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व्यक्ति विशेष

भाग – 313.

स्वतंत्रता सेनानी चित्तरंजन दास

चित्तरंजन दास जिन्हें “देशबंधु” (देश के मित्र) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता और वकील थे. उनका जन्म 5 नवम्बर 1870 को हुआ था. चित्तरंजन दास का जन्म बंगाल में एक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए, जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की. इंग्लैंड से लौटने के बाद, चित्तरंजन दास ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत की शुरुआत की. उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में काम किया, जिनमें से एक सबसे प्रसिद्ध मामला था, अरविंद घोष का बचाव करना, जो अलिपुर बम मामले में आरोपी थे. इस मामले में उन्होंने अपनी अद्वितीय वकालत कौशल का प्रदर्शन किया और अरविंद घोष को बरी कराया.

चित्तरंजन दास भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हुए और स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता बने. वर्ष 1920 में उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और अपनी वकालत की प्रैक्टिस को छोड़ दिया. उन्होंने स्वराज पार्टी की स्थापना की और इसके प्रथम अध्यक्ष बने. स्वराज पार्टी ने भारतीय विधान परिषदों में भारतीयों के अधिकारों की वकालत की.

चित्तरंजन दास ने भारतीय समाज में सुधारों के लिए भी काम किया. उन्होंने दलितों और गरीबों के उत्थान के लिए कई योजनाएँ बनाई. उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने कई स्कूल और अस्पताल भी स्थापित किए. चित्तरंजन दास एक उत्कृष्ट कवि और लेखक भी थे. उनकी कविताएँ और लेखन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को प्रेरित करते थे. उन्होंने “नव शाक्ति” नामक पत्रिका की स्थापना की, जिसमें उन्होंने अपने विचारों और स्वतंत्रता संग्राम के मुद्दों को प्रकाशित किया.

चित्तरंजन दास का निधन 16 जून 1925 को हुआ. उनके निधन के बाद, उनकी विरासत को सम्मानित करने के लिए कलकत्ता में एक पार्क और एक अस्पताल का नाम उनके नाम पर रखा गया, जिसे चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट कहा जाता है. चित्तरंजन दास का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अमूल्य है. उनके निस्वार्थ सेवा, अद्वितीय वकालत और नेतृत्व के कारण उन्हें “देशबंधु” की उपाधि दी गई और वे भारतीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेंगे.

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स्वतंत्रता सेनानी बनारसी दास गुप्ता

बनारसी दास गुप्ता एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और हरियाणा के राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 5 नवंबर 1917 को हरियाणा के भिवानी जिले में हुआ था।. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया, जिसके करण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.

आजादी के बाद, बनारसी दास गुप्ता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने और हरियाणा की राजनीति में अपना प्रभाव छोड़ा. वे हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री दो बार रहे—पहली बार वर्ष 1975 – 77 तक और दूसरी बार वर्ष 1990 – 91 तक. उनका राजनीतिक जीवन सादगी, ईमानदारी और समाज सेवा के लिए जाना जाता था. वे आम जनता के बीच अपने साधारण जीवन और निस्वार्थ सेवा भाव के कारण बहुत लोकप्रिय थे.

बनारसी दास गुप्ता शिक्षा के प्रति जागरूक थे और उन्होंने राज्य में शिक्षा का प्रसार करने में भी योगदान दिया. उनका  निधन 29 अगस्त 2007 को हुआ था.   उन्हें एक सच्चे देशभक्त और जनता के नेता के रूप में याद किया जाता है.

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अभिनेत्री और मॉडल दीपिका पादुकोण

दीपिका पादुकोण भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्हें उनकी अभिनय प्रतिभा, खूबसूरती और कड़ी मेहनत के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 5 जनवरी 1986 को डेनमार्क के कोपेनहेगन में हुआ था, और वे भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की बेटी हैं. दीपिका ने शुरुआत में बैडमिंटन खेला, लेकिन बाद में अपने मॉडलिंग कैरियर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इसे छोड़ दिया.

दीपिका ने वर्ष 2006 में कन्नड़ फिल्म ऐश्वर्या से अपनी अभिनय यात्रा शुरू की और वर्ष 2007 में शाहरुख़ ख़ान के साथ फिल्म ओम शांति ओम से बॉलीवुड में कदम रखा, जो एक बड़ी हिट साबित हुई. इसके बाद उन्होंने लव आज कल, ये जवानी है दीवानी, चेन्नई एक्सप्रेस, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा.

दीपिका को उनकी अदाकारी के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें फिल्मफेयर अवार्ड्स भी शामिल हैं. उन्होंने हॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई और xXx: Return of Xander Cage में विन डीजल के साथ काम किया. दीपिका मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भी जानी जाती हैं और उन्होंने इस दिशा में लिव लव लाफ फाउंडेशन की स्थापना की है.

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अभिनेत्री अथिया शेट्टी

अथिया शेट्टी भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो बॉलीवुड में अपनी पहचान बना रही हैं. उनका जन्म 5 नवंबर 1992 को मुंबई में हुआ था. वे बॉलीवुड अभिनेता सुनील शेट्टी की बेटी हैं. अथिया ने वर्ष 2015 में फिल्म हीरो से अपने कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उनके साथ सूरज पंचोली थे. इस फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार का नामांकन मिला.

अथिया ने इसके बाद मुबारकां और मोतीचूर चकनाचूर जैसी फिल्मों में काम किया, जिसमें उनकी अभिनय शैली और सहजता को सराहा गया. वे अपने फैशन सेंस के लिए भी जानी जाती हैं और कई ब्रांड्स के लिए ब्रांड एम्बेसडर भी रह चुकी हैं.

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राजनीतिज्ञ फ़िरोजशाह मेहता

फ़िरोजशाह मेहता भारत के एक राजनीतिज्ञ, वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक नेताओं में से एक माना जाता है. फ़िरोजशाह मेहता का जन्म 4 अगस्त 1845 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने एल्फिन्सटन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए. इंग्लैंड से लौटने के बाद, मेहता ने मुंबई में वकालत शुरू की और जल्द ही एक प्रतिष्ठित वकील बन गए.  वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और वर्ष 1890 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने. उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन किया और भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई.

मेहता ने समाज सुधार के लिए भी कई प्रयास किए. उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और नगर निगम प्रशासन में सुधार के लिए काम किया. उन्हें “बॉम्बे के शेर” के नाम से भी जाना जाता है.

फ़िरोजशाह मेहता ने मुंबई नगर निगम के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने बंबई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना की और वर्ष 1873 में मुंबई नगर निगम के सदस्य बने। बाद में वे इसके अध्यक्ष भी बने. फ़िरोजशाह मेहता का निधन 5 नवंबर 1915 को हुआ था.

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ध्रुपद तथा ख़याल गायन शैली के गायक फ़ैयाज़ ख़ाँ

फ़ैयाज़ ख़ाँ भारतीय शास्त्रीय गायक थे, जिन्हें ध्रुपद और ख़याल गायन शैलियों में महारत हासिल थी. फ़ैयाज़ ख़ाँ का जन्म 1880 में आगरा घराने में हुआ था, और उन्होंने अपने समय के प्रमुख गायकों में से एक के रूप में ख्याति प्राप्त की. उनका गायन गहराई, सौंदर्य और शास्त्रीयता से भरपूर होता था, और वे अपने अद्वितीय अंदाज के लिए जाने जाते थे.

ख़ाँ साहब ने ख़याल गायकी को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया और अपने घराने की विशेषताओं को बनाए रखते हुए उसमें सुधार और नवाचार किए. उन्होंने रागों की विशेषताओं को गहराई से प्रस्तुत करने के लिए अपने गायन में ख़याल और ध्रुपद की तकनीकों को अपनाया. उनके गायन में उनके स्वर, लय, और बोल-तानों में अद्भुत संतुलन देखने को मिलता था, जो उन्हें विशिष्ट बनाता था.

फ़ैयाज़ ख़ाँ साहब को भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले. उन्हें “आफताब-ए-मौसिकी” (संगीत के सूरज) की उपाधि भी दी गई, जो उनके संगीत कौशल का सम्मान था. उनकी ध्रुपद और ख़याल गायकी की विरासत को उनके शिष्य और अन्य संगीतज्ञों द्वारा आगे बढ़ाया गया, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को और समृद्धि मिली. फ़ैयाज़ ख़ाँ का निधन 5 नवम्बर 1950 को बड़ोदा में हुआ था.

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कवि एवं आलोचक विजयदेव नारायण साही

विजयदेव नारायण साही हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक और विचारक थे. वे अपने सृजनात्मक लेखन और साहित्यिक आलोचना के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. उनकी कविताओं में गहरी दार्शनिकता, समाज की समस्याओं पर तीक्ष्ण दृष्टि, और मानवता के प्रति समर्पण दिखाई देता है. आलोचना में उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील और नवोन्मेषी था, जिसने हिंदी साहित्य के आलोचना सिद्धांत को नया आयाम दिया.

विजयदेव नारायण साही का जन्म 7 अक्तूबर 1924 को  उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था. वे बचपन से ही साहित्य और अध्ययन के प्रति समर्पित थे. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से उच्च शिक्षा प्राप्त की, जहाँ से उनकी साहित्यिक यात्रा ने नई दिशा पकड़ी.

विजयदेव नारायण साही ने अपनी कविताओं और आलोचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका लेखन उस समय के समाजिक और राजनीतिक मुद्दों से प्रेरित था, और उन्होंने साहित्य को समाज के परिवर्तन का माध्यम माना. उनके साहित्यिक योगदान को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है: –

कविता: – विजयदेव नारायण साही की कविताएँ अपनी विशिष्ट शैली और दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं. उनकी कविता में समाज की विसंगतियों, शोषण, और संघर्षों का चित्रण मिलता है. वे उन कवियों में से थे जिन्होंने अपने काव्य में गहरी संवेदनाओं और सजीव चित्रण के माध्यम से समाज के हर वर्ग को अपनी कविताओं से जोड़ा. उनकी रचनाओं में सरलता और गंभीरता का संतुलन देखने को मिलता है.

प्रमुख कविताएँ: –  “तुम्हारे लिए”,  “कोई ढूंढता है”,  “यह प्रदीप जलता रहे”.

आलोचना: –  विजयदेव नारायण साही एक बेहतरीन साहित्यिक आलोचक भी थे. उनकी आलोचना दृष्टि प्रगतिशील और समकालीन विचारों से प्रेरित थी. उन्होंने हिंदी साहित्य में आलोचना की एक नई धारा को जन्म दिया, जो केवल साहित्यिक रचनाओं के सौंदर्य को नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों को भी परखती थी. साही का मानना था कि साहित्य को समाज के विकास और परिवर्तन के साथ-साथ चलना चाहिए. उन्होंने कविता और साहित्य के गहन विश्लेषण के साथ-साथ उसमें छिपे समाजिक संदेशों को उजागर किया.

विचारक: – साही एक गहरे विचारक थे और उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज में हो रहे परिवर्तनों पर अपनी चिंतनशील दृष्टि प्रस्तुत की. वे मानते थे कि साहित्यकार का कर्तव्य केवल मनोरंजन करना नहीं है, बल्कि समाज में एक नई चेतना और बदलाव लाना भी है.

विजयदेव नारायण साही ने अपने साहित्यिक जीवन के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक थे, जहाँ उन्होंने कई पीढ़ियों के छात्रों को प्रेरित किया और उन्हें साहित्य की नई दिशा दी. उन्होंने साहित्यिक संगोष्ठियों में भाग लिया और साहित्य के नए प्रवृत्तियों पर चर्चा की.

कविता संग्रह: – “तुम्हारे लिए” (यह संग्रह उनके प्रमुख कविता कार्यों में से एक है)

आलोचना: – “साहित्य और समाज,” “आधुनिक कविता और उसके प्रवृत्तियाँ”

विजयदेव नारायण साही का निधन 5 नवम्बर, 1982 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ, लेकिन उनकी साहित्यिक धरोहर आज भी जीवंत है. उनकी कविताएँ और आलोचनात्मक लेखन आज भी हिंदी साहित्य के छात्रों और अध्येताओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. साही ने हिंदी साहित्य में जो योगदान दिया, वह आज भी प्रासंगिक और प्रभावशाली है. उनकी साहित्यिक दृष्टि, विशेष रूप से आलोचना में, ने हिंदी साहित्य को न केवल समृद्ध किया बल्कि उसे सामाजिक परिवर्तन के एक सशक्त माध्यम के रूप में भी प्रतिष्ठित किया. विजयदेव नारायण साही को हिंदी साहित्य के प्रगतिशील और मानवतावादी दृष्टिकोण का प्रतीक माना जाता है.

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कवि नागार्जुन

नागार्जुन हिंदी और मैथिली भाषा के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. उनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था. उनका जन्म 30 जून 1911 को बिहार के सतलखा गाँव में हुआ था. वे अपनी रचनाओं में समाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाते थे और उनकी लेखनी में समाज के प्रति एक विशेष संवेदनशीलता दिखाई देती है. नागार्जुन को उनकी कविता, उपन्यास और निबंध के लिए जाना जाता है.

प्रमुख रचनाओं : –   ‘रतिनाथ की चाची’ (1948 ई.), ‘बलचनमा’ (1952 ई.), ‘नयी पौध’ (1953 ई.), ‘बाबा बटेसरनाथ’ (1954 ई.), ‘दुखमोचन’ (1957 ई.), ‘वरुण के बेटे’ (1957 ई.), उग्रतारा , हीरक जयंती , पत्रहीन नग्न गाछ , युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियां, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, इस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपने, रत्नगर्भ.

नागार्जुन की कविताएँ और गद्य लेखन सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनकी गहरी समझ और विचारों की गहराई उन्हें अद्वितीय बनाती है. वे जनवादी साहित्य के प्रबल समर्थक थे और उनके लेखन में आम जनता की समस्याएँ और संघर्ष स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.

उनका साहित्यिक योगदान हिंदी और मैथिली साहित्य में अमूल्य है और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने की कोशिश की. उनका निधन वर्ष 5 नवंबर1998 को दरभंगा ज़िला, बिहार में हुआ था., लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी समाज को प्रेरणा और दिशा देती हैं.

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निर्माता-निर्देशक बी. आर. चोपड़ा

बी. आर. चोपड़ा जिनका पूरा नाम बलदेव राज चोपड़ा है, भारतीय सिनेमा के प्रमुख निर्माता-निर्देशक थे, उनका जन्म 22 अप्रैल 1914 को पंजाब में हुआ था और उनका निधन 5 नवंबर 2008 को हुआ. बी. आर. चोपड़ा ने भारतीय सिनेमा में कई दशकों तक अपनी छाप छोड़ी, विशेषकर वर्ष 1950 – 80 के दशक के दौरान. उन्होंने कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया जैसे कि “नया दौर” (1957), “साधना” (1958), “कानून” (1960), “गुमराह” (1963), और “हमराज़” (1967).

उनकी फिल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित होती थीं और उन्होंने अपनी कथाओं के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया. बी. आर. चोपड़ा की फिल्में न केवल मनोरंजक थीं, बल्कि उनमें गहरी नैतिकता और न्याय के लिए एक स्पष्ट आवाज भी थी.

बी. आर. चोपड़ा की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक थी टेलीविजन पर “महाभारत” का निर्माण, जो वर्ष 1988 में प्रसारित हुआ. यह धारावाहिक भारतीय टेलीविजन पर सबसे प्रभावशाली और लोकप्रिय सीरियलों में से एक बन गया. “महाभारत” ने न केवल भारतीय दर्शकों को आकर्षित किया, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति के प्रति रुचि बढ़ाई. उनका काम और योगदान भारतीय सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण रहा है, और आज भी उनकी फिल्में और धारावाहिक सम्मान के साथ देखे जाते हैं.

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पत्रकार प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशी एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार और संपादक थे, जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता में अपनी एक अलग पहचान बनाई. उनका जन्म 15 जुलाई 1937 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर पत्रकार ‘नई दुनिया’ अखबार से की. बाद में वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से जुड़े, जहाँ उन्होंने कई महत्वपूर्ण समाचारों और घटनाओं पर रिपोर्टिंग की.

प्रभाष जोशी ‘जनसत्ता’ के संस्थापक संपादक थे, जो कि हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक प्रमुख समाचार पत्र है. उनके संपादन में ‘जनसत्ता’ ने निष्पक्ष और साहसिक पत्रकारिता के नए मानदंड स्थापित किए. उन्होंने कई महत्वपूर्ण लेख और संपादकीय लिखे, जो हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर माने जाते हैं. उनके लेखन में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर गहरी समझ और विश्लेषण देखने को मिलता है.

उन्होंने हमेशा ईमानदारी और निष्पक्षता को अपनी पत्रकारिता का मूल सिद्धांत बनाया. वे अपने समय के सबसे सम्मानित पत्रकारों में से एक थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया. उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनमें उनके विचारों और पत्रकारिता के अनुभवों का संग्रह है. उनकी प्रमुख पुस्तकों में ‘हिन्दू होने का धर्म’ और ‘प्रभाष पर्व’ शामिल हैं.

प्रभाष जोशी का निधन 5 नवंबर 2009 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी हिंदी पत्रकारिता में जीवित है और नए पत्रकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.

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गायक भूपेन हज़ारिका

भूपेन हज़ारिका भारतीय गायक, संगीतकार, गीतकार, कवि और फिल्म निर्माता थे. उनका जन्म 8 सितंबर 1926 को असम में हुआ था. उन्हें असमिया, हिंदी और बंगाली भाषाओं में अपने गाने और संगीत के लिए जाना जाता है, और उन्होंने भारतीय लोक संगीत और पारंपरिक धुनों को अपने संगीत में शामिल करके उसे एक अनूठा रूप दिया. भूपेन हज़ारिका को उनके गहरे, प्रभावशाली और काव्यात्मक गीतों के लिए “संगीतकार, कवि और मानवतावादी” के रूप में सम्मानित किया गया.

भूपेन हज़ारिका का संगीत सामाजिक संदेशों, मानवीय संवेदनाओं और समाज में व्याप्त विषमताओं को दर्शाने के लिए जाना जाता है. उनके गाने जैसे “गंगा बहती हो क्यों” और “दिल हूम हूम करे” ने न केवल संगीत प्रेमियों को प्रभावित किया बल्कि सामाजिक समस्याओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया. हज़ारिका ने असमिया और हिंदी फिल्मों में संगीत निर्देशन किया और कई यादगार धुनें दीं.

गायक और संगीतकार भूपेन हज़ारिका का निधन 5 नवंबर 2011 को मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में हुआ था. उनके योगदान को मान्यता देने के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया. उन्हें मरणोपरांत 2019 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया. भूपेन हज़ारिका की संगीत यात्रा और उनके समाज को जागरूक करने वाले गाने उन्हें हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित रखेंगे.

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अन्य: –

 इसरो द्वारा मंगलयान का प्रक्षेपण: –   5 नवंबर 2013 में भारत ने अपने पहले मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान (एमओएम) के लिए ध्रुवीय रॉकेट को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इतिहास रच दिया था.

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