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व्यक्ति विशेष

भाग – 335.

इतिहासकार एवं पुरातात्त्विद काशी प्रसाद जायसवाल

काशी प्रसाद जायसवाल भारतीय इतिहासकार, पुरातत्त्वविद, और कानूनविद थे, जिन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके कार्यों ने भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण और भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

काशी प्रसाद जायसवाल का जन्म 27 नवंबर 1881 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में हुआ था. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की और बी.ए. की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने अपने कानूनी कैरियर की शुरुआत पटना उच्च न्यायालय से की. वे एक सफल वकील बने और पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने लगे.

जायसवाल ने प्राचीन भारतीय इतिहास, विशेष रूप से मौर्य और गुप्त काल के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “हिंदू पॉलिटी” है, जिसमें उन्होंने प्राचीन भारतीय राजनीति और प्रशासन का विशद वर्णन किया है. उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में “चंद्रगुप्त मौर्य और उसके समय” और “हिस्ट्री ऑफ इंडिया” शामिल हैं.

काशी प्रसाद जायसवाल ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य भारतीय इतिहास के अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा देना था. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और खुदाई में योगदान दिया. उन्होंने पटना के निकट स्थित कुम्रहार में पुरातात्त्विक खुदाई की, जहाँ उन्हें मौर्यकालीन अवशेष मिले.

काशी प्रसाद जायसवाल भारतीय राष्ट्रीयता और स्वाधीनता संग्राम के समर्थक थे. वे महात्मा गांधी और अन्य नेताओं के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे. काशी प्रसाद जायसवाल का निधन 4 अगस्त 1937 को हुआ. काशी प्रसाद जायसवाल का जीवन और कार्य भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व और राष्ट्रीयता के अध्ययन में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. उनके अनुसंधान और लेखन ने भारतीय इतिहास की गहरी समझ प्रदान की और भारतीय संस्कृति और सभ्यता के महत्व को उजागर किया है.

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स्वतंत्रता सेनानी गणेश वासुदेव मावलंकर

गणेश वासुदेव मावलंकर, जिन्हें आदर से ‘दादा साहेब’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे, लेकिन उनकी प्रमुख पहचान भारतीय संसदीय जीवन में उनके योगदान से है. उनका जन्म 27 नवंबर 1888 को हुआ था और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था, लेकिन उनकी मुख्य ख्याति भारतीय संविधान सभा और बाद में लोकसभा के पहले अध्यक्ष के रूप में है.

भारतीय संविधान सभा में उनकी भूमिका और बाद में 1952 में जब भारत की पहली लोकसभा का गठन हुआ, तब उन्हें इसका पहला अध्यक्ष चुना गया. उनके नेतृत्व में लोकसभा ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी. उनके कार्यकाल में, उन्होंने सदन की कार्यवाही को निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए कई प्रावधानों और नियमों को स्थापित किया.

दादा साहेब मावलंकर ने न केवल भारतीय संसदीय प्रणाली के विकास में अपना योगदान दिया, बल्कि वे समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय थे. उनका निधन 27 फरवरी 1956 को हुआ. उनकी मृत्यु के बाद, उनके नाम पर कई संस्थानों और पुरस्कारों की स्थापना की गई है, जो उनके द्वारा दी गई सेवाओं को सम्मानित करते हैं. गणेश वासुदेव मावलंकर भारतीय लोकतंत्र के एक महान स्तंभ के रूप में याद किए जाते हैं.

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कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय बच्चन एक हिंदी कवि और लेखक थे, जिन्होंने अपने काव्य और गीतों के माध्यम से भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान किया. उनका जन्म 27 नवम्बर 1907 को हुआ था और उनका निधन 18 जनवरी 2003 को हुआ था.

हरिवंश राय बच्चन का प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है “मधुशाला” जो उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है. “मधुशाला” कविता का संदेश मधुशाला के रूप में पिये जाने वाले व्यक्ति के जीवन और उसके दरिद्र अवस्थाओं के बावजूद जीवन का सौभाग्यी होने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. “मधुशाला” उनकी काव्य और रसधारा कृतियों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और आज भी उनके कविता के प्रशंसकों के बीच में प्रसिद्ध है.

हरिवंश राय बच्चन ने अपने लेखन कैरियर में कई अन्य महत्वपूर्ण काव्य और कृतियों को भी उत्पन्न किया और उन्होंने हिंदी साहित्य में गहरे और प्रभावशाली रूप से अपना संकेत दिया. उन्होंने अपने जीवन के दौरान भी कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, और उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण आदर्श माना जाता है.

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संगीतकार बप्पी लाहिड़ी

बप्पी लाहिड़ी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के एक संगीतकार, गायक और निर्माता थे. उन्होंने वर्ष 1970-80 के दशक में बॉलीवुड में “डिस्को किंग” के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की. उनका असली नाम आलोकेश लाहिड़ी था. बप्पी दा का संगीत बॉलीवुड में डिस्को शैली को लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है, और उन्होंने कई हिट गाने दिए जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं.

बप्पी लाहिड़ी का जन्म 27 नवंबर 1952 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था. वे एक संगीतमय परिवार से आते थे. उनके पिता अपरेश लाहिड़ी एक शास्त्रीय गायक थे और उनकी मां बंसरी लाहिड़ी संगीतकार और गायक थीं. बप्पी दा ने 19 साल की उम्र में हिंदी फिल्म “नन्हा शिकारी” (1973) से अपना कैरियर शुरू किया. उन्होंने डिस्को शैली को भारतीय फिल्मों में स्थापित किया. उनकी पहली बड़ी सफलता फिल्म ‘ज़ख्मी’ (1975) के संगीत से मिली. वर्ष 1980 – 90 के दशक में उन्होंने कई सुपरहिट गाने दिए, जैसे:  –

‘डिस्को डांसर’ (1982) सेआई एम ए डिस्को डांसर”

‘शराबी’ (1984) से “लाहू मुंह लग गया”

‘नमक हलाल’ (1982) से “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी”

‘डांस डांस’ (1987) से “ज़ुबां पे लगा है”

बप्पी लाहिड़ी अपने संगीत के साथ-साथ अपनी अनोखी स्टाइल के लिए भी प्रसिद्ध थे. उन्हें सोने के गहनों का बहुत शौक था, और यह उनकी पहचान का हिस्सा बन गया. उन्होंने हिंदी के अलावा बंगाली, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी संगीत दिया. बप्पी दा ने 500 से अधिक फिल्मों के लिए संगीत दिया और हजारों गाने रिकॉर्ड किए. 63वें ग्रैमी अवार्ड्स में उनका गाना “जिमी जिमी आजा आजा” ग्लोबल स्तर पर ट्रेंड में रहा.

उन्होंने वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में भी हिस्सा लिया, जहां उन्होंने बीजेपी के टिकट पर लड़ाई लड़ी. बप्पी लाहिड़ी का निधन 15 फरवरी 2022 को मुंबई में हुआ. वे ओएसए (ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया) से पीड़ित थे.उनके निधन से भारतीय संगीत जगत को गहरा आघात पहुंचा. बप्पी लाहिड़ी भारतीय संगीत जगत में हमेशा “डिस्को किंग” के रूप में याद किए जाएंगे.

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अभिनेत्री सुचित्रा कृष्णमूर्ति

सुचित्रा कृष्णमूर्ति एक भारतीय अभिनेत्री, गायिका, लेखिका और चित्रकार हैं. वे मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में अपने काम और बहुआयामी प्रतिभाओं के लिए जानी जाती हैं. सुचित्रा ने वर्ष 1990 के दशक में बॉलीवुड में कदम रखा और अपनी बेहतरीन अदाकारी, गायकी और लेखन से पहचान बनाई.

सुचित्रा कृष्णमूर्ति का जन्म 27 नवंबर 1975 को मुंबई में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं. उनके पिता का नाम वी कृष्णमूर्ति था जो आयकर आयुक्त थे और उनकी मां डॉ सुलोचना कृष्णमूर्ति एक इतिहासकार और प्रोफेसर थीं.  उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही मॉडलिंग और अभिनय में रुचि लेनी शुरू की थी.

सुचित्रा ने अपने कैरियर की शुरुआत स्कूल में रहते हुए टीवी सीरीज़ चुनौती (1987) से की थी.  सुचित्रा को फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी पहचान मंसूर खान की फिल्म ‘कभी हां कभी ना’ (1994) से मिली. इस फिल्म में उन्होंने शाहरुख खान के साथ मुख्य भूमिका निभाई और उनकी मासूमियत भरी अदाकारी को खूब सराहा गया. इसके बाद उन्होंने कुछ फिल्मों और टीवी सीरियल्स में भी काम किया.

सुचित्रा एक प्रतिभाशाली गायिका भी हैं. उन्होंने कई म्यूजिक एलबम रिलीज किए हैं. उनके एल्बम ‘धूप’ और गीत ‘जिंदगी’ काफी लोकप्रिय हुए. उनकी आवाज़ में सादगी और गहराई का अनोखा मेल था, जिसने उन्हें म्यूजिक लवर्स के बीच खास पहचान दिलाई. सुचित्रा लेखिका भी हैं. उन्होंने ‘द समरलव एंड जलीबी’ नामक एक पुस्तक लिखी, जो पाठकों के बीच काफी चर्चित रही. इसके अलावा वे एक प्रशिक्षित चित्रकार हैं और कला प्रदर्शनियों में भी भाग लेती हैं.

सुचित्रा की शादी मशहूर फिल्म निर्देशक और संगीतकार शेखर कपूर से हुई थी, लेकिन बाद में दोनों का तलाक हो गया. उनकी एक बेटी कावेरी कपूर हैं, जो खुद एक गायिका हैं.

सुचित्रा कृष्णमूर्ति एक ऐसी कलाकार हैं जो अपनी हर कला में गहराई और विविधता लाती हैं. चाहे अभिनय हो, गायन हो या लेखन, उनकी कला हमेशा उत्कृष्ट रही है.

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अभिनेत्री हिमांशी खुराना

हिमांशी खुराना एक भारतीय अभिनेत्री, मॉडल और गायिका हैं, जो मुख्य रूप से पंजाबी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री में काम करती हैं. उन्होंने अपनी बेहतरीन अदाकारी, खूबसूरत व्यक्तित्व और गायकी से काफी प्रसिद्धि हासिल की. हिमांशी को विशेष रूप से पंजाबी म्यूजिक वीडियो और टीवी रियलिटी शो ‘बिग बॉस 13’ में उनकी भागीदारी के लिए जाना जाता है.

हिमांशी खुराना का जन्म 27 नवंबर 1991 को किरतपुर साहिब, पंजाब में हुआ था.  उनके पिता एक मेडिकल पेशेवर हैं और उनकी मां ने हमेशा उन्हें मॉडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. हिमांशी ने लुधियाना के बीसीएम स्कूल से पढ़ाई की और बचपन से ही मॉडलिंग में रुचि ली.

हिमांशी ने 16 साल की उम्र में मिस लुधियाना का खिताब जीता, जिसके बाद उन्होंने मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा. उन्होंने कई ब्रांड्स के लिए विज्ञापन किए, जैसे: – मेकमाईट्रिप, पेप्सोडेंट, नेस्ले, और गूगल. हिमांशी को पंजाबी म्यूजिक वीडियो ‘सोच’ (हार्डी संधू का गाना) से व्यापक पहचान मिली. इस गाने में उनकी सादगी और खूबसूरती को दर्शकों ने खूब पसंद किया. इसके बाद उन्होंने कई हिट म्यूजिक वीडियोज़ में काम किया, जैसे: – ‘नाज़र लग जाएगी’, ‘मित्रां दी छतरी’, ‘गल जटां वाली’.

हिमांशी ने पंजाबी फिल्मों में भी अपनी जगह बनाई. उनकी पहली फिल्म ‘साड्डा हक’ (2013) थी, जो एक हिट साबित हुई. उन्होंने अन्य पंजाबी फिल्मों में भी काम किया, जिनमें उनकी अदाकारी को सराहा गया. हिमांशी ‘बिग बॉस 13’ में एक प्रतियोगी के रूप में शामिल हुईं. शो में उनकी एंट्री ने उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई. शो के दौरान उनकी और आसिम रियाज़ की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया, और उनकी केमिस्ट्री चर्चा का विषय रही.

