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व्यक्ति विशेष

भाग – 342.

इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार

रमेश चंद्र मजूमदार एक प्रख्यात भारतीय इतिहासकार थे, जिन्होंने भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास पर विशेष कार्य किया. उनका जन्म 04 दिसंबर 1888 को बंगाल के फरीदपुर जिले (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. वह भारतीय इतिहास को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने और प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं.

“भारतीय इतिहास की वॉल्यूमिनस सीरीज”: रमेश चंद्र मजूमदार ने “The History and Culture of the Indian People” नामक 11 खंडों वाली पुस्तक श्रृंखला का संपादन किया. यह भारतीय इतिहास का एक व्यापक दस्तावेज है.

मजूमदार ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर अपने वैकल्पिक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे. उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय क्रांतिकारियों के प्रयासों और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को रेखांकित किया. उन्होंने भारत के वैदिक काल, गुप्त साम्राज्य, और प्राचीन भारतीय संस्कृति पर महत्वपूर्ण शोध किए. उनकी रचनाओं में ऐतिहासिक प्रमाणों का समृद्ध संग्रह मिलता है. मजूमदार कलकत्ता विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे. उन्होंने कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाया और शोध कार्यों का नेतृत्व किया.

मुख्य पुस्तकें: – Corporate Life in Ancient India, Ancient India, History of Bengal, The Vedic Age, Champa: A Study of the History of Indian Colonisation in Cambodia,

रमेश चंद्र मजूमदार परंपरागत मार्क्सवादी इतिहास लेखन के आलोचक थे. वह इस बात पर जोर देते थे कि भारतीय इतिहास को केवल आर्थिक या वर्ग संघर्ष की दृष्टि से देखने के बजाय सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी समझा जाना चाहिए. रमेश चंद्र मजूमदार को भारतीय इतिहास लेखन में उनके योगदान के लिए अत्यधिक सम्मानित किया जाता है. उनकी दृष्टि और उनके द्वारा संपादित पुस्तकें आज भी भारतीय इतिहास के छात्रों और विद्वानों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ हैं.

रमेश चंद्र मजूमदार का निधन 11 फरवरी 1980 को हुआ. उनके कार्यों ने भारतीय इतिहास में शोध और अध्ययन की नई दिशाओं को प्रेरित किया.

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अभिनेता मोतीलाल

मोतीलाल राजवंशी एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने शानदार अभिनय के लिए ख्याति प्राप्त की. उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में यथार्थवादी अभिनय शैली के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है. अपने कैरियर में, उन्होंने कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं और अपने अभिनय कौशल से दर्शकों का दिल जीत लिया.

मोतीलाल का जन्म 4 दिसंबर 1910 को शिमला में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की और यहीं से उन्होंने अभिनय में अपनी रुचि विकसित की. मोतीलाल ने वर्ष 1934 में फिल्म “शहर का जादू” से अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत की. उनका पहला प्रमुख हिट फिल्म  “साड़ी” (1941) था, जिसमें उनके अभिनय की खूब प्रशंसा हुई.

मोतीलाल ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम किया, जिनमें “डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी” (1946), “देवदास” (1955), “परख” (1960), और “छोटी छोटी बातें” (1965) शामिल हैं.

उन्होंने अपनी फिल्मों में यथार्थवादी और सहज अभिनय शैली को अपनाया, जिसने उन्हें अपने समय के अन्य अभिनेताओं से अलग बनाया. मोतीलाल को अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्हें फिल्म “परख” में उनके प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. उनकी अंतिम फिल्म “छोटी छोटी बातें” के लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ कहानी का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

मोतीलाल का जीवन सादगी और विनम्रता का प्रतीक था. वे न केवल एक महान अभिनेता थे, बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे. उनके निधन के बाद, उनकी स्मृति में कई सम्मानों की स्थापना की गई और उनके योगदान को भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाता है. मोतीलाल का निधन 17 जून 1965 को हुआ. उनके निधन से भारतीय फिल्म उद्योग ने एक महान अभिनेता को खो दिया, लेकिन उनकी फिल्में और उनका अभिनय आज भी दर्शकों को प्रेरित करते हैं.

