कवि नागार्जुन
नागार्जुन हिंदी और मैथिली भाषा के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. उनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था. उनका जन्म 30 जून 1911 को बिहार के सतलखा गाँव में हुआ था. वे अपनी रचनाओं में समाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाते थे और उनकी लेखनी में समाज के प्रति एक विशेष संवेदनशीलता दिखाई देती है. नागार्जुन को उनकी कविता, उपन्यास और निबंध के लिए जाना जाता है.
प्रमुख रचनाओं : – ‘रतिनाथ की चाची’ (1948 ई.), ‘बलचनमा’ (1952 ई.), ‘नयी पौध’ (1953 ई.), ‘बाबा बटेसरनाथ’ (1954 ई.), ‘दुखमोचन’ (1957 ई.), ‘वरुण के बेटे’ (1957 ई.), उग्रतारा , हीरक जयंती , पत्रहीन नग्न गाछ , युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियां, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, इस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपने, रत्नगर्भ.
नागार्जुन की कविताएँ और गद्य लेखन सरल भाषा में होते थे, लेकिन उनकी गहरी समझ और विचारों की गहराई उन्हें अद्वितीय बनाती है. वे जनवादी साहित्य के प्रबल समर्थक थे और उनके लेखन में आम जनता की समस्याएँ और संघर्ष स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
उनका साहित्यिक योगदान हिंदी और मैथिली साहित्य में अमूल्य है और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने की कोशिश की. वर्ष 1998 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी समाज को प्रेरणा और दिशा देती हैं.
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संगीतकार कल्याणजी
कल्याणजी वीरजी शाह जिन्हें आमतौर पर कल्याणजी के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकारों में से एक थे. उनका जन्म 30 जून 1928 को हुआ था. वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में “कल्याणजी-आनंदजी” नामक संगीतकार जोड़ी का हिस्सा थे, जिसमें उनके भाई आनंदजी वीरजी शाह भी शामिल थे.
इस जोड़ी ने 1950 – 80 के दशक के बीच कई सुपरहिट फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया. कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी ने अपने संगीत के माध्यम से भारतीय सिनेमा में एक नई ध्वनि और ऊर्जा का संचार किया.
प्रसिद्ध गाने: – “मेरे देश की धरती” – उपकार (1967), “जीना यहाँ, मरना यहाँ” – मेरा नाम जोकर (1970), “जिंदगी का सफर” – सफर (1970), “अपलम चपलम” – आजाद (1978) और “पल-पल दिल के पास” – ब्लैकमेल (1973).
कल्याणजी-आनंदजी ने अनेक सुपरहिट फिल्मों में भी संगीत दिया.
प्रमुख फिल्में: – डॉन (1978), सफर (1970), कुर्बानी (1980), धर्मात्मा (1975) और चोर मचाए शोर (1974).
कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी को उनके उत्कृष्ट संगीत के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया गया.
कल्याणजी के संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ और पश्चिमी संगीत का समावेश था, जिससे उनके गाने और भी मधुर और यादगार बनते थे.24 अगस्त 2000 को कल्याणजी का निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा रचे गए संगीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं और भारतीय सिनेमा की धरोहर बने हुए हैं.
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वैज्ञानिक सी. एन. आर. राव
सी. एन. आर. राव एक भारतीय वैज्ञानिक हैं, जो मुख्य रूप से ठोस अवस्था और संरचनात्मक रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं. सी. एन. आर. राव ने विज्ञान और अनुसंधान में अद्वितीय योगदान दिया है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है.
सी. एन. आर. राव का जन्म 30 जून 1934 को बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था. उनका पूरा नाम चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव है. उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम.एस.सी. की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने अमेरिका की पर्ड्यू विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की. अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने भारत लौटकर भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में अपने वैज्ञानिक कैरियर की शुरुआत की.
