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व्यक्ति विशेष

भाग - 48.

मुग़ल सम्राट बाबर

मुग़ल सम्राट बाबर (1483-1530) भारत में मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक थे. वह तैमूर और चंगेज खान के वंशज थे और उन्होंने अपने साम्राज्य की स्थापना 1526 में की थी, जब उन्होंने इब्राहीम लोदी को पानीपत की पहली लड़ाई में हराया था. बाबर ने अपना अधिकांश जीवन सैन्य अभियानों में बिताया और कई लड़ाईयों में विजयी हुए, जिससे उन्होंने उत्तरी भारत में अपना प्रभाव स्थापित किया.

बाबर का जन्म फरगाना घाटी में हुआ था, जो आधुनिक उजबेकिस्तान में है. वह केवल 12 वर्ष की उम्र में अपने पिता के निधन के बाद फरगाना का शासक बन गए थे. बाबर के शासन काल में, उन्होंने कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की, जिसमें समरकंद और काबुल भी शामिल हैं. उनकी विजय ने उन्हें उत्तरी भारत तक विस्तार करने का मौका दिया, जहाँ उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी.

बाबर ने अपनी आत्मकथा “बाबरनामा” लिखी, जो उनके जीवन और उनके समय के इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. इस ग्रंथ में उन्होंने अपने सैन्य अभियानों, शासन प्रणाली, और उस समय की सांस्कृतिक व सामाजिक स्थितियों का वर्णन किया है. बाबरनामा फारसी भाषा में लिखी गई थी और यह आज भी इतिहासकारों और विद्वानों द्वारा अध्ययन की जाती है.

बाबर की मृत्यु 1530 में हुई, और उनके बाद उनका बेटा हुमायूँ सिंहासन पर बैठा. बाबर के शासन काल ने मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी, जिसने आगे चलकर भारत में कई शताब्दियों तक राज किया.

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अभिनेत्री  मधुबाला

  (1933-1969) भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1940 और 1950 के दशकों में अपने अभिनय कौशल और खूबसूरती से लाखों दिलों पर राज किया. मधुबाला का असली नाम मुमताज जहां बेगम देहलवी था. उन्हें हिंदी सिनेमा की ‘वीनस’ और ‘द ब्यूटी विथ ट्रेजेडी’ के रूप में भी जाना जाता है.

मधुबाला ने अपने कैरियर की शुरुआत बचपन में की थी, और उन्होंने “बसंत” (1942) में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया था. उनकी पहली बड़ी सफलता “नील कमल” (1947) में आई, जिसमें उन्होंने राज कपूर के साथ अभिनय किया था. मधुबाला को उनकी अद्वितीय सुंदरता और अभिनय कौशल के लिए सराहा जाता था. उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “महल” (1949), “आराधना” (1950), “मुग़ल-ए-आज़म” (1960), और “चलती का नाम गाड़ी” (1958) शामिल हैं.

“मुग़ल-ए-आज़म” में उनके अभिनय को विशेष रूप से सराहा गया था, जिसमें उन्होंने अनारकली की भूमिका निभाई थी. यह फिल्म हिंदी सिनेमा की सबसे महान कृतियों में से एक मानी जाती है.

मधुबाला का जीवन निजी त्रासदियों से भरा था. उन्हें दिल की बीमारी थी, जिसके चलते उनका जीवन काफी छोटा रहा. उनका निधन मात्र 36 वर्ष की उम्र में हो गया था.  उनके निधन के बावजूद, मधुबाला की विरासत आज भी जीवित है, और वे हिंदी सिनेमा की सबसे यादगार और प्रिय अभिनेत्रियों में से एक बनी हुई हैं.

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राजनीतिज्ञ सुषमा स्वराज

सुषमा स्वराज (1952-2019) भारतीय राजनीति की एक प्रमुख व्यक्तित्व थीं, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर से कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वह भारत की विदेश मंत्री (2014-2019), विधि मंत्री (2000-2003), और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री (1998) के रूप में सेवा की. सुषमा स्वराज को उनकी वाक्पटुता, जनसेवा के प्रति समर्पण, और विशेष रूप से विदेश मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान अपनाई गई नीतियों और पहलों के लिए व्यापक रूप से सराहा जाता था.

सुषमा स्वराज ने अपनी राजनीतिक यात्रा छात्र राजनीति से शुरू की थी और उन्होंने अपने कैरियर में कई बार संसद सदस्य के रूप में सेवा की. उन्हें उनके उत्कृष्ट वक्तव्य कौशल और संसद में उनके योगदान के लिए जाना जाता था. स्वराज ने विशेष रूप से विदेश नीति में अपने कार्यकाल के दौरान भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करने के लिए कई पहल की.

विदेश मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में वह विशेष रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करके भारतीय नागरिकों की सहायता के लिए प्रसिद्ध हुईं. उन्होंने विदेश में फंसे भारतीयों की सहायता के लिए कई बार तत्परता दिखाई, जिससे उन्हें बहुत सम्मान और प्रशंसा मिली.

सुषमा स्वराज का 2019 में निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत भारतीय राजनीति में आज भी जीवित है. उनके निधन पर देश भर में शोक व्यक्त किया गया और उन्हें एक प्रेरणादायक नेता और एक उत्कृष्ट जनसेवक के रूप में याद किया जाता है.

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साहित्यकार विद्यानिवास मिश्र

विद्यानिवास मिश्र (1926-2005) हिंदी और संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक, विद्वान और संपादक थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ था. मिश्र ने हिंदी साहित्य में अपने गहन ज्ञान और संस्कृति के प्रति गहरी समझ के लिए व्यापक पहचान बनाई. उन्होंने न केवल साहित्यिक कृतियों का सृजन किया बल्कि साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया और भारतीय संस्कृति व दर्शन पर गहराई से लिखा.

विद्यानिवास मिश्र ने विविध विषयों पर लिखा, जिसमें कविता, आलोचना, यात्रा वृतांत, और निबंध शामिल हैं. उनकी लेखन शैली में गहराई, व्यंग्य और विचारों की प्रखरता स्पष्ट दिखाई देती है. उन्होंने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए.

मिश्र की कुछ प्रमुख कृतियों में “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे”, “काशी की अस्सी”, “गंगा जमुनी तहज़ीब” और “कृष्ण की अत्मकथा” शामिल हैं. उनकी रचनाएं न केवल हिंदी साहित्य में उनके योगदान को दर्शाती हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रति उनकी गहरी समझ और अनुराग को भी प्रकट करती हैं.

विद्यानिवास मिश्र ने भारतीय साहित्य और संस्कृति की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया. उनकी गहन अंतर्दृष्टि और विचारशील लेखन ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक अमूल्य रत्न के रूप में स्थापित किया. उनके निधन के बावजूद, उनकी कृतियाँ और विचार आज भी साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन में प्रासंगिक हैं.

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