हिमांशी खुराना ने गायकी में भी कदम रखा और कुछ बेहतरीन गाने रिलीज़ किए, जैसे:  –  ‘आई लाइक इट’,  ‘अवेर’,  ‘गल करलो’. हिमांशी का नाम आसिम रियाज़ (बिग बॉस 13 के सह-प्रतियोगी) के साथ जोड़ा जाता है. दोनों की जोड़ी को उनके फैंस “आसिमांशी” के नाम से बुलाते हैं. वो अपने फिटनेस और फैशन स्टाइल के लिए भी जानी जाती हैं.

हिमांशी ने सोशल मीडिया पर एक मजबूत फैन फॉलोइंग बनाई है और वह युवा पीढ़ी के लिए एक स्टाइल आइकन मानी जाती हैं. उन्होंने विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे महिला सशक्तिकरण और मानसिक स्वास्थ्य पर भी जागरूकता फैलाई है.

हिमांशी खुराना अपनी प्रतिभा, मेहनत और खूबसूरती के कारण भारतीय मनोरंजन जगत में एक महत्वपूर्ण नाम बन चुकी हैं. उनका कैरियर और जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे एक छोटे से शहर से आकर भी बड़े सपनों को हासिल किया जा सकता है.

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समाज सुधारक लक्ष्मीबाई केलकर

लक्ष्मीबाई केलकर जिन्हें अक्सर “मौसीजी” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय समाज सुधारक और महिला संगठनकर्ता थीं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए जीवन भर काम किया और राष्ट्रीय स्वयंसेविका समिति (Rashtra Sevika Samiti) की स्थापना की, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महिला विंग के रूप में कार्य करती है.

लक्ष्मीबाई केलकर का जन्म 6 जुलाई 1905 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था. मात्र चौदह वर्ष की अल्प आयु में ही उनका विवाह वर्धा के एक विधुर अधिवक्ता पुरुषोत्तम राव केलकर से हुआ था. लक्ष्मीबाई केलकर का निधन 27 नवम्बर 1978 को हुआ था. वर्ष 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेविका समिति की स्थापना की. यह संगठन महिलाओं को संगठित करने और उन्हें राष्ट्रीय और सामाजिक सेवा के कार्यों में संलग्न करने के उद्देश्य से बनाया गया था.

लक्ष्मीबाई केलकर ने भारतीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. उनके नेतृत्व में, राष्ट्रीय स्वयंसेविका समिति ने महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए. उन्होंने महिलाओं को भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति जागरूक किया और उन्हें देशभक्ति के विचारों से प्रेरित किया. उन्होंने महिलाओं को राष्ट्रीयता के विचार से जोड़कर समाज में उनकी भूमिका को पुनःस्थापित करने का प्रयास किया.

लक्ष्मीबाई केलकर ने महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने महिलाओं के लिए विभिन्न शिक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ.

लक्ष्मीबाई केलकर का योगदान भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. उनकी पहल और संगठन ने महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया. आज भी राष्ट्रीय स्वयंसेविका समिति महिलाओं के सशक्तिकरण और समाज सेवा के कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल है, जो लक्ष्मीबाई केलकर के दृष्टिकोण और विचारों को आगे बढ़ा रही है.

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कवि शिवमंगल सिंह सुमन

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि और लेखक थे. उनका साहित्यिक योगदान और कविताएँ भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय से प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए कानपुर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया. सुमन जी ने अपने जीवन में कई प्रसिद्ध कविताएँ लिखीं. उनकी कविताएँ समाज, देशभक्ति, और मानवता पर आधारित होती थीं. उनकी काव्य शैली सरल, प्रभावी और भावनाओं से भरपूर होती थी.

प्रमुख कृतियों: – “मिट्टी की बारात”, “हिल्लोल”, “जीवन के गान”, “विनोबा”, “युग की गंगा”, और “विराम चिन्ह” शामिल हैं. उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है.

शिवमंगल सिंह सुमन को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, और पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किए गए. सुमन जी एक उत्कृष्ट शिक्षक भी थे. उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रोफेसर और कुलपति के रूप में सेवा की. उनके निर्देशन में कई छात्रों ने हिंदी साहित्य में शोध कार्य किए.

कवि सुमन समाज सेवा में भी सक्रिय रहे और उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया. शिवमंगल सिंह सुमन का निधन 27 नवंबर 2002 को हुआ. उनके निधन के बाद भी उनकी कविताएँ और रचनाएँ साहित्य प्रेमियों द्वारा पढ़ी और सराही जाती हैं. शिवमंगल सिंह सुमन का साहित्यिक योगदान और उनकी कविताएँ हिंदी साहित्य के समृद्ध इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

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पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह

विश्वनाथ प्रताप सिंह जिन्हें आमतौर पर वी. पी. सिंह के नाम से जाना जाता है, भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे. उनका जन्म 25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. वी. पी. सिंह भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण नेता थे और उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं.

वी. पी. सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद और फिरोज़ाबाद में प्राप्त की और बाद में पॉलिटिक्स में कदम रखा. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक पदों पर कार्य किया, जिनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के रक्षा मंत्री शामिल हैं. वह राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री भी रहे.

वर्ष 1989 में वी. पी. सिंह ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर जनमोर्चा का गठन किया, जो बाद में जनता दल में परिवर्तित हुआ. जनता दल ने 1989 के आम चुनावों में जीत हासिल की और वी. पी. सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने. उनके कार्यकाल में उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया, जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. यह निर्णय भारतीय राजनीति और समाज में बहुत प्रभावशाली और विवादास्पद साबित हुआ.

वी. पी. सिंह का प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल 1989 – 90 तक रहा. उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया और बोफोर्स घोटाले को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वी. पी. सिंह का निधन 27 नवंबर 2008 को हुआ. उनकी राजनीतिक विरासत आज भी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण मानी जाती है.

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पार्श्वगायक मोहम्मद अज़ीज़

मोहम्मद अज़ीज़ एक भारतीय पार्श्वगायक थे. उन्होंने मुख्य रूप से हिंदी, बंगाली और उड़िया फिल्मों के लिए गाने गाए. उनका वास्तविक नाम सईद मोहम्मद अज़ीज़-उन-नबी था. अज़ीज़ की आवाज़ और गायन शैली ने उन्हें वर्ष 1980 – 90 के दशक में एक प्रमुख पार्श्वगायक बना दिया.

मोहम्मद अज़ीज़ का जन्म 2 जुलाई 1954 को पश्चिम बंगाल के अशोकनगर में हुआ था. उन्होंने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत बंगाली फिल्मों से की, लेकिन बाद में उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई. अज़ीज़ ने कई हिट गाने गाए हैं जो आज भी लोकप्रिय हैं.

 प्रसिद्ध गाने: – ‘आपके आ जाने से’, ‘काग़ज कलम दवात ला’, ‘दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए’, ‘मेरे दो अनमोल रतन’, ‘माई नेम इज़ लखन’, ‘तुझे रब ने बनाया होगा’.

मोहम्मद अज़ीज़ ने कई प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, अनु मलिक, आर.डी. बर्मन, और बप्पी लाहिरी शामिल हैं. उनकी आवाज़ ने इन संगीतकारों के गानों को और भी खास बना दिया. अज़ीज़ को उनके उत्कृष्ट गायन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उनकी आवाज़ और गायन शैली ने उन्हें संगीत प्रेमियों के बीच एक विशेष स्थान दिलाया.

मोहम्मद अज़ीज़ एक सरल और विनम्र व्यक्ति थे. उनकी मधुर आवाज़ और उनके गीतों की विविधता ने उन्हें लोगों के दिलों में बसा दिया. मोहम्मद अज़ीज़ का निधन 27 नवंबर 2018 को हुआ. उनके निधन से संगीत जगत को एक बड़ा झटका लगा, लेकिन उनके गाने और उनकी आवाज़ हमेशा याद की जाती रहेगी.

मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज़ में एक खास मिठास थी, जो उनके गानों को और भी आकर्षक बना देती थी. उन्होंने विभिन्न प्रकार के गाने गाए, जिनमें रोमांटिक, भक्ति, और देशभक्ति गाने शामिल हैं. उनकी गायन शैली में गहराई और भावना थी, जो श्रोताओं को सीधे प्रभावित करती थी.

मोहम्मद अज़ीज़ का योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य है और उनकी आवाज़ ने लाखों लोगों के दिलों को छुआ है. उनके गीत और उनकी मधुर आवाज़ संगीत प्रेमियों के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे.

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