मोतीलाल की अभिनय शैली और उनके योगदान ने उन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है. उनकी फिल्में और उनके द्वारा निभाए गए किरदार आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं और वे भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बने हुए हैं.

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8वें राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन

आर. वेंकटरमन भारतीय गणराज्य के 8वें राष्ट्रपति थे. उनका जन्म 4 दिसम्बर 1910 को तंजावुर, मद्रास प्रांत (अब तमिलनाडु) में हुआ था और उन्होंने विभिन्न सरकारी पदों पर योगदान किया.

रामस्वामी वेंकटरमन ने अपना  कैरियर वर्ष 1935 में चेन्नई म्युनिसिपल काउंसिल के सदस्य के रूप में शुरू हुआ था, और उन्होंने फिर वर्ष 1950 में मद्रास लोक सभा के सदस्य बनने का मौका पाया. उन्होंने केंद्रीय मंत्री मंडल में भी विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के रूप में काम किया, और इनमें केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में भी रहे.

आर. वेंकटरमन 1984 में उपराष्ट्रपति के रूप में पद संभाला. आर. वेंकटरमन 25 जुलाई, 1987 को भारतीय गणराज्य के 8वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लिया. रामस्वामी वेंकटरमन का निधन 27 जनवरी 2009 को हुआ था.

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बारहवें प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल

इन्द्र कुमार गुजराल भारत के बारहवें प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने वर्ष 1997 – 98 तक देश का नेतृत्व किया. वे एक अनुभवी राजनेता, विद्वान, और कुशल कूटनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं. उनकी नेतृत्व शैली और विदेश नीति, जिसे “गुजराल डॉक्ट्रिन” के नाम से जाना जाता है, भारत के पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने में अहम साबित हुई.

इन्द्र कुमार का जन्म 4 दिसम्बर, 1919 को झेलम में हुआ था, जो उस समय पंजाब प्रान्त का अविभाजित हिस्सा था. इनके पिता का नाम अवतार नारायण गुजराल तथा माता का नाम पुष्पा गुजराल था. इन्द्र कुमार गुजराल का विवाह 26 मई 1946 को शीला देवी के साथ सम्पन्न हुआ. इनके पिता अवतार नारायण गुजराल ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया था. गुजराल ने लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज और गवर्नमेंट कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की. वे लाहौर के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह में हिस्सा लिया, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

इन्द्र कुमार गुजराल का राजनीतिक कैरियर छह दशकों तक फैला रहा, जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.

प्रमुख पद: –

सूचना और प्रसारण मंत्री (1975): – इंदिरा गांधी की सरकार में वे सूचना और प्रसारण मंत्री बने. आपातकाल के दौरान वे पद पर थे, लेकिन मीडिया पर सरकारी नियंत्रण से असहमत होकर इस्तीफा दे दिया.

विदेश मंत्री (1989-1990, 1996-1997): –  गुजराल ने विदेश मंत्रालय संभालते हुए पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम किया.

प्रधानमंत्री (1997-1998): –  21 अप्रैल 1997 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. वे भारत के पहले प्रधानमंत्री थे जो राज्यसभा सदस्य रहते हुए प्रधानमंत्री बने.

इन्द्र कुमार गुजराल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि उनकी विदेश नीति थी, जिसे “गुजराल डॉक्ट्रिन” कहा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और सहयोगपूर्ण संबंध बनाना था.

 पांच सिद्धांत: –

पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों में कोई शर्त नहीं रखी जाएगी.

छोटे पड़ोसी देशों को बिना किसी पारस्परिकता की अपेक्षा के लाभ प्रदान किए जाएंगे.

पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा.

विवादों को बातचीत के माध्यम से हल किया जाएगा.

पड़ोसी देशों के साथ शांति और सहयोग को प्राथमिकता दी जाएगी.

इस नीति का उद्देश्य भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में एक भरोसेमंद नेतृत्व प्रदान करना था.

गुजराल ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए प्रयास किए. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ग्रामीण विकास और शिक्षा पर जोर दिया. गुजराल की पत्नी शीला गुजराल एक कवयित्री थीं. उनके दो बेटे हैं, जिनमें से नरेश गुजराल एक राजनेता हैं. गुजराल को साहित्य और कला में गहरी रुचि थी. वे एक बेहतरीन वक्ता और लेखक भी थे.

इन्द्र कुमार गुजराल का निधन 30 नवंबर 2012 को 92 वर्ष की आयु में हुआ. उन्होंने अपनी सादगी, विद्वता, और राजनीतिक निपुणता के कारण भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी.

इन्द्र कुमार गुजराल को उनकी विदेश नीति, कूटनीति और शांतिपूर्ण नेतृत्व के लिए याद किया जाता है. उनकी “गुजराल डॉक्ट्रिन” भारतीय विदेश नीति में आज भी प्रासंगिक है और उनकी सादगी तथा शालीनता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी हुई है.

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अभिनेता जावेद जाफरी

जावेद जाफरी भारतीय फिल्म उद्योग के बहुमुखी अभिनेता, कॉमेडियन, डांसर, और वॉयस ओवर आर्टिस्ट हैं. उनका पूरा नाम सैयद जावेद अहमद जाफरी है. वह बॉलीवुड में अपने अद्वितीय अभिनय, बेहतरीन डांस मूव्स, और कॉमिक टाइमिंग के लिए प्रसिद्ध हैं.

जावेद जाफरी का जन्‍म 04 दिसंबर 1963 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता जगदीप भारत के मशहूर अभिनेता/कॉमेडियन रहे हैं. उनका भाई नावेद जाफरी भी कॉमेडियन और निर्माता है. जावेद जाफरी की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में पूरी की. जावेद की शादी हबीबा जाफरी से हुई है जिनसे उन्‍हें तीन बच्‍चे हैं- अलाविया जाफरी, मिजान जाफरी और अब्‍बास जाफरी.

जावेद जाफरी ने वर्ष 1985 में फिल्म “मेरी जंग” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. फिल्म में उन्होंने एक नकारात्मक भूमिका निभाई, जिसमें उनका डांस और अभिनय दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ. जावेद जाफरी भारत में आधुनिक डांस स्टाइल को लोकप्रिय बनाने वाले पहले कलाकारों में से एक माने जाते हैं.

जावेद जाफरी ने “ताकेशी कैसल” जैसे शोज़ में अपने वॉयस ओवर के जरिए लाखों दर्शकों को हंसाया. उनका कॉमेडी शो “बूगी वूगी”, जो उनके भाई नावेद जाफरी के साथ प्रस्तुत किया गया था, भारत का पहला डांस रियलिटी शो था और यह बेहद सफल रहा. उन्होंने अपनी बहुमुखी भूमिकाओं से दर्शकों को खूब प्रभावित किया, चाहे वह हास्य हो, गंभीर अभिनय, या खलनायक की भूमिका.

प्रमुख फिल्में: – सलाम नमस्ते” (2005), धमाल” (2007), 3 Idiots” (2009) (कैमियो), लूटकेस” (2020).

जावेद ने हिंदी, अंग्रेजी, और अन्य भाषाओं में विभिन्न परियोजनाओं में काम किया है. उन्होंने फिल्मों में वॉयस ओवर आर्टिस्ट के रूप में भी योगदान दिया है, जैसे “द जंगल बुक” (हिंदी डबिंग). जावेद जाफरी आम आदमी पार्टी से भी जुड़े और  वर्ष 2014 के चुनावों में लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़े.

जावेद अपने वॉयस ओवर और अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं. उनकी कॉमेडी और वॉयस ओवर की तारीफ देशभर में होती है. जावेद एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और समाज से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते रहते हैं. उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें भारतीय मनोरंजन जगत में एक खास स्थान दिलाया है.

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अभिनेता शशि कपूर

शशि कपूर, एक भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपनी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 18 मार्च, 1938 को हुआ था, और वे प्रतिष्ठित कपूर परिवार के सदस्य थे. उन्होंने अपने कैरियर में अनेक हिट फिल्मों में काम किया, जैसे कि ‘दीवार’, ‘कभी कभी’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ और ‘नमक हलाल’.

शशि कपूर ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1948 में अपने भाई राज कपूर की पहली निर्देशित फ़िल्म आग से एक बाल कलाकार के रूप में की थी, और वर्ष 1961 में यश चोपड़ा की राजनीतिक ड्रामा धर्मपुत्र में एक वयस्क के रूप में उनकी पहली भूमिका थी.

शशि कपूर ने अपनी अभिनय क्षमता से न केवल भारतीय दर्शकों का दिल जीता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी उनकी पहचान बनाई. वे ऐसे पहले भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने विदेशी फिल्मों में काम किया.

शशि कपूर को उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार शामिल हैं. उनके अभिनय का जादू आज भी दर्शकों पर छाया हुआ है. उन्होंने 04 दिसंबर 2017 को दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी फिल्में और उनका काम आज भी उन्हें जीवंत रखते हैं.

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‘फाइबर ऑप्टिक्स के पिता’ नरिंदर सिंह कपानी

डॉ. नरिंदर सिंह कपानी को “फाइबर ऑप्टिक्स के पिता” के रूप में जाना जाता है. उन्होंने फाइबर ऑप्टिक्स तकनीक को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे आधुनिक संचार, चिकित्सा और रक्षा प्रौद्योगिकियों में क्रांतिकारी बदलाव आया. फाइबर ऑप्टिक्स का सिद्धांत यह है कि एक पतले कांच या प्लास्टिक के माध्यम से प्रकाश को मोड़ा और गाइड किया जा सकता है, जिससे सूचना का तेज़ और प्रभावी संचार संभव हो पाता है.

नरिंदर सिंह कपानी का जन्म 31 अक्टूबर 1926 को मोगा, पंजाब, अविभाजित भारत में हुआ था. डॉ. नरिंदर सिंह कपानी का निधन 4 दिसंबर 2020 को हुआ था. 

वर्ष 1950 के दशक में, कपानी ने फाइबर ऑप्टिक्स के क्षेत्र में कई प्रयोग किए और यह प्रदर्शित भी किया कि प्रकाश को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के लम्बी दूरी तक पहुँचाया जा सकता है. उन्होंने “फाइबर बंडल” नामक अवधारणा को विकसित किया, जिससे दृश्यता को एक जगह से दूसरी जगह तक सरलता से स्थानांतरित किया जा सकता है.

आज, फाइबर ऑप्टिक्स इंटरनेट, केबल टेलीविजन, टेलीफोन संचार, और चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में मुख्य तकनीक बन गई है. इसकी बदौलत डेटा तेज गति से और लंबी दूरी तक संचारित किया जा सकता है.  कपानी ने इस क्षेत्र में कई शोधपत्र और पुस्तकें प्रकाशित कीं और उनके नाम पर 100 से अधिक पेटेंट हैं.

कपानी को वर्ष 1999 में Forbes ने “सात भूले-बिसरे हीरो” में शामिल किया, जिन्होंने दुनिया को बदल दिया.भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2021 में मरणोपरांत “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया.

डॉ. कपानी का योगदान सिर्फ तकनीकी विकास तक सीमित नहीं रहा; उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति के प्रचार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जीवन विज्ञान और कला में उत्कृष्टता का प्रतीक रहा, और उनकी खोजें विज्ञान और मानवता की प्रगति के लिए मील का पत्थर साबित हुईं.

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