क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ दास
जतीन्द्रनाथ दास (जतिन दास) एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी थे, जिनका जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में उनकी बहादुरी और त्याग के लिए जाना जाता है. जतिन दास विशेष रूप से अपने 63 दिन के भूख हड़ताल के लिए प्रसिद्ध हैं, जो उन्होंने ब्रिटिश जेलों में भारतीय कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और असमानता के खिलाफ किया था.
जतिन दास ने वर्ष 1920 के दशक में भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए कार्य किया. वे HSRA के सदस्य बने और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ सशक्त क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहे.
जतिन दास को “लाहौर षड्यंत्र केस” में गिरफ्तार किया गया था. जेल में उन्हें ब्रिटिश कैदियों के मुकाबले बहुत ही खराब सुविधाएं दी गई थीं. उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू की, जो कुल 63 दिनों तक चली. इस दौरान वे खाने-पीने से पूरी तरह इनकार करते रहे, और उनकी हालत बिगड़ती गई. उनकी इस हड़ताल ने ब्रिटिश शासन और जेल में भारतीय कैदियों की दुर्दशा पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया.
13 सितंबर 1929 को, अपनी भूख हड़ताल के 63वें दिन, जतिन दास ने लाहौर जेल में अपने प्राण त्याग दिए. उनकी शहादत से पूरे देश में ब्रिटिश शासन के प्रति गहरा आक्रोश फैल गया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महानायक के रूप में सम्मान मिला.
जतिन दास की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रेरणा का काम किया. उनकी अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे, और उनकी कुर्बानी ने स्वतंत्रता सेनानियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया. उनकी बहादुरी और बलिदान की कहानी आज भी भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय के रूप में मानी जाती है, और उन्हें एक वीर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित किया जाता है.
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राष्ट्रपति के. आर. नारायणन
कोचेरिल रामन नारायणन (के. आर. नारायणन) भारत के दसवें राष्ट्रपति थे, जिन्होंने 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक पद संभाला. वे भारत के पहले दलित राष्ट्रपति थे और एक विद्वान, राजनयिक, और अनुभवी राजनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुए. उनका जन्म 27 अक्टूबर 1920 को केरल के त्रावणकोर (अब उत्तरी केरल) में एक निर्धन दलित परिवार में हुआ था. अपनी कड़ी मेहनत, दृढ़ता और विद्वता के चलते वे भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचे.
नारायणन ने मद्रास विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त की. लंदन में उनकी पढ़ाई के दौरान प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हेरोल्ड लैस्की उनके शिक्षक थे, जिन्होंने नारायणन की विद्वता की सराहना की और उन्हें एक उत्कृष्ट छात्र बताया. नारायणन ने वर्ष 1949 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में प्रवेश किया. वे म्यांमार, जापान, यूके, थाईलैंड, और वियतनाम जैसे देशों में भारत के राजदूत के रूप में कार्यरत रहे. चीन में राजदूत के रूप में उनकी नियुक्ति बेहद महत्वपूर्ण मानी गई, खासकर जब वर्ष 1976 में दोनों देशों के बीच लंबे समय के बाद राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे.
नारायणन ने वर्ष 1984 में राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी के समर्थन से केरल के ओट्टापलम से सांसद चुने गए. वे राजीव गांधी सरकार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, योजना और विदेश मामलों के राज्य मंत्री भी बने. वर्ष 1992 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बने और वर्ष 1997 में देश के पहले दलित राष्ट्रपति बने. उनका कार्यकाल महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति पद की भूमिका को सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं रहने दिया, बल्कि कई मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र सोच को प्रकट किया. उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर रहते हुए सामाजिक न्याय, लोकतंत्र, और मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई.
नारायणन ने लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा रखी. उन्होंने कहा था कि भारत में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए. उनके कार्यकाल में वर्ष 2002 के गुजरात दंगे हुए, जिन पर उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी और एक नैतिक उदाहरण पेश करते हुए सरकार के कर्तव्यों पर सवाल उठाए. वे एक विद्वान व्यक्ति थे, जिन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था. उनकी रुचि साहित्य और संस्कृति में भी थी, और उन्होंने कई लेख लिखे जो आज भी अध्ययन का विषय हैं.
के. आर. नारायणन को उनके कार्यों, विचारधारा और दृढ़ता के लिए याद किया जाता है. वे भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों के प्रतीक माने जाते हैं. उनकी विनम्रता और निष्ठा के चलते उन्हें भारतीय लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ माना जाता है, और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं. के. आर. नारायणन का निधन 9 नवंबर 2005 को हुआ, और उन्हें पूरे देश में श्रद्धांजलि दी गई.
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उद्योगपति अरविंद मफतलाल
अरविंद मफतलाल भारतीय उद्योग जगत के एक प्रतिष्ठित नाम हैं, जो मफतलाल समूह (Mafatlal Group) के संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में जाने जाते हैं. मफतलाल समूह भारत में कपड़ा, रसायन, और वित्तीय सेवाओं सहित कई क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मफतलाल परिवार का भारतीय उद्योग में दशकों पुराना योगदान रहा है, और इसे भारतीय कपड़ा उद्योग में अग्रणी कंपनियों में से एक माना जाता है.
मफतलाल परिवार का इतिहास भारत के कपड़ा उद्योग में बहुत पुराना है. मफतलाल समूह की शुरुआत गुजरात में हुई थी, और यह धीरे-धीरे देश के प्रमुख उद्योगों में से एक बन गया. अरविंद मफतलाल ने अपने पिता और पूर्वजों के व्यापारिक आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए इसे नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया.
मफतलाल समूह मुख्य रूप से अपने कपड़ा व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध है. समूह ने उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े, यूनिफॉर्म, और परिधान उत्पादों का उत्पादन किया और देश में फैशन उद्योग को नई दिशा दी. मफतलाल फैब्रिक्स गुणवत्ता और ब्रांड वैल्यू के लिए जानी जाती है, और भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी अच्छी पहचान है.
कपड़ा उद्योग के साथ-साथ मफतलाल समूह ने रसायन, वित्तीय सेवाओं, रियल एस्टेट और अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. उन्होंने अपने व्यापार का विविधीकरण करके इसे एक मल्टी-इंडस्ट्री ग्रुप में बदल दिया, जो समय के साथ प्रगति कर रहा है.
अरविंद मफतलाल का दृष्टिकोण केवल व्यापार तक सीमित नहीं था; वे समाज की बेहतरी में भी विश्वास रखते थे.। मफतलाल परिवार ने कई सामाजिक कल्याण और शिक्षा योजनाओं में योगदान दिया, जैसे कि स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, और ग्रामीण विकास परियोजनाएं.
मफतलाल समूह का नाम आज भी भारतीय उद्योग में सम्मान के साथ लिया जाता है, और इसकी विरासत को आगे बढ़ाने में अरविंद मफतलाल का विशेष योगदान है. उनके नेतृत्व और दृष्टिकोण ने न केवल मफतलाल समूह को उन्नति की दिशा में अग्रसर किया, बल्कि भारत के औद्योगिक इतिहास में भी एक अमिट छाप छोड़ी.
अरविंद मफतलाल ने भारतीय उद्योग में मफतलाल समूह को एक विशेष स्थान दिलाया और समाज सेवा के प्रति अपने समर्पण के माध्यम से एक आदर्श स्थापित किया. उनका योगदान भारतीय व्यापारिक समुदाय में मिसाल के रूप में देखा जाता है.
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फिल्म निर्देशक यश चोपड़ा
यश चोपड़ा भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्देशक, निर्माता, और पटकथा लेखक थे, जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का “किंग ऑफ रोमांस” भी कहा जाता है. उनका जन्म 27 सितंबर 1932 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) हुआ था. उन्होंने भारतीय सिनेमा में चार दशकों से अधिक समय तक कार्य किया और कई ऐसी यादगार फिल्में बनाई जो भारतीय सिनेमा के इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं.
यश चोपड़ा का फिल्मी कैरियर वर्ष 1959 में उनके बड़े भाई बी. आर. चोपड़ा के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू हुआ. उन्होंने अपने निर्देशन की शुरुआत वर्ष 1959 में “धूल का फूल” से की. इसके बाद “धर्मपुत्र” (1961) और “वक़्त” (1965) जैसी फिल्में बनाईं, जिनमें से वक़्त भारत की पहली मल्टी-स्टारर फिल्म थी और इसे बड़ी सफलता मिली.
वर्ष 1970 में, यश चोपड़ा ने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी यश राज फिल्म्स (YRF) की स्थापना की, जो आज भारतीय फिल्म उद्योग की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित फिल्म प्रोडक्शन हाउस में से एक है. YRF के तहत, यश चोपड़ा ने कई हिट और क्लासिक फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया.
यश चोपड़ा ने रोमांस को एक नए अंदाज में प्रस्तुत किया और उनकी फिल्मों में प्रेम, भावनाएं और रिश्तों की गहराई को विशेष रूप से दिखाया गया. उनकी कुछ प्रसिद्ध रोमांटिक फिल्में हैं: –
कभी कभी (1976): – इसमें प्रेम और काव्य की सुंदरता को अद्भुत तरीके से पेश किया गया.
सिलसिला (1981): – यह एक प्रेम त्रिकोण की कहानी थी और इसे लेकर काफी चर्चा हुई थी.
चांदनी (1989), लम्हे (1991), और दिल तो पागल है (1997): – इन फिल्मों ने भारतीय सिनेमा में रोमांस की एक नई परिभाषा दी.
वीर-ज़ारा (2004): – यह प्रेम कहानी भारत-पाकिस्तान की पृष्ठभूमि पर आधारित थी और इसे अपार सफलता मिली.
यश चोपड़ा की फिल्मों में खूबसूरत लोकेशन, संगीतमय गाने, भावनात्मक गहराई और काव्यात्मक संवाद होते थे. उनकी फिल्में खासकर स्विट्जरलैंड और अन्य विदेशी स्थानों पर फिल्माई गईं, जिससे उन्होंने विदेशी लोकेशनों को भारतीय सिनेमा में लोकप्रिय बनाया. यश चोपड़ा को उनकी उत्कृष्ट फिल्मों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें वर्ष 2001 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और वर्ष 2012 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी दिया गया.
उनकी आखिरी फिल्म जब तक है जान (2012) थी, जिसमें शाहरुख खान, कटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा मुख्य भूमिकाओं में थे. इस फिल्म के बाद यश चोपड़ा ने निर्देशन से संन्यास लेने की घोषणा की थी, लेकिन दुर्भाग्य से फिल्म की रिलीज से पहले ही उनका निधन हो गया, यश चोपड़ा की फिल्में आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई हैं और उनका योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमूल्य है. उनके द्वारा स्थापित यश राज फिल्म्स (YRF) उनके बेटे आदित्य चोपड़ा के नेतृत्व में आज भी सफलतापूर्वक कार्य कर रही है और नई पीढ़ी के दर्शकों के लिए नई कहानियां प्रस्तुत कर रही है.
यश चोपड़ा का नाम भारतीय सिनेमा में एक प्रतिष्ठित निर्देशक के रूप में सदा जीवित रहेगा, और उनकी फिल्में प्रेम, रोमांस और रिश्तों की जटिलताओं की सुंदरता को संजोने के लिए जानी जाती रहेंगी.
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क्रिकेट खिलाड़ी लक्ष्मीपति बाला जी
लक्ष्मीपति बालाजी भारतीय क्रिकेट के एक लोकप्रिय तेज गेंदबाज रहे हैं, जो अपनी स्विंग और गति के लिए जाने जाते थे. उनका जन्म 27 सितंबर 1981 को तमिलनाडु में हुआ था. बालाजी ने भारतीय टीम के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया और वर्ष 2000 के दशक में वे अपनी गेंदबाजी के साथ-साथ मैदान पर अपने उत्साह और मुस्कान के लिए भी मशहूर रहे.
बालाजी ने अपने क्रिकेट कैरियर की शुरुआत तमिलनाडु के घरेलू क्रिकेट से की. अपनी बेहतरीन गेंदबाजी के चलते उन्होंने जल्द ही चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया और वर्ष 2003 में भारत की राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई. वर्ष 2003 में वेस्टइंडीज के खिलाफ उन्होंने वनडे इंटरनेशनल में डेब्यू किया, और उसी साल न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट डेब्यू भी किया.
लक्ष्मीपति बालाजी का कैरियर वर्ष 2004 की भारत-पाकिस्तान सीरीज से चमका. इस सीरीज में उन्होंने प्रभावशाली गेंदबाजी की और कई महत्वपूर्ण विकेट चटकाए. उनके द्वारा शोएब अख्तर को मारे गए छक्के को भी भारतीय प्रशंसकों ने बहुत पसंद किया था. बालाजी की गेंदबाजी में स्विंग और विविधता के कारण उन्होंने पाकिस्तानी बल्लेबाजों को काफी परेशान किया और भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई.
स्विंग गेंदबाज थे, जो गेंद को अंदर और बाहर स्विंग करने की क्षमता रखते थे. उनकी गेंदबाजी में गति और सटीकता थी, और वे अपने शांत स्वभाव और मैदान पर मुस्कान के लिए पहचाने जाते थे. उनकी धीमी गेंदें और यॉर्कर भी बहुत प्रभावी होती थीं, जो उन्हें एक कुशल गेंदबाज बनाती थीं. वर्ष 2005 में बालाजी को गंभीर चोट लगी, जिससे उनका क्रिकेट कैरियर बाधित हुआ और उन्हें कुछ सालों तक टीम से बाहर रहना पड़ा. उन्होंने तमिलनाडु के लिए घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया और इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में भी अपनी वापसी दर्ज की. वर्ष 2008 में चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के लिए खेलते हुए उन्होंने एक बार फिर से अपने फॉर्म को साबित किया.
बालाजी ने चेन्नई सुपर किंग्स और कोलकाता नाइट राइडर्स जैसी टीमों के लिए खेला. IPL में उन्होंने एक हैट्रिक ली थी, जो उन्हें इस लीग में एक लोकप्रिय खिलाड़ी बनाती है. उनकी आईपीएल प्रदर्शन ने उनके कैरियर को फिर से दिशा दी और वे युवा गेंदबाजों के लिए प्रेरणा बन गए. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद बालाजी ने कोचिंग में कदम रखा. उन्होंने आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स के लिए गेंदबाजी कोच के रूप में काम किया और युवा गेंदबाजों को मार्गदर्शन देने का काम किया.
लक्ष्मीपति बालाजी का भारतीय क्रिकेट में योगदान केवल एक गेंदबाज के रूप में नहीं है, बल्कि उन्होंने खेल भावना और उत्साह का भी उदाहरण पेश किया. उनके द्वारा दी गई प्रेरणा और उनके मुस्कान भरे खेल ने उन्हें प्रशंसकों के दिलों में हमेशा के लिए जगह दी. आज भी उन्हें भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के बीच उनके प्रदर्शन और उनके सकारात्मक व्यक्तित्व के लिए याद किया जाता है.
