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व्यक्ति विशेष

भाग - 131.

स्वतंत्रता सेनानी एन. एस. हार्डिकर

नीलकंठ शंकर हार्डिकर जिन्हें एन. एस. हार्डिकर के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हार्डिकर का जन्म 1889 में हुआ था और वे मूल रूप से कर्नाटक के धारवाड़ से थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंबई (मुंबई) में पूरी की और बाद में अमेरिका गए जहाँ उन्होंने चिकित्सा की पढ़ाई की.

हार्डिकर ने अमेरिका से लौटने के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की. वे विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी बने. हार्डिकर को उनके समाज सेवी कार्यों के लिए भी जाना जाता है, जिसमें सेवा ग्राम आश्रम की स्थापना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उनका योगदान शामिल है.

हार्डिकर ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी विभिन्न भूमिकाओं के माध्यम से देश के लिए अपने समर्पण और विचारशीलता का परिचय दिया. उनके नेतृत्व में कई सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं में सुधार हुआ और वे एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में उभरे.

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विद्वान् पंडित पांडुरंग वामन काणे

पंडित पांडुरंग वामन काणे एक प्रसिद्ध भारतीय विद्वान, इंदोलॉजिस्ट और संस्कृत विद्वान थे. उनका जन्म 07 मई 1880 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में हुआ था. पंडित काणे को उनके विशेषज्ञता क्षेत्र में विशेष रूप से धर्मशास्त्र और धार्मिक इतिहास में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है. उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य “हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र” है, जिसमें वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के धर्मशास्त्र का व्यापक और विस्तृत विश्लेषण किया गया है. यह कार्य अपनी व्यापकता और गहराई के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है.

पंडित काणे ने अपनी शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय से प्राप्त की और वहीं पर उन्होंने अध्यापन भी किया. उनकी विद्वता को देखते हुए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें से सबसे प्रमुख 1963 में प्राप्त भारत रत्न है. इसके अलावा, उन्हें पद्म भूषण भी प्रदान किया गया था.

पंडित काणे की विद्वानता ने उन्हें साहित्य, दर्शन, इतिहास, और धर्मशास्त्र के क्षेत्र में एक विशेष स्थान प्रदान किया. उनके निधन के बाद भी उनकी विद्वता और योगदान का महत्व संस्कृति और अध्ययन के क्षेत्र में बना हुआ है.

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर जिन्हें दुनिया भर में रबीन्द्रनाथ टैगोर के नाम से जाना जाता है, भारतीय साहित्य और संगीत के एक महान संवाहक थे. उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था. टैगोर एक कवि, उपन्यासकार, संगीतकार, नाटककार और चित्रकार थे जिन्होंने बंगाली साहित्य और संगीत में अपार योगदान दिया. उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो किसी एशियाई को दिया गया पहला नोबेल पुरस्कार था.

टैगोर की रचनाओं में उनकी कविता, उपन्यास, और नाटक सम्मिलित हैं. उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में “गीतांजलि”, “गोरा”, “घरे-बाइरे” और “बालाका” शामिल हैं. उनकी रचनाएं प्रेम, प्रकृति, समाज, और आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं को छूती हैं और उनकी लेखन शैली ने बंगाली साहित्य को नई दिशा और गहराई प्रदान की.

टैगोर ने न केवल साहित्यिक क्षेत्र में, बल्कि शिक्षा और समाज सेवा में भी अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी. उन्होंने शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो एक अनूठा शैक्षणिक संस्थान है जहाँ शिक्षा को खुले वातावरण में दिया जाता है.

उनकी मृत्यु 7 अगस्त 1941 को हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी उनकी रचनाओं, उनके विचारों और शिक्षा के प्रति उनके योगदान के माध्यम से जीवित है.

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साहित्यकार पन्नालाल पटेल

पन्नालाल पटेल, गुजराती साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार और कथाकार थे, जिन्होंने गुजराती भाषा और साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की. उनका जन्म 7 मई 1912 को गुजरात के दांडी गांव में हुआ था. पटेल ने अपने साहित्यिक कैरियर में 200 से अधिक लघु कथाएं, उपन्यास, निबंध और बाल साहित्य की रचनाएँ कीं.

पन्नालाल पटेल के सबसे प्रमुख उपन्यासों में “मानवी नी भवाई” शामिल है, जिसे गुजराती साहित्य में एक क्लासिक माना जाता है. इस उपन्यास में उन्होंने ग्रामीण गुजरात के जीवन, उसके संघर्षों, सामाजिक संरचना और मानवीय संबंधों को बड़ी सजीवता से चित्रित किया है. यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे फिल्म और टेलीविजन श्रृंखला में भी अनुकूलित किया गया.

पटेल की रचनाओं में गुजराती समाज के विभिन्न वर्गों की जीवन शैली, उनकी भाषा और संस्कृति का बहुत ही सूक्ष्म और सटीक वर्णन मिलता है. उन्होंने अपने लेखन में सामाजिक मुद्दों को उठाया और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को अपनी लेखनी से उकेरा.

पन्नालाल पटेल को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसमें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी शामिल है, जो उन्हें 1985 में प्रदान किया गया था. उनका निधन 6 अप्रैल 1989 को हुआ. पन्नालाल पटेल की रचनाएँ गुजराती साहित्य के खजाने में एक अमूल्य निधि के रूप में संजोई गई हैं.

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राजनीतिज्ञ केशव प्रसाद मौर्य

केशव प्रसाद मौर्य एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं. वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं और उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है. मौर्य का जन्म 7 मई 1968 को हुआ था, और वे प्रथम बार 2012 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए.

केशव प्रसाद मौर्य को मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था, जब बीजेपी ने राज्य में एक बड़ी चुनावी जीत हासिल की थी. इस पद पर रहते हुए उन्होंने विकास संबंधी विभिन्न परियोजनाओं की देखरेख की और राज्य के आधारभूत संरचना विकास में सहयोग दिया.

मौर्य को उनके राजनीतिक कैरियर में ग्रामीण विकास और किसानों के मुद्दों पर विशेष ध्यान देने के लिए जाना जाता है. उन्होंने राज्य में कृषि और ग्रामीण विकास की योजनाओं को प्रोत्साहित किया है और इस क्षेत्र में कई पहल की हैं.

केशव प्रसाद मौर्य की राजनीतिक यात्रा में उनकी सामाजिक योगदान और लोक कल्याणकारी नीतियों के प्रति समर्पण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. वे आज भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं और विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक उपक्रमों में लगे हुए हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू

अल्लूरी सीताराम राजू एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनका जन्म 4 जुलाई 1897 को आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले में हुआ था. राजू का संबंध रामपा विद्रोह से है, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1922 – 24 तक चला था. इस विद्रोह को रामपा या मन्यम विद्रोह भी कहा जाता है.

अल्लूरी सीताराम राजू ने आदिवासी समुदायों और स्थानीय ग्रामीणों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित किया. उन्होंने आदिवासियों के बीच में बढ़ती हुई असंतोष और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और उनकी नेतृत्व क्षमता ने विद्रोह को एक नई दिशा दी. इस विद्रोह का मुख्य कारण ब्रिटिश द्वारा लगाए गए वन कानून और भूमि कर थे, जो स्थानीय जनजातियों के जीवन और आजीविका पर बोझ बन रहे थे.

राजू के नेतृत्व में, विद्रोहियों ने कई संघर्षों और गुरिल्ला युद्ध शैली की लड़ाइयों में ब्रिटिश सेनाओं का सामना किया। उनकी वीरता और समर्पण ने उन्हें आदिवासी समुदायों के बीच एक नायक का दर्जा दिलाया। हालांकि, 1924 में उन्हें ब्रिटिश सेनाओं ने पकड़ लिया और बिना किसी मुकदमे के उन्हें फांसी दे दी गई.

अल्लूरी सीताराम राजू की शहादत ने आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई प्रेरणा प्रदान की और उन्हें भारतीय इतिहास में एक वीर योद्धा के रूप में याद किया जाता है.

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गीतकार प्रेम धवन

प्रेम धवन एक भारतीय गीतकार, नृत्य निर्देशक, और संगीतकार थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.  उनका जन्म 13 जून 1923 को अंबाला में हुआ था. धवन ने अपने कैरियर में कई यादगार गीत लिखे साथ ही कुछ फ़िल्मों में संगीत भी दिया, नृत्य निर्देशन भी किया. धवन का जन्म 13 जून 1923 को अम्बाला में हुआ था और उनकी मृत्यु 7 मई, 2001 को मुंबई में हुआ था.

धवन फ़िल्म के किरदार को शिद्दत से महसूस करने के बाद वे लिखते थे. धवन ने लगभग 50 फ़िल्मों में नृत्य निर्देशन किया. धवन के सबसे प्रसिद्ध गीतों में  फ़िल्म ‘नया दौर’ का ‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’ और फ़िल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ के गीत ‘हरियाला सावन ढोल बजाता आया.’

लोकप्रिय गीत: –

बोल पपीहे बोल रे (आरजू), सीने में सुलगते हैं अरमाँ (तराना), चंदा मामा दूर के (वचन), दिन हो या रात हम रहें तेरे साथ (मिस बॉम्बे), छोड़ो कल की बातें (हम हिन्दुस्तानी), अँखियन संग अँखियाँ लागी (बड़ा आदमी),  ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला),  तेरी दुनिया से दूर चले हो के मजबूर (ज़बक),  ऐ वतन, ऐ वतन, हमको तेरी क़सम (शहीद),  मेरा रंग दे बसंती चोला (शहीद) व तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला (पवित्र पापी).

धवन ने नृत्य निर्देशन में भी अपनी विशेष पहचान बनाई. उन्होंने कई फिल्मों में अपने नृत्य निर्देशन के माध्यम से भारतीय संगीत और नृत्य को नया आयाम दिया. प्रेम धवन की ये खूबियाँ उन्हें हिंदी सिनेमा के सार्वकालिक महान कलाकारों में से एक बनाती हैं.

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