सी. एन. आर. राव का शोध मुख्य रूप से ठोस अवस्था रसायन और संरचनात्मक रसायन के क्षेत्र में केंद्रित रहा है. उन्होंने सामग्री विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर काम किया है, विशेष रूप से नैनोमटेरियल्स, सुपरकंडक्टिविटी, और ट्रांजिशन मेटल ऑक्साइड्स पर. उनके शोध ने नए प्रकार के सामग्री और यौगिकों की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
सी. एन. आर. राव को वर्ष 1966 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से वर्ष 2014 में, विज्ञान में उत्कृष्ठ योगदान के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’, वर्ष 1985 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानीत किया गया.
सी. एन. आर. राव ने 1600 से अधिक शोध पत्र और 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं. उनकी पुस्तकें और लेखन सामग्री विज्ञान और रसायन विज्ञान के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं.
राव भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष रहे हैं और अन्य प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों में भी नेतृत्व किया है. उनका मानना है कि विज्ञान और शिक्षा समाज के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा विज्ञान को समर्पित किया है.
सी. एन. आर. राव का जीवन और कार्य विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित करता है. उनका समर्पण और योगदान युवा वैज्ञानिकों और छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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फिल्म निर्देशक सईद अख्तर मिर्जा
सईद अख्तर मिर्जा एक भारतीय फिल्म निर्देशक और लेखक हैं, जो अपनी संवेदनशील और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 30 जून 1943 को हुआ था. सईद अख्तर मिर्जा ने भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, खासकर समानांतर सिनेमा के क्षेत्र में.
सईद अख्तर मिर्जा ने फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से फिल्म निर्देशन में डिप्लोमा किया। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा और जल्द ही अपनी अनूठी शैली के लिए पहचाने जाने लगे.
प्रमुख फिल्में: –
अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है (1980): – यह फिल्म एक युवक की कहानी है, जो समाज में हो रही अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा प्रकट करता है.
सलीम लंगड़े पे मत रो (1989): – यह फिल्म एक युवा मुस्लिम व्यक्ति की कहानी है, जो समाज में हो रहे बदलावों और समस्याओं से जूझता है.
मोहन जोशी हाज़िर हो! (1984): – यह फिल्म भारतीय न्याय प्रणाली पर व्यंग्य है, जिसमें एक वृद्ध दंपति न्याय की लड़ाई लड़ते हैं.
नसीम (1995): – यह फिल्म 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय की घटनाओं के संदर्भ में एक मुस्लिम परिवार की कहानी बताती है.
सईद अख्तर मिर्जा ने टेलीविजन के क्षेत्र में भी काम किया है. उनका धारावाहिक “नुक्कड़” (1986-1987) बेहद लोकप्रिय हुआ, जो मुंबई की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों की जिंदगी को दर्शाता है. इसके अलावा, उन्होंने “वागले की दुनिया” (1988-1990) का भी निर्देशन किया, जो एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की कहानी पर आधारित था.
सईद अख्तर मिर्जा की फिल्मों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है. उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी शामिल हैं.
सईद अख्तर मिर्जा ने फिल्म निर्देशन के अलावा कई लेख और किताबें भी लिखी हैं. उनकी किताब “अम्मी: लेटर टू अ डेमोक्रेटिक मदर” एक चर्चित पुस्तक है, जिसमें उन्होंने समाज और राजनीति पर अपने विचार साझा किए हैं.
सईद अख्तर मिर्जा का सिनेमा समाज के विभिन्न पहलुओं और मुद्दों को संवेदनशीलता से प्रस्तुत करता है. उनकी फिल्में न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि दर्शकों को सोचने और समाज की वास्तविकताओं को समझने के लिए प्रेरित भी करती हैं.
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अभिनेत्री अविका गौर
अविका गौर एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 30 जून 1997 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. अविका गौर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत बहुत कम उम्र में की और अपनी अदाकारी से दर्शकों का दिल जीत लिया।
टेलीविजन: –
बालिका वधू (2008-2010): – अविका गौर को सबसे अधिक पहचान इस धारावाहिक से मिली, जिसमें उन्होंने ‘आनंदी’ की भूमिका निभाई. यह शो बाल विवाह जैसे संवेदनशील मुद्दे पर आधारित था और अविका की मासूमियत और अभिनय ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया.
ससुराल सिमर का (2011-2016): – इस धारावाहिक में अविका ने ‘रौली’ की भूमिका निभाई. उनका किरदार दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ और उन्होंने अपनी अदाकारी से इसे यादगार बना दिया.
फिल्में: –
अविका ने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. उनकी कुछ प्रमुख फिल्में : – उय्याला जम्पाला (2013): यह उनकी पहली तेलुगु फिल्म थी, जिसमें उन्होंने उमादेवी का किरदार निभाया. सिनेमा चूपिस्ता मामा (2015): इस फिल्म में भी उनके अभिनय को सराहा गया.
अविका ने अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें भारतीय टेलीविजन अकादमी पुरस्कार और गोल्ड अवार्ड शामिल हैं. अविका ने अपने अभिनय कैरियर के अलावा सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाई है. वे कई चैरिटी और समाजसेवी संगठनों से जुड़ी हैं और समाज के कमजोर वर्गों की सहायता के लिए काम करती हैं. अविका ने अपने छोटे से कैरियर में ही बहुत सारी उपलब्धियाँ हासिल की हैं. वे अपने मेहनत और समर्पण से न केवल एक सफल अभिनेत्री बनी हैं, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं.
अविका गौर की अदाकारी और उनकी समाज के प्रति संवेदनशीलता उन्हें एक विशेष स्थान दिलाती है. उनकी आने वाली परियोजनाओं का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार रहता है, और वे भारतीय टेलीविजन और सिनेमा में अपनी पहचान और मजबूत करने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं.
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दादा भाई नौरोजी
दादाभाई नौरोजी जिन्हें “ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता और विद्वान थे. उनका जन्म 4 सितंबर 1825 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था. नौरोजी भारतीय राजनीति के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीयों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई.
नौरोजी ने एल्फिंस्टन कॉलेज, मुंबई से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में इस कॉलेज में गणित के प्रोफेसर बने. वे पहले भारतीय थे जिन्हें इस कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था. दादाभाई नौरोजी ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित किया.
प्रमुख योगदान: –
ब्रिटिश संसद सदस्य: – नौरोजी 1892 में ब्रिटिश संसद के सदस्य बने और वे पहले भारतीय थे जिन्होंने यह पद हासिल किया. उन्होंने लिबरल पार्टी के टिकट पर फिन्सबरी सेंट्रल सीट से चुनाव जीता. संसद में रहते हुए, उन्होंने भारतीयों के अधिकारों और समस्याओं को उठाया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: – नौरोजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. वे तीन बार (1886, 1893, और 1906) कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से भारतीयों की आवाज को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने का कार्य किया.
द्रेन थ्योरी: – नौरोजी ने “द्रेन थ्योरी” की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसके अनुसार ब्रिटिश शासन के दौरान भारत से आर्थिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन में चला जाता था. उन्होंने अपनी पुस्तक “पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया” में इस सिद्धांत को विस्तार से समझाया और यह बताया कि ब्रिटिश शासन के कारण भारत की आर्थिक स्थिति कैसे खराब हो रही थी.
शिक्षा और सामाजिक सुधार: – नौरोजी ने भारतीय शिक्षा और समाज सुधार के लिए भी काम किया. वे महिलाओं की शिक्षा के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने बाल विवाह और जाति प्रथा के खिलाफ भी आवाज उठाई.
दादाभाई नौरोजी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें “ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” की उपाधि दी गई, जो उनके संघर्ष और समर्पण को दर्शाती है.
दादाभाई नौरोजी का निधन 30 जून 1917 को हुआ था. उनकी विरासत आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और उनके द्वारा किए गए कार्यों को हमेशा याद किया जाता है.
दादाभाई नौरोजी का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनके द्वारा किए गए संघर्ष और समर्पण ने भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी.
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आशा देवी आर्यनायकम
आशा देवी आर्यनायकम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला नेता थीं. उनका जन्म 1901 में मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और महात्मा गांधी के सिद्धांतों और विचारों से प्रेरित होकर अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चलीं.
आशा देवी का जन्म एक संपन्न और शिक्षित परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास में पूरी की और आगे की शिक्षा के लिए इंग्लैंड चली गईं. वहां उन्होंने साहित्य और समाजशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की.
आशा देवी आर्यनायकम महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थीं और उनके नेतृत्व में काम करने लगीं. उन्होंने गांधीजी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और उनके विचारों का प्रचार-प्रसार किया. वर्ष 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया, तो आशा देवी आर्यनायकम ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्हें इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और कई बार जेल भी जाना पड़ा.
स्वतंत्रता संग्राम के अलावा आशा देवी ने शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए काम किया और समाज में सुधार लाने के लिए कई प्रयास किए.
आशा देवी आर्यनायकम का विवाह सी. आर. आर्यनायकम से हुआ, जो स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे. उनका परिवार स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पित था और उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा देश की सेवा में बिताया.
आशा देवी आर्यनायकम का निधन 30 जून 1970 को हुआ था. उन्होंने अपने जीवन को देश की आजादी और समाज सुधार के लिए समर्पित कर दिया. उनकी विरासत और योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
आशा देवी आर्यनायकम का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है. उनकी निष्ठा, साहस और सेवा के प्रति समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.
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चित्रकार के. एच. आरा
के. एच. आरा एक भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने भारतीय कला में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया. उनका पूरा नाम केखुशरू हरमनुज था. उनका जन्म 1914 में सूरत, गुजरात में हुआ था. वे भारतीय कला में प्रगतिशील कलाकारों के एक प्रमुख सदस्य थे और भारतीय आधुनिक कला को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आरा का बचपन संघर्षपूर्ण रहा. उनका परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था, जिसके चलते आरा को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. वे एक गरीब परिवार से थे और बचपन में ही उन्होंने मुंबई आकर कई छोटे-मोटे काम किए. चित्रकला में उनकी रुचि बचपन से ही थी और उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया.
के. एच. आरा ने 1947 में स्थापित प्रगतिशील कलाकार समूह (Progressive Artists’ Group – PAG) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. इस समूह ने भारतीय कला को एक नई दिशा दी और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई. अन्य सदस्यों में एफ. एन. सूजा, एम. एफ. हुसैन, एस. एच. रजा, और तैयब मेहता भी शामिल थे.
आरा की कला शैली में आधुनिकता और परंपरागत भारतीय तत्वों का मिश्रण देखने को मिलता है. उनके चित्रों में रंगों का प्रयोग और उनकी विशिष्ट शैली ने उन्हें अन्य कलाकारों से अलग बनाया. उनके चित्रों में मुख्य रूप से आम जनजीवन, विशेषकर गरीबों और मजदूरों का चित्रण होता था.
आरा की कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उन्होंने कई प्रमुख कला प्रदर्शनियों में भाग लिया। उनकी कृतियों को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. आरा ने अनेक महत्वपूर्ण चित्र बनाए, जिनमें उनके सामाजिक और राजनीतिक विचार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
प्रमुख कृतियाँ: –
“Still Life with Fish”: – यह चित्रण उनके करियर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जिसमें उन्होंने जीवन के साधारण पहलुओं को अपने कला में उतारा.
“Nude Series”: – आरा ने नग्न चित्रण की एक श्रृंखला भी बनाई, जो अपने समय में काफी विवादास्पद रही, लेकिन इसे भारतीय कला में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ.
आरा का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपनी कला के माध्यम से एक स्थायी प्रभाव छोड़ा. उनका निधन 30 जून 1985 को हुआ था. आरा ने भारतीय आधुनिक कला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी कृतियाँ आज भी कला प्रेमियों और इतिहासकारों के बीच अत्यधिक सम्मानित हैं. उनकी विरासत भारतीय कला के विकास और उसकी पहचान को मजबूती प्रदान करती है.