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व्यक्ति विशेष

भाग - 109.

गुरु नानक

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक थे. वो  15वीं और 16वीं शताब्दी के एक महान धार्मिक नेता और संत थे. उनका जन्म 1469 में पंजाब के राय भोई की तलवंडी में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है और ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. गुरु नानक ने समाज में व्याप्त धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और एकता, समानता और प्रेम का संदेश फैलाया।

गुरु नानक ने अपने जीवन में चार महत्वपूर्ण यात्राएं कीं, जिन्हें ‘उदासियां’ कहा जाता है. इन यात्राओं के दौरान वे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में गए और अपने आध्यात्मिक संदेशों को फैलाया।

गुरु नानक की शिक्षाएं मानवता, करुणा, समझ, समानता और भक्ति पर जोर देती हैं. उन्होंने भेदभाव, अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ बोला और सभी मनुष्यों के बीच एकता की बात की. उनकी शिक्षाएं आज भी सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं और उन्हें सिख समुदाय द्वारा गहरी श्रद्धा के साथ पालन किया जाता है.

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सिक्खों के पाँचवें गुरु गुरु अर्जन देव

गुरु अर्जन देव जी सिख धर्म के पांचवें गुरु थे और उनका कालखंड 1581 -1606 तक था. उनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को हुआ था और वे गुरु राम दास के सबसे छोटे बेटे थे. गुरु अर्जन देव जी का योगदान सिख धर्म के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण है.

उन्होंने आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यों में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए, जिनमें से एक हरमंदिर साहिब (जिसे आमतौर पर गोल्डन टेम्पल के रूप में जाना जाता है) का निर्माण है, जो अमृतसर में सिखों का सबसे पवित्र गुरुद्वारा है. उन्होंने इसे एक खुली और समावेशी जगह के रूप में डिज़ाइन किया जहां सभी धर्मों के लोग आ सकें।

गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म के मूल ग्रंथ, आदि ग्रंथ का संकलन भी किया, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से जाना जाने लगा. इसमें उन्होंने पिछले गुरुओं की बाणी के साथ-साथ कई हिन्दू और मुस्लिम संतों की वाणी को भी शामिल किया।

उनका शहीदी दिवस भी बेहद महत्वपूर्ण है. गुरु अर्जन देव जी को 1606 में मुगल सम्राट जहांगीर के आदेश पर यातनाएं दी गईं और अंततः उनकी मृत्यु हो गई. उनकी इस शहादत को सिख धर्म में बहुत बड़ी भावनात्मक और आध्यात्मिक घटना माना जाता है. उनकी मृत्यु ने सिख समुदाय में एक नई जागृति और एकजुटता को जन्म दिया.

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कवि हसरत जयपुरी

कवि हसरत जयपुरी जिनका वास्तविक नाम इकबाल हुसैन था. वो  भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार और शायर थे. उनका जन्म 15 अप्रैल 1914 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था. हसरत जयपुरी ने हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी गीतकारी से एक विशेष पहचान बनाई और उन्होंने कई सदाबहार गीत लिखे जो आज भी लोकप्रिय हैं.

हसरत जयपुरी का सिनेमाई कैरियर 1940 के दशक के अंत में शुरू हुआ जब उन्होंने राज कपूर के साथ मिलकर काम करना शुरू किया. उन्होंने राज कपूर की फिल्मों के लिए कई प्रसिद्ध गीत लिखे, जिसमें “बरसात में हमसे मिले तुम” और “मेरा जूता है जापानी” जैसे गीत शामिल हैं. उनके गीतों में गहरी भावनाएं और शायराना अंदाज देखने को मिलता है.

हसरत जयपुरी की शायरी में भी उनकी गहरी भावनात्मक गहराई और रूमानियत झलकती है. उन्होंने न केवल फिल्मों के लिए बल्कि निजी मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। हसरत जयपुरी की रचनाओं में आम आदमी की भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता थी, जिसने उन्हें व्यापक जनमानस में लोकप्रिय बनाया.

हसरत जयपुरी का निधन 17 सितंबर 1999 को हुआ, लेकिन उनके गीत और शायरी आज भी हिंदी संगीत और शायरी के प्रेमियों के बीच में बेहद प्रिय हैं.

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कवि सुरेश भट

कवि सुरेश भट्ट एक मराठी कवि थे, जिन्हें उनकी ओजस्वी और प्रेरणादायक कविताओं के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 15 अप्रैल 1932 को हुआ था, और उन्होंने मराठी कविता में अपनी विशिष्ट शैली और भावनात्मक गहराई के साथ एक खास पहचान बनाई. सुरेश भट्ट की कविताएं अक्सर राष्ट्रीयता, सामाजिक न्याय, और मानवीय मूल्यों की वकालत करती हैं.

उनकी कविताओं में सामाजिक चेतना का प्रबल प्रवाह है, और उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त विसंगतियों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई. भट्ट  का साहित्यिक काम उनकी गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है और उन्होंने मराठी साहित्य में काव्यात्मक अभिव्यक्ति के नए आयाम स्थापित किए.

सुरेश भट्ट की कविताओं में उनकी भाषा की मिठास और शब्दों की चुनावी कुशलता स्पष्ट रूप से नजर आती है. उनका साहित्य समृद्ध और विविधतापूर्ण है, जिसमें वे सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्यों पर प्रखर टिप्पणियां करते हैं. उनकी कविता में नागरिक जागरूकता और साहसिक आलोचना का मिश्रण देखने को मिलता है, जो उन्हें उनके समकालीनों में विशेष बनाता है.

सुरेश भट्ट की कविताओं का प्रभाव मराठी साहित्यिक जगत में गहराई से महसूस किया जाता है, और उन्हें उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए व्यापक रूप से सराहा गया है. उनकी कविताएं आज भी मराठी कविता के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती हैं और उनकी मृत्यु के बाद भी उनका काम साहित्यिक और सामाजिक चर्चाओं में प्रासंगिक बना हुआ है.

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क्रिकेटर मनोज प्रभाकर

मनोज प्रभाकर एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं जिन्होंने 1980 – 90 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए खेला. उनका जन्म 15 अप्रैल 1963 को दिल्ली में हुआ था. प्रभाकर एक ऑलराउंडर खिलाड़ी थे, जो दाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज और दाएं हाथ के बल्लेबाज थे. उन्होंने भारत के लिए 39 टेस्ट मैच और 130 वनडे इंटरनेशनल मैच खेले.

मनोज प्रभाकर की गेंदबाजी में उनकी क्षमता बल्लेबाज को चकमा देने की थी, और उनकी स्विंग गेंदबाजी के लिए विशेष रूप से प्रशंसा की जाती थी. उन्होंने अपने टेस्ट कैरियर में 96 विकेट और वनडे में 157 विकेट हासिल किए. बल्लेबाजी के रूप में भी उन्होंने टेस्ट मैचों में 1600 से अधिक रन बनाए और वनडे में लगभग 1858 रन बनाए.

प्रभाकर को विशेष रूप से 1992 क्रिकेट विश्व कप में उनके प्रदर्शन के लिए याद किया जाता है, जहां उन्होंने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मैच में नाबाद 120 रन बनाए. यह पारी उस समय विश्व कप इतिहास में भारतीय द्वारा बनाया गया सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर थी.

क्रिकेट के मैदान के बाहर, प्रभाकर का कैरियर कुछ विवादों से भी घिरा रहा, विशेष रूप से 1990 के दशक के अंत में मैच फिक्सिंग के आरोपों के संबंध में. हालांकि, उनके क्रिकेट योगदान को उनकी गेंदबाजी की क्षमता और कुछ महत्वपूर्ण बल्लेबाजी प्रदर्शनों के लिए याद किया जाता है. उन्होंने क्रिकेट के बाद के जीवन में कोचिंग और कमेंट्री में भी अपना हाथ आजमाया.

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अभिनेत्री मंदिरा बेदी

मंदिरा बेदी एक भारतीय अभिनेत्री, फैशन डिजाइनर, और टेलीविजन प्रेजेंटर हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में अपने कैरियर की शुरुआत की. उनका जन्म 15 अप्रैल 1972 को कोलकाता, भारत में हुआ था. मंदिरा बेदी को विशेष रूप से 1994 में शुरू हुए टेलीविजन शो “शांति” में उनके किरदार के लिए व्यापक पहचान मिली, जो भारतीय टेलीविजन का पहला दैनिक सोप ओपेरा था. इस शो ने उन्हें एक प्रमुख टेलीविजन आइकॉन के रूप में स्थापित किया.

मंदिरा ने फिल्मों में भी काम किया है, जिसमें उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” (1995) शामिल है, जहां उन्होंने एक सहायक भूमिका निभाई थी. इसके अलावा, उन्होंने कई अन्य हिंदी और दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम किया है.

टेलीविजन पर उनकी उपस्थिति सिर्फ अभिनय तक सीमित नहीं रही. मंदिरा बेदी ने विभिन्न खेल प्रसारणों में भी होस्टिंग की है, विशेष रूप से क्रिकेट विश्व कप के दौरान, जहाँ उनकी होस्टिंग स्टाइल और फैशन सेंस ने उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलाई.

फैशन डिजाइनर के रूप में भी मंदिरा का योगदान काफी उल्लेखनीय है. उन्होंने अपनