सी. डी. देशमुख
सी. डी. देशमुख एक भारतीय राजनीतिज्ञ और आर्थिक विशेषज्ञ थे, जो भारतीय गणराज्य के पहले वित्त मंत्री रहे थे. उन्होंने भारतीय अर्थशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें भारतीय सिनेट के पहले गवर्नर भी बनाया गया था. देशमुख का जन्म 14 जनवरी 1896 को हुआ था और उन्होंने कृषि और वित्त के क्षेत्र में अपनी पढ़ाई की थी. उन्होंने अपनी प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत भारतीय प्रशासनिक सेवा में की और फिर भारत सरकार में विभिन्न पदों पर कार्य किया.
वर्ष 1943 में, उन्होंने भारतीय सिनेट के पहले गवर्नर के रूप में नामित होकर भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख बने और इस पद पर 1949 तक कार्य किया. उन्होंने भारतीय रुपया की स्वाधीनता के बाद की मुद्रा नीति को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय अर्थशास्त्र को स्थिरता दिलाने में मदद की. वर्ष 1950 में, उन्होंने भारतीय सरकार के पहले वित्त मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला और उन्होंने भारतीय रुपया की पुनर्निर्माण और मुद्रा प्रबंधन के क्षेत्र में सुधार किया. उनका कार्यकाल आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मददगार रहा.
देशमुख के कार्यकाल में, भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता और सुधार की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए और उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में अपने कुशल नेतृत्व के साथ देश के आर्थिक विकास में योगदान किया. सी. डी. देशमुख का निधन 1982 में हुआ, लेकिन उनका योगदान भारतीय अर्थशास्त्र और वित्त क्षेत्र में आज भी स्मरण में है.
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ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह पूर्व भारतीय सेना के अधिकारी हैं जिन्होंने भारतीय सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विभिन्न सैन्य अधिकारों में काम किया. राजेंद्र सिंह का जन्म 14 जून 1899 को हुआ था. उन्होंने भारतीय सेना में भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965) और भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, उन्होंने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में भाग लिया और मुक्ति सेना के साथ साथियों के रूप में युद्ध में शिरकत की. उन्होंने मुक्ति सेना को विभिन्न मुठभेरी मुठभेरी और टैक्टिक्स के साथ दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस युद्ध के परिणामस्वरूप, बांग्लादेश न्यूनतम समय में अपनी आजादी प्राप्त कर लिया और पाकिस्तान से आयातित बहुत सारी भारतीय जवानों को मुक्त किया गया. ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने अपने सेना-सेनानी के रूप में वीरता और सेवानिवृत्ति की भावना के साथ सेना में योगदान किया और उन्हें अपने महान कार्यों के लिए सम्मानित किया गया.
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अभिनेत्री दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे एक फ़िल्म अभिनेत्री थी, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी एकलव्य अभिनय की कीर्ति प्राप्त की. वह 1905 में बोम्बे (अब मुंबई) में पैदा हुई थी और 1991 में उनका निधन हो गया था.
दुर्गा खोटे ने हिंदी, मराठी, गुजराती, बंगाली, तमिल, तेलुगु, और कन्नड़ फ़िल्मों में काम किया और उन्होंने अपने अभिनय के लिए विभिन्न पुरस्कार भी जीतीं थीं. उनकी खासियत थी उनकी व्यक्तिगत शैली और व्यक्तिगत अभिनय में, जिससे वे अपने कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं.
दुर्गा खोटे का कुछ प्रमुख हिट फ़िल्मों में काम शामिल हैं, जैसे कि “संत तुकाराम” (1936), “भक्त प्रहलाद” (1942), “मेरे लाल” (1947), “धर्मपत्नि” (1941), “माधुबाला” (1951), “मंदिर” (1971) और “गोधूलि” (1977). उन्होंने अपने अभिनय के लिए फ़िल्म फेयर अवार्ड और नाटक अकादेमी पुरस्कार जैसे पुरस्कार से भी सम्मनित किया गया था. दुर्गा खोटे को भारतीय सिनेमा के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में माना जाता है और उनके अभिनय का योगदान भारतीय फ़िल्म इतिहास में यादगार है.
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लेखिका महाश्वेता देवी
महाश्वेता देवी एक प्रमुख भारतीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर चर्चा की. वह बांग्ला और इंग्लिश में लिखती थीं और उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते थे.
महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी 1926 को हुआ था और उनका जन्म स्थान धाका, बांग्लादेश (तब मौसमी बंगाल, ब्रिटिश इंडिया) था. उन्होंने कॉलकटा और कॉलकटा विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की और फिर लेखने का कार्य किया. महाश्वेता देवी की रचनाएँ भारतीय समाज, जाति व्यवस्था, आदिवासी मुद्दे, और महिला समस्याओं पर आधारित थीं. उनकी प्रमुख काव्य और कथा संग्रहों में से कुछ नाम हैं – “हाट्या” (1974), “आर्यनी” (1979), “सुहासिनी” (1997), “चोट्टान” (1980), और “इम्प्रिसन्मेंट इवन्स” (1994).
महाश्वेता देवी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से असमान्य व्यक्तिगत और सामाजिक विचारों को आगे बढ़ाया और उन्होंने साहित्य के माध्यम से जाति और जेंडर के मुद्दों पर उच्चार किया. उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते, जैसे कि रामोन मागसेसे पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, और ज्ञानपीठ पुरस्कार. महाश्वेता देवी का उद्धारण और उनका योगदान भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण है और उन्हें एक महान लेखिका और सामाजिक सुधारक के रूप में याद किया जाता है. उनका निधन 28 जुलाई 2016 को कोलकत्ता में हुआ था.
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रामभद्राचार्य
रामभद्राचार्य भारतीय धार्मिक और संत थे, जो भगवान राम और हिंदू धर्म के प्रमुख महत्वपूर्ण काव्य, रामायण, के उपासक और व्याख्यानकार थे. वे रामचरितमानस के एक प्रमुख टीकाकार थे और उनकी व्याख्या “रामचरितमानस-टीका” बहुत प्रसिद्ध है.
रामभद्राचार्य का जन्म 16वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, और उनका आदिवासी परिवार से संबंध था. वे गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य थे और तुलसीदास के रामचरितमानस के टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए. उनकी टीका रामायण के श्लोकों की व्याख्या करती है और भाषा को समझने में मदद करती है. रामभद्राचार्य के द्वारा लिखी गई टीका रामचरितमानस के पाठकों और अध्येताओं के बीच में बहुत प्रसिद्ध हुई और वे भारतीय साहित्य और धर्म में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए याद किए जाते हैं. उनकी टीका आज भी रामचरितमानस के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मानी जाती है.
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शायर कैफ़ी आज़मी
कैफ़ी आज़मी एक शायर, गीतकार, और लेखक थे, जिन्होंने अपनी शायरी और साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से बहुत प्रसिद्धता प्राप्त की. वे उर्दू और हिंदी भाषा में अपनी काव्य और गीतकारी के लिए प्रसिद्ध थे और उनके कविताएँ और गीत आज भी लोकप्रिय हैं. कैफ़ी आज़मी का जन्म 14 जनवरी 1919 को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था और उनका जन्म नाम स्येद अली हुसैन था, लेकिन वे अपने कविताओं में “कैफ़ी आज़मी” के नाम से प्रसिद्ध हुए.
आज़मी ने अपनी शायरी के माध्यम से विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर चर्चा की और उन्होंने गरीबी, आधिकार, और मानवाधिकार के मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद की. उनके कुछ प्रमुख कविताएँ हैं “मुझे अब याद करो” और “चकलाता”. कैफ़ी आज़मी ने भारतीय सिनेमा के लिए भी कई गीत लिखे और उन्होंने अपनी गीतकारी के लिए कई पुरस्कार भी जीते, जैसे कि फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड.
कैफ़ी आज़मी का निधन 10 मई 2002 को हुआ, लेकिन उनकी काव्य और गीतकारी आज भी उन्हें समर्पित होकर याद की जाती है और उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण शायरों में से एक माना जाता है.
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सुरजीत सिंह बरनाला
सुरजीत सिंह बरनाला एक सिख समुदाय के प्रमुख नेता थे. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया और भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं.
सुरजीत सिंह बरनाला का जन्म 21 अक्टूबर 1925 को हुआ था. वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोट कपूर विश्वविद्यालय से प्राप्त करने के बाद सिख विश्वविद्यालय, अमृतसर से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने फिर अपनी पढ़ाई जी.एस. सिपल कॉलेज, जलंधर से की और फिर ब्रिटेन के लंदन में अध्ययन करने गए.
सुरजीत सिंह बरनाला ने भारतीय राजनीति में अपनी प्रारंभिक कदम रखा जब वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद पंजाब प्रान्त के सांसद और मंत्री बने. उन्होंने बाद में पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया और इस पद पर 1985 से 1987 तक रहे. उनके कार्यकाल में, पंजाब में विवादित सिख धर्मिक समुदाय के साथ तनाव था, जिसके परिणामस्वरूप वे भारत सरकार के द्वारा निर्देशित किए गए सैन्य अभियान, एपिसोड कांट्री साइड, के बाद इस पद से इस्तीफा देने पर मजबूर हुए.
सुरजीत सिंह बरनाला ने भारतीय संघी पार्टी के सदस्य के रूप में भी कार्य किया और वे भारतीय संघ के एक प्रमुख नेता भी थे. उन्होंने अपने जीवन में भारतीय राजनीति और सिख समुदाय के लिए अपना समर्पण किया और उनका निधन 14 जनवरी 2017 में हुआ था.