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व्यक्ति विशेष

भाग – 272.

उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल

चौधरी देवी लाल भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री और भारत के उपप्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं. उनका जन्म 25 सितंबर 1914 को हुआ था और वे एक जमींदार परिवार से थे. उन्हें भारतीय किसान आंदोलन के नायक और किसानों के नेता के रूप में भी जाना जाता है.

चौधरी देवी लाल ने हरियाणा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने 1987 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की और राज्य के मुख्यमंत्री बने. वे दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे (1977-79 और 1987-89).

देवी लाल को भारतीय राजनीति में एक सशक्त किसान नेता के रूप में पहचान मिली. उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, और उन्हें “ताऊ” के नाम से भी प्यार से पुकारा जाता था. वर्ष 1989 में, वे राष्ट्रीय स्तर पर जनता दल के नेता बने और केंद्र सरकार में उपप्रधानमंत्री का पद संभाला, जिसमें उन्होंने 1989 – 91 तक कार्य किया. चौधरी देवी लाल का निधन 6 अप्रैल 2001को हुआ था. उनकी सादगी और जनसेवा के प्रति समर्पण ने उन्हें जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया.

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ के एक प्रमुख नेता, विचारक, और राष्ट्रवादी थे, जिन्हें भारतीय राजनीति में “एकात्म मानववाद” और “अंत्योदय” के सिद्धांतों के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में हुआ था. उपाध्याय का जीवन राष्ट्र निर्माण और भारतीय संस्कृति के संरक्षण को समर्पित था.

एकात्म मानववाद: – पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसमें वे कहते हैं कि समाज को पश्चिमी भौतिकवादी दृष्टिकोण से हटकर संपूर्ण मानवता के कल्याण की दिशा में सोचना चाहिए. उनका विचार था कि विकास केवल आर्थिक प्रगति तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति भी इसमें शामिल होनी चाहिए.

अंत्योदय: – इस सिद्धांत का अर्थ है कि समाज के सबसे निचले तबके के व्यक्ति का उत्थान किया जाना चाहिए. उनका मानना था कि जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति का विकास नहीं होगा, तब तक समग्र विकास संभव नहीं है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में विकसित हुआ. वे 1967 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने और पार्टी के संगठन को मजबूत किया. वे हमेशा से भारतीयता, स्वदेशी, और ग्रामीण भारत के पुनर्निर्माण के पक्षधर थे.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन काफी सादगीपूर्ण था. उनके माता-पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था, और उनके पालन-पोषण का जिम्मा उनके नाना-नानी ने संभाला. शिक्षा के क्षेत्र में भी वे काफी मेधावी थे, लेकिन उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया.

वर्ष 1968 में, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु बहुत ही रहस्यमय परिस्थितियों में हुई. वे मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर मृत पाए गए थे, और उनकी मृत्यु का कारण आज भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार आज भी भारतीय राजनीति और भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.

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रॉकेट वैज्ञानिक सतीश धवन

सतीश धवन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक वैज्ञानिक थे, जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 25 सितंबर 1920 को श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में हुआ था. वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के तीसरे अध्यक्ष थे और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ मिलकर भारतीय रॉकेट प्रौद्योगिकी को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सतीश धवन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर (अब पाकिस्तान) में प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से गणित और भौतिकी में स्नातक की डिग्री हासिल की. बाद में वे एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए और वहां कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैलटेक) से मास्टर और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की.

वर्ष 1960 के दशक में, सतीश धवन भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु के निदेशक बने. वे एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली शिक्षक भी थे. वर्ष 1972 में, उन्होंने विक्रम साराभाई के निधन के बाद इसरो के अध्यक्ष का पदभार संभाला.

धवन के नेतृत्व में इसरो ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण मिशन लॉन्च किए. उनकी देखरेख में इसरो ने निम्नलिखित प्रमुख उपलब्धियां हासिल कीं: –

एसएलवी-3 (सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल): – यह भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान था, जिसका सफलतापूर्वक परीक्षण 1980 में किया गया. इस मिशन से भारत ने अंतरिक्ष में स्वदेशी क्षमता के साथ उपग्रह भेजने की शुरुआत की.

अंतरिक्ष मिशनों का विकेंद्रीकरण: – सतीश धवन ने इसरो के संगठनात्मक ढांचे में विकेंद्रीकरण किया और विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए अलग-अलग केंद्र स्थापित किए, जैसे विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC), लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC), आदि.

आर्यभट्ट उपग्रह: – वर्ष 1975 में, भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था.

धवन के नेतृत्व में इसरो का ध्यान हमेशा भारत की सामाजिक और आर्थिक जरूरतों पर रहा. उनकी नीति थी कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, संचार, और मौसम संबंधी सेवाओं को सुधारने के लिए किया जाए.

सतीश धवन एक अत्यधिक विनम्र और दूरदर्शी वैज्ञानिक थे. वे अपनी टीम को स्वतंत्रता देने और नई खोजों के लिए प्रोत्साहित करने में विश्वास रखते थे. उन्होंने विक्रम साराभाई की विरासत को आगे बढ़ाया और इसरो को विश्वस्तरीय अंतरिक्ष एजेंसी बनाने में मदद की.सतीश धवन को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनके सम्मान में इसरो के श्रीहरिकोटा लॉन्च स्टेशन का नाम बदलकर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र रखा गया.

सतीश धवन का निधन 3 जनवरी 2002 को हुआ. उनका योगदान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में अविस्मरणीय है, और उनकी विरासत आज भी इसरो के हर मिशन में जीवित है.

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प्रथम महिला चिकित्सक रखमाबाई राऊत

रखमाबाई राऊत भारत की पहली महिला चिकित्सक थीं और उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित की. उनका जन्म 22 नवंबर 1864 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था. वह न केवल भारत की पहली महिला डॉक्टरों में से एक थीं, बल्कि बाल विवाह और महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने वाली एक सशक्त समाज सुधारक भी थीं.

रखमाबाई का बचपन कठिन परिस्थितियों में बीता. उनकी मां जयंतीबाई एक विधवा थीं और उन्होंने दादा जीभाई मालवीय से पुनर्विवाह किया. 11 साल की उम्र में, रखमाबाई का विवाह 19 वर्षीय दूल्हा दादाजी भिखाजी से कर दिया गया. विवाह के बाद, जब उनके पति ने उनके साथ रहने का आग्रह किया, तब रखमाबाई ने बाल विवाह और जबरन वैवाहिक जीवन के खिलाफ आवाज उठाई.

रखमाबाई का विवाह दादाजी भिखाजी से बाल्यावस्था में हुआ था, लेकिन वह इस विवाह को नकारना चाहती थीं और अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया. दादाजी ने 1884 में बॉम्बे हाईकोर्ट में उनके खिलाफ मामला दायर किया, जो एक ऐतिहासिक मुकदमे के रूप में जाना जाता है. इस मुकदमे ने महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा की शुरुआत की, खासकर बाल विवाह और वैवाहिक अधिकारों के संबंध में. वर्ष 1888 में कोर्ट ने फैसला सुनाया कि रखमाबाई को अपने पति के साथ रहना होगा, अन्यथा उन्हें जेल जाना पड़ेगा. इसके बावजूद, रखमाबाई ने अदालत के इस फैसले का विरोध किया और यह मामला बाल विवाह के खिलाफ समाज में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया. बाद में, ब्रिटिश सरकार ने हस्तक्षेप किया और उनकी सजा को रद्द कर दिया.

रखमाबाई ने इस सामाजिक लड़ाई के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का फैसला किया. वह इंग्लैंड चली गईं और वर्ष 1889 में लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर विमेन से चिकित्सा की डिग्री प्राप्त की. वर्ष 1894 में भारत लौटने के बाद, उन्होंने सूरत और फिर राजकोट के अस्पतालों में काम किया. अंततः उन्होंने बॉम्बे (मुंबई) के कामा अस्पताल में महिलाओं के लिए चिकित्सक के रूप में सेवा की.

रखमाबाई न केवल एक चिकित्सक थीं, बल्कि उन्होंने सामाजिक सुधारों और महिला सशक्तिकरण के लिए भी कार्य किया. उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की शिक्षा, और विधवा पुनर्विवाह जैसे मुद्दों पर समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया. उनके संघर्ष ने भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

रखमाबाई ने अपना शेष जीवन समाजसेवा और चिकित्सा के क्षेत्र में समर्पित किया. उनका योगदान महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. उनकी बहादुरी और दृढ़ संकल्प ने उन्हें भारतीय समाज में एक प्रेरणास्रोत बना दिया है. रखमाबाई राऊत का निधन 25 सितंबर 1955 को हुआ. उनकी कहानी ने न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में महिला अधिकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी, और उन्हें भारत की पहली महिला चिकित्सकों में से एक के रूप में सदैव याद किया जाएगा.

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अभिनेत्री दिव्या दत्ता

दिव्या दत्ता एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हिंदी, पंजाबी, और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है. उनका जन्म 25 सितंबर 1977 को पंजाब के लुधियाना में हुआ था. दिव्या ने न केवल फिल्मों में बल्कि टेलीविजन और वेब सीरीज में भी अपनी पहचान बनाई है.

दिव्या दत्ता ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1994 में फिल्म “इश्क में जीना, इश्क में मरना” से की, लेकिन उन्हें असली पहचान वर्ष 1999 की फिल्म “वीर-ज़ारा” में ज़रीना के किरदार से मिली. इस फिल्म में उनके शानदार अभिनय को काफी सराहा गया.

प्रमुख फिल्में: –

वीर-ज़ारा (वर्ष 2004): – इसमें उन्होंने शाहरुख खान और प्रीति जिंटा के साथ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भाग मिल्खा भाग (वर्ष 2013): – इस फिल्म में उन्होंने मिल्खा सिंह की बहन का किरदार निभाया, जो उनके कैरियर के सबसे महत्वपूर्ण और भावनात्मक किरदारों में से एक था.

इरादा (वर्ष 2017): इस फिल्म के लिए दिव्या ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता।

दिल्ली-6 (वर्ष 2009), बदलापुर (वर्ष 2015), स्पेशल 26 (वर्ष 2013), हेरोइन (वर्ष 2012), और मनी करणीका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी (वर्ष 2019) जैसी फिल्मों में भी उनके अभिनय को खूब सराहा गया है. दिव्या ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार और सम्मान जीते हैं. उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर अवार्ड समेत कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले हैं.

दिव्या दत्ता ने अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना किया। उनकी मां डॉक्टर थीं, जिन्होंने दिव्या को एक मजबूत और स्वतंत्र महिला के रूप में पाला। उनके जीवन में परिवार का विशेष महत्व रहा है, और वे अक्सर अपनी मां के साथ अपने मजबूत संबंधों की बात करती हैं.

दिव्या एक लेखिका भी हैं. उन्होंने “Me and Ma” नामक एक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने अपनी मां के साथ अपने संबंधों और अपने जीवन के अनुभवों के बारे में लिखा है. दिव्या दत्ता अपने विविध किरदारों और सशक्त अभिनय शैली के लिए जानी जाती हैं और वे भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

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अभिनेत्री सपना चौधरी

सपना चौधरी एक लोकप्रिय भारतीय गायिका, नृत्यांगना, और अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हरियाणवी संगीत और नृत्य के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. उनका जन्म 25 सितंबर 1990 को रोहतक, हरियाणा में हुआ था. सपना अपने देसी स्टाइल और हरियाणवी गानों पर जोरदार परफॉर्मेंस के लिए जानी जाती हैं.

सपना चौधरी ने अपने कैरियर की शुरुआत हरियाणवी लोक गीतों पर मंचीय प्रस्तुतियों से की थी. उनका पहला लोकप्रिय गाना “सॉलिड बॉडी” था, जिसे हरियाणा में काफी प्रसिद्धि मिली. इसके बाद उन्होंने हरियाणवी, पंजाबी, भोजपुरी और बॉलीवुड में भी अपने डांस का जादू दिखाया.

 गाने और नृत्य: –

तेरी आंख्या का यो काजल: – यह गाना सपना चौधरी का सबसे प्रसिद्ध गाना है, जिसने उन्हें पूरे भारत में लोकप्रिय बना दिया. इस गाने पर उनका डांस काफी पसंद किया गया और यूट्यूब पर यह गाना मिलियन्स में देखा गया.

चेतक: – एक और हिट गाना, जिसमें उन्होंने अपनी नृत्य प्रतिभा को फिर से साबित किया.

बोल रा बुलबुला और मेरे सामने आके –  जैसे गानों ने भी दर्शकों का दिल जीता.

सपना चौधरी 2017 में लोकप्रिय रियलिटी शो “बिग बॉस” के सीज़न 11 में हिस्सा लेने के बाद और भी चर्चित हो गईं. इस शो में उनकी सीधी और बेबाक शख्सियत को काफी सराहा गया, और उन्होंने देशभर में बड़ी फैन फॉलोइंग हासिल की.

सपना चौधरी ने बॉलीवुड में भी अपनी किस्मत आजमाई. उनकी पहली बॉलीवुड फिल्म “दोस्ती के साइड इफेक्ट्स” थी. इसके अलावा, उन्होंने कई बॉलीवुड गानों में अपने आइटम नंबर किए, जिनमें “हट जा ताऊ” (वीरे की वेडिंग) और “तेरे ठुमके सपना चौधरी” (नानू की जानू) शामिल हैं. वे भोजपुरी और पंजाबी फिल्मों में भी नजर आईं.

सपना चौधरी का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है. उन्होंने कम उम्र में अपने पिता को खो दिया और परिवार का समर्थन करने के लिए अपने कैरियर की शुरुआत की. उनकी मेहनत और संघर्ष की कहानी युवाओं के लिए प्रेरणादायक है. वर्ष 2020 में, उन्होंने हरियाणवी गायक वीर साहू से विवाह किया और अब एक बेटे की मां हैं.

सपना चौधरी को उनके देसी अंदाज, मस्तमौला व्यक्तित्व, और जोरदार डांस के लिए जाना जाता है. हरियाणवी संस्कृति को बड़े मंचों पर ले जाने के लिए उनके योगदान को बेहद सराहा जाता है. उन्होंने अपने टैलेंट के दम पर न केवल हरियाणा, बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्धि हासिल की है. सपना चौधरी आज भी अपने संगीत और नृत्य से दर्शकों का मनोरंजन करती रहती हैं और उनकी फैन फॉलोइंग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

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स्वतंत्रता सेनानी प्रफुल्लचंद्र सेन

प्रफुल्लचंद्र सेन एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और पश्चिम बंगाल के तीसरे मुख्यमंत्री थे. उनका जन्म 10 अप्रैल 1897 को तत्कालीन बंगाल के खंडा (अब बांग्लादेश) में हुआ था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसक साधनों और सत्याग्रह के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

प्रफुल्लचंद्र सेन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए. उनकी गतिविधियों के चलते ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल भेजा.

वे गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे और देश की आजादी के लिए सत्याग्रह और अहिंसा को एकमात्र मार्ग मानते थे. उन्होंने अपने जीवन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ किसानों और मजदूरों के अधिकारों के प्रति समर्पित किया.

भारत की स्वतंत्रता के बाद, प्रफुल्लचंद्र सेन ने भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 1961- 67 तक कार्यरत रहे. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई आर्थिक और सामाजिक सुधार किए, जिनमें भूमि सुधार और गरीबी उन्मूलन की नीतियों पर जोर दिया. उनका भूमि सुधार कार्यक्रम खासकर किसानों और गरीबों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ, जिससे बंगाल के ग्रामीण इलाकों में उन्हें व्यापक समर्थन मिला.

उनकी सरकार के दौरान कई विकासशील नीतियां बनाई गईं, लेकिन साथ ही उन्हें राज्य में बढ़ती नक्सलवादी गतिविधियों और राजनीतिक अस्थिरता का भी सामना करना पड़ा. प्रफुल्लचंद्र सेन का निधन 25 सितंबर 1990 को हुआ. उनके योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पश्चिम बंगाल की राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा.

प्रफुल्लचंद्र सेन का जीवन राष्ट्रसेवा और समाज सेवा के प्रति समर्पण का प्रतीक था, और उन्होंने आज़ाद भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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