय तक उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जाना जाता है. जाफ़र का जन्म 16 फरवरी 1978 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वे मुख्य रूप से दाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज और दाएं हाथ के ऑफ-ब्रेक गेंदबाज हैं और उन्होंने भारतीय टेस्ट टीम के लिए भी खेला.

वसीम जाफ़र के क्रिकेट कैरियर की शुरुआत 2000 में हुई थी जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया था. अपने कैरियर में, जाफ़र ने कई यादगार पारियां खेलीं और खासकर घरेलू क्रिकेट में उनका दबदबा रहा. वे रणजी ट्रॉफी में सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं और उन्होंने मुंबई और विदर्भ जैसी टीमों के लिए खेलते हुए अनेक मैच जिताऊ पारियां खेलीं.

जाफ़र की तकनीक और धैर्य को उनके खेल की सबसे बड़ी ताकत माना जाता था. उन्होंने अपने टेस्ट कैरियर में दो दोहरे शतक भी जड़े, जिसमें से एक वेस्ट इंडीज के खिलाफ 2006 में आया था. जाफ़र ने अपने टेस्ट कैरियर में 31 मैच खेले और 1944 रन बनाए, जिसमें 5 शतक और 11 अर्धशतक शामिल हैं.

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वसीम जाफ़र क्रिकेट कोचिंग और मेंटरशिप में सक्रिय हो गए. उन्होंने विभिन्न टीमों के साथ कोचिंग की भूमिका निभाई है और युवा प्रतिभाओं को निखारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. जाफ़र की समझ और क्रिकेट के प्रति उनकी गहराई को भारतीय क्रिकेट में बहुत सराहा जाता है.

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दादा साहब फाल्के

दादा साहब फाल्के, जिनका पूरा नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के है, भारतीय सिनेमा के पितामह माने जाते हैं. उन्होंने 1913 में “राजा हरिश्चंद्र” नामक फिल्म बनाई, जो भारतीय सिनेमा की पहली पूर्ण लंबाई वाली मूक फिल्म थी. इस फिल्म की सफलता ने भारत में फिल्म निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया.

फाल्के ने अपने जीवनकाल में लगभग 95 फिल्में और 26 लघु फिल्में बनाईं. उनका काम न केवल तकनीकी नवाचारों के लिए जाना जाता है, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, पुराणों, इतिहास और मिथकों को भी अपनी फिल्मों के माध्यम से चित्रित किया.

दादा साहब फाल्के की विरासत को सम्मानित करने के लिए, भारतीय सरकार ने 1969 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की, जो भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है. यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है. दादा साहब फाल्के का निधन 16 फ़रवरी, 1944 को नासिक में हुआ था.

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वैज्ञानिक मेघनाथ साहा

मेघनाथ साहा एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे जिनका जन्म 6 अक्टूबर 1893 को हुआ था और उनका निधन 16 फरवरी 1956 को हुआ. उन्होंने खगोल भौतिकी और थर्मोडायनामिक्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. साहा सबसे अधिक अपने “साहा आयनीकरण समीकरण” के लिए जाने जाते हैं, जिसे उन्होंने 1920 में प्रस्तुत किया था. यह समीकरण तारों के वायुमंडल में विभिन्न तत्वों के आयनीकरण की व्याख्या करता है, जिससे खगोलविदों को तारों के तापमान और उनकी रासायनिक संरचना का अध्ययन करने में मदद मिली.

साहा का समीकरण खगोल भौतिकी में एक क्रांतिकारी खोज थी, जिसने विज्ञान के इस क्षेत्र में अनुसंधान की नई दिशाएं खोलीं. उन्होंने अपने कैरियर में भारतीय विज्ञान और शिक्षा के प्रसार के लिए भी काफी काम किया. उन्होंने कई वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना में मदद की और भारत में विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया.

मेघनाथ साहा को उनके असाधारण योगदान के लिए विभिन्न सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. उनका काम आज भी खगोल भौतिकी और थर्मोडायनामिक्स के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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गायक और संगीतकार बप्पी लाहिड़ी

बप्पी लाहिड़ी, जिन्हें उनके स्वर्णिम संगीत कैरियर और विशेष फैशन सेंस के लिए जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय गायक, संगीतकार और रिकॉर्ड प्रोड्यूसर थे. उनका जन्म 27 नवंबर 1952 को कोलकाता, भारत में हुआ था और वे 2022 में दिवंगत हो गए. बप्पी लाहिड़ी ने 1970 और 1980 के दशक में भारतीय सिनेमा में डिस्को म्यूजिक को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उन्होंने अपने कैरियर में कई हिट फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें “डिस्को डांसर”, “नमक हलाल”, “डांस डांस”, और “शराबी” शामिल हैं. बप्पी दा, जैसा कि उन्हें प्यार से कहा जाता था, अपने भारी सोने के गहनों के लिए भी प्रसिद्ध थे, जिसे वह अक्सर पहनते थे और जो उनकी पहचान का एक हिस्सा बन गया.

उन्होंने न केवल हिंदी फिल्मों के लिए बल्कि बंगाली, तेलुगु, तमिल, और कन्नड़ सहित अन्य भाषाओं में भी संगीत दिया. उनके संगीत ने भारतीय सिनेमा के संगीत दृश्य में एक अमिट छाप छोड़ी है. बप्पी लाहिड़ी ने अपने जीवनकाल में कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, जिसमें उनके संगीत के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल हैं.

उनके निधन के साथ, भारतीय संगीत उद्योग ने एक महान कलाकार खो दिया, लेकिन उनका संगीत आज भी उनकी विरासत को जीवित रखता है.

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