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व्यक्ति विशेष

भाग – 298.

नैन सिंह रावत

नैन सिंह रावत एक भारतीय खोजकर्ता और सर्वेक्षक थे, जिन्हें हिमालय और तिब्बत के अज्ञात क्षेत्रों की खोज के लिए जाना जाता है. वे ब्रिटिश सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रशिक्षित “पंडितों” की एक विशेष टीम का हिस्सा थे, जिन्हें अत्यधिक गोपनीय मिशनों पर भेजा जाता था. उनका जन्म 21 अक्टूबर 1830 को कुमाऊं के पिथौरागढ़ ज़िले के मिलम नामक गांव में हुआ था.

नैन सिंह रावत ने तिब्बत के अज्ञात क्षेत्रों की यात्रा की, जिसमें ल्हासा और मानसरोवर झील जैसे महत्वपूर्ण स्थान शामिल थे. उन्होंने वहां की जलवायु, भूगोल और ऊंचाई का सटीक विवरण दिया. उन्होंने वर्ष 1865 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा की यात्रा की और यह पहली बार था जब किसी भारतीय ने इस शहर का नक्शा तैयार किया था. उन्होंने एक गुप्त माला (प्रार्थना माला) का उपयोग किया, जिसके हर 100 मनकों के बाद एक कदम गिनते थे, जिससे वे दूरी माप सकते थे.

वे अपनी यात्राओं के दौरान एक साधारण तीर्थयात्री के रूप में यात्रा करते थे, लेकिन साथ ही उन्होंने वैज्ञानिक उपकरणों से जगहों की सटीक जानकारी इकट्ठा की. उन्होंने तापमान, ऊंचाई, और लंबी-चौड़ाई का आंकलन किया और उसे गुप्त रूप से ब्रिटिश अधिकारियों तक पहुँचाया. नैन सिंह रावत का निधन 1 फ़रवरी, 1882 को मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था.

उनके महान कार्यों के लिए उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. उनकी स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने वर्ष 2004 में उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया. उनका कार्य भारतीय भूगोल और सर्वेक्षण के इतिहास में मील का पत्थर है. उनके कार्यों ने हिमालयी क्षेत्रों की बेहतर समझ प्रदान की और उन्हें भारत के महान खोजकर्ताओं में से एक के रूप में मान्यता दी जाती है.

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बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह

डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, जिन्हें लोग आमतौर पर कृष्ण सिंह के नाम से जानते हैं, बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे. उनका जन्म 21 अक्टूबर 1887 को मुंगेर ज़िला में  हुआ था और वह स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में कई आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया.

वर्ष 1946 में, जब भारत स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था, कृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने और 1961 तक इस पद पर रहे. उनके कार्यकाल को बिहार के विकास और सामाजिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. उन्होंने बिहार में शिक्षा और कृषि क्षेत्र के विकास पर विशेष ध्यान दिया, उनके प्रयासों से बिहार में कई शैक्षिक संस्थानों की स्थापना हुई, इसके अलावा, उन्होंने सामंती व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई और जमींदारी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका बेहद प्रभावशाली रही. वह महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थे और उनके आदर्शों को बिहार में लागू करने के प्रयास करते रहे. उनके नेतृत्व में बिहार ने स्वतंत्रता के बाद सामाजिक और आर्थिक बदलाव देखे. श्रीकृष्ण सिंह का निधन 31 जनवरी 1961 को हुई थी.

श्रीकृष्ण सिंह को “बिहार केसरी” के नाम से भी जाना जाता है और वह बिहार की राजनीति में एक महान व्यक्तित्व के रूप में याद किए जाते हैं. उनके योगदान ने राज्य और देश दोनों में महत्वपूर्ण छाप छोड़ी.

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पुरातत्वविद काशीनाथ नारायण दीक्षित

 काशीनाथ नारायण दीक्षित एक भारतीय पुरातत्वविद् थे, जिन्हें भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के निदेशक के रूप में कार्यरत थे और भारतीय पुरातत्व के इतिहास में उनके योगदान ने एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ी.

काशीनाथ नारायण दीक्षित का जन्म 21 अक्टूबर, 1889 को पंढरपुर, महाराष्ट्र में हुआ था और उनका निधन  12 अगस्त, 1946 में हुआ. काशीनाथ नारायण दीक्षित ने वर्ष 1937 – 44 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के निदेशक के रूप में कार्य किया. इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक उत्खननों और शोध कार्यों का नेतृत्व किया. उन्होंने भारतीय इतिहास और संस्कृति को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

दीक्षित ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी प्राचीन सभ्यताओं के उत्खनन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न स्थलों पर उत्खनन कार्य किया, जो भारतीय सभ्यता की प्राचीनता और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करता है. काशीनाथ नारायण दीक्षित ने भारत में पुरातत्व के क्षेत्र में युवाओं को प्रशिक्षित करने और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए. उनके नेतृत्व में भारतीय पुरातात्विक शोध को अधिक व्यवस्थित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संचालित किया गया.

दीक्षित ने पुरातत्व के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण लेख और शोध पत्र लिखे, जो आज भी भारतीय पुरातत्व के विद्यार्थियों के लिए संदर्भ का काम करते हैं. उन्होंने भारतीय इतिहास और पुरातत्व पर विभिन्न पुस्तकों का संपादन और लेखन भी किया. काशीनाथ नारायण दीक्षित का योगदान भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अध्ययन में अद्वितीय था. उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और पुरातत्व के प्रति समर्पण ने भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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अभिनेता शम्मी कपूर

शम्मी कपूर भारतीय सिनेमा के एक अभिनेता और फिल्म निर्माता थे. उनका जन्म 21 अक्टूबर 1931 को मुंबई महाराष्ट्र में हुआ था. शम्मी कपूर को हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय और चार्मिंग अभिनेता माने जातें  है, जिन्होंने वर्ष 1950 – 60 के दशकों में कई हिट फिल्मों में अभिनय किया.

शम्मी कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1953 में फिल्म “जंगल की कली” से की थी, लेकिन उन्हें वास्तव में प्रसिद्धि वर्ष 1957 की फिल्म “ट्वेंटी-फाइव-ट्वेंटी” से मिली. उनकी पहचान वर्ष 1960 के दशक में फिल्म “चाहत” और “सिर्फ तुम” जैसी फिल्मों से बनी, जिसमें उन्होंने अपने विशिष्ट नृत्य शैली और ऊर्जा के लिए सराहना प्राप्त की.

फ़िल्में: –

कश्मीर की कली (1964) – इस फिल्म में उनके गीत “ये चाँद सा रोशनी” ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई।

राजकुमारी (1961) – इस फिल्म में उनके द्वारा किया गया अभिनय और नृत्य बहुत लोकप्रिय हुआ.

दिल देके देखो (1959) – यह फिल्म उनकी सबसे हिट फिल्मों में से एक है, जिसमें उनके अभिनय को बहुत सराहा गया.

ब्रह्मचारी (1968) – इस फिल्म के गीत और उनका अभिनय दर्शकों को बहुत पसंद आया.

शम्मी कपूर को उनके नृत्य और खास स्टाइल के लिए जाना जाता है. उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए नृत्य शैली ने हिंदी फिल्म उद्योग में एक नया मोड़ दिया. उनका नृत्य अक्सर जोशपूर्ण और उत्साही होता था, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था.

शम्मी कपूर के परिवार में भी फिल्मी पृष्ठभूमि रही है. उनके छोटे भाई शशि कपूर और राज कपूर भी प्रसिद्ध अभिनेता थे. उनकी पत्नी का नाम गीता बाली था, जो स्वयं एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं. शम्मी कपूर को उनके कैरियर के दौरान कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. वर्ष 2006 में, उन्हें भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए “लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” से सम्मानित किया गया.

शम्मी कपूर का निधन 14 अगस्त 2011 को हुआ. उनके अभिनय और उनके द्वारा पेश किए गए मनोरंजन ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक अमूल्य हिस्सा बना दिया। उनकी फिल्में और उनके गीत आज भी दर्शकों को आनंदित करते हैं.

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अभिनेत्री और नर्तकी हेलन

हेलन भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों और नर्तकियों में से एक हैं. उन्हें हिंदी फिल्म उद्योग में कैबरे डांस और वैंप (खलनायिका) की भूमिकाओं के लिए प्रसिद्धि मिली. उनका पूरा नाम हेलन ऐन रिचर्डसन है, और वे बॉलीवुड में अपनी अनूठी डांसिंग शैली और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण दशकों तक लोकप्रिय रहीं. उन्हें भारतीय सिनेमा की सबसे पहली और सबसे सफल आइटम गर्ल भी माना जाता है.

हेलन का जन्म 21 नवंबर 1938 को बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में हुआ था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनका परिवार बर्मा से भागकर भारत आ गया. आर्थिक कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करते हुए उन्होंने फिल्मों में कैरियर बनाने का फैसला किया. कम उम्र में ही उन्होंने फिल्मों में बैकग्राउंड डांसर के रूप में काम करना शुरू किया और धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बनाई.

हेलन ने वर्ष 1950 – 60 के दशक में फिल्मों में छोटे डांस नंबरों के साथ शुरुआत की, लेकिन वर्ष 1958 में फिल्म “हावड़ा ब्रिज” में उनके गाने “मेरा नाम चिन चिन चू” ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में कैबरे डांस और वैंप की भूमिकाएं निभाई. उनके नृत्य और अदायगी ने दर्शकों का दिल जीत लिया और उन्हें एक नई पहचान मिली.

प्रमुख फिल्में और गाने: –

“हावड़ा ब्रिज” (1958) – “मेरा नाम चिन चिन चू”,

“तीसरी मंज़िल” (1966) – “ओ हसीना जुल्फों वाली”,

“कारवां” (1971) – “पिया तू अब तो आजा”,

“डॉन” (1978) – “ये मेरा दिल”,

“गुमनाम” (1965) – “हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं”,

हेलन ने भारतीय सिनेमा में पश्चिमी शैली के कैबरे और म्यूजिकल डांस को लोकप्रिय बनाया. उनकी नृत्य कला में एक अलग ग्लैमर और शिष्टता थी, जो उस समय की अन्य अभिनेत्रियों से उन्हें अलग बनाती थी. वह हिंदी फिल्मों में “वैंप” की छवि का प्रतीक मानी जाती थीं, लेकिन उनके किरदारों ने हमेशा फिल्म में आकर्षण का केंद्र बनाए रखा.

हेलन ने फिल्म निर्माता पी.एन. अरोड़ा से विवाह किया था, लेकिन उनका यह संबंध सफल नहीं रहा. बाद में उन्होंने प्रसिद्ध अभिनेता और पटकथा लेखक सलीम खान से शादी की. सलीम खान के साथ उनके रिश्ते को बहुत सम्मान और आदर मिला, और उन्होंने खान परिवार में बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया.

हेलन को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले हैं. उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाज़ा गया. वर्ष 2009 में, भारतीय सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

हेलन का भारतीय सिनेमा में स्थान बेहद खास है. उन्होंने बॉलीवुड में आइटम नंबर और कैबरे डांस की परिभाषा बदल दी और फिल्मों में वैंप की भूमिकाओं को भी बेहद आकर्षक और यादगार बनाया. उनकी स्टाइल, अदायगी और अनोखी डांसिंग स्किल्स ने उन्हें समय से परे एक आइकॉन बना दिया है, और आज भी उन्हें उनकी कला के लिए सम्मान और प्यार मिलता है.

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अभिनेता अजीत

अजीत, जिनका असली नाम हामिद अली खान था, भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्हें खासकर हिंदी फिल्मों में खलनायक के रूप में निभाई गई उनकी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 27 जनवरी 1922 को हैदराबाद में  हुआ था और उनका फिल्मी कैरियर वर्ष 1940 – 90 के दशक तक फैला. अजीत ने अपने खास अंदाज, संवाद शैली, और दमदार व्यक्तित्व के साथ बॉलीवुड में एक अलग पहचान बनाई.

अजीत ने कैरियर की शुरुआत नायक के रूप में की थी और वर्ष 1940 के दशक के अंत और वर्ष 1950 के दशक में कई फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई. उनकी प्रारंभिक फिल्मों में “शाहे मिस्र” (1946) और “सूरजमुखी” (1950) जैसी फिल्में शामिल थीं. हालांकि, उन्हें उस समय बहुत अधिक सफलता नहीं मिली और वे धीरे-धीरे मुख्य नायक के रूप में लोकप्रियता पाने में असफल रहे.

वर्ष 1960 के दशक के अंत में अजीत ने अपने कैरियर की दिशा बदलते हुए खलनायक की भूमिकाएं निभानी शुरू कीं. “जंजीर” (1973) फिल्म में उनके द्वारा निभाए गए “तहलका मचाने वाले” खलनायक ‘लॉयन’ का किरदार बहुत प्रसिद्ध हुआ। इस फिल्म के बाद, अजीत की खलनायकी की अनोखी स्टाइल, खासकर उनकी संवाद अदायगी, दर्शकों में बेहद लोकप्रिय हो गई.

अजीत के किरदारों के संवाद बहुत यादगार रहे, जैसे:

“मोना डार्लिंग”,

“लिली, डॉन’t बी सिली”,

“सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है”.

उनकी स्टाइलिश डायलॉग डिलीवरी और ठोस व्यक्तित्व ने उन्हें बॉलीवुड के प्रतिष्ठित खलनायकों में शुमार कर दिया. वह अपने दौर के सबसे स्टाइलिश खलनायकों में से एक माने जाते थे, जो सिल्क के कपड़े और बड़े गॉगल्स पहनकर खलनायक की भूमिका निभाते थे.

प्रमुख फिल्में:  –  “जंजीर” (1973) – लॉयन के रूप में, “कालिया” (1981), “यादों की बारात” (1973), “नटवरलाल” (1979), “राज तिलक” (1984), “करिश्मा” (1984).

अजीत ने खलनायक की भूमिकाओं में एक अलग आयाम जोड़ा. उन्होंने खलनायकी को एक स्टाइलिश रूप दिया और अपने संवादों और अभिनय से एक खास तरह की पहचान बनाई. उनकी भूमिकाएं फिल्म के नायक की तरह ही प्रभावशाली होती थीं, और उनकी संवाद अदायगी दर्शकों में चर्चा का विषय बन जाती थी.

अजीत का परिवार हैदराबाद से था, और उनके बेटे शाहिद अली खान भी कुछ समय के लिए फिल्मों में सक्रिय थे. अजीत का निधन 22 अक्टूबर 1998 को हुआ, लेकिन उनके डायलॉग और किरदार आज भी दर्शकों के दिलों में जीवित हैं.

अजीत को उनकी अनोखी शैली और दमदार अभिनय के लिए आज भी याद किया जाता है. वह भारतीय सिनेमा के उन दुर्लभ अभिनेताओं में से एक थे, जिन्होंने नायक से खलनायक की भूमिकाओं में परिवर्तन किया और फिर भी एक बड़ी फैन फॉलोइंग बनाई.

अजीत का नाम बॉलीवुड के सबसे प्रतिष्ठित और यादगार खलनायकों में गिना जाता है, और उनकी संवाद शैली और अदाकारी आज भी प्रेरणादायक है.

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फ़िल्म निर्देशक यश चोपड़ा

यश चोपड़ा हिंदी सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली फिल्म निर्देशकों में से एक थे. उन्हें “रोमांस के बादशाह” के रूप में जाना जाता है और भारतीय सिनेमा में उनकी रोमांटिक फिल्मों ने उन्हें बेहद लोकप्रियता दिलाई.

यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया, और उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपने बड़े भाई, फिल्म निर्माता बी.आर. चोपड़ा के साथ काम करना शुरू किया. यश चोपड़ा ने फिल्म निर्देशन की शुरुआत बी.आर. चोपड़ा के बैनर के तहत की, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्म्स (YRF) की स्थापना की.

यश चोपड़ा का फिल्मी कैरियर पाँच दशकों तक फैला रहा, और उन्होंने कई कालजयी फिल्मों का निर्देशन किया, जो आज भी दर्शकों के दिलों में जीवित हैं.

फिल्में: –

धूल का फूल (1959) – बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म.

धर्मपुत्र (1961) – सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्म.

रोमांटिक और ड्रामा फिल्में: –

वक़्त (1965) – मल्टी-स्टारर फिल्म, जिसने ‘लॉस्ट एंड फाउंड’ शैली को लोकप्रिय किया.

इत्तेफाक (1969) – एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म.

सुपरहिट रोमांटिक फिल्में:

कभी कभी (1976) – एक प्रेम कहानी और पारिवारिक ड्रामा.

सिलसिला (1981) – अमिताभ बच्चन, रेखा और जया भादुरी के साथ एक रोमांटिक त्रिकोण.

चांदनी (1989) – रोमांटिक फिल्म जिसने श्रीदेवी को सुपरस्टार बनाया.

दिल तो पागल है (1997) – माधुरी दीक्षित, शाहरुख खान, और करिश्मा कपूर के साथ बनाई गई एक म्यूजिकल रोमांटिक फिल्म.

ब्लॉकबस्टर: –

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) – उनके बेटे आदित्य चोपड़ा द्वारा निर्देशित, लेकिन यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी यह फिल्म एक ऐतिहासिक सफल रही.

वीर-ज़ारा (2004) – भारत-पाकिस्तान प्रेम कहानी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई.

जब तक है जान (2012) – यह उनकी अंतिम निर्देशित फिल्म थी और उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई.

यश चोपड़ा की फिल्मों में प्रेम, भावनाएँ, परिवार और व्यक्तिगत संबंधों की जटिलताओं को खूबसूरती से दिखाया जाता है. उनकी फिल्मों की खूबसूरती, फिल्मांकन, संगीत, और उत्कृष्ट संवादों ने उन्हें भारतीय सिनेमा का सबसे रोमांटिक निर्देशक बना दिया. उन्होंने स्विट्जरलैंड के सुंदर दृश्य पहली बार भारतीय सिनेमा में व्यापक रूप से दिखाए, जो उनकी फिल्मों की खास पहचान बन गए.

यश चोपड़ा को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2001) और पद्म भूषण (2005) शामिल हैं. उन्हें कई फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें बेहद सम्मानित किया गया.

यश चोपड़ा का निधन 21 अक्टूबर 2012 को डेंगू के कारण हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी यशराज फिल्म्स और उनकी फिल्मों के माध्यम से जीवित है.

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अन्य :-

  1. दिल्ली की गद्दी संभाली: – वर्ष 1296 में अलाउद्दीन ख़िलजी ने दिल्ली की गद्दी संभाली थी.
  2. अमृतसर नगर की स्थापना: – वर्ष 1577 में गुरू रामदास ने अमृतसर नगर की स्थापना की.
  3. आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना: – वर्ष 1934 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना सिंगापुर में की थी.
  4. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन: – वर्ष 1934 में जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था.
  5. जनसंघ की स्थापना: – वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी.
  6. समाचार ब्लूटेन सेवाएं आरंभ: – वर्ष 1990 में दूरदर्शन ने दोपहर की हिंदी व अंग्रेजी समाचार ब्लूटेन सेवाएं आरंभ कीं थी.
  7. कारवाँ-ए-तिजास: – वर्ष 2008 में भारत व पाकिस्तान के बीच 61 वर्ष बाद कारवाँ-ए-तिजास को शुरू किया गया था.
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