
राजनीतिज्ञ मोतीलाल वोरा
मोतीलाल वोरा एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्यरत रहे. उनका राजनीतिक कैरियर लगभग सात दशकों तक फैला रहा और उन्हें भारतीय राजनीति में उनकी सादगी, अनुशासन, और निष्ठा के लिए जाना जाता था.
मोतीलाल का जन्म 20 दिसंबर 1928 को नागौर, राजस्थान में हुआ था. उनके परिवार का संबंध मध्य प्रदेश के दर्गा क्षेत्र से था. पढ़ाई के बाद उन्होंने पत्रकारिता में काम किया और इसके बाद राजनीति में प्रवेश किया. मोतीलाल वोरा मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे. पहली बार वर्ष 1985 – 88 तक और दूसरी बार कुछ समय के लिए वर्ष 1989 में. वर्ष 1993 – 96 तक उन्होंने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया. वोरा ने केंद्र सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री और परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया.
कांग्रेस पार्टी में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा. वे कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी रहे, जहां उन्होंने पार्टी की वित्तीय व्यवस्था को मजबूती प्रदान की. राज्यसभा और लोकसभा दोनों के सदस्य रहे. उन्होंने संसद में सक्रिय भूमिका निभाई और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर पार्टी का पक्ष रखा.
मोतीलाल वोरा का निधन 21 दिसंबर 2020 को हुआ था. मोतीलाल वोरा अपनी सादगी और आम जनता के साथ जुड़े रहने के लिए जाने जाते थे. उन्होंने राजनीति में मर्यादा और ईमानदारी के आदर्श स्थापित किए. उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि राजनीति में अनुशासन और निष्ठा से बड़े मुकाम हासिल किए जा सकते हैं.
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साहित्यकार रॉबिन शॉ
रॉबिन शॉ पुष्प हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. उनका जन्म 20 दिसंबर 1936 को मुंगेर एक मिशनरी परिवार में हुआ था. वे मुख्यतः कवि, निबंधकार और साहित्यिक आलोचक के रूप में जाने जाते हैं. उनके साहित्य में मानवीय मूल्यों, सामाजिक चेतना और संवेदनशीलता का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है.
रॉबिन शॉ ने अपनी शिक्षा कोलकाता विश्वविद्यालय से प्राप्त की और अंग्रेजी साहित्य में विशेष दक्षता हासिल की. उनका झुकाव हिंदी साहित्य की ओर बचपन से ही रहा, और उन्होंने हिंदी में साहित्य सृजन करना आरंभ किया. रॉबिन शॉ पुष्प ने कविता, निबंध, आलोचना, और अनुवाद के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया. उनकी रचनाएँ गहन मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों को उजागर करती हैं.
रॉबिन शॉ की कविताएँ सरल और प्रभावशाली होती थीं, जिनमें गहरी सामाजिक चेतना और मानवीय करुणा व्यक्त होती थी. “मधुर स्मृतियाँ” -उनकी शुरुआती कविताओं का. उन्होंने हिंदी साहित्य की आलोचना पर कई महत्वपूर्ण लेख लिखे. उनकी शैली तर्कसंगत और विश्लेषणात्मक थी. रॉबिन शॉ ने अंग्रेजी और अन्य भाषाओं की कई उत्कृष्ट कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया. उन्होंने कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन भी किया, जो हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में सहायक सिद्ध हुआ. रॉबिन शॉ ने साहित्य को समाज के दर्पण के रूप में प्रस्तुत किया और अपने लेखन में मानवीय मूल्यों को प्रकट किया. उनकी भाषा सहज और प्रवाहपूर्ण थी, जो पाठकों के हृदय को छू जाती थी. उनकी रचनाएँ आधुनिक युग के संघर्ष और चुनौतियों को उजागर करती हैं.
रॉबिन शॉ की पत्नी गीता शॉ पुष्प भी प्रख्यात लेखिका हैं. रॉबिन शॉ का निधन 30 अक्टूबर 2014 को पटना में हुआ था. हिंदी साहित्य के प्रति उनके योगदान के लिए उन्हें कई साहित्यिक सम्मानों से नवाजा गया. उनकी साहित्यिक दृष्टि और योगदान आज भी हिंदी साहित्य में एक प्रेरणा स्रोत के रूप में मानी जाती है. रॉबिन शॉ पुष्प का नाम हिंदी साहित्य में सादगी, संवेदनशीलता, और उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में सदा अमर रहेगा.
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अभिनेत्री तारा डीसूजा
तारा डिसूजा एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से बॉलीवुड में अपने अभिनय और मॉडलिंग के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म और पालन-पोषण भारत में हुआ, लेकिन उनका व्यक्तित्व और कैरियर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित करता है.
तारा डिसूजा का जन्म 20 दिसम्बर 1986 को हैदराबाद आंध्र-प्रदेश में हुआ था. उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मॉडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. तारा ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. वह विभिन्न फैशन ब्रांड्स और विज्ञापन अभियानों का हिस्सा बनीं. उनके ग्लैमरस अंदाज और आत्मविश्वास ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई. तारा ने बॉलीवुड में कई फिल्मों में काम किया है. उनकी अभिनय शैली और स्क्रीन प्रेजेंस दर्शकों को प्रभावित करने में सफल रही.
फ़िल्में: –
मुझसे फ्रैंडशिप करोगे (2011) – यह उनकी पहली प्रमुख बॉलीवुड फिल्म थी. इस फिल्म में उन्होंने अपनी मासूमियत और खूबसूरत अदाओं से दर्शकों का दिल जीता.
दिल धड़कने दो (2015) – जोया अख्तर की इस फिल्म में तारा ने एक छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई. उनकी सादगी और अभिनय की गहराई ने उनकी प्रतिभा को और निखारा.
तारा डिसूजा ने मॉडलिंग और बॉलीवुड में अपने छोटे लेकिन प्रभावशाली कैरियर के जरिए अपनी पहचान बनाई. वह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उन्हें उनकी सुंदरता और अभिनय कौशल के लिए याद किया जाता है.
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अभिनेत्री मिष्टी
मिष्टी चक्रवर्ती (जिन्हें केवल “मिष्टी” के नाम से भी जाना जाता है) एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी, बंगाली, तेलुगु, और तमिल फिल्मों में सक्रिय रही हैं. अपने खूबसूरत लुक्स और सहज अभिनय के लिए जानी जाने वाली मिष्टी ने विभिन्न भाषाओं की फिल्मों में अपनी पहचान बनाई है. मिष्टी चक्रवर्ती का जन्म 20 दिसंबर 1992 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था. उनका असली नाम इंद्राणी चक्रवर्ती है. उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता में पूरी की और बाद में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा.
मिष्टी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 2014 में सुभाष घई की फिल्म कांची: द अनब्रेकेबल से की थी. इस फिल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई और अपनी मासूमियत और दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान खींचा. उन्हें “सुभाष घई की खोज” के रूप में प्रचारित किया गया, जैसे पहले माधुरी दीक्षित और महिमा चौधरी को किया गया था.
मिष्टी ने तेलुगु फिल्मों में भी काम किया और उनकी पहली तेलुगु फिल्म चिननई तिलगु (2014) थी. उन्हें “Srimantudu” (2015) में भी सराहा गया. मिष्टी ने तमिल और मलयालम फिल्मों में भी अभिनय किया और बहुभाषी अभिनेत्री के रूप में खुद को स्थापित किया.
प्रमुख फिल्में: – कांची: द अनब्रेकेबल (2014), बेगम जान (2017), ब्रूस ली: द फाइटर (तेलुगु), लव एक्सप्रेस (बंगाली).
मिष्टी का अभिनय प्राकृतिक और भावनात्मक रूप से मजबूत माना जाता है. वह अपने किरदारों में सादगी और गहराई लाने के लिए जानी जाती हैं. उनकी खूबसूरत मुस्कान और स्क्रीन प्रेजेंस ने उन्हें दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाया. मिष्टी को उनकी पहली फिल्म “कांची” के लिए सराहा गया और उनकी तुलना कई दिग्गज अभिनेत्रियों से की गई. उन्होंने अपने बहुभाषी करियर से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग जगह बनाई है. मिष्टी चक्रवर्ती एक ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होंने कम समय में विविधतापूर्ण किरदार निभाकर अपनी प्रतिभा साबित की है.
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अभिनेत्री नलिनी जयवंत
नलिनी जयवंत भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1940 – 50 के दशक में अपने अभिनय के लिए व्यापक पहचान प्राप्त की थी. उनका जन्म 18 फ़रवरी 1926 को हुआ था और उनका निधन 22 दिसंबर 2010 को हुआ. नलिनी ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1940 के दशक में की थी और उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया. उन्हें उनकी खूबसूरती और प्रभावशाली अभिनय कौशल के लिए याद किया जाता है.
नलिनी जयवंत ने “बहेन” (1941), “अनोखा प्यार” (1948), “आरजू” (1950), “रेलवे प्लेटफार्म” (1955), और “काला पानी” (1958) जैसी कई प्रमुख फिल्मों में अभिनय किया. उन्हें अपने समय के सबसे विशिष्ट अभिनेताओं में से एक माना जाता था.
उनका अभिनय कैरियर उस समय के सिनेमा में उनकी विशेष पहचान बनाने में सफल रहा और वे अपने समय की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री बनीं. उनके काम ने उन्हें कई पीढ़ियों के दर्शकों के बीच एक सम्मानित स्थान दिलाया.