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व्यक्ति विशेष

भाग – 286.

मुराद बख़्श

मुराद बख़्श मुग़ल साम्राज्य के एक राजकुमार थे, जो मुग़ल बादशाह शाहजहां और उनकी पत्नी मुमताज़ महल के पुत्र थे. मुराद बख़्श का जन्म 09 अक्टूबर 1624 को रोहतासगढ़ किले ( बिहार) में हुआ था. मुराद बख़्श शाहजहां के चार बेटों में से एक थे, जिनमें दारा शिकोह, औरंगज़ेब और शाह शुजा प्रमुख थे.

शाहजहां के शासनकाल के अंत में, उनके चारों पुत्रों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हुई थी. मुराद बख़्श इस संघर्ष में अपने भाई औरंगज़ेब के साथ शामिल हो गए. औरंगज़ेब ने मुराद बख़्श को अपने सहयोगी के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन बाद में उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर लिया.  04 दिसम्बर 1661 ई. को दीवानअली नकी की हत्या करने के अभियोग में उसे फाँसी पर लटका दिया था.

मुराद बख़्श को एक साहसी और तेजस्वी व्यक्ति माना जाता था, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से वे अपने भाइयों के मुकाबले कम प्रभावशाली थे.

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साहित्यकार राजा लक्षमण सिंह

राजा लक्ष्मण सिंह हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार और सामाजिक सुधारक थे. वे 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों में से एक थे. उनका जन्म  09 अक्टूबर 1826 ई. को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था.

राजा लक्ष्मण सिंह ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और उसे साहित्यिक रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक मानक रूप देने और इसे जनसाधारण की भाषा बनाने का प्रयास किया. उन्होंने पश्चिमी साहित्य, विशेषकर अंग्रेज़ी साहित्य से भी प्रेरणा ली और भारतीय समाज में सामाजिक सुधारों की बात की. राजा लक्ष्मण सिंह ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और महिलाओं के अधिकारों पर जोर दिया गया.

लक्ष्मण सिंह ने कई प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ लिखी हैं. उनकी रचनाओं में कविताएँ, निबंध और नाटक शामिल हैं. वे हिंदी भाषा में लेखन के साथ-साथ सामाजिक सुधारों पर भी लेखन करते थे. वे केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थे. उन्होंने समाज में जातिगत भेदभाव, सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज सुधार के लिए विभिन्न मंचों पर कार्य किया.

राजा लक्ष्मण सिंह को उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है, और हिंदी साहित्य के विकास में उनकी भूमिका को आज भी सराहा जाता है.

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स्वतंत्रता सेनानी गोप बन्धु दास

गोप बन्धु दास एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, और ओडिशा राज्य के महान नेता थे. उन्हें “उत्कल मणि” (ओडिशा का रत्न) के रूप में सम्मानित है. गोप बन्धु दास ने अपने जीवन को समाजसेवा, शिक्षा सुधार, और देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया. वे पत्रकार, कवि और विद्वान भी थे, जिन्होंने ओडिशा के लोगों के लिए सामाजिक और राजनीतिक सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाई.

गोप बन्धु दास का जन्म 9 अक्टूबर 1877 को ओडिशा के पुरी जिले के सुन्दरगढ़ा गांव में हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ओडिशा में प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) चले गए. उन्होंने कानून की पढ़ाई की, लेकिन अपनी वकालत छोड़कर समाज सेवा और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. गोप बन्धु दास महात्मा गांधी से अत्यधिक प्रभावित थे और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने असहयोग आंदोलन और स्वराज के लिए काम किया और ओडिशा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनजागरण किया.

गोप बन्धु दास ने ओडिशा में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए. उन्होंने वर्ष 1909 में कटक में सत्यवादी स्कूल की स्थापना की, जिसका उद्देश्य गरीब और वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना था. यह स्कूल ओडिशा के सामाजिक और शैक्षिक सुधारों का केंद्र बन गया. गोप बन्धु दास ने ओडिशा में जागरूकता फैलाने के लिए वर्ष 1919 में “समाज” नामक एक समाचार पत्र की स्थापना की, जो बाद में “उत्कल दीपिका” के रूप में प्रसिद्ध हुआ. इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जनता को जागरूक किया और स्वतंत्रता संग्राम का प्रचार किया. उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास, और गरीबी के खिलाफ आवाज उठाई. वे ओडिशा के सामाजिक-आर्थिक सुधारों के लिए निरंतर प्रयासरत रहे. उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलनों ने ओडिशा के समाज में गहरी छाप छोड़ी.

गोप बन्धु दास ने ओडिशा की साहित्यिक धारा में भी अपना योगदान दिया. वे एक कवि और लेखक भी थे, और उनकी कविताओं और लेखों में समाज सुधार और राष्ट्रवाद के विचार मुखर थे. गोप बन्धु दास का निधन 17 जून 1928 को हुआ, लेकिन उनके आदर्श और योगदान आज भी ओडिशा और भारत के इतिहास में सम्मानपूर्वक याद किए जाते हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी मिनजुर भक्तवत्सलम

मिनजुर भक्तवत्सलम एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और तमिलनाडु के नेता थे. वे भारत की आज़ादी के बाद तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री भी बने. अपने पूरे जीवन में भक्तवत्सलम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधारों में सक्रिय भागीदारी निभाई और देश की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

मिनजुर भक्तवत्सलम का जन्म 9 अक्टूबर 1897 को तमिलनाडु के मिनजुर गाँव में हुआ था. उनका पूरा नाम मिनजुर कन्हैयालाल भक्तवत्सलम था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु में की और बाद में कानून की पढ़ाई के लिए मद्रास (अब चेन्नई) चले गए. वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और अपना जीवन देश की सेवा और सामाजिक सुधारों के लिए समर्पित किया.

भक्तवत्सलम महात्मा गांधी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सक्रिय सदस्य थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. वे गांधीवादी विचारधारा के समर्थक थे और अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों में विश्वास रखते थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तमिलनाडु में कांग्रेस के कार्यों को संगठित करने और जन समर्थन जुटाने में बड़ी भूमिका निभाई.

भारत की स्वतंत्रता के बाद, मिनजुर भक्तवत्सलम ने तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया. वे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 1963-67 तक कार्यरत रहे. उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान राज्य में कई विकास योजनाओं और सामाजिक सुधारों की पहल की गई. उनके कार्यकाल की मुख्य विशेषताओं में कृषि सुधार, शिक्षा में सुधार, और गरीबी उन्मूलन की नीतियाँ शामिल थीं. वे तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी के मजबूत नेता थे और उनके नेतृत्व में राज्य ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की दिशा में कई कदम उठाए.

भक्तवत्सलम के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु में अंतर-भाषाई आंदोलन और द्रविड़ आंदोलन तेज हो गए थे. वर्ष 1965 में हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने के प्रस्ताव के विरोध में तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. भक्तवत्सलम को इन आंदोलनों का सामना करना पड़ा, और यह उनके कार्यकाल की एक प्रमुख चुनौती बनी रही. वर्ष 1967 के राज्य चुनावों में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और उसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया.

मिनजुर भक्तवत्सलम का निधन 13 फरवरी 1987 को हुआ. उन्हें एक सच्चे गांधीवादी और निस्वार्थ देशभक्त के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और स्वतंत्र भारत में तमिलनाडु के विकास और कल्याण के लिए काम किया. उनका नाम तमिलनाडु और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रमुख स्थान रखता है.

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सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान

उस्ताद अमजद अली खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात सरोद वादक हैं. उनका जन्म 9 अक्टूबर 1945 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था. वे सरोद वादन की बंगश परंपरा से ताल्लुक रखते हैं और अपने संगीत के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं. उस्ताद अमजद अली खान को भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

अमजद अली खान का जन्म संगीत परिवार में हुआ. उनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खान, जो खुद एक महान सरोद वादक थे, ने उन्हें सरोद की शिक्षा दी. उनकी संगीत शिक्षा बचपन से ही शुरू हो गई थी, और उन्होंने जल्दी ही अपने पिता से सरोद के गुर सीख लिए. बंगश घराने की परंपरा से आने के कारण, उन्होंने शास्त्रीय संगीत की बारीकियों और विशिष्टताओं को अच्छी तरह से समझा और आत्मसात किया.

उस्ताद अमजद अली खान को सरोद वादन की अपनी अनूठी शैली और गहन संगीत समझ के लिए जाना जाता है. वे भारतीय रागों को नए रूप में प्रस्तुत करने और उन्हें एक अद्वितीय शैली में पेश करने के लिए प्रसिद्ध हैं. उनकी वादन शैली सरल, प्रभावशाली और गहन भावनाओं से परिपूर्ण होती है, जिससे श्रोताओं को एक अद्वितीय संगीतमय अनुभव प्राप्त होता है. अमजद अली खान ने अपने संगीत में न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत को परिपूर्णता से प्रस्तुत किया, बल्कि उन्होंने कई बार पश्चिमी संगीत और अन्य शैलियों के साथ भारतीय संगीत का संगम किया है. इसने उनकी संगीत शैली को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई है.

पुरस्कार और सम्मान: –

 उस्ताद अमजद अली खान को भारतीय संगीत के सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा गया है. उन्हें पद्म भूषण (1991) और पद्म विभूषण (2001) जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्हें UNICEF राष्ट्रीय राजदूत के रूप में भी नियुक्त किया गया.

उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए दुनिया भर के प्रतिष्ठित संगीत कार्यक्रमों और उत्सवों में प्रदर्शन किया है. उनके लाइव प्रदर्शन हमेशा अद्वितीय होते हैं, जिसमें शास्त्रीय संगीत की गहराई और सौंदर्य की झलक देखने को मिलती है.

अमजद अली खान संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कई युवा संगीतकारों को प्रशिक्षण दिया है, जिसमें उनके अपने बेटे अमान अली बंगश और अयान अली बंगश भी शामिल हैं, जो आज के समय में प्रसिद्ध सरोद वादक हैं. उनके योगदान से सरोद वादन की परंपरा और अधिक समृद्ध हुई है.

उस्ताद अमजद अली खान का विवाह सुभलक्ष्मी बरुआ से हुआ, जो असम के शाही परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके दो बेटे, अमान अली बंगश और अयान अली बंगश, भी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सक्रिय और सफल सरोद वादक हैं, जो अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

उस्ताद अमजद अली खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक महान हस्ती माने जाते हैं. उन्होंने अपने अद्वितीय सरोद वादन से न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक मंच पर भारतीय संगीत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है. उनकी संगीत यात्रा, जो सात दशकों से भी अधिक समय तक चली है, भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्धि और गहराई को उजागर करती है.

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दूसरी महिला राजदूत मीरा शंकर

मीरा शंकर एक भारतीय राजनयिक हैं, जिन्होंने भारत की ओर से संयुक्त राज्य अमेरिका में दूसरी महिला राजदूत के रूप में कार्य किया. उनका कार्यकाल 2009 – 11 तक रहा. वे भारतीय विदेश सेवा (IFS) की एक अनुभवी अधिकारी हैं, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पदों पर काम किया है. मीरा शंकर की नियुक्ति ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की कूटनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर जब अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में तेजी से सुधार हो रहा था.

मीरा शंकर का जन्म 9 अक्टूबर 1950 के दशक में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया. इसके बाद, वे वर्ष 1973 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल हो गईं, जहां उन्होंने अपने राजनयिक जीवन की शुरुआत की.

वर्ष 2009 में, मीरा शंकर को अमेरिका में भारत की राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया. इससे पहले, यह पद वर्ष 1958 में विजयलक्ष्मी पंडित ने संभाला था, जो पहली महिला भारतीय राजदूत थीं. मीरा शंकर के कार्यकाल के दौरान, भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी प्रगति हुई. उनके कार्यकाल में, दोनों देशों ने सैन्य सहयोग, व्यापार, परमाणु समझौते और जलवायु परिवर्तन जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझौते किए.

अमेरिका में अपनी नियुक्ति से पहले, मीरा शंकर ने भारत के विदेश मंत्रालय और विदेशों में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. उन्होंने बर्लिन, जिनेवा, श्रीलंका और वियना में भी विभिन्न राजनयिक भूमिकाएं निभाईं. इसके अलावा, उन्होंने नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में भी कार्य किया और दक्षिण एशियाई मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

मीरा शंकर को उनकी सूझ-बूझ और बातचीत करने की क्षमता के लिए जाना जाता है. उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से जब भारत-अमेरिका परमाणु समझौता और अन्य द्विपक्षीय समझौते चर्चा में थे. उनके कार्यकाल के दौरान, भारत और अमेरिका के बीच उच्च-स्तरीय दौरों का आदान-प्रदान भी हुआ, जिससे दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूती मिली.

राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, मीरा शंकर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें आतंकवाद और अफगानिस्तान में सुरक्षा मुद्दों पर अमेरिका के साथ नीतिगत मतभेद शामिल थे. इसके बावजूद, उन्होंने इन मुद्दों पर अमेरिका के साथ सकारात्मक वार्ता की और भारत के हितों की रक्षा की. उनकी नियुक्ति और कार्यकाल से यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं ने भारतीय कूटनीति के उच्चतम स्तरों पर भी अपनी क्षमता को साबित किया है. उन्होंने अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत किया, जिससे भारत की वैश्विक मंच पर स्थिति मजबूत हुई.

वर्ष 2011 में, मीरा शंकर ने अपने पद से सेवानिवृत्ति ली. इसके बाद से वे विभिन्न सार्वजनिक मंचों और संगठनों से जुड़ी रही हैं और भारतीय विदेश नीति, वैश्विक संबंधों और आर्थिक मामलों पर अपने विचार साझा करती रही हैं. मीरा शंकर को उनकी कूटनीतिक सूझ-बूझ, संयमित नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करने के लिए याद किया जाता है.

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अभिनेत्री सयानी गुप्ता

सयानी गुप्ता एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्यतः हिंदी सिनेमा में काम करती हैं. उनका जन्म 9 अक्टूबर 1985 को नई दिल्ली में हुआ था. वे भारतीय फिल्म उद्योग में अपने शानदार अभिनय के लिए जानी जाती हैं और विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में दिखाई देती हैं.

सयानी गुप्ता ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के आईनॉक्स (Indraprastha College for Women) से स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके बाद, उन्होंने रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स (RADA), लंदन में अभिनय का प्रशिक्षण लिया, जहाँ उन्होंने अपनी अभिनय कला में निपुणता हासिल की.

सयानी गुप्ता ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और विभिन्न नाटकों में प्रदर्शन किया. इसके बाद, उन्होंने वर्ष 2014 में फिल्म “गुलाब गैंग” में एक सहायक भूमिका के साथ अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत की. लेकिन उन्हें वास्तविक पहचान फिल्म “मसान” (वर्ष  2015) से मिली, जिसमें उनके अभिनय को बेहद सराहा गया.

प्रमुख फिल्में: –

मसान (वर्ष 2015): – इस फिल्म में सयानी ने एक गहरे भावनात्मक किरदार का प्रदर्शन किया, जो युवा भारतीय समाज की चुनौतियों को दर्शाता है. उनकी भूमिका के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.

जॉली एलएलबी 2 (वर्ष 2017): इस फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें अक्षय कुमार के साथ काम किया.

फुकरे (वर्ष 2013) और फुकरे रिटर्न्स (वर्ष 2017): इन कॉमेडी फिल्मों में उन्होंने गोल्डी का किरदार निभाया, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना.

बदहाई हो (वर्ष 2018): – इस फिल्म में भी उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुई.

सयानी गुप्ता ने ओटीटी प्लेटफार्मों पर भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया है. उन्होंने वेब सीरीज़ “Four More Shots Please!” में एक प्रमुख भूमिका निभाई, जो काफी सफल रही और उनके अभिनय की प्रशंसा की गई. सयानी गुप्ता एक सोशल एक्टिविस्ट भी हैं और वे सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलती हैं. उनके व्यक्तित्व में न केवल उनकी अभिनय क्षमता, बल्कि उनकी सामाजिक जागरूकता भी शामिल है.

सयानी गुप्ता को उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार और नामांकनों से नवाजा गया है. उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड और स्टार गिल्ड अवार्ड जैसे कई सम्मान प्राप्त हुए हैं. सयानी गुप्ता भारतीय फिल्म उद्योग की एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने विविध किरदारों और बेहतरीन अभिनय कौशल से दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया है.

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अभिनेत्री वेदिता प्रताप सिंह

वेदिता प्रताप सिंह एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्यतः हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में काम करती हैं. उनका जन्म 9 अक्टूबर 1987 को  इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. वे अपनी अभिनय क्षमताओं और आकर्षक व्यक्तित्व के लिए जानी जाती हैं.

वेदिता के पिता प्रतापगढ़ के दल्लीपुर एस्टेट के एक प्रतिष्ठित शाही चौहान परिवार से हैं, जबकि उनकी माँ त्रिपुरा के देव वर्मन परिवार से हैं. वेदिता ने मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल, अजमेर में पढ़ते हुए, उन्हें भारतीय खेल प्राधिकरण राष्ट्रीय तैराकी छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था साथ ही जेवियर कॉलेज, मुंबई में, उन्होंने विभिन्न थिएटर शो में अभिनय किया और अंतर-कॉलेजिएट सौंदर्य प्रतियोगिता भी जीती थीं.

वेदिता ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और विभिन्न विज्ञापनों और फोटोशूट्स में काम किया. इसके बाद, उन्होंने वर्ष 2011 में फिल्म “शैतान” से बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई.

प्रमुख फिल्में: –

शैतान (वर्ष 2011):  – इस फिल्म में उनकी भूमिका को दर्शकों ने सराहा, और यह फिल्म युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय हुई.

कहानी 2 दुर्गा रानी सिंह (वर्ष 2016):  – इस फिल्म में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें विद्या बालन ने मुख्य भूमिका निभाई.

नूर (वर्ष 2017):  – इस फिल्म में भी उन्होंने सहायक भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया.

कुक्कू मातर कुक्कू (वर्ष 2018):  – इस फिल्म में भी उनकी भूमिका को दर्शकों द्वारा पसंद किया गया.

वेदिता ने टेलीविजन शो में भी काम किया है। उन्होंने विभिन्न धारावाहिकों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, जो दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुए हैं. वेदिता प्रताप सिंह अपने निजी जीवन को मीडिया से दूर रखने में विश्वास रखती हैं और वे सामाजिक मुद्दों पर भी जागरूकता फैलाने का काम करती हैं.

वेदिता की मेहनत और समर्पण ने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रमुख स्थान दिलाया है, और वे लगातार अपने अभिनय कौशल को निखारने में लगी हुई हैं. उनके काम ने उन्हें युवा दर्शकों के बीच एक विशेष पहचान दिलाई है.

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राजनीतीज्ञ कांशी राम

कांशी राम भारतीय राजनीति में एक दलित नेता और समाज सुधारक थे. वे बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संस्थापक हैं, जो विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित एक राजनीतिक पार्टी है. कांशी राम का जीवन और कार्य दलित आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के गुरदासपुर जिले के खरड़ नामक गाँव में हुआ था. वे एक साधारण परिवार में पैदा हुए और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में प्राप्त की. कांशी राम ने अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई पंजाब विश्वविद्यालय से की, जहाँ उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की.

कांशी राम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय रेलवे में एक अधिकारी के रूप में की. हालांकि, उन्हें जल्दी ही यह एहसास हुआ कि उन्हें समाज के शोषित वर्गों के लिए काम करना है. इसके बाद, उन्होंने दिल्ली में सामाजिक न्याय और समानता के लिए काम करना शुरू किया. वर्ष 1984 में, कांशी राम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य दलितों, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना था. उनके नेतृत्व में, BSP ने उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत हासिल की.

कांशी राम ने दलितों के अधिकारों के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. उन्होंने समाज के शोषित वर्गों के लिए एक मजबूत आवाज़ उठाई और उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई कार्यक्रमों की योजना बनाई. उनका नारा “चौकिदारी नहीं, हमें हक चाहिए” दलित समुदाय में लोकप्रिय हुआ.कांशी राम की पार्टी ने वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई, जिसमें मायावती मुख्यमंत्री बनीं. यह दलितों के लिए एक ऐतिहासिक पल था और कांशी राम की राजनीति में महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी गई.

कांशी राम ने शादी नहीं की थी और अपने जीवन को सामाजिक और राजनीतिक कार्यों के लिए समर्पित किया. उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई. कांशी राम का निधन 9 अक्टूबर 2006 को हुआ. उनका योगदान भारतीय राजनीति और समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था. उन्हें एक महान विचारक और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है. उनके विचार और दृष्टिकोण आज भी दलितों और शोषित वर्गों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.

कांशी राम की विरासत उनके द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी और उनके सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण के माध्यम से जीवित है.

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संगीतकार तथा गायक रवीन्द्र जैन

रवींद्र जैन एक भारतीय संगीतकार, गायक और गीतकार थे. वे हिंदी सिनेमा के लिए अपनी अद्वितीय संगीत रचनाओं के लिए जाने जाते हैं. रवींद्र जैन का संगीत भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और उनके गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं.

रवींद्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. वे एक संगीत-प्रेमी परिवार में पले-बढ़े. उनकी आँखों में जन्म से ही दृष्टिहीनता थी, लेकिन इससे उनके संगीत के प्रति प्रेम में कोई कमी नहीं आई. उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों से प्रेरणा लेकर संगीत की दुनिया में कदम रखा.

रवींद्र जैन ने संगीत की शिक्षा जयपुर के संगीत विद्यालय से ली. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई पहलुओं का अध्ययन किया, जिससे उन्हें संगीत के क्षेत्र में एक मजबूत आधार मिला. रवींद्र जैन ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1970 के दशक में की. वे जल्दी ही अपनी रचनाओं के लिए लोकप्रिय होने लगे. उन्होंने कई प्रमुख हिंदी फिल्मों के लिए संगीत रचना की और अपने गाने खुद गाए.

हिट फिल्में: – रवींद्र जैन ने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया, जिनमें “चिदंबरम”, “कर्म-yogi”, “संदेश”, “शादी के बाद” और “मेरा गाँव मेरा देश” जैसी फिल्में शामिल हैं.

प्रसिद्ध गाने: –  “गोपाल गोपाल”, “हे राम”, “ओ मेरी जन्नत”, “तेरी ओढ़नी”.

रवींद्र जैन का संगीत अक्सर भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत से प्रभावित होता था. उनका कर्णप्रिय संगीत और मधुर गायक शैली ने उन्हें एक अद्वितीय स्थान दिया.

रवींद्र जैन को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें फिल्मफेयर अवार्ड शामिल हैं. उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपनी कला को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी फैलाया. रवींद्र जैन ने अपने जीवन के अधिकांश समय में संगीत और कला को समर्पित किया. उन्होंने अपनी दृष्टिहीनता को कभी भी अपनी प्रतिभा के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया.

रवींद्र जैन का निधन 9 अक्टूबर 2015 को हुआ. उनके जाने के बाद भी उनके द्वारा रचित संगीत और गाने लोगों के दिलों में जिंदा हैं. वे भारतीय संगीत के एक महान हस्ताक्षर के रूप में याद किए जाते हैं. उनकी संगीत रचनाएँ हमेशा उनकी अद्वितीय शैली और कर्णप्रियता के लिए सराही जाएंगी.

निधन: –

अभिनेता रघुमुद्री श्रीहरि: – अभिनेता रघुमुद्री श्रीहरि का निधन   09 अक्टूबर 2013 को मुंबई में हुआ था.

अन्य

अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय : – 09 अक्टूबर 1920 में अलीगढ़ के एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज का नाम बदलकर अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय कर दिया गया था. बताते चलें कि, समाज सुधारक सर सैयद अहमद ने वर्ष 1875 में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की थी.

प्रादेशिक सेना की स्थापना: –  09 अक्टूबर 1949 में प्रादेशिक सेना की स्थापना की गई थी. जिसका उद्घाटन स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर सी. राजगोपालाचारी ने किया था.

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