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क्रिकेटर इरफान पठान
इरफान पठान भारतीय क्रिकेट टीम के एक पूर्व ऑलराउंडर खिलाड़ी हैं, जो अपनी स्विंग गेंदबाजी और निचले क्रम में प्रभावी बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे. उनका जन्म 27 अक्टूबर 1984 को वडोदरा, गुजरात में हुआ था. इरफान ने अपनी बाएं हाथ की स्विंग गेंदबाजी से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बड़ी पहचान बनाई और उन्हें कई बार भारतीय क्रिकेट का अगला “कपिल देव” कहा गया,
इरफान पठान का क्रिकेट के प्रति झुकाव बचपन से ही था. उन्होंने अपने बड़े भाई यूसुफ पठान के साथ क्रिकेट खेला और वडोदरा में अपने शुरुआती प्रशिक्षण से ही एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी माने गए. घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के कारण इरफान को वर्ष 2003 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारतीय टीम में चुना गया.
इरफान ने वर्ष 2003-04 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर अपना टेस्ट डेब्यू किया और अपनी स्विंग गेंदबाजी से सभी को प्रभावित किया. पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 2004 की सीरीज में इरफान ने अपनी प्रभावशाली गेंदबाजी से सभी का ध्यान आकर्षित किया. खासकर, स्विंग और सटीकता के साथ गेंदबाजी करने की उनकी क्षमता ने उन्हें जल्दी ही एक मुख्य गेंदबाज बना दिया.
इरफान पठान का कैरियर हाईलाइट तब आया जब उन्होंने वर्ष 2006 में पाकिस्तान के खिलाफ कराची टेस्ट मैच के पहले ओवर में हैट्रिक ली. यह टेस्ट इतिहास में एकमात्र अवसर है जब किसी गेंदबाज ने मैच के पहले ही ओवर में हैट्रिक ली हो. उनकी स्विंग गेंदबाजी की कला ने उन्हें शुरुआती ओवरों में विकेट लेने का विशेषज्ञ बना दिया. इसके अलावा, उनकी बल्लेबाजी भी टीम के लिए महत्वपूर्ण रही. उन्होंने भारत के लिए कई महत्वपूर्ण पारियां खेलीं और निचले क्रम में तेजी से रन बनाए.
इरफान को भारतीय टीम में एक ऑलराउंडर के रूप में विकसित किया गया. उन्होंने बल्लेबाजी में भी अपनी क्षमताओं को साबित किया, खासकर पाकिस्तान के खिलाफ एकदिवसीय मैचों में और वर्ष 2007 के टी20 विश्व कप में. वर्ष 2007 के टी20 विश्व कप में, इरफान पठान ने शानदार गेंदबाजी की और फाइनल में मैन ऑफ द मैच रहे, जिससे भारत ने पहला टी20 विश्व कप जीता.
इरफान को कैरियर के बीच में चोटों का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी फॉर्म पर असर पड़ा. इसके बाद उनका स्विंग और गति वैसा नहीं रह गया जैसा शुरुआती दौर में था, और धीरे-धीरे उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया. हालांकि, उन्होंने घरेलू क्रिकेट और आईपीएल में वापसी की कोशिश की और कई बार भारतीय टीम में वापसी की, लेकिन वे स्थायी तौर पर टीम में जगह बनाने में सफल नहीं रहे.
इरफान पठान ने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में किंग्स इलेवन पंजाब, दिल्ली डेयरडेविल्स, सनराइजर्स हैदराबाद, चेन्नई सुपर किंग्स, और गुजरात लायंस जैसी टीमों के लिए खेला. उन्होंने कई बार प्रभावी प्रदर्शन किए और आईपीएल में भी अपने ऑलराउंडर कौशल को साबित किया. इरफान पठान ने क्रिकेट से संन्यास के बाद कोचिंग और कमेंट्री में कदम रखा. वे युवा खिलाड़ियों को मार्गदर्शन देते हैं और कई टीवी शो और क्रिकेट एक्सपर्ट पैनल्स पर अपने विचार साझा करते हैं.
इरफान पठान को भारतीय क्रिकेट में एक शानदार स्विंग गेंदबाज और उपयोगी बल्लेबाज के रूप में याद किया जाता है. उन्होंने भारतीय टीम में एक प्रभावी ऑलराउंडर के तौर पर अपनी पहचान बनाई, और उनके खेल की शैली ने उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का चहेता बना दिया. उनका क्रिकेट में योगदान आज भी सराहा जाता है, और वे आज के युवा क्रिकेटरों के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं.
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अभिनेता प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार भारतीय सिनेमा के एक लोकप्रिय अभिनेता थे, जो 1950 – 60 के दशक में अपनी रोमांटिक और ऐतिहासिक किरदारों के लिए जाने जाते थे. उनका जन्म 4 जनवरी 1925 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था और उन्होंने अपने अभिनय कैरियर में कई सफल फिल्मों में काम किया. प्रदीप कुमार की गहरी आवाज़, सौम्य व्यक्तित्व, और सजीले अंदाज़ ने उन्हें उस दौर का एक प्रमुख अभिनेता बना दिया.
प्रदीप कुमार का जन्म कोलकाता में एक बंगाली परिवार में हुआ था और उनका पूरा नाम प्रदीप कुमार बैनर्जी था. उन्हें अभिनय का शौक बचपन से ही था और वे थिएटर में काम करने लगे थे. कोलकाता में थिएटर में अनुभव हासिल करने के बाद, प्रदीप कुमार ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा और धीरे-धीरे वे बॉलीवुड की ओर बढ़े.
प्रदीप कुमार की प्रमुख फिल्मों में – अनारकली (1953), ताजमहल (1963), और मेरे महबूब (1963) जैसी फिल्में शामिल हैं. इन फिल्मों में उन्होंने ऐतिहासिक और रोमांटिक भूमिकाओं को बड़े ही सहज तरीके से निभाया. अनारकली में उन्होंने सलीम की भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों ने बेहद पसंद किया. यह फिल्म मुगल-ए-आज़म से पहले सलीम-अनारकली की कहानी पर बनी एक सफल फिल्म थी. ताजमहल में उन्होंने शहजादा खुर्रम (शाहजहां) का किरदार निभाया, और फिल्म की प्रेम कहानी को लोगों ने खूब सराहा. इस फिल्म के गाने और कहानी आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं.
प्रदीप कुमार की अभिनय शैली में एक विशेष गंभीरता और सौम्यता थी. उन्होंने ऐतिहासिक और प्रेम कहानियों में भावनाओं को गहराई से प्रदर्शित किया और अपने किरदारों में सजीवता ला दी. उनकी गहरी आवाज़ और संवाद अदायगी में एक आकर्षण था, जो उन्हें रोमांटिक किरदारों के लिए बिल्कुल उपयुक्त बनाता था.
प्रदीप कुमार ने चित्रलेखा (1964), बंधन (1969), आस का पंछी (1961), और नौशेरवान-ए-आदिल (1957) जैसी फिल्मों में भी काम किया. इन फिल्मों में उन्होंने नायक और चरित्र भूमिकाओं में शानदार प्रदर्शन किया. उन्होंने हिंदी फिल्मों के साथ ही कुछ बंगाली फिल्मों में भी काम किया और वहाँ भी उन्होंने अपनी अदाकारी से एक खास जगह बनाई.
प्रदीप कुमार का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही शांत और निजी था. उन्होंने अधिकतर समय अपने काम और परिवार को दिया. उनका निधन 27 अक्टूबर 2001 को हुआ, और उनके निधन के साथ भारतीय सिनेमा ने एक प्रतिष्ठित और प्रतिभाशाली अभिनेता को खो दिया.
प्रदीप कुमार को भारतीय सिनेमा में उनकी ऐतिहासिक और प्रेम आधारित फिल्मों के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उनके द्वारा निभाए गए किरदार आज भी फिल्म प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं. उनकी गहरी आवाज़, आकर्षक व्यक्तित्व, और सहज अभिनय शैली ने उन्हें उस दौर का एक अविस्मरणीय अभिनेता बना दिया.