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व्यक्ति विशेष

भाग – 148.

पूर्व ‘भारतीय विदेश सचिव’ रंजन मथाई

रंजन मथाई भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं. उन्होंने इस पद पर अगस्त 2011 से दिसंबर 2013 तक कार्य किया. रंजन मथाई भारतीय विदेश सेवा के अनुभवी अधिकारी थे और उन्होंने अपने कैरियर में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वे भारत के दूत के रूप में इज़राइल, कतर, यूनाइटेड किंगडम, और भूटान में तैनात रहे.

रंजन मथाई के कार्यकाल के दौरान, विदेश नीति में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर कार्य किया गया, जिसमें भारत के विदेशी संबंधों को सुदृढ़ करना और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की उपस्थिति को मजबूत करना शामिल था. उनका योगदान भारतीय विदेश सेवा में काफी सराहा गया.

रंजन मथाई का जन्म 24 मई, 1952 को तिरुवला (केरल) में हुआ था.  मथाई ने ‘पूना विश्‍वविद्यालय’ से राजनीति शास्‍त्र में स्‍नात्‍कोत्‍तर पास किया और 1974 में ‘भारतीय विदेश सेवा’ में सम्मिलित हुए.

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पर्वतारोही बछेंद्री पाल

बछेंद्री पाल एक प्रेरणादायक भारतीय पर्वतारोही हैं जिन्होंने 23 मई 1984 को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करके इतिहास रच दिया था. वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला और दुनिया की पांचवीं महिला बनीं। बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के नाकुरी गांव में हुआ था.

उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा उत्तराखंड से प्राप्त की और बाद में खेलकूद में अपनी रुचि के चलते उन्होंने पर्वतारोहण की ओर रुख किया। उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी से प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनकी इस उपलब्धि ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में महिला पर्वतारोहियों के लिए नई प्रेरणा का सृजन किया.

बछेंद्री पाल को उनकी उपलब्धियों के लिए 1984 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. उनकी यात्रा और उपलब्धियां आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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संगीतकार राजेश रोशन

राजेश रोशन एक प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में कई सफल फिल्मों के लिए यादगार संगीत दिया है. वे प्रसिद्ध निर्देशक और निर्माता रोशनलाल नागरथ के पुत्र हैं और अभिनेता ऋतिक रोशन के चाचा हैं. राजेश रोशन का जन्म 24 मई 1955 को हुआ था.

राजेश रोशन का संगीत कैरियर 1970 के दशक में शुरू हुआ और उन्होंने “कुछ ना कहो”, “चुरा लिया है तुमने”, और “परदेसिया” जैसे कई हिट गानों की रचना की. उन्होंने खास तौर पर 1980 – 90 के दशक में अपने संगीत के माध्यम से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई.

उनके कुछ प्रसिद्ध फिल्म स्कोर में “कहो ना प्यार है”, “कोई मिल गया”, और “क्रिश” शामिल हैं, जिन्होंने उन्हें नई पीढ़ी के दर्शकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया. राजेश रोशन का संगीत हमेशा उनकी मेलोडिक समझ और आधुनिकता के साथ पारंपरिक तत्वों के मिश्रण के लिए पहचाना गया है.

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निर्माता शिरिश कुंदर

शिरिश कुंदर एक भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक, और संपादक हैं. उनका जन्म 24 मई 1973 को मैंगलोर, कर्नाटक में हुआ था. शिरिश कुंदर ने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म संपादन के क्षेत्र में की थी. शिरिश ने अपने कैरियर में कई प्रसिद्ध फिल्मों का संपादन किया, जैसे कि “मैं हूँ ना” और “ओम शांति ओम”.

उन्होंने 2006 में फिल्म “जान-ए-मन” के साथ निर्देशन में कदम रखा. इस फिल्म में सलमान खान, अक्षय कुमार और प्रीति जिंटा मुख्य भूमिकाओं में थे. हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं रही, फिर भी इसने शिरिश को एक निर्देशक के रूप में पहचान दिलाई.

इसके बाद, उन्होंने 2012 में “जोकर” नामक एक विज्ञान-फांतसी फिल्म निर्देशित की, जिसमें अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा ने अभिनय किया. इस फिल्म को भी मिश्रित समीक्षाएँ मिलीं और यह व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रही.

शिरिश कुंदर ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी काम किया है, जैसे कि उनकी शॉर्ट फिल्म “कृति” जो ऑनलाइन बहुत प्रसिद्ध हुई. उनका काम उनकी रचनात्मकता और विविधता को दर्शाता है, जो उन्हें फिल्म जगत में एक पहचान दिलाती है.

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प्रतापचंद्र मज़ूमदार

प्रतापचंद्र मज़ूमदार एक प्रसिद्ध भारतीय राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म 19वीं शताब्दी में हुआ था, और वे बंगाल के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. मज़ूमदार ब्रह्म समाज से भी जुड़े हुए थे, जो एक समाज सुधारक आंदोलन था, जिसने भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक सुधारों की वकालत की.

उनका कार्य धार्मिक सुधारों से परे, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में भी महत्वपूर्ण रहा है. वे एक वकील भी थे और उन्होंने अपने कानूनी ज्ञान का इस्तेमाल राष्ट्रीय आंदोलन को संगठित करने और उसे मजबूत बनाने में किया. मज़ूमदार की विचारधारा और उनके कार्यों ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रेरित किया और भविष्य के नेताओं के लिए एक आदर्श स्थापित किया.

उनकी लेखनी और भाषणों में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक दृढ़ संकल्प व्यक्त किया, जिससे उन्हें उस समय के प्रमुख भारतीय नेताओं के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ. उनकी उपलब्धियां और योगदान आज भी भारतीय इतिहास में सराहे जाते हैं.

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कुश्ती प्रशिक्षक गुरु हनुमान

गुरु हनुमान एक भारतीय कुश्ती प्रशिक्षक थे, जिन्होंने भारतीय पहलवानी को नई पहचान दिलाई. उनका वास्तविक नाम विजय पाल सिंह था, लेकिन वे गुरु हनुमान के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए. उनका जन्म 24 अप्रैल, 1901 को राजस्थान में हुआ था.

गुरु हनुमान ने अपनी कुश्ती अकादमी दिल्ली में स्थापित की, जो जल्द ही देश के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों को तैयार करने के लिए प्रसिद्ध हो गई. उन्होंने अपने जीवनकाल में सैकड़ों पहलवानों को प्रशिक्षित किया, जिनमें से कई ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते

उनकी अकादमी से निकले प्रमुख पहलवानों में सतपाल सिंह, करतार सिंह, और योगेश्वर दत्त जैसे नाम शामिल हैं. गुरु हनुमान की प्रशिक्षण पद्धतियां और उनकी सख्त दिनचर्या ने कई पहलवानों को उनकी असीम क्षमता का एहसास कराया और उन्हें उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया.

उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया, जिसमें द्रोणाचार्य पुरस्कार भी शामिल है, जो भारतीय खेलों में एक प्रशिक्षक के लिए सर्वोच्च सम्मान माना जाता है. गुरु हनुमान का निधन 1999 में हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय कुश्ती में जीवित है.

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गीतकार और शायर मजरूह सुल्तानपुरी

मजरूह सुल्तानपुरी, जिनका वास्तविक नाम असरार उल हसन खान था. वो हिंदी सिनेमा के सबसे प्रमुख गीतकारों और शायरों में से एक थे. उनका जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था. मजरूह सुल्तानपुरी की गीत लेखनी में उनकी गहरी उर्दू शायरी की समझ और सौंदर्यशास्त्र स्पष्ट रूप से झलकता है.

मजरूह ने अपने कैरियर की शुरुआत 1940 के दशक में की और उन्होंने लगभग 50 वर्षों तक भारतीय सिनेमा को अपने गीतों से सजाया. उन्होंने 1950 – 90 के दशक तक अपनी लेखनी से कई हिट फिल्मों के गीत तैयार किए. उनकी लोकप्रिय रचनाओं में “चुरा लिया है तुमने जो दिल को”, “ओ मेरे दिल के चैन”, और “परदा है परदा” जैसे गीत शामिल हैं.

मजरूह सुल्तानपुरी को उनके योगदान के लिए 1994 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान, दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया. उन्होंने अपने गीतों में जीवन की विविधताओं को बखूबी पेश किया, जिससे उन्हें हिंदी सिनेमा में विशेष पहचान मिली. मजरूह सुल्तानपुरी का निधन 24 मई 2000 को हुआ, लेकिन उनके गीत आज भी लोगों के दिलों में गूंजते हैं.

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