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व्यक्ति विशेष

भाग – 294.

इस्लामिक नेता सर सैयद अहमद खां

सर सैयद अहमद ख़ान भारत के एक प्रमुख इस्लामी नेता, समाज सुधारक और शिक्षाविद थे. वे मुस्लिम समुदाय के लिए आधुनिक शिक्षा के महत्त्व को समझते थे और उसे बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए. उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की स्थापना है, जिसे उन्होंने 1875 में ‘मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज’ के रूप में शुरू किया था.

सर सैयद अहमद ख़ान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के सादात (सैयद) ख़ानदान में हुआ था और उनका निधन 27 मार्च 1898 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में हृदय गति रुक जाने के कारण हुई थी.

सर सैयद अहमद ख़ान ने मुस्लिम समुदाय में सुधार और सामाजिक जागरूकता लाने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. उनका मानना था कि आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को अपनाने से मुस्लिम समाज पिछड़ेपन से उभर सकता है. इसके साथ ही, उन्होंने अंग्रेजी शासन के साथ बेहतर संबंधों की वकालत की, ताकि भारतीय मुस्लिम समुदाय का विकास हो सके.

उनकी लिखी गई कई पुस्तकें और लेख भी प्रसिद्ध हैं, जिनमें ऐतिहासिक और धार्मिक मुद्दों पर उनके विचार व्यक्त किए गए हैं. उनका सबसे प्रसिद्ध लेखन कार्य “असार-उस-सनादीद” (दिल्ली का इतिहास और उसकी सांस्कृतिक धरोहरों पर आधारित) और “तहज़ीब-उल-अख़लाक़” (सामाजिक और नैतिक मुद्दों पर आधारित पत्रिका) है.

सर सैयद अहमद ख़ान के विचारों और उनके प्रयासों ने भारतीय मुस्लिम समाज में आधुनिकता की नई दिशा दी, और उन्हें इस्लामी पुनर्जागरण के एक प्रमुख नेता के रूप में याद किया जाता है.

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प्रथम वित्त मंत्री आर. के. शनमुखम चेट्टी

आर. के. शनमुखम चेट्टी स्वतंत्र भारत के पहले वित्त मंत्री थे. उनका जन्म 17 अक्टूबर 1892 को हुआ था और वे एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, वकील, और राजनेता थे. उन्होंने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार में वित्त मंत्रालय का पदभार संभाला.

शनमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया था, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के दिशा-निर्देशन के लिए महत्वपूर्ण था. उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियों से उबारने और उसे स्थिर करने में अहम भूमिका निभाई.

हालांकि, चेट्टी का कार्यकाल लंबा नहीं था. उन्होंने वर्ष 1949 में वित्त मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी सबसे बड़ी पहचान देश के पहले वित्त मंत्री के रूप में है, और उन्होंने भारतीय वित्तीय प्रणाली की नींव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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उपन्यासकार शिवानी

शिवानी हिंदी साहित्य की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं. वे अपने लेखन के लिए व्यापक रूप से जानी जाती हैं और उनके उपन्यासों और कहानियों में भारतीय संस्कृति, नारी जीवन, पारिवारिक रिश्तों और सामाजिक मुद्दों का बेहद संवेदनशील चित्रण मिलता है. शिवानी ने अपने लेखन में महिलाओं की समस्याओं और उनके संघर्षों को उभारा और उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में एक अलग पहचान बनाई.

शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर 1923 को   राजकोट (गुजरात) में हुआ था, लेकिन उनका अधिकांश जीवन उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में बीता, जिससे उनके लेखन में कुमाऊँनी संस्कृति और जीवन के चित्रण की झलक भी देखने को मिलती है. शिवानी की प्रमुख कृतियों में कृष्णकली, भैरवी, चौदह फेरे, शमशान चंपा, आलोक पंथि जैसी रचनाएँ शामिल हैं.

शिवानी की लेखन शैली सरल और दिल को छूने वाली थी. उनके पात्र प्रायः समाज के आम लोग होते थे, लेकिन उनके जीवन की बारीकियों और अनुभवों को उन्होंने अपने लेखन में अद्वितीय रूप से प्रस्तुत किया. उनके उपन्यासों में मानवीय संवेदनाएँ और नारी अस्मिता के विषय प्रमुख रहे हैं. शिवानी का निधन 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में हुआ था.

वे पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय थीं और उनके लेखन ने हिंदी साहित्य में एक खास स्थान प्राप्त किया. उन्हें उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. शिवानी की पुत्री मृणाल पांडे भी एक प्रसिद्ध लेखिका और पत्रकार.

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साहित्यकार चंद्रशेखर रथ

चंद्रशेखर रथ ओडिया भाषा के एक प्रमुख साहित्यकार, उपन्यासकार, और आलोचक थे. वे ओडिया साहित्य में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने विभिन्न साहित्यिक विधाओं में महत्वपूर्ण कार्य किए. उनके लेखन में मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक मुद्दों और जीवन के यथार्थ को मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है.

चंद्रशेखर रथ का जन्म 17 अक्टूबर 1929 को बलांगीर ज़िले के मालपड़ा में हुआ था. उन्होंने अपने लेखन में समाज के विभिन्न पहलुओं को उकेरा और अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से पाठकों को एक नई दृष्टि दी. उनके सबसे प्रसिद्ध कार्यों में अशान्ति, यात्रा, और मु गाहिरा (मैं पापी हूँ) शामिल हैं. इन रचनाओं में उन्होंने सामाजिक अन्याय, जीवन की कठिनाइयों और मानव स्वभाव की जटिलताओं को बखूबी उजागर किया है.

रथ का साहित्यिक योगदान सिर्फ ओडिया साहित्य तक सीमित नहीं था; वे एक गंभीर विचारक और समीक्षक भी थे, जिन्होंने साहित्यिक आलोचना में भी महत्वपूर्ण कार्य किया. उनके लेखन के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों का समावेश है.

उनकी रचनाएँ न केवल ओडिया साहित्य में बल्कि भारतीय साहित्यिक जगत में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. वे अपनी गहन अंतर्दृष्टि और संवेदनशील लेखन के कारण साहित्य प्रेमियों के बीच हमेशा याद किए जाते रहेंगे.

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साहित्यकार दूधनाथ सिंह

दूधनाथ सिंह हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार, कथाकार, उपन्यासकार और आलोचक थे. वे अपने बेबाक लेखन और सशक्त सामाजिक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे. उनके लेखन में समाज के मुद्दों, खासकर हाशिए पर खड़े लोगों की पीड़ा, विद्रोह, और संघर्ष को गहनता से चित्रित किया गया है. दूधनाथ सिंह की कहानियों और उपन्यासों में जीवन के कटु यथार्थ और समाज में व्याप्त असमानताओं का जीवंत चित्रण मिलता है.

दूधनाथ का जन्म 17 अक्टूबर 1936 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और लंबे समय तक वहीं हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया.

दूधनाथ सिंह का लेखन कई विधाओं में फैला हुआ है—कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, और संस्मरण। उनकी प्रमुख कृतियों में आखिरी कलाम, नमो अंधकारम, अपना मोर्चा, और निर्वासन जैसी रचनाएँ शामिल हैं. आखिरी कलाम को हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है, जो बाबरी मस्जिद विध्वंस की पृष्ठभूमि में लिखा गया है.

साहित्यिक आलोचना और नाट्य लेखन में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है. उनके नाटक यमगाथा को भी काफी सराहा गया. इसके अतिरिक्त, वे एक सशक्त आलोचक भी थे और उनकी आलोचनात्मक रचनाएँ साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

दूधनाथ सिंह ने अपने लेखन में समाज के गंभीर मुद्दों को उठाया और अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्यिक, सामाजिक, और राजनीतिक प्रश्नों पर खुलकर विचार व्यक्त किए. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनका निधन 12 जनवरी 2018 को इलाहाबाद में हुआ, लेकिन उनकी साहित्यिक धरोहर आज भी हिंदी साहित्य जगत में जीवित है.

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अभिनेत्री स्मिता पाटिल

स्मिता पाटिल भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित और प्रतिभाशाली अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने अभिनय से न केवल हिंदी सिनेमा, बल्कि मराठी सिनेमा में भी अमिट छाप छोड़ी. उन्हें मुख्य रूप से समानांतर सिनेमा या आर्ट फिल्मों में अपने दमदार अभिनय के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने मुख्यधारा की फिल्मों में भी सफलतापूर्वक काम किया. स्मिता पाटिल को उनके गहरे भावनात्मक और सामाजिक रूप से जागरूक किरदारों के लिए जाना जाता था.

स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था. उनका सिनेमा के प्रति रुझान बहुत जल्दी विकसित हुआ, और वे एक प्रसिद्ध टेलीविज़न न्यूज़रीडर के रूप में भी लोकप्रिय थीं, जिसके बाद उन्होंने फिल्मों में कदम रखा. वे सिनेमा के समानांतर आंदोलन से जुड़ीं और श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, मृणाल सेन जैसे निर्देशकों के साथ काम किया, जो उनके कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ.

स्मिता की प्रमुख फ़िल्मों में भूमिका, मंथन, आक्रोश, अर्थ, मिर्च मसाला, और चक्र जैसी फिल्में शामिल हैं. इन फिल्मों में उनके संवेदनशील और गहन अभिनय ने उन्हें न केवल आलोचकों का पसंदीदा बनाया, बल्कि उन्होंने दर्शकों के दिलों में भी एक खास जगह बनाई. स्मिता पाटिल की प्रतिभा को कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पद्मश्री (मरणोपरांत) शामिल हैं.

हालांकि स्मिता पाटिल का जीवन बहुत छोटा रहा—वे मात्र 31 वर्ष की उम्र में अपने बेटे प्रतीक बब्बर के जन्म के बाद गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के चलते निधन हो गईं. लेकिन इतने कम समय में उन्होंने भारतीय सिनेमा में जो योगदान दिया, वह अमूल्य है. वे आज भी अपने अभिनय, सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता, और सशक्त महिला किरदारों के लिए याद की जाती हैं.

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क्रिकेट खिलाड़ी अनिल कुंबले

अनिल कुंबले भारतीय क्रिकेट के महानतम स्पिन गेंदबाजों में से एक हैं. उनका जन्म 17 अक्टूबर 1970 को बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था. कुंबले अपनी शानदार लेग स्पिन गेंदबाजी के लिए जाने जाते हैं, खासकर उनकी खासियत यह थी कि वे सामान्य लेग स्पिनरों की तरह बहुत ज्यादा घुमाव वाली गेंद नहीं फेंकते थे, बल्कि उनकी गेंदों की तेजी और सटीकता से बल्लेबाजों को परेशान करते थे.

कुंबले कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक वर्ष 1999 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर पाकिस्तान के खिलाफ एक टेस्ट मैच में उनकी एक पारी में 10 विकेट लेने की अविश्वसनीय उपलब्धि है. ऐसा कारनामा क्रिकेट इतिहास में उनसे पहले केवल इंग्लैंड के जिम लेकर ने किया था. यह एक ऐसा रिकॉर्ड है जो कुंबले को क्रिकेट इतिहास में हमेशा के लिए अमर बना देता है.

प्रमुख उपलब्धियाँ: –

टेस्ट क्रिकेट में 619 विकेट: – कुंबले टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले दुनिया के तीसरे गेंदबाज हैं. यह रिकॉर्ड उन्हें टेस्ट क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में से एक बनाता है.

वनडे में 337 विकेट: – वनडे क्रिकेट में भी उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है.

वर्ष 2007-08 में उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में भी कार्य किया और अपनी नेतृत्व क्षमता से टीम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.

अनिल कुंबले की गेंदबाजी की खासियत थी उनकी गति और सटीकता. उन्होंने गेंद को कम घूमाकर बल्लेबाजों को अपनी लाइन और लेंथ से आउट किया. इसके साथ ही, वे कभी हार न मानने वाले जुझारू खिलाड़ी थे, जो हर परिस्थिति में संघर्ष करते थे.

अनिल कुंबले ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी खेल से अपना जुड़ाव जारी रखा. वे कोच, कमेंटेटर और प्रशासक के रूप में काम करते रहे हैं. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच के रूप में भी वर्ष  2016-17 के दौरान सेवाएँ दीं. इसके अलावा, वे क्रिकेट से जुड़े कई तकनीकी और प्रशासनिक कार्यों में भी सक्रिय रहे हैं.

अनिल कुंबले को उनके योगदान के लिए पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वे भारतीय क्रिकेट के सबसे सम्मानित और प्रिय खिलाड़ियों में से एक हैं, और उन्हें “जंबो” के उपनाम से भी जाना जाता है.

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पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री भगवंत मान

भगवंत मान पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) की जीत के बाद यह पद संभाला. भगवंत मान का जन्म 17 अक्टूबर 1973 को पंजाब के संगरूर जिले के सतोज गांव में हुआ था. वे एक लोकप्रिय कॉमेडियन, अभिनेता और राजनेता हैं। अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत से पहले, मान ने पंजाबी मनोरंजन उद्योग में काम किया, खासकर कॉमेडी के क्षेत्र में, जहां वे अपनी शानदार हास्य प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध हुए.

भगवंत मान ने वर्ष 2014 में आम आदमी पार्टी से राजनीति में कदम रखा और संगरूर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। इसके बाद, उन्होंने वर्ष 2019 के आम चुनाव में फिर से संगरूर से जीत हासिल की, जिससे उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया. उनकी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव का मुख्य कारण उनकी साफगोई और समाज के मुद्दों पर खुलकर बोलना है.

वर्ष 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में, आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. पार्टी ने भारी बहुमत से चुनाव जीता, और 16 मार्च 2022 को भगवंत मान ने पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. वे पंजाब की राजनीतिक दिशा को भ्रष्टाचार मुक्त और विकासोन्मुख बनाने का वादा करते हुए सत्ता में आए.

भगवंत मान ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य, किसानों के मुद्दों और रोजगार के अवसर बढ़ाने को अपनी प्रमुख प्राथमिकताओं में रखा है. उन्होंने राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई का संकल्प लिया और जन कल्याण की योजनाओं पर जोर दिया. मान अपने जमीनी स्तर के नेता के रूप में पहचाने जाते हैं, जो जनता के मुद्दों से जुड़े रहते हैं और सीधे संवाद स्थापित करने में विश्वास रखते हैं.

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स्वामी रामतीर्थ

स्वामी रामतीर्थ भारत के महान संत, दार्शनिक और वेदांत के विद्वान थे. वे स्वामी विवेकानंद के समकालीन थे और पश्चिमी देशों में भारतीय वेदांत के संदेश को पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रामतीर्थ को उनके अद्वितीय विचारों, आध्यात्मिक ज्ञान, और प्रेरणादायक जीवन के लिए जाना जाता है.

स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब (अब पाकिस्तान के) गुज्रांवाला जिले के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका बचपन का नाम तिरुथ राम था. वे बचपन से ही अत्यंत मेधावी थे. उन्होंने गणित में विशेषज्ञता हासिल की और लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. कुछ समय के लिए उन्होंने गणित के प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया. हालाँकि, उनका झुकाव आध्यात्मिकता और वेदांत की ओर था, जिससे उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर संन्यास धारण कर लिया.

संन्यास धारण करने के बाद उन्होंने अपना नाम स्वामी रामतीर्थ रखा और अपना जीवन आत्म-साक्षात्कार और वेदांत के प्रसार में समर्पित कर दिया. वे स्वामी विवेकानंद से अत्यधिक प्रेरित थे और उनका लक्ष्य भी पश्चिमी देशों में भारतीय आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार करना था.

वर्ष 1899 में उन्होंने जापान, अमेरिका और मिस्र की यात्रा की और वहाँ भारतीय वेदांत और अद्वैतवाद के सिद्धांतों का प्रचार किया. उनकी शिक्षाएँ आत्म-साक्षात्कार और ब्रह्म की एकता के सिद्धांत पर आधारित थीं. उन्होंने मानव जाति को अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने और स्वयं को ब्रह्म के रूप में देखने की प्रेरणा दी.

स्वामी रामतीर्थ ने आत्मानुभूति और ब्रह्म की अनंतता पर जोर दिया. उनका मानना था कि हर व्यक्ति के भीतर एक दिव्य शक्ति है और वेदांत की शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति इस शक्ति को पहचान सकता है. उनके अनुसार, आत्मज्ञान ही वास्तविक मुक्ति का मार्ग है. उन्होंने संसार के अस्थायी सुखों से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ने का उपदेश दिया.

उनकी शिक्षाएँ बहुत ही सरल और सीधी थीं, जिनका उद्देश्य व्यक्ति को अपने अंदर छिपी असीम क्षमता का बोध कराना था. उन्होंने सेवा और प्रेम के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति पर भी जोर दिया.

स्वामी रामतीर्थ का जीवन बहुत ही छोटा था. वर्ष 1906 में केवल 33 वर्ष की आयु में हिमालय की एक नदी में स्नान करते समय उनका निधन हो गया. हालाँकि, उनके जीवन की गहराई और उनके विचारों की शक्ति ने उन्हें अमर कर दिया. उनके जीवनकाल में ही उनकी शिक्षाएँ और प्रवचन बहुत लोकप्रिय हो गए थे और आज भी उन्हें एक महान वेदांती संत के रूप में स्मरण किया जाता है.

स्वामी रामतीर्थ की शिक्षाएँ आज भी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. उनके प्रवचन और लेखन ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है, और वे एक ऐसे संत के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने भारतीय वेदांत को पश्चिमी दुनिया में प्रसिद्ध किया.

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निधन: –

पूर्व मुख्य सचिव लल्लन प्रसाद सिंह: –  बिहार सरकार के पूर्व मुख्य सचिव लल्लन प्रसाद सिंह का निधन 17 अक्टूबर 1998 को हुआ था.

चंदन तस्कर वीरप्पन: –  कुख्यात दस्यु सरगना और चंदन तस्कर वीरप्पन को सुरक्षा बलों ने 17 अक्टूबर 2004 को एक मुठभेड़ में मार गिराया था.

शास्त्रीय गायक अरुण भादुड़ी: – शास्त्रीय गायक अरुण भादुड़ी का निधन 17 अक्टूबर 2018 को हुआ था.

राजनीतिज्ञ नारायण दत्त तिवारी: – कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता नारायण दत्त तिवारी का निधन 17 अक्टूबर 2018 को हुआ था.

अन्य: –

कलकत्ता बंदरगाह: – 17 अक्टूबर 1870 को कलकत्ता बंदरगाह को एक संवैधानिक निकाय प्रबंधन के तहत लाया गया था.

पहली हिमालय कार रैली: – पहली हिमालय कार रैली 17 अक्टूबर 1980 को बम्बई (मुंबई) के ब्रेबोर्न स्टेडियम से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया था.

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