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व्यक्ति विशेष

भाग - 122.

हरि सिंह नलवा

महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे हरि सिंह नलवा. उन्हें सिख इतिहास में एक महान योद्धा और शासक के रूप में याद किया जाता है. हरि सिंह नलवा का जन्म 1791 को गुजरांवाला पंजाब में हुआ था और उनका निधन 1837 में हुआ था.

नलवा को उनकी सैन्य कुशलता और साहस के लिए सराहा जाता है. उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया, जिनमें कश्मीर का विजय और पेशावर की विजय शामिल हैं. उनके नेतृत्व में सिख सेना ने कई बार अफगान सेनाओं को हराया और सिख साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया.

हरि सिंह नलवा न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि वे एक कुशल प्रशासक भी थे. उन्होंने पेशावर में शांति और व्यवस्था स्थापित करने के लिए कई उपाय किए थे. उनकी मृत्यु के बाद, उनकी विरासत को सिख समुदाय और इतिहासकारों द्वारा बहुत सम्मान के साथ याद किया जाता है.

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ड्रेस डिज़ाइनर भानु अथैया

भानु अथैया एक प्रतिष्ठित भारतीय कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर थीं, जिन्होंने फिल्म उद्योग में अपने अद्वितीय योगदान के लिए विश्वव्यापी पहचान प्राप्त की थी. उनका जन्म 28 अप्रैल 1929 को हुआ था, और उनका निधन 15 अक्टूबर 2020 को हुआ था. भानु अथैया ने अपने कैरियर में कई हिन्दी फिल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग की और उन्हें उनके काम के लिए बहुत प्रशंसा और सम्मान मिला.

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1983 में फिल्म “गांधी” के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन किया और उसके लिए ऑस्कर पुरस्कार जीता. वह इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं. उन्होंने उस फिल्म के लिए वास्तविकता से मेल खाते हुए और ऐतिहासिक रूप से सटीक कॉस्ट्यूम्स तैयार किए थे, जिसने फिल्म की गहराई और प्रामाणिकता को बढ़ाया था.

भानु अथैया की डिज़ाइन की गई फिल्मों में ‘वक्त’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘रेशम की डोरी’, ‘आम्रपाली’, ‘लगान’ आदि शामिल हैं. उनका काम न केवल भारतीय सिनेमा में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया. उन्होंने अपने काम के माध्यम से भारतीय डिज़ाइन और कला को विश्व मंच पर प्रदर्शित किया और इसके लिए उन्हें बहुत सम्मान और प्रशंसा मिली.

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राजनीतिज्ञ समीर रंजन बर्मन

समीर रंजन बर्मन भारतीय राजनीति के एक वरिष्ठ नेता हैं, जो त्रिपुरा राज्य से संबंधित हैं. वे भारतीय नेशनल कांग्रेस के प्रमुख सदस्य रहे हैं और त्रिपुरा राज्य की राजनीति में एक सक्रिय भूमिका निभाई है. उन्होंने त्रिपुरा विधान सभा के सदस्य के रूप में कई कार्यकालों के लिए सेवा की है और राज्य की विकास और राजनीतिक प्रगति में उल्लेखनीय योगदान दिया है.

समीर रंजन बर्मन का राजनीतिक कैरियर विविधताओं से भरा हुआ है और उन्होंने कई विभिन्न पदों पर काम किया है, जिसमें उन्होंने अपने नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमताओं का भी परिचय दिया है. उनके कार्यकाल में, उन्होंने त्रिपुरा में सामाजिक-आर्थिक विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के उन्नयन पर विशेष ध्यान दिया है.

उनके नेतृत्व में त्रिपुरा के कई सुधारों और विकासात्मक परियोजनाओं को अंजाम दिया गया है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और जनता के जीवन स्तर में उन्नति हुई है. उन्हें एक अनुभवी और प्रभावशाली राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है, जो अपनी राजनीतिक समझ और क्षमताओं के लिए प्रशंसित हैं.

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मंत्री अनुप्रिया पटेल

अनुप्रिया पटेल भारतीय राजनीति की एक युवा और प्रभावशाली नेत्री हैं, जो अपना प्रारंभिक राजनीतिक कैरियर अपना दल (एस) पार्टी के साथ शुरू की. वह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से लोकसभा सदस्य हैं. अनुप्रिया का जन्म 28 अप्रैल 1981 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है.

अनुप्रिया पटेल ने विशेष रूप से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में अपनी भूमिका निभाई है, जहाँ उन्होंने भारतीय जनसंख्या के स्वास्थ्य मानकों को उन्नत करने की दिशा में कई पहल की हैं. उनके कार्यकाल में, उन्होंने महिला और बच्चों के स्वास्थ्य सुधार पर विशेष ध्यान दिया है.

अनुप्रिया की राजनीतिक उपलब्धियों में उनकी प्रशासनिक क्षमता और जन संपर्क के माध्यम से जनता के साथ सीधे जुड़ाव को विशेष रूप से सराहा गया है. वह विशेष रूप से युवा मतदाताओं के बीच प्रभावशाली रही हैं और उनके नेतृत्व में उनकी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कई महत्वपूर्ण चुनावी सफलताएँ प्राप्त की हैं. अनुप्रिया अपने समुदाय और व्यापक समाज के विकास के लिए समर्पित एक नेत्री के रूप में पहचानी जाती हैं.

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सेनानायक बाजीराव प्रथम

बाजीराव प्रथम एक प्रसिद्ध मराठा सेनानायक और पेशवा (प्रधानमंत्री) थे, जिन्होंने 1720 – 40 तक मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया था. उनका जन्म 18 अगस्त 1700 को हुआ था, और उनकी मृत्यु 28 अप्रैल 1740 को हुई थी. बाजीराव को उनकी वीरता, रणनीतिक कौशल और मराठा साम्राज्य के विस्तार में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है.

बाजीराव को मराठा सेनाओं के सबसे महान और सफल पेशवाओं में से एक माना जाता है. उनके नेतृत्व में, मराठा साम्राज्य ने उत्तर भारत में अपनी सीमाएँ काफी बढ़ाईं और दिल्ली और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में मुगल साम्राज्य को कई मौकों पर हराया. उनकी सैन्य रणनीतियों को आज भी भारतीय सैन्य इतिहास में सराहा जाता है.

बाजीराव की सबसे प्रसिद्ध जीतों में से एक पालखेड का युद्ध था, जहाँ उन्होंने मुगल साम्राज्य के वजीर को हराया. उनके रणनीतिक आक्रमण और तेजी से सैन्य अभियानों ने मराठा साम्राज्य को मजबूत बनाया और उनके शासनकाल में मराठा प्रभुत्व स्थापित हुआ.

बाजीराव की मृत्यु उनके शासनकाल के अंत में हुई, जब वे अभी भी काफी युवा थे. उनके बाद उनके पुत्र, बालाजी बाजीराव (नाना साहिब), ने पेशवा का पद संभाला. बाजीराव की विरासत भारतीय इतिहास में एक वीर और कुशल सेनानायक के रूप में बनी हुई है.

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बाजीराव प्रथम की दूसरी पत्नी मस्तानी

मस्तानी बाजीराव प्रथम की दूसरी पत्नी थीं और उनकी कहानी भारतीय इतिहास में एक विशेष और रोमांटिक अध्याय के रूप में जानी जाती है. मस्तानी एक असाधारण रूपवती और प्रतिभाशाली महिला थीं, जिन्हें नृत्य, संगीत और युद्ध कला में महारत हासिल थी. वह छत्रसाल, बुंदेलखंड के राजा की पुत्री और उनकी फारसी पत्नी की बेटी थीं.

मस्तानी और बाजीराव की मुलाकात 1720 के दशक में हुई थी, जब बाजीराव ने छत्रसाल की मदद की थी. इस मुलाकात के बाद, उनके बीच एक गहरा प्रेम संबंध विकसित हुआ और उनका रिश्ता उस समय के सामाजिक और धार्मिक मानदंडों के खिलाफ था, जिसके कारण वे विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने पर मजबूर हुए.

मस्तानी को उनके समय की एक विद्रोही महिला के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने प्रेम और स्वतंत्रता के लिए बहुत सी प्रथाओं और पूर्वाग्रहों को चुनौती दी. उनके और बाजीराव के बीच का प्रेम अब तक कई साहित्यिक कृतियों, फिल्मों और नाटकों का विषय बन चुका है.

बाजीराव की मृत्यु के बाद, मस्तानी का जीवन कठिनाइयों से भर गया था. उनकी मृत्यु बाजीराव की मृत्यु के थोड़े ही समय बाद 1740 में हुई थी. उनके पुत्र कृष्णा राव (जिन्हें बाद में शमशेर बहादुर कहा जाता था) को उनकी मृत्यु के बाद बुंदेलखंड में जागीर मिली थी. मस्तानी की विरासत भारतीय इतिहास में एक जटिल और भावनात्मक अध्याय के रूप में बनी हुई है.

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उद्योगपति टी. वी. सुन्दरम अयंगर

टी. वी. सुंदरम अयंगर एक प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति थे, जिन्होंने टीवीएस ग्रुप की स्थापना की थी. भारत के सबसे बड़े और सबसे पुराने वाहन निर्माण समूहों में से एक है. उनका जन्म 22 मार्च 1877 को हुआ था, और उन्होंने 1955 में अपनी मृत्यु तक इस उद्योग में काफी नाम कमाया.

टी. वी. सुंदरम अयंगर ने अपने कैरियर की शुरुआत मदुरै में एक बस सेवा के साथ की थी, जिसे उन्होंने 1911 में शुरू किया था. यह सेवा तमिलनाडु में लोकप्रिय हो गई और धीरे-धीरे उन्होंने अपने व्यापार का विस्तार किया. उन्होंने बाद में मोटर वाहनों के वितरण और बिक्री में भी कदम रखा, और टीवीएस ग्रुप आज विभिन्न प्रकार के ऑटोमोटिव घटकों, वाहनों और वित्तीय सेवाओं में अपनी पहुंच रखता है.

उनके नेतृत्व में, टीवीएस ग्रुप ने भारतीय ऑटोमोटिव उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने न केवल एक सफल व्यवसाय स्थापित किया, बल्कि उन्होंने अपने व्यवसायिक प्रयासों के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक विकास में भी योगदान दिया. उनकी दूरदर्शी सोच और उद्यमिता की भावना ने टीवीएस ग्रुप को आज के समय में एक प्रमुख निगम बनने में मदद की है.

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साहित्यकार विनायक कृष्ण गोकाक

विनायक कृष्ण गोकाक एक प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार थे, जिन्हें कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया है. उनका जन्म 9 अगस्त 1909 को हुआ था और उनका निधन 28 अप्रैल 1992 को हुआ. गोकाक ने कन्नड़ और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लेखन किया, और उन्होंने कविता, निबंध, आलोचना और उपन्यास जैसी विभिन्न विधाओं में काम किया.

गोकाक को 1990 में कन्नड़ साहित्य के लिए उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ. उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में “भारत सिंहासन” और “गीता गोपाल” शामिल हैं. इन कृतियों में, उन्होंने समकालीन भारतीय समाज की जटिलताओं और आध्यात्मिक खोज का चित्रण किया.

गोकाक ने अंग्रेज़ी में भी कुछ महत्वपूर्ण कार्य किये जैसे कि “The Golden Treasury of Indo-Anglian Poetry” जिसमें उन्होंने भारतीय अंग्रेज़ी कविता का संकलन किया. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के रूप में काम किया.

विनायक कृष्ण गोकाक की विरासत कन्नड़ साहित्य में उनकी गहरी समझ और साहित्यिक सृजनात्मकता के रूप में आज भी जीवित है. उनका काम भारतीय साहित्य के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण संदर्भ के रूप में सम्मानित और पढ़ा जाता है.

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अभिनेता सलीम गौस

सलीम गौस एक भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी विशिष्ट भूमिकाओं के लिए प्रसिद्धि पाई. उन्होंने विशेष रूप से 1980- 90 के दशक में कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएं निभाईं थीं. उनका काम उनके शक्तिशाली अभिनय और स्क्रीन प्रेजेंस के लिए सराहा गया था. गौस का जन्म 10 जनवरी 1952 को चेन्नई में हुआ था और उनकी मृत्यु 28 अप्रैल 2022 को मुंबई में हुआ था.

सलीम गौस ने कुछ प्रमुख फिल्मों में काम किया, जैसे कि “बाज़ार” (1982), “गांधी” (1982), और “नसीब” (1981).  इन फिल्मों में उन्होंने मजबूत और यादगार भूमिकाएँ निभाईं, जिससे वे दर्शकों के बीच पहचाने गए. उनकी अद्वितीय अभिनय शैली ने उन्हें एक विश्वसनीय और प्रभावी चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित किया.

सलीम गौस ने अपने अभिनय कैरियर में विविध भूमिकाओं का चयन किया, जिसमें वे विभिन्न सामाजिक और ऐतिहासिक पात्रों को जीवंत करने में सफल रहे. उनकी अभिनय क्षमता ने उन्हें न केवल प्रशंसा दिलाई बल्कि भारतीय सिनेमा में एक सम्मानित स्थान भी प्रदान किया.

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