संगीतकार और अभिनेता पंकज मलिक
पंकज मलिक एक भारतीय संगीतकार और गायक थे, जिन्होंने 20वीं सदी के मध्य में भारतीय संगीत जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. उनका जन्म 10 मई 1905 को हुआ था और उनका निधन 19 फरवरी 1978 को हुआ था. पंकज मलिक को खासतौर से उनके गायन और संगीत संयोजन के लिए जाना जाता है. उन्होंने कई हिंदी और बंगाली फिल्मों के लिए संगीत दिया और उनकी आवाज़ में गहराई और भावनात्मक गहराई थी, जिसने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई.
पंकज मलिक ने रवीन्द्र संगीत में भी अपनी एक विशेष पहचान बनाई और उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर के कई गानों को अपनी आवाज़ में गाया. उन्होंने नई ध्वनि प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए संगीत में नवाचार किया और अपने समय के अन्य संगीतकारों से अलग खड़े हो गए.
उनके कुछ प्रमुख कार्यों में “महल”, “चांदी की दीवार”, और “धरती माता” जैसी फिल्मों का संगीत शामिल है. पंकज मलिक की संगीत यात्रा और उनकी उपलब्धियां आज भी भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं.
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पुस्तकालयाध्यक्ष बी. एस. के सवन
बी. एस. के सवन भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के एक प्रमुख हस्ती थे और उन्हें विशेष रूप से उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है जब वे भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रथम पुस्तकालयाध्यक्ष बने. उनका कार्यकाल 1948 – 63 तक रहा. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय को एक मजबूत संस्थान बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसे व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए कई पहल की.
बी. एस. के सवन को उनके दूरदर्शी विचारों और नवीन पुस्तकालय प्रबंधन तकनीकों के लिए पहचाना जाता है. उन्होंने भारत में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा और प्रशिक्षण पर भी जोर दिया और पुस्तकालय विज्ञान के विकास में उनकी भूमिका को बहुत सराहा जाता है.
के सवन का कार्य आज भी भारतीय पुस्तकालय समुदाय में प्रेरणास्रोत के रूप में देखा जाता है, और उन्होंने इस क्षेत्र में कई युवा पेशेवरों को प्रेरित किया है.
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रामेश्वर नाथ काव
रामेश्वर नाथ काव एक प्रमुख भारतीय खुफिया अधिकारी थे, जिन्होंने भारतीय खुफिया ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) में अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने 1987 – 90 तक R&AW के प्रमुख के रूप में कार्य किया. उनका कार्यकाल विशेष रूप से भारतीय खुफिया प्रणाली में उनकी स्थापना और नवाचार के लिए जाना जाता है.
रामेश्वर नाथ काव ने खुफिया और सुरक्षा क्षेत्र में अपनी गहरी समझ और कुशल नेतृत्व क्षमता के लिए प्रशंसा प्राप्त की. उनके नेतृत्व में, R&AW ने कई अंतर्राष्ट्रीय मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत की सुरक्षा और विदेश नीति को मजबूती मिली.
काव का निधन 2002 में हो गया, लेकिन उनकी विरासत और योगदान आज भी भारतीय खुफिया और सुरक्षा सेवाओं में सराहा जाता है. उन्होंने भारतीय खुफिया समुदाय में नई पीढ़ी के लिए एक मानक स्थापित किया और उनका योगदान इस क्षेत्र के विकास में मान्यता प्राप्त है.
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सुभाष कश्यप
सुभाष कश्यप भारतीय संविधान और राजनीतिक विज्ञान के प्रमुख विद्वान माने जाते हैं. उन्होंने भारतीय संसद और इसकी कार्यप्रणाली पर गहराई से शोध किया है और इस विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं. कश्यप कई वर्षों तक भारतीय संसद के सचिवालय में काम किया करते थे और उनका अनुभव और ज्ञान उनकी लेखनी में स्पष्ट रूप से झलकता है.
उनकी सबसे चर्चित पुस्तकें में “Our Constitution”, “Our Parliament”, और “Our Political System” शामिल हैं, जो संविधान और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को समझने के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री मानी जाती हैं. उनके लेखन में भारतीय राजनीतिक ढांचे की गहराई और विस्तार से विश्लेषण की गई है, जो पाठकों को संसदीय प्रक्रियाओं और संवैधानिक प्रावधानों की बेहतर समझ प्रदान करता है.
सुभाष कश्यप की विशेषज्ञता और व्याख्यानों का उपयोग अकादमिक और सरकारी संस्थानों में किया जाता है, और उनका योगदान भारतीय राजनीतिक विद्या और संविधानिक अध्ययन के क्षेत्र में बहुत मूल्यवान है.
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26वें थल सेनाध्यक्ष वी. के. सिंह
वी. के. सिंह, जिनका पूरा नाम विजय कुमार सिंह है, एक पूर्व भारतीय सेना अधिकारी और वर्तमान राजनीतिज्ञ हैं. उन्होंने 31 मार्च 2010 से 31 मई 2012 तक भारतीय थल सेना के 26वें सेनाध्यक्ष के रूप में सेवा की. वी. के. सिंह का सेना में कैरियर बेहद विशिष्ट रहा है और उन्होंने कई उच्च पदों पर काम किया है.
सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, वी. के. सिंह ने राजनीति में प्रवेश किया और वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बने. वे 2014 में गाजियाबाद से लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए और उसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में विकास, विदेश राज्य मंत्री के रूप में और फिर रोड ट्रांसपोर्ट और हाईवे राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया.
उनके सेना के कैरियर में उनके जन्मतिथि विवाद भी शामिल था, जो मीडिया में काफी चर्चित रहा. इस विवाद में उन्होंने अपनी जन्मतिथि से संबंधित आधिकारिक रिकॉर्ड्स में भिन्नताओं का मुद्दा उठाया था, जिसे बाद में सरकार द्वारा निपटाया गया.
वी. के. सिंह की छवि एक ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी के रूप में रही है, और उनके द्वारा किये गए विभिन्न सुधारों की सराहना की गई है.
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सैनिक योगेन्द्र सिंह यादव
सैनिक योगेन्द्र सिंह यादव एक भारतीय सेना के जवान हैं, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता और साहस दिखाया था. उन्हें इस बहादुरी के लिए परम वीर चक्र, भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान, प्रदान किया गया. योगेन्द्र सिंह यादव उस समय 18 ग्रेनेडियर्स के सदस्य थे और उन्होंने टाइगर हिल की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
लड़ाई के दौरान, यादव और उनकी टीम को टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना के बंकरों को नष्ट करने का जिम्मा सौंपा गया था. दुश्मन की गोलीबारी के बावजूद, यादव ने आगे बढ़ते हुए तीन बंकरों को नष्ट किया और दुश्मन की अग्रिम पंक्तियों को तोड़ दिया। उनकी इस वीरता ने भारतीय सेना को इस महत्वपूर्ण चोटी पर जीत हासिल करने में मदद की.
योगेन्द्र सिंह यादव की बहादुरी की कहानी ने उन्हें भारतीय समाज में एक नायक का दर्जा दिलाया है, और वे युवा सैनिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं. उनकी गाथा कारगिल युद्ध के अन्य नायकों के साथ सैन्य इतिहास में उल्लेखित की जाती है.
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समाज सुधारक छत्रपति साहू महाराज
छत्रपति साहू महाराज (1874-1922) एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज में सामाजिक और आर्थिक सुधार लाने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए. वे कोल्हापुर रियासत के राजा थे और उन्होंने अपने शासनकाल में दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए अनेक सुधारात्मक कदम उठाए.
साहू महाराज ने सभी वर्गों के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया. उन्होंने दलित और अन्य वंचित वर्गों के लिए छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की. उन्होंने अपने राज्य में सरकारी नौकरियों में दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की नीति शुरू की, जो उस समय के लिए एक अभूतपूर्व कदम था. साहू महाराज ने जातिगत भेदभाव को कम करने और समाज में समानता स्थापित करने के लिए कई सामाजिक सुधार किए. उन्होंने सार्वजनिक स्थानों जैसे मंदिरों और तालाबों में सभी जातियों के प्रवेश को सुनिश्चित किया. उन्होंने कृषि और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक सुधार किए, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिली.
छत्रपति साहू महाराज को उनके समाज सुधार कार्यों के कारण भारतीय समाज में उच्च सम्मान के साथ याद किया जाता है. उनके सुधारों ने आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सामाजिक समानता के आंदोलन को भी बल दिया.
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उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी
कैफ़ी आज़मी, उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर और गीतकार थे, जिनका जन्म 19 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था. उन्होंने अपने लेखन में गहरी सामाजिक चेतना का प्रदर्शन किया और अपनी कविताओं में अक्सर न्याय, गरीबी, और सामाजिक असमानताओं के विषयों को उठाया. कैफ़ी आज़मी प्रगतिशील लेखक संघ के सक्रिय सदस्य भी थे, जो उस समय के साहित्यिक आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाते थे.
उनकी कविताएँ न सिर्फ उर्दू साहित्य में, बल्कि हिंदी सिनेमा में भी उनके गीतों के रूप में व्यापक प्रभाव छोड़ीं. फिल्मों में उनके लिखे कुछ प्रमुख गीतों में “कर चले हम फ़िदा” (हकीकत), “वक्त ने किया क्या हसीन सितम” (कागज़ के फूल), और “ये दुनिया ये महफिल” (हीर रांझा) शामिल हैं. उनकी रचनात्मकता और समर्पण ने उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार दिलाए, जिनमें पद्म श्री भी शामिल है.
कैफ़ी आज़मी का 10 मई 2002 को निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ और उनके द्वारा छोड़ी गई साहित्यिक विरासत आज भी उर्दू और हिंदी साहित्य के प्रेमियों के बीच प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई है.
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अभिनेता मैक मोहन
मैक मोहन, जिनका असली नाम मोहन माखीजानी था, भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध किरदार अभिनेता थे. उनका जन्म 24 अप्रैल 1938 को कराची में हुआ था और उनका निधन 10 मई 2010 को हुआ. मैक मोहन ने अपने फिल्मी कैरियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया और विशेष रूप से उन्हें उनके नेगेटिव और सहायक भूमिकाओं के लिए जाना जाता है.
मैक मोहन को सबसे अधिक प्रसिद्धि 1975 में आई फिल्म “शोले” में उनके “सांभा” के किरदार से मिली, जो एक डाकू का रोल था और इस फिल्म में उनके कुछ संवाद बेहद लोकप्रिय हुए. उनका यह किरदार और उनके द्वारा बोले गए संवाद “पूरे पचास हज़ार” आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं और अक्सर उद्धृत किए जाते हैं.
मैक मोहन ने अन्य फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, जैसे कि “डॉन,” “सत्ते पे सत्ता,” और “करण अर्जुन।” उनकी विशेषज्ञता नेगेटिव रोल्स में थी, जिसमें वे अपने पात्रों को जीवंत कर देते थे. मैक मोहन का कैरियर भारतीय सिनेमा में उनके विविध और यादगार प्रदर्शनों के लिए सराहा जाता है.
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संतूर वादक शिवकुमार शर्मा
पंडित शिवकुमार शर्मा एक विश्वविख्यात भारतीय संगीतकार और संतूर वादक थे, जिन्होंने इस वाद्य यंत्र को शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक विशिष्ट स्थान दिलाया. उनका जन्म 13 जनवरी 1938 को जम्मू में हुआ और उनका निधन 10 मई 2022 को हुआ था.
शिवकुमार शर्मा ने संतूर, जो कि मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य था, को पूरे भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रतिष्ठित किया. उन्होंने इस वाद्य को ऐसे तरीके से मोडिफाई किया कि यह शास्त्रीय रागों को प्रस्तुत करने में सक्षम हो सके. उनकी इस अनूठी शैली ने संतूर को एक नई पहचान और सम्मान दिलाया.
पंडित शिवकुमार शर्मा का संगीत में योगदान सिर्फ उनके वादन तक ही सीमित नहीं था; उन्होंने कई फिल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें उन्होंने पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ मिलकर जोड़ी बनाई और ‘शिव-हरि’ के नाम से प्रसिद्ध हुए. उन्होंने ‘सिलसिला’, ‘लम्हे’ और ‘चांदनी’ जैसी प्रसिद्ध फिल्मों के लिए संगीत रचा.
पंडित शिवकुमार शर्मा को उनके कलात्मक योगदान के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया, जिसमें पद्म श्री और पद्म विभूषण भी शामिल हैं. उनके निधन पर भारतीय संगीत जगत ने एक महान कलाकार खो दिया.