
भारत के प्रथम रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह
सरदार बलदेव सिंह स्वतंत्र भारत के पहले रक्षा मंत्री थे. उनका कार्यकाल 1947 से 1952 तक रहा. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और एक प्रमुख सिख नेता के रूप में उभरे। वे 1946 में भारत की अंतरिम सरकार में रक्षा मंत्री नियुक्त किए गए थे और भारत के स्वतंत्रता के बाद वे इस पद पर बने रहे.
बलदेव सिंह ने भारतीय सेना के पुनर्गठन और सुदृढ़ीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. विभाजन के दौरान और बाद में उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी. उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जो देश की सुरक्षा को मजबूत बनाने में सहायक साबित हुए.
उनकी उपलब्धियों में भारतीय सेना का पुनर्गठन, रक्षा के क्षेत्र में नई नीतियों का क्रियान्वयन और देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूती प्रदान करना शामिल हैं. सरदार बलदेव सिंह का निधन 29 जून 1961 को हुआ, लेकिन उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
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अभिनेत्री उमा देवी खत्री (टून टून)
उमा देवी खत्री, जिन्हें फिल्मी दुनिया में टुन टुन के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा की पहली महिला हास्य अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 11 जुलाई 1923 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के एक ग्रामीण पंजाबी परिवार में हुआ था. टुन टुन ने अपने अनोखे अंदाज और हास्य प्रतिभा से भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई थीं.
उमा देवी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था. उन्हें संगीत और अभिनय का शौक बचपन से ही था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक गायिका के रूप में की. वर्ष 1947 में उन्होंने फिल्म “दर्द” में गाया, जिसमें उनके गाए हुए गाने “अफसाना लिख रही हूँ” और “ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल” बेहद लोकप्रिय हुआ था.
उमा देवी को असली पहचान तब मिली जब उन्होंने फिल्मों में हास्य भूमिकाएँ निभानी शुरू कीं. निर्देशक महबूब खान ने उन्हें एक कॉमिक रोल में पेश किया और यहीं से उनका नाम ‘टुन टुन’ पड़ गया. उन्होंने लगभग 200 फिल्मों में काम किया, जिनमें उनकी कॉमिक टाइमिंग और अनोखी शैली को दर्शकों ने खूब सराहा.
टुन टुन ने “मिस्टर एंड मिसेज 55,” “प्यासा,” “साधना,” “नमक हलाल,” और “अमर अकबर एंथनी” जैसी प्रसिद्ध फिल्मों में अपने हास्य अभिनय का प्रदर्शन किया. उनकी भूमिकाएँ इतनी प्रभावी थीं कि वह भारतीय सिनेमा की सबसे पसंदीदा हास्य अभिनेत्रियों में से एक बन गईं. टुन टुन का विवाह मोहन से हुआ था और उनके चार बच्चे थे. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली और 24 नवंबर 2003 को उनका निधन हो गया.
टुन टुन की हास्य प्रतिभा और अद्वितीय अभिनय शैली ने भारतीय सिनेमा में महिला हास्य अभिनेत्रियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया. उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और वे आज भी दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाए हुए हैं.
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राजनीतिज्ञ सुरेश प्रभु
सुरेश प्रभु भारतीय राजनीतिज्ञ और प्रशासक हैं, जिन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों में कार्य किया है. उनका पूरा नाम सुरेश प्रभाकर प्रभु है. उनका जन्म 11 जुलाई 1953 को महाराष्ट्र के मुम्बई में हुआ था. सुरेश प्रभु भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य हैं और उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.
सुरेश प्रभु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में पूरी की और बाद में सिडेनहैम कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) से चार्टर्ड अकाउंटेंसी की डिग्री भी प्राप्त की है. सुरेश प्रभु ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत शिवसेना से की थी और 1996 में पहली बार सांसद बने. बाद में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया और भाजपा के टिकट पर कई बार सांसद चुने गए.
रेलवे मंत्री: – वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उन्होंने भारतीय रेलवे के मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला. इस दौरान उन्होंने रेलवे में कई सुधार और विकास योजनाएँ शुरू कीं.
वाणिज्य और उद्योग मंत्री: – वर्ष 2017 में, सुरेश प्रभु को वाणिज्य और उद्योग मंत्री नियुक्त किया गया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारतीय उद्योग और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए.
सिविल एविएशन मंत्री: – सुरेश प्रभु को सिविल एविएशन मंत्रालय का भी कार्यभार सौंपा गया था, जहां उन्होंने भारतीय विमानन क्षेत्र में सुधार और विकास के लिए काम किया.
सुरेश प्रभु को उनके सुधारवादी दृष्टिकोण और विकासोन्मुखी नीतियों के लिए जाना जाता है. उन्होंने रेलवे, वाणिज्य, उद्योग और सिविल एविएशन के क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं और सुधारों की शुरुआत की है. सुरेश प्रभु का विवाह उमा प्रभु से हुआ है और उनका एक बेटा है. उन्होंने सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया है और वे विभिन्न गैर-लाभकारी संगठनों के साथ जुड़े हुए हैं.
सुरेश प्रभु की नीतियाँ और कार्यशैली उन्हें भारतीय राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक बनाती हैं. उनका योगदान और अनुभव भारतीय शासन और प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रहा है.
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अभिनेता कुमार गौरव
कुमार गौरव, जिनका असली नाम मनोज तुली है, भारतीय फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध अभिनेता हैं. उनका जन्म 11 जुलाई 1960 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. कुमार गौरव को 1980 के दशक में उनकी फिल्मों के लिए जाना जाता है और वे अपने समय के एक प्रमुख युवा अभिनेता थे. वे प्रसिद्ध अभिनेता राजेंद्र कुमार के बेटे हैं. कुमार गौरव का जन्म एक फिल्मी परिवार में हुआ, इसलिए उनका रुझान भी अभिनय की ओर था. उन्होंने अपनी शिक्षा मुंबई में पूरी की और बाद में फिल्म उद्योग में कदम रखा.
कुमार गौरव ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1981 में फिल्म “लव स्टोरी” से की थी, जिसे उनके पिता राजेंद्र कुमार ने प्रोड्यूस किया था. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई और कुमार गौरव रातों-रात स्टार बन गए. उनकी मासूमियत और आकर्षक व्यक्तित्व ने उन्हें युवाओं में बेहद लोकप्रिय बना दिया.
प्रमुख फिल्में: –
लव स्टोरी (1981): – यह उनकी डेब्यू फिल्म थी और इसमें उनके साथ विजेयता पंडित थीं. फिल्म ने अपार सफलता हासिल की.
तेरी कसम (1982): – इस फिल्म में उनके साथ पूनम ढिल्लों थीं और यह भी सफल रही.
नाम (1986): – यह फिल्म उनके कैरियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म थी, जिसमें संजय दत्त भी थे. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की.
कांटे (2002): – इस मल्टीस्टारर फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और यह फिल्म भी हिट रही.
कुमार गौरव का विवाह नम्रता दत्त से हुआ है, जो कि अभिनेता संजय दत्त की बहन हैं. उनके दो बच्चे हैं. उनका पारिवारिक जीवन सामान्यत: शांतिपूर्ण रहा है और उन्होंने फिल्मी दुनिया से कुछ हद तक दूरी बना ली है. कुमार गौरव ने अपने समय में भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया और उनकी फिल्मों और अभिनय को आज भी याद किया जाता है.
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आध्यात्मिक नेता आगा ख़ाँ तृतीय
आगा ख़ाँ तृतीय, जिनका पूरा नाम सुल्तान मोहम्मद शाह आगा ख़ाँ तृतीय था, इस्माइली मुस्लिम समुदाय के 48वें इमाम थे. उनका जन्म 2 नवंबर 1877 को कराची, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में हुआ था और उनका निधन 11 जुलाई 1957 को वेरिएर, स्विट्जरलैंड में हुआ. आगा ख़ाँ तृतीय एक प्रमुख धार्मिक नेता, सुधारक, और राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने इस्माइली समुदाय और व्यापक मुस्लिम समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
आगा ख़ाँ तृतीय का जन्म एक प्रतिष्ठित इस्माइली मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम आगा अली शाह था, जो इस्माइली समुदाय के 47वें इमाम थे. आगा ख़ाँ तृतीय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कराची और बॉम्बे (अब मुंबई) में प्राप्त की और बाद में उन्होंने ब्रिटेन में उच्च शिक्षा प्राप्त की.
आगा ख़ाँ तृतीय को 8 साल की उम्र में अपने पिता की मृत्यु के बाद इस्माइली समुदाय का इमाम नियुक्त किया गया. उन्होंने अपने जीवन के दौरान इस्माइली समुदाय के धार्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उनके नेतृत्व में इस्माइली समुदाय ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की.
आगा ख़ाँ तृतीय ने भारतीय राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई. वे 1906 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. उन्होंने 1930 – 31 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलनों में भारतीय मुस्लिम प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, जहाँ भारतीय स्वशासन के मुद्दे पर चर्चा की गई.
आगा ख़ाँ तृतीय ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की और इस्माइली समुदाय के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर भी जोर दिया और कई अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की. आगा ख़ाँ तृतीय ने इस्माइली समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कई परियोजनाएं शुरू कीं, जिनमें बैंक और सहकारी संस्थाएं शामिल हैं.
आगा ख़ाँ तृतीय को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा “नाइट” की उपाधि से नवाजा गया और वे कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सदस्य भी थे. आगा ख़ाँ तृतीय का निधन 11 जुलाई 1957 को हुआ. उनके निधन के बाद उनके पोते, करीम आगा ख़ाँ चतुर्थ, इस्माइली समुदाय के इमाम बने. आगा ख़ाँ तृतीय की विरासत आज भी उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं और उनके सुधारवादी दृष्टिकोण के माध्यम से जीवित है.
आगा ख़ाँ तृतीय का जीवन और कार्य धार्मिक नेतृत्व, सामाजिक सुधार, और राजनीतिक योगदान का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने न केवल इस्माइली समुदाय बल्कि व्यापक मुस्लिम समाज और भारतीय उपमहाद्वीप पर गहरा प्रभाव डाला.
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सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे
सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे भारतीय सेना के एक प्रसिद्ध अधिकारी थे, जिन्हें उनके अद्वितीय साहस और वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है, जो युद्ध के दौरान असाधारण वीरता और बलिदान के लिए दिया जाता है. रामा राघोबा राणे का जन्म 26 जून 1918 को कर्नाटक के हावेरी जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था.
रामा राघोबा राणे का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की और बाद में सेना में भर्ती हो गए.10वीं बालूच रेजिमेंट में शामिल होकर उन्होंने भारतीय सेना में अपनी सेवा की शुरुआत की.
रामा राघोबा राणे ने 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया. अप्रैल 1948 में, जम्मू-कश्मीर के नउशेरा सेक्टर में एक महत्वपूर्ण अभियान के दौरान, सेकेंड लेफ्टिनेंट राणे ने अपने जवानों के साथ दुश्मन के भारी गोलीबारी के बीच माइनफील्ड को साफ किया और दुश्मन की बंकरों को नष्ट किया. उनकी वीरता और साहसिक नेतृत्व के कारण भारतीय सेना दुश्मन के कब्जे से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को मुक्त कराने में सफल रही.
रामा राघोबा राणे को उनके अद्वितीय साहस और वीरता के लिए 8 अप्रैल 1948 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन्हें भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा दिया गया था. सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे ने अपनी सैन्य सेवा के बाद भी भारतीय सेना में महत्वपूर्ण योगदान दिया. वर्ष 1968 में सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने अपने जीवन का बाकी समय समाज सेवा और पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए समर्पित किया.
रामा राघोबा राणे का निधन 11 जुलाई 1994 को हुआ. उनकी वीरता और बलिदान की कहानियाँ आज भी भारतीय सेना के जवानों को प्रेरणा देती हैं और उनका नाम हमेशा सम्मान और गर्व के साथ लिया जाता है.
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लेखक भीष्म साहनी
भीष्म साहनी भारतीय साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक थे. उनका जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. भीष्म साहनी एक प्रख्यात उपन्यासकार, नाटककार, और कहानीकार थे, जिन्हें उनके उपन्यास “तमस” के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है. उन्होंने भारतीय साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया.
भीष्म साहनी का जन्म एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उनके बड़े भाई, बलराज साहनी, एक प्रसिद्ध अभिनेता थे. भीष्म साहनी ने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया और फिर बाद में पीएच.डी. की डिग्री भी प्राप्त की. उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया और बाद में साहित्य और रंगमंच की दुनिया में प्रवेश किया. भीष्म साहनी ने अपने साहित्यिक कैरियर की शुरुआत कहानियों से की. उनकी कहानियाँ समाज के विभिन्न पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से छूती हैं.
तमस (1974): – यह उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जो 1947 के विभाजन के दौरान होने वाली हिंसा और त्रासदी पर आधारित है. इस उपन्यास के लिए उन्हें 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.
झरोखे (1967): – यह उनका एक और महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो विभाजन के बाद के समाज और उसके संघर्षों पर आधारित है.
बसंती (1978): – यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन और उसकी चुनौतियों पर प्रकाश डालता है.
मध्यमवर्गीय जीवन: – भीष्म साहनी की कहानियाँ और नाटक मध्यमवर्गीय जीवन की समस्याओं और संघर्षों को दर्शाते हैं.
भीष्म साहनी ने कई नाटक भी लिखे, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: – हानूश, माधवी, रंग दे बसंती चोला. भीष्म साहनी ने हिंदी साहित्य को कई अनुवाद भी दिए, जिनमें लियो टॉल्स्टॉय की “वॉर एंड पीस” का हिंदी अनुवाद शामिल है. उन्होंने भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के साथ भी काम किया और रंगमंच की दुनिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
भीष्म साहनी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें शामिल हैं: – साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975), शिरोमणि लेखक पुरस्कार, पद्म भूषण (1998). भीष्म साहनी का निधन 11 जुलाई 2003 को हुआ. उनकी लेखनी और साहित्यिक योगदान आज भी भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण अंश हैं और वे एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद किए जाते हैं.
भीष्म साहनी की रचनाएँ समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने और मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं. उनका साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्य में हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा.