भारतीय रिजर्व बैंक के प्रथम उप-गवर्नर जेम्स ब्रेड टेलर
भारतीय रिजर्व बैंक का गठन 1 अप्रैल 1935 को हुआ था, और इसके पहले गवर्नर ओसबॉर्न स्मिथ थे. हालांकि, जेम्स ब्रेड टेलर RBI के पहले उप-गवर्नर नहीं थे. वास्तव में, RBI के प्रथम उप-गवर्नर सर जेम्स टेलर थे, जो एक प्रमुख बैंकर और अर्थशास्त्री थे. उन्होंने RBI की स्थापना के समय से ही इसके प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
जेम्स टेलर का कार्यकाल उस समय के लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि RBI की स्थापना के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में कई प्रकार की चुनौतियाँ थीं, जिसमें मुद्रा स्थिरता और बैंकिंग नियामक के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करना शामिल था. उनके नेतृत्व में RBI ने भारतीय बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की मजबूती के लिए कई नीतिगत पहल की थीं.
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गबर सिंह नेगी
गबर सिंह नेगी एक भारतीय सैनिक थे जिन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विशेष वीरता के लिए ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किए गए थे. गबर सिंह नेगी 2/39वीं गढ़वाल राइफल्स के सदस्य थे और उन्होंने 10 अप्रैल 1915 को फेस्टुबर्ट, फ्रांस में लड़ाई के दौरान असाधारण बहादुरी दिखाई।
उन्होंने दुश्मन की खाइयों पर हमला करते हुए अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया और बड़ी संख्या में दुश्मन सैनिकों को मार गिराया. उनकी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता ने उनकी टुकड़ी को दुश्मन की पोजीशन पर कब्जा करने में मदद की. इस लड़ाई के दौरान वे शहीद हो गए, लेकिन उनके अद्वितीय साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया.
गबर सिंह नेगी की वीरता की याद में उनके गृह नगर छम्बा, उत्तराखंड में उनकी समाधि बनाई गई है और हर वर्ष उनकी जयंती पर एक स्मरण समारोह आयोजित किया जाता है.
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राजनीतिज्ञ सदाशिव त्रिपाठी
सदाशिव त्रिपाठी भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. वे ओडिशा के एक अनुभवी कांग्रेसी नेता थे और ओडिशा के मुख्यमंत्री भी रहे. सदाशिव त्रिपाठी का कार्यकाल मुख्यतः 1966 -67 तक रहा. उनकी सरकार की अवधि भले ही छोटी थी, लेकिन उन्होंने राज्य में कई महत्वपूर्ण नीतियाँ और योजनाएँ लागू कीं.
सदाशिव त्रिपाठी की राजनीतिक यात्रा में वे विभिन्न पदों पर आसीन रहे, जिसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल है. वे एक प्रभावी वक्ता और कुशल प्रशासक माने जाते थे. उनकी नेतृत्व क्षमता और समर्पण ने उन्हें ओडिशा की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया.
उनकी नीतियों और पहलों ने राज्य में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया और वे आज भी ओडिशा में एक सम्मानित नेता के रूप में याद किए जाते हैं.
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निशानेबाज़ कर्णी सिंह
कर्णी सिंह एक प्रमुख भारतीय निशानेबाज थे जिन्होंने खेल शूटिंग में अपने असाधारण कौशल के लिए विश्वव्यापी पहचान प्राप्त की. उनका पूरा नाम महाराजा डॉ. कर्णी सिंह था और वे बीकानेर के राजकुमार भी थे. वे 1960, 1964, 1968, 1972, और 1976 के ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
कर्णी सिंह ने न केवल ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, बल्कि उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया और विश्व कप तथा अन्य प्रमुख शूटिंग चैम्पियनशिप में पदक जीते. उनके नाम पर दिल्ली के पास तुगलकाबाद में एक शूटिंग रेंज भी है, जिसे “डॉ. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज” कहा जाता है.
उनका योगदान न केवल शूटिंग के खेल में ही सीमित रहा, बल्कि उन्होंने खेलों के प्रचार और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी विरासत आज भी भारतीय शूटिंग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है.
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15वें मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी
एन. गोपालस्वामी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक प्रमुख अधिकारी थे जो भारत के 15वें मुख्य चुनाव आयुक्त बने. उन्होंने 30 जून 2006 से 20 अप्रैल 2009 तक इस पद पर कार्य किया। उनका कार्यकाल भारतीय चुनाव प्रणाली में कई महत्वपूर्ण सुधारों और पहलों के लिए जाना जाता है.
गोपालस्वामी के नेतृत्व में, चुनाव आयोग ने चुनावी प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाने के लिए कई पहल की. उन्होंने वोटर आईडी कार्ड्स के वितरण और उनकी गुणवत्ता में सुधार, चुनावी रोल के डिजिटलीकरण, और मतदान प्रक्रिया में तकनीकी उपयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
उनके समय में, भारतीय चुनाव आयोग ने चुनावों की निगरानी और संचालन को और अधिक कुशल बनाने के लिए विभिन्न नवाचारों को अपनाया, जिससे भारतीय लोकतंत्र की मजबूती में योगदान मिला। एन. गोपालस्वामी का कार्यकाल उनकी प्रशासनिक कुशलता और चुनावी प्रक्रियाओं में सुधार के प्रति समर्पण के लिए सराहा जाता है.
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कवि एवं शायर मोहम्मद इक़बाल
मोहम्मद इक़बाल जिन्हें अल्लामा इक़बाल के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध कवि, दार्शनिक, और राजनीतिक विचारक थे. वे 9 नवंबर 1877 को सियालकोट, पंजाब, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में जन्मे थे. इक़बाल उर्दू और फारसी दोनों भाषाओं में लिखते थे, और उनकी रचनाएँ इस्लामी विचारधारा और उम्मत-ए-मुसलमा (मुस्लिम समुदाय) के नवजागरण को समर्पित थीं.
इक़बाल की शायरी में दार्शनिकता और धार्मिकता का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है. उनकी प्रसिद्ध कृतियों में “बांग-ए-दरा”, “बाल-ए-जिब्रील”, “ज़र्ब-ए-कलीम” और “अर्मगान-ए-हिजाज” शामिल हैं. उन्होंने मुस्लिम जगत में आत्मनिर्भरता और खुदी (आत्म-साक्षात्कार) की अवधारणा पर बल दिया. उनकी एक अन्य महत्वपूर्ण रचना “पयाम-ए-मशरिक़” है जो पूर्व और पश्चिम के बीच सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देती है.
इक़बाल को न केवल उनकी शायरी के लिए याद किया जाता है, बल्कि उन्होंने भारतीय मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्रीय पहचान की वकालत की थी, जिसे बाद में पाकिस्तान के निर्माण के रूप में देखा गया. उन्होंने 1930 के अलाहाबाद अधिवेशन में भारतीय मुस्लिमों के लिए एक अलग घर की कल्पना की थी, जो बाद में एक राजनीतिक आंदोलन का रूप ले लिया.
इक़बाल का निधन 21 अप्रैल 1938 को लाहौर में हुआ, लेकिन उनकी विचारधारा और कविताएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं. उन्हें पाकिस्तान में “मुफक्किर-ए-पाकिस्तान” (पाकिस्तान के दार्शनिक) और “शायर-ए-मशरिक़” (पूर्व के शायर) के रूप में भी सम्मानित किया गया है.
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गणितज्ञ शकुन्तला देवी
शकुन्तला देवी, जिन्हें “मानव कंप्यूटर” के नाम से भी जाना जाता है, एक असाधारण भारतीय गणितज्ञ थीं जो अपनी जटिल गणितीय प्रतिभा के लिए विश्वव्यापी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी थीं. उनका जन्म 4 नवंबर 1929 को बेंगलुरु, भारत में हुआ था. शकुन्तला देवी ने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, फिर भी उन्होंने गणित के क्षेत्र में अपनी असाधारण क्षमता के बल पर विश्व स्तर पर ख्याति अर्जित की.
उनकी योग्यताओं में बहुत तेजी से और सटीकता के साथ जटिल गणनाएं करना शामिल था. उन्होंने 1980 में दो 13-अंकीय संख्याओं का गुणन करके गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया। इस प्रदर्शन ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई और उन्हें गणित के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया।
शकुन्तला देवी ने गणित पर कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘फन विथ नंबर्स’, ‘एस्ट्रोलॉजी फॉर यू’, ‘पजल्स टू पजल यू’, और ‘मोर पजल्स टू पजल यू’ शामिल हैं. इन पुस्तकों में उन्होंने गणित को मजेदार और सुलभ बनाने की कोशिश की, जिससे ये सभी उम्र के पाठकों के बीच लोकप्रिय हुईं।
उन्होंने अपने जीवन में गणित के साथ-साथ अन्य विषयों में भी योगदान दिया, जिसमें ज्योतिष और कुकिंग भी शामिल हैं. शकुन्तला देवी का 21 अप्रैल 2013 को निधन हो गया, लेकिन उनकी उपलब्धियाँ और योगदान आज भी उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में याद करते हैं.
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राजनीतिज्ञ जानकी बल्लभ पटनायक
जानकी बल्लभ पटनायक एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और ओडिशा के वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने तीन बार ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। उनका जन्म 3 जनवरी 1927 को हुआ था और उनका निधन 21 अप्रैल 2015 को हुआ. पटनायक ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ की और उन्होंने 1961 – 67 तक और फिर 1971 -72 तक, और बाद में 1980 – 89 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
पटनायक को उनकी प्रगतिशील नीतियों और विकास के लिए ग्रामीण इलाकों में ध्यान केंद्रित करने के लिए सराहना मिली। उन्होंने ओडिशा के आधुनिकीकरण और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जानकी बल्लभ पटनायक को साहित्य और संस्कृति में भी गहरी रुचि थी, और उन्होंने ओडिया भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में अपना समर्थन दिया।
उनके कार्यकाल में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई सुधारात्मक कदम उठाए गए, जिसने राज्य के समग्र विकास में योगदान दिया। जानकी बल्लभ पटनायक की विरासत ओडिशा में उनके नेतृत्व और उनके द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों में देखी जा सकती है.
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कवि शंख घोष
शंख घोष एक प्रमुख भारतीय कवि और आलोचक थे जिन्होंने मुख्यतः बंगाली भाषा में अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं. उनका जन्म 5 फरवरी 1932 को हुआ था और उनका निधन 21 अप्रैल 2021 को हुआ. शंख घोष की कविताएं मुख्य रूप से उनके गहरे चिंतनशील स्वभाव और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर उनकी गहरी पैठ के लिए जानी जाती हैं.
घोष ने बंगाली कविता में नई दिशाओं का अन्वेषण किया और अपनी कविताओं में आधुनिकता और परंपरा के बीच संवाद स्थापित किया। उन्होंने भाषा और रूप के साथ प्रयोग करते हुए कविता के नए आयामों को छुआ. उनके कुछ प्रमुख काव्य संग्रह में “अधिकांश बचपन”, “मुर्ख बर्धमान” और “बाबरेर प्रार्थना” शामिल हैं.
शंख घोष की कविताओं में जीवन के सूक्ष्म विवरणों के प्रति उनकी संवेदनशीलता और साहित्यिक सौंदर्य के प्रति उनकी पारखी नज़र स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है. उनका काव्य व्यक्तिगत अनुभवों और सार्वजनिक विषयों के बीच की खाई को पाटने का काम करता है.
उन्हें उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार शामिल हैं. शंख घोष का कार्य बंगाली साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है, और उनकी कविताएँ आज भी व्यापक रूप से पढ़ी और सराही जाती हैं.