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व्यक्ति विशेष

भाग – 308.

सरदार वल्लभभाई पटेल

सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे. उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था. उन्हें “लौह पुरुष” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने आजादी के बाद देश की 562 से अधिक देशी रियासतों का एकीकरण करके भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाया. उनकी इस अद्वितीय सफलता को उनकी राजनीतिक कुशलता और दृढ़ निश्चय का प्रतीक माना जाता है.

वर्ष 1928 में बारडोली के किसानों के कर वृद्धि के विरोध में उन्होंने सफल आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसमें उनकी रणनीति और नेतृत्व क्षमता को पहचानते हुए उन्हें “सरदार” की उपाधि दी गई. आजादी के बाद विभिन्न देशी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करना एक जटिल कार्य था. सरदार पटेल ने अपनी कूटनीति और शक्ति के संतुलन से अधिकांश रियासतों को बिना किसी संघर्ष के भारत में सम्मिलित कर लिया. पटेल ने भारतीय संविधान सभा में भी सक्रिय भूमिका निभाई और उन्होंने देश में एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा स्थापित करने में योगदान दिया.

सरदार पटेल का निधन 15 दिसंबर 1950 को हुआ. उनकी स्मृति में गुजरात में “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” का निर्माण किया गया है, जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है और उनके महान योगदान का प्रतीक है. उनके जीवन और योगदान से आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा लेती रहेंगी.

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‘फाइबर ऑप्टिक्स के पिता’ नरिंदर सिंह कपानी

डॉ. नरिंदर सिंह कपानी को “फाइबर ऑप्टिक्स के पिता” के रूप में जाना जाता है. उन्होंने फाइबर ऑप्टिक्स तकनीक को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे आधुनिक संचार, चिकित्सा और रक्षा प्रौद्योगिकियों में क्रांतिकारी बदलाव आया. फाइबर ऑप्टिक्स का सिद्धांत यह है कि एक पतले कांच या प्लास्टिक के माध्यम से प्रकाश को मोड़ा और गाइड किया जा सकता है, जिससे सूचना का तेज़ और प्रभावी संचार संभव हो पाता है.

नरिंदर सिंह कपानी का जन्म 31 अक्टूबर 1926 को भारतीय मूल के अमेरिकी भौतिक विज्ञानी नरिंदर सिंह कपानी का जन्म मोगा, पंजाब, अविभाजित भारत में हुआ था. डॉ. नरिंदर सिंह कपानी का निधन 4 दिसंबर 2020 को हुआ था.

वर्ष 1950 के दशक में, कपानी ने फाइबर ऑप्टिक्स के क्षेत्र में कई प्रयोग किए और यह प्रदर्शित किया कि प्रकाश को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के लम्बी दूरी तक पहुँचाया जा सकता है. उन्होंने “फाइबर बंडल” नामक अवधारणा को विकसित किया, जिससे दृश्यता को एक जगह से दूसरी जगह तक सरलता से स्थानांतरित किया जा सकता है.

आज, फाइबर ऑप्टिक्स इंटरनेट, केबल टेलीविजन, टेलीफोन संचार, और चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में मुख्य तकनीक बन गई है. इसकी बदौलत डेटा तेज गति से और लंबी दूरी तक संचारित किया जा सकता है.  कपानी ने इस क्षेत्र में कई शोधपत्र और पुस्तकें प्रकाशित कीं और उनके नाम पर 100 से अधिक पेटेंट हैं.

कपानी को वर्ष 1999 में Forbes ने “सात भूले-बिसरे हीरो” में शामिल किया, जिन्होंने दुनिया को बदल दिया.भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2021 में मरणोपरांत “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया.

डॉ. कपानी का योगदान सिर्फ तकनीकी विकास तक सीमित नहीं रहा; उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति के प्रचार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जीवन विज्ञान और कला में उत्कृष्टता का प्रतीक रहा, और उनकी खोजें विज्ञान और मानवता की प्रगति के लिए मील का पत्थर साबित हुईं.

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राजनीतिज्ञ भूतपूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी

ओमान चांडी एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता और केरल के दो बार मुख्यमंत्री रहे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और लगभग पांच दशकों तक केरल की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. उनके योगदान के कारण उन्हें केरल का “जनता का नेता” माना जाता था. ओमान चांडी अपने शासनकाल में सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य, और शिक्षा क्षेत्रों में सुधार के लिए प्रतिबद्ध थे.

ओमान चांडी का जन्म 31 अक्टूबर 1943 को केरल के कोट्टायम जिले के कुमारकोम में हुआ था. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुथुपपल्ली में सेंट जॉर्ज हाई स्कूल से पूरी की थी. ओमान चांडी का निधन 18 जुलाई 2023 को हुआ था.

ओमान चांडी पहली बार वर्ष 2004 – 06 और फिर वर्ष 2011 – 16 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे. उनके कार्यकाल में राज्य में सामाजिक और आर्थिक सुधारों के कई प्रयास हुए. उन्होंने राज्य में बुनियादी ढांचे, सड़कों, और जल आपूर्ति परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिया. ओमान चांडी जनता के मुद्दों के प्रति बहुत संवेदनशील थे. उन्होंने मासिक “जनता दरबार” शुरू किया, जहाँ लोग अपनी समस्याओं को सीधे मुख्यमंत्री के समक्ष रख सकते थे. यह पहल उन्हें जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बनाती थी. चांडी ने आईटी पार्क, मेडिकल कॉलेजों, और अन्य सार्वजनिक सेवाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए. इसके अतिरिक्त, उनका ध्यान राज्य की रोजगार की स्थिति में सुधार लाने और युवाओं के लिए अवसरों के सृजन पर था.

ओमान चांडी को उनकी जनसेवा, सादगी, और निःस्वार्थ सेवा भावना के लिए याद किया जाता है. वे एक ऐसे नेता थे जो जनता के करीब थे और उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे. उनके निधन के बाद भी उनकी विरासत केरल में एक प्रेरणा के रूप में बनी हुई है, और उनके द्वारा शुरू की गई कई योजनाएँ राज्य की प्रगति में योगदान दे रही हैं.

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वैज्ञानिक जी. माधवन नायर

जी. माधवन नायर एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के पूर्व अध्यक्ष हैं. उनका जन्म 31 अक्टूबर 1943 को केरल में हुआ था. नायर ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं और इसरो के विकास में उनका प्रमुख योगदान रहा है. उनके कार्यकाल में भारत ने कई अंतरिक्ष उपलब्धियाँ हासिल कीं, जिनमें चंद्रयान-1 मिशन विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

माधवन नायर वर्ष 2003 – 09 तक इसरो के अध्यक्ष रहे. उनके नेतृत्व में इसरो ने कई सफल प्रक्षेपण किए और विश्व में भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में एक मजबूत स्थिति दिलाई. उनकी देखरेख में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने उन्नति की और स्वदेशी तकनीकों को विकसित किया गया.

नायर के कार्यकाल के दौरान, भारत ने वर्ष 2008 में चंद्रमा पर अपना पहला मिशन, चंद्रयान-1, सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया. इस मिशन ने चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति का पता लगाया, जो अंतरिक्ष विज्ञान में एक ऐतिहासिक खोज मानी जाती है. उनके कार्यकाल में पीएसएलवी (Polar Satellite Launch Vehicle) और जीएसएलवी (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) जैसे महत्वपूर्ण रॉकेट प्रक्षेपण प्रणाली का सफल विकास और उपयोग हुआ, जो भारतीय उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित करने में सहायक रहे.

 माधवन नायर के कार्यकाल में दूरसंचार, मौसम विज्ञान, और रिमोट सेंसिंग के लिए कई उपग्रह प्रक्षेपण किए गए, जिससे भारत के संचार और मौसम पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार हुआ. माधवन नायर को उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1998 में पद्म भूषण और वर्ष  2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया.

माधवन नायर का जीवन भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनके द्वारा की गई खोजें और अनुसंधान भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई हैं, और उनका योगदान इसरो के वैश्विक स्तर पर पहचान बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है.

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असम के 14वें मुख्यमंत्री सर्बानन्द सोनोवाल

सर्बानंद सोनोवाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख राजनेता हैं, जिन्होंने असम के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 31 अक्टूबर 1962 को असम के डिब्रूगढ़ जिले में हुआ था. सोनोवाल असम के पहले भाजपा मुख्यमंत्री थे और उन्होंने वर्ष 2016 – 21 तक मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ दीं. वर्तमान में वे केंद्रीय कैबिनेट में केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री हैं. उनके कार्यकाल के दौरान असम में शांति स्थापना, विकास, और राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहल की गईं.

सोनोवाल ने असम में अवैध प्रवासियों की समस्या पर गंभीरता से ध्यान दिया और इसे नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए. उनके कार्यकाल में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स (NRC) को अद्यतन करने का कार्य हुआ, जिससे राज्य में अवैध प्रवासियों की पहचान की जा सके. सोनोवाल ने बोडो समुदाय के साथ शांति समझौते को आगे बढ़ाया, जिससे असम में अलगाववाद की समस्याओं को सुलझाने में मदद मिली. इस समझौते के तहत बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) का गठन हुआ, जिससे बोडो जनजातियों के विकास को बल मिला.

सोनोवाल के कार्यकाल में राज्य में सड़कों, पुलों, और अन्य बुनियादी ढाँचों के विकास में तेजी आई. उन्होंने असम को भारत के बाकी हिस्सों से अधिक कुशलता से जोड़ने के लिए आधारभूत सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया. सोनोवाल पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी सजग रहे. उन्होंने असम के वन्यजीवन, खासकर एक सींग वाले गैंडों की सुरक्षा के लिए कई पहल कीं.

मुख्यमंत्री के तौर पर सर्बानंद सोनोवाल की प्रशासनिक कुशलता और जनता के प्रति उनकी संवेदनशीलता के कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ी. असम में शांति और विकास के क्षेत्र में उनके योगदान को सराहा गया, और उनके नेतृत्व में भाजपा ने असम में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई.

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क्रिप्टोग्राफर डॉ. देबदीप मुखोपाध्याय

डॉ. देबदीप मुखोपाध्याय एक प्रमुख भारतीय क्रिप्टोग्राफर और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ हैं, जो क्रिप्टोग्राफी के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं. वे भारतीय विज्ञान संस्थान (IIT) खड़गपुर में एक प्रोफेसर हैं और हार्डवेयर सुरक्षा, साइड-चैनल एनालिसिस, और एम्बेडेड सिस्टम सुरक्षा में विशेषज्ञता रखते हैं. उनका शोध कार्य भारत के साइबर सुरक्षा ढांचे को मजबूत बनाने में मदद कर रहा है और कई तकनीकी प्रणालियों की सुरक्षा में सुधार कर रहा है. देबदीप मुखोपाध्याय का जन्म 31 अक्टूबर 1977 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था.

डॉ. मुखोपाध्याय ने हार्डवेयर-आधारित क्रिप्टोग्राफी तकनीकों पर कई शोध किए हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सुरक्षित डेटा ट्रांसमिशन को सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं. इन तकनीकों का उपयोग न केवल साइबर सुरक्षा बल्कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और अन्य संवेदनशील प्रणालियों में भी होता है. वे साइड-चैनल अटैक्स के क्षेत्र में अग्रणी शोधकर्ता हैं. साइड-चैनल अटैक वे तकनीक हैं जो क्रिप्टोग्राफिक प्रणालियों में सूक्ष्म खामियों का उपयोग करके संवेदनशील डेटा को एक्सेस करने की कोशिश करती हैं. मुखोपाध्याय ने ऐसे हमलों के विरुद्ध प्रभावी सुरक्षा तकनीकों का विकास किया है.

डॉ. मुखोपाध्याय ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया है. उनकी तकनीकें डिजिटल संचार और डेटा सुरक्षा को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और भविष्य के साइबर खतरों के प्रति संवेदनशील प्रणालियों की सुरक्षा में सहायक हैं. वे क्रिप्टोग्राफी और सुरक्षा पर कई शोध पत्रों और पुस्तकों के लेखक हैं. उनकी शोध सामग्री अकादमिक और पेशेवर समुदाय में व्यापक रूप से सम्मानित है और साइबर सुरक्षा में नवाचार के लिए मील का पत्थर मानी जाती है.

डॉ. मुखोपाध्याय को उनके शोध कार्य के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उनके काम ने भारतीय रक्षा, वित्तीय, और साइबर सुरक्षा तंत्र को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाने में सहायता की है. उनकी उपलब्धियाँ भारत के उभरते हुए साइबर सुरक्षा ढांचे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

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संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन

सचिन देव बर्मन भारतीय सिनेमा के सबसे महान संगीतकारों और गायकों में से एक थे. उन्होंने हिंदी और बंगाली सिनेमा में अपने योगदान से एक अद्वितीय पहचान बनाई. उनके संगीत की खासियत उसकी सादगी, गहराई और भारतीय लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत के तत्वों का समन्वय था. एस. डी. बर्मन के नाम से प्रसिद्ध, उन्होंने अपने संगीत से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को कई हिट गीत दिए और उनका नाम भारतीय संगीत इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है.

सचिन देव बर्मन का जन्म 1 अक्टूबर 1906 को त्रिपुरा राज्य के राजघराने में हुआ था. उनके पिता, नबद्वीपचंद्र देव बर्मन, त्रिपुरा के शाही परिवार से थे. एस. डी. बर्मन को बचपन से ही संगीत का गहरा लगाव था, और उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने गुरु के. सी. डे (मन्ना डे के चाचा) से ली. बर्मन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत और बंगाली लोकसंगीत दोनों में गहरी रुचि दिखाई और यही उनकी संगीत शैली की नींव बनी.

एस. डी. बर्मन का संगीत कैरियर वर्ष 1930 के दशक में बंगाली सिनेमा से शुरू हुआ. उन्होंने पहले बंगाली फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया, और बाद में हिंदी सिनेमा की ओर रुख किया. वर्ष 1940 के दशक में मुंबई आने के बाद, बर्मन ने जल्द ही बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बना ली.

उनकी संगीत रचना की शैली लोकगीतों और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत मिश्रण थी, जो सादगी के साथ गहरे भावनात्मक प्रभाव को उत्पन्न करती थी. उनके द्वारा दिए गए कुछ यादगार और कालजयी गीत आज भी लोकप्रिय हैं.

फिल्में और गीत: –

सचिन देव बर्मन ने कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों में संगीत दिया, और उनके द्वारा रचित गीत भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो गए.

“गाइड” (1965): – इस फिल्म में उन्होंने अद्वितीय संगीत दिया और इसके सभी गाने सुपरहिट रहे. जैसे “गाता रहे मेरा दिल” और “आज फिर जीने की तमन्ना है”.

“प्यासा” (1957): – इस फिल्म का संगीत अत्यंत भावुक और गहरा था. “जाने वो कैसे लोग थे” और “ये महलोन, ये ताजों” जैसे गीत आज भी बहुत सराहे जाते हैं.

“अराधना” (1969): – इस फिल्म के गीतों ने किशोर कुमार और लता मंगेशकर की आवाज़ को अमर बना दिया. “मेरे सपनों की रानी” और “कोरा कागज़ था ये मन मेरा” जैसे गीत बेहद लोकप्रिय हुए.

“कागज़ के फूल” (1959): – इसमें बर्मन के संगीत ने फिल्म की गहरी भावनाओं को एक नया आयाम दिया. इसका गाना “वक्त ने किया क्या हसीं सितम” आज भी बेहद प्रसिद्ध है.

“बंदिनी” (1963): – फिल्म में बर्मन के संगीत ने सशक्त भावनाओं को अभिव्यक्त किया. “मोरा गोरा अंग लै ले” और “ओ रे मांझी” जैसे गीत आज भी श्रोताओं के दिलों में बसे हुए हैं.

सचिन देव बर्मन न केवल एक महान संगीतकार थे, बल्कि एक बेहद प्रतिभाशाली गायक भी थे. उनकी अनूठी आवाज़ में एक लोकसंगीत की आत्मीयता थी, जिसने उनके गानों को एक विशेष पहचान दी.

 गाने गाए: –

“सुजाता” फिल्म का गीत “सुन मेरे बंधु रे”,

“जाल” फिल्म का प्रसिद्ध गीत “ठंडी हवाएं”. उनकी आवाज़ की मधुरता और गहराई श्रोताओं को भावनाओं की एक नई दुनिया में ले जाती थी.

सचिन देव बर्मन को उनके उत्कृष्ट संगीत के लिए कई सम्मान मिले. उनमें से कुछ प्रमुख हैं: –

फिल्मफेयर पुरस्कार: उन्हें कई बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए नामांकित किया गया, और उन्होंने वर्ष 1954 में फिल्म “तुमसा नहीं देखा” के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता.

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: बर्मन को उनके जीवनकाल में भारतीय सिनेमा के लिए उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले.

सचिन देव बर्मन के बेटे राहुल देव बर्मन (आर. डी. बर्मन) भी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के सबसे प्रसिद्ध और प्रतिभाशाली संगीतकारों में से एक थे. एस. डी. बर्मन का व्यक्तिगत जीवन सादगीपूर्ण था, और वे अपने संगीत के प्रति अत्यधिक समर्पित थे.

31 अक्टूबर 1975 को सचिन देव बर्मन का निधन हो गया, लेकिन उनकी संगीत की धरोहर आज भी जीवित है. उनके द्वारा रचित संगीत न केवल हिंदी सिनेमा का, बल्कि भारतीय संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. एस. डी. बर्मन ने अपने जीवन में लोकसंगीत, शास्त्रीय संगीत और आधुनिक धुनों का जो अनूठा संगम पेश किया, उसने उन्हें भारतीय संगीत के इतिहास में अमर कर दिया. उनके संगीत की विरासत उनके बेटे आर. डी. बर्मन ने भी बखूबी संभाली और उसे आगे बढ़ाया.

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प्रथम महिला प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी

इंदिरा गांधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं और देश के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थीं. इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को हुआ था. वे जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं और उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री का पद संभाला: वर्ष 1966 – 77 तक और फिर वर्ष 1980  84 तक. उनकी राजनीतिक सोच, दृढ़ निश्चय, और साहसी निर्णयों के कारण उन्हें “आयरन लेडी ऑफ इंडिया” कहा जाता है.

इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति को बढ़ावा दिया, जिससे भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सका. यह निर्णय कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ और देश को खाद्यान्न संकट से उबरने में मदद मिली. वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की, जिससे बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया. यह भारत के लिए एक बड़ी सैन्य और राजनीतिक सफलता थी.

वर्ष 1969 में इंदिरा गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई. वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया. इसे “स्माइलिंग बुद्धा” नाम दिया गया और इसने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया.

इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में देश में आपातकाल घोषित किया, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक विवादास्पद अध्याय माना जाता है. इसका उद्देश्य कानून व्यवस्था को बनाए रखना था, लेकिन इसे स्वतंत्रता पर अंकुश और राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा गया.  इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में “गरीबी हटाओ” योजना का नारा दिया और गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाओं का शुभारंभ किया. इससे वे गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो गईं.

इंदिरा गांधी को उनके अद्वितीय नेतृत्व और राष्ट्र के प्रति उनके योगदान के लिए मरणोपरांत कई सम्मान दिए गए. उन्हें “भारत रत्न” से भी सम्मानित किया गया. उनकी नीतियों और निर्णयों का प्रभाव भारतीय राजनीति, समाज, और वैश्विक राजनीति पर गहरा पड़ा. 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन वे भारतीय राजनीति और जनता के दिलों में आज भी अमिट छवि के रूप में जीवित हैं.

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निधन: –

  1. ब्रज कुमार नेहरू: – ब्रज कुमार नेहरू का निधन 31 अक्टूबर 2001 को  हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था.
  2. उपन्यासकार अमृता प्रीतम: – कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार अमृता प्रीतम का निधन 31 अक्टूबर 2005 को दिल्ली में हुआ था.
  3. व्यंग्यकार व लेखक के. पी. सक्सेना: – व्यंग्यकार व लेखक के. पी. सक्सेना का निधन 31 अक्टूबर 2013 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था.

अन्य: –

  1. ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस: – 31 अक्टूबर 1920 को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना एन. एम. जोशी ने मुंबई में की थी. इसका प्रथम अधिवेशन मुंबई में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में संपन्न हुआ था.
  2. अफ़्रोएशियन हॉकी चैम्पियनशिप: – 31 अक्टूबर 2003 को हैदराबाद में आयोजित अफ़्रोएशियन हॉकी चैम्पियनशिप में भारत ने पाकिस्तान को 3-1 से हराकर स्वर्ण प्राप्त किया था.
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