राजनीतिज्ञ गंगाप्रसाद वर्मा
गंगाप्रसाद वर्मा एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो समाजवादी पार्टी से जुड़े थे. गंगाप्रसाद वर्मा का जन्म 13 अगस्त 1863 को उत्तर प्रदेश के हरदोई ज़िले में एक सम्पन्न खत्री परिवार में हुआ था. उन्होंने अरबी और फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे लखनऊ के केनिंग कॉलेज में भर्ती हुए थे.
गंगाप्रसाद पर स्वामी रामतीर्थ का बहुत प्रभाव था साथ ही मालवीय जी, लाला लाजपत राय, एनी बेसेंट आदि से भी वे प्रभावित थे. वर्ष 1883 में ‘एडवोकेट’ नामक द्वि-साप्ताहिक पत्र का सम्पादन करके अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ किया था.
गंगाप्रसाद राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं. वर्मा ने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद की और उन्हें विशेष रूप से दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए काम करने के लिए जाना जाता था.
गंगाप्रसाद वर्मा का राजनीतिक कैरियर लंबे समय तक चला, और उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके योगदानों को समाजवादी राजनीति और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण माना जाता है. गंगाप्रसाद आधुनिक लखनऊ नगर के निर्माता भी माने जाते हैं.
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क्रांतिकारी नरेन्द्र मोहन सेन
नरेंद्र मोहन सेन एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी थे. वह बंगाल प्रेसीडेंसी (अब बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल) से थे और भारत की आजादी के संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लेते थे. नरेंद्र मोहन सेन का नाम बंगाल के उन क्रांतिकारियों में गिना जाता है जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाई. नरेंद्र मोहन सेन का जन्म 13 अगस्त, 1887 ई. में ब्रिटिश शासन के दौरान पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था और उनका निधन 23 जनवरी, 1963 को हुआ.
वह “अनुशीलन समिति” के सदस्य थे, जो कि एक क्रांतिकारी संगठन था. यह संगठन ब्रिटिश शासन को समाप्त करने और भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए हिंसक और गैर-हिंसक दोनों तरीकों का इस्तेमाल करता था. नरेंद्र मोहन सेन ने विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया, जिसमें ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष और बम धमाकों जैसी गतिविधियाँ शामिल थीं.
उनका जीवन संघर्ष और साहस का प्रतीक था, और उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने बलिदान के लिए याद किया जाता है. उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गति दी और उन्हें देश के क्रांतिकारियों में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया.
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अभिनेत्री वैजयंती माला
वैजयंतीमाला एक भारतीय अभिनेत्री, भरतनाट्यम नर्तकी, और राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 13 अगस्त 1936 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था. उन्होंने हिंदी और तमिल सिनेमा में 1950 – 60 के दशक में अपनी खास पहचान बनाई. वैजयंतीमाला को भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपर स्टार्स में से एक माना जाता है.
वैजयंतीमाला ने 1949 में तमिल फिल्म “वज़हकु” से अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें हिंदी सिनेमा में बड़ी सफलता 1951 की फिल्म “बहार” से मिली.
प्रमुख फ़िल्में: – “नया दौर” (1957), “मधुमती” (1958), “संगम” (1964), “गंगा जमुना” (1961), “ज्वेल थीफ” (1967), और “अमरदीप” (1958).
वैजयंतीमाला ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते, जिनमें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल हैं. वैजयंतीमाला एक निपुण भरतनाट्यम नर्तकी भी हैं और उन्होंने अपनी नृत्य प्रतिभा को फिल्मों में भी दर्शाया. उन्होंने अपनी नृत्य कला से भारतीय नृत्य की सुंदरता को फिल्म जगत में भी स्थापित किया.
सिनेमा से संन्यास लेने के बाद वैजयंतीमाला ने राजनीति में कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ीं. उन्होंने 1984 में दक्षिण चेन्नई से सांसद के रूप में सेवा की. वैजयंतीमाला ने 1968 में डॉक्टर चमनलाल बाली से विवाह किया और इसके बाद उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली. उनकी कला और योगदान को भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग में अहम स्थान प्राप्त है.
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अभिनेत्री योगिता बाली
योगिता बाली एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने 1970 – 80 के दशक में हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई. उनका जन्म 13 अगस्त 1952 को हुआ था. योगिता बाली बॉलीवुड की एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय अभिनेत्री रही हैं और उन्हें उनके ग्लैमरस अंदाज़ और अभिनय के लिए जाना जाता है.
योगिता बाली ने 1971 में फिल्म “परवाना” से अपने कैरियर की शुरुआत की, जिसमें अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और अपनी ख़ूबसूरती और अभिनय कौशल से दर्शकों का दिल जीत लिया.
प्रमुख फ़िल्में: – “जवानी दीवानी” (1972), “बंधन” (1973), “संग्राम” (1976), “खिलौना” (1977), और “महबूबा” (1976) शामिल हैं.
योगिता बाली ने पहले प्रसिद्ध गायक और अभिनेता किशोर कुमार से शादी की थी, लेकिन यह शादी लंबे समय तक नहीं चली. इसके बाद उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती से शादी की, जो बॉलीवुड के एक प्रमुख अभिनेता हैं. मिथुन और योगिता के चार बच्चे हैं, जिनमें मिमोह (महाक्षय) चक्रवर्ती भी शामिल हैं, जो एक अभिनेता हैं.
योगिता बाली की फिल्में उनके कैरियर के दौरान काफी लोकप्रिय रहीं, और उन्होंने अपने समय के कई बड़े सितारों के साथ काम किया. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में अपनी जगह बनाई और आज भी उन्हें 1970 -80 के दशक की प्रमुख अभिनेत्रियों में गिना जाता है.
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अभिनेत्री केतकी दवे
केतकी दवे एक जानी-मानी भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी और गुजराती टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों में अपने काम के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर में हास्य और नकारात्मक भूमिकाओं के लिए खास पहचान बनाई है.
केतकी दवे ने कई लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों में काम किया है, जिनमें “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” (जहां उन्होंने डकोरबेन का यादगार किरदार निभाया), “कहानी घर घर की”, “नच बलिए”, और “अमर प्रेम” शामिल हैं. उनका किरदार डकोरबेन “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” में बहुत प्रसिद्ध हुआ, और उनकी अदाकारी ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया।
केतकी दवे ने हिंदी और गुजराती फिल्मों में भी काम किया है. उनकी प्रमुख हिंदी फिल्मों में “आशिक़ी”, “मंज़िल मंज़िल”, और “कल हो ना हो” शामिल हैं. फिल्म “कल हो ना हो” में उनका “साड़ी वाले बेन” का किरदार भी काफी पसंद किया गया था. केतकी दवे का जन्म एक गुजराती परिवार में हुआ. उन्होंने अभिनेता रसिक दवे से शादी की, जो खुद भी एक जाने-माने टीवी और फिल्म अभिनेता हैं. उनके परिवार का भी अभिनय से गहरा संबंध है, और वे एक संयुक्त परिवार में रहते हैं.
केतकी दवे की हास्य भूमिकाओं में एक खासियत होती है, और उनका संवाद बोलने का अंदाज़ दर्शकों को खूब भाता है. उनका अभिनय में विशेष योगदान रहा है, और उन्होंने अपने कैरियर में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाकर अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया है.
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अभिनेत्री अपरा मेहता
अपरा मेहता एक जानी-मानी भारतीय टेलीविजन और थिएटर अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन धारावाहिकों में अपने काम के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका जन्म 13 अगस्त 1960 को गुजरात, भारत में हुआ था. अपरा मेहता ने अपने अभिनय कैरियर में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाई हैं, लेकिन उन्हें सबसे अधिक पहचान “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” में साविता विरानी के किरदार के लिए मिली.
अपरा मेहता ने 1980 के दशक से टीवी धारावाहिकों में काम करना शुरू किया. उन्हें खासकर एकता कपूर के धारावाहिक “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” में तुलसी वीरानी की सास, साविता विरानी की भूमिका के लिए पहचाना जाता है. इस भूमिका ने उन्हें घर-घर में एक लोकप्रिय चेहरा बना दिया. उन्होंने अन्य प्रमुख धारावाहिकों में भी काम किया है, जैसे “कहानी घर घर की”, “हम साथ-साथ हैं”, “चार दिवारी”, और “एक महल हो सपनों का”. वह विभिन्न कॉमेडी शो और अन्य टीवी सीरियलों में भी नजर आ चुकी हैं.
टेलीविजन के अलावा, अपरा मेहता ने कुछ हिंदी और गुजराती फिल्मों में भी काम किया है. उनकी फिल्मों में “चलते चलते” (2003) और “सत्यमेव जयते” (1987) शामिल हैं. अपरा मेहता का थिएटर में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने गुजराती रंगमंच में कई नाटक किए हैं और वे एक सम्मानित थिएटर कलाकार मानी जाती हैं. अपरा मेहता का जन्म एक गुजराती परिवार में हुआ था. उनकी शादी अभिनेता दर्शन जरीवाला से हुई थी, जो खुद भी एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं. हालांकि, दोनों बाद में अलग हो गए.
अपरा मेहता को उनकी मजबूत और दमदार अदाकारी के लिए जाना जाता है. उन्होंने मुख्य रूप से पारिवारिक धारावाहिकों में सास और मां की भूमिकाओं में अपनी पहचान बनाई है. उनकी भूमिकाओं में उनके अभिनय की गहराई और सजीवता साफ झलकती है, जिसके कारण उन्हें भारतीय टेलीविजन का एक प्रतिष्ठित नाम माना जाता है.
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अभिनेत्री अनीता राज
अनीता राज एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने 1980 – 90 के दशकों में हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई. उनका जन्म 13 अगस्त 1962 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वह बॉलीवुड के स्वर्णिम युग के दौरान कई हिट फिल्मों में नजर आईं और अपने समय की सबसे खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं.
अनीता राज ने 1981 में फिल्म “प्रेम गीत” से अपने कैरियर की शुरुआत की. यह फिल्म सफल रही और उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया.
प्रमुख फ़िल्में: – “नौकर बीवी का” (1983), “ज़रा सी ज़िंदगी” (1983), “जीत हमारी” (1983), “कर्मा” (1986), “अंदर बहार” (1984), “मासूम” (1983), और “गुलामी” (1985) शामिल हैं.
अनीता राज ने अपने समय के कई बड़े सितारों के साथ काम किया, जिनमें धर्मेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा, राज बब्बर, और अनिल कपूर शामिल हैं. फिल्मों के बाद, अनीता राज ने टेलीविजन की ओर रुख किया. उन्होंने कई टीवी धारावाहिकों में भी काम किया. इनमें प्रमुख हैं “24: इंडिया” और “एक था राजा एक थी रानी”, जहां उन्होंने अपने अभिनय का लोहा मनवाया.
अनीता राज प्रसिद्ध अभिनेता जगदीश राज की बेटी हैं, जो बॉलीवुड में पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिकाओं के लिए जाने जाते थे. उन्होंने 1986 में सुनील हिंगोरानी से शादी की, और उनका एक बेटा है. अनीता राज को उनकी सुंदरता और अभिनय कौशल के लिए सराहा गया. उनके अभिनय में सादगी और प्रभावशाली प्रदर्शन की झलक मिलती है.
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अभिनेत्री श्रीदेवी
श्रीदेवी भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय अभिनेत्रियों में से एक थीं. उन्हें हिंदी सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार कहा जाता है, और उन्होंने हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, और कन्नड़ फिल्मों में एक सफल कैरियर बनाया. अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिभा, नृत्य कौशल, और करिश्माई व्यक्तित्व के कारण, श्रीदेवी को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक आइकन के रूप में देखा जाता है.
श्रीदेवी का जन्म तमिलनाडु के शिवकाशी में हुआ था. उनका असली नाम श्री अम्मा यंगर अय्यपन था. उन्होंने बहुत ही कम उम्र में बाल कलाकार के रूप में तमिल फिल्म “कंधन करुणाई” (1967) से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. श्रीदेवी ने 1970 के दशक के अंत में तेलुगु, तमिल और मलयालम फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री के रूप में काम करना शुरू किया. उनकी शुरुआती फिल्मों में “16 वयथिनिले” (1977), “सिगप्पू रोजक्कल” (1978), और “मून्द्रम पिराई” (1982) प्रमुख थीं.
श्रीदेवी ने 1978 में फिल्म “सोलवा सावन” से बॉलीवुड में कदम रखा, लेकिन उन्हें बड़ी सफलता 1983 में फिल्म “हिम्मतवाला” से मिली, जिसमें उनके साथ जितेंद्र थे. यह फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई और श्रीदेवी रातों-रात सुपरस्टार बन गईं.
प्रमुख फिल्में: – “मवाली” (1983), “तोहफ़ा” (1984), “नगीना” (1986), “मिस्टर इंडिया” (1987), “चालबाज़” (1989), “लम्हे” (1991), “खुदा गवाह” (1992), और “जुदाई” (1997). फिल्म “चालबाज़” में श्रीदेवी के दोहरी भूमिका ने उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड दिलाया.
श्रीदेवी को उनकी नृत्य शैली और अनूठे अभिनय के लिए सराहा गया. उनकी फिल्म “नगीना” में उनकी नृत्य प्रस्तुति “मैं नागिन तू सपेरा” बहुत प्रसिद्ध हुई. “मिस्टर इंडिया” में उनके हाव-भाव और अभिनय ने उन्हें खास पहचान दिलाई. श्रीदेवी ने लगभग 15 साल बाद 2012 में फिल्म “इंग्लिश विंग्लिश” से बड़े पर्दे पर वापसी की. इस फिल्म में उनके शानदार प्रदर्शन की खूब तारीफ हुई. इसके बाद उन्होंने 2017 में “मॉम” में एक माँ की भूमिका निभाई, जिसे आलोचकों और दर्शकों दोनों से सराहना मिली.
24 फरवरी 2018 को दुबई में श्रीदेवी का अचानक निधन हो गया. उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई. श्रीदेवी ने 1996 में फिल्म निर्माता बोनी कपूर से शादी की थी. उनके दो बेटियां हैं: जान्हवी कपूर और ख़ुशी कपूर. जान्हवी कपूर ने भी अभिनय में कदम रखा है.
श्रीदेवी की खूबसूरती, अभिव्यक्ति, और बहुआयामी अभिनय क्षमता ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक अमूल्य रत्न बना दिया. उनका नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा. उनके जाने के बाद भी, वे अपने प्रशंसकों के दिलों में और उनकी फिल्मों के जरिए हमेशा जीवित रहेंगी.
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वीरांगना अहिल्याबाई होल्कर
अहिल्याबाई होल्कर (जन्म: 31 मई 1725 – निधन: 13 अगस्त 1795) भारतीय इतिहास की एक महान योद्धा, समाज सुधारक और मराठा साम्राज्य की एक प्रभावशाली शासिका थीं. वह मालवा क्षेत्र में होल्कर राजवंश की महारानी थीं और उन्हें उनके न्यायप्रिय शासन, धार्मिक सहिष्णुता, और लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है. उनका जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी गांव में हुआ था.
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव (जामखेड़ा, अहमदनगर) के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम मनकोजी शिंदे था. वह अत्यंत धार्मिक और धर्मपरायण परिवार से थीं. अहिल्याबाई की शादी 1733 में खंडेराव होल्कर से हुई, जो इंदौर के होल्कर परिवार के उत्तराधिकारी थे. शादी के बाद उन्हें इंदौर की महारानी का दर्जा मिला. उनके पति खंडेराव का 1754 में कुंभेर की लड़ाई में निधन हो गया.
खंडेराव की मृत्यु के बाद, उनके ससुर मल्हारराव होल्कर ने उन्हें शासन में शामिल किया. वर्ष 1767 में मल्हारराव की मृत्यु के बाद, अहिल्याबाई ने मराठा साम्राज्य के मालवा क्षेत्र का शासन संभाला. उनके शासनकाल को न्याय, धर्म, और विकास के लिए जाना जाता है. अहिल्याबाई ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कई कदम उठाए. वह एक कुशल प्रशासक थीं और उन्होंने कानून व्यवस्था को बनाए रखा, किसानों की स्थिति सुधारी, और राज्य में समृद्धि लाई. वह अपनी प्रजा की समस्याओं को सुनती थीं और न्यायपूर्ण निर्णय करती थीं.
अहिल्याबाई ने पूरे भारत में कई धार्मिक और सामाजिक स्थलों का निर्माण कराया. उन्होंने काशी में विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, सोमनाथ, गया, अयोध्या, मथुरा, और हरिद्वार में भी महत्वपूर्ण निर्माण कार्य किए. उनके कार्यों ने उन्हें पूरे देश में धार्मिक और समाज सुधारक के रूप में ख्याति दिलाई. अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में कला, साहित्य और संस्कृति को भी प्रोत्साहित किया. उनके दरबार में विद्वानों और कलाकारों को स्थान मिला और उन्होंने अपनी सेना को भी मजबूत किया.
अहिल्याबाई होल्कर का निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ. उनके बाद उनके पुत्र तुलजा भाऊ ने गद्दी संभाली. अहिल्याबाई को उनकी धार्मिकता, न्यायप्रियता, और लोक कल्याण के कार्यों के लिए आज भी सम्मानित किया जाता है. उन्हें भारतीय इतिहास की सबसे महान महिला शासकों में से एक माना जाता है. उनके नाम पर कई संस्थानों, मार्गों और स्थलों का नाम रखा गया है. उनके शासनकाल को एक स्वर्णिम युग के रूप में याद किया जाता है.
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महिला क्रांतिकारी भीकाजी कामा
भीकाजी कामा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला क्रांतिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं. उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका और साहसिक कार्यों के लिए जाना जाता है. भीकाजी कामा का जन्म पारसी परिवार में हुआ था और उनके जीवन का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष और भारतीय समाज में सुधार करना था.
भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को मुंबई में एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम भीकाजी रावजी कामा था. उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन में ही समाज सुधार और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की. भीकाजी कामा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य स्वतंत्रता संग्राम संगठनों में सक्रिय भागीदारी की.
ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध जताने के लिए भीकाजी कामा ने विदेशों का दौरा किया. उन्होंने इंग्लैंड, अमेरिका, और यूरोपीय देशों में भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाया और भारतीय मुद्दों को वैश्विक मंच पर उठाया. भीकाजी कामा ने 1907 में अपनी प्रसिद्ध झंडा (फ्लैग) पेश की, जिसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है. यह झंडा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला झंडा था, जिसमें हरा, लाल, और पीला रंग था और इसमें भारत का मानचित्र और विभिन्न प्रतीक शामिल थे.
भीकाजी कामा ने महिला शिक्षा और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा दिया और समाज में समानता की दिशा में काम किया. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के मुद्दों पर कई लेख और भाषण दिए, जो जागरूकता फैलाने और भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाने में सहायक रहे. भीकाजी कामा का निधन 13 अगस्त 1938 को हुआ. उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विचारधारा और कार्यों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया.
भीकाजी कामा को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अग्रणी महिला नेता के रूप में सम्मानित किया जाता है. उनकी बहादुरी और कड़ी मेहनत ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया. उनकी प्रेरणादायक जीवन कथा आज भी कई लोगों को स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के लिए प्रेरित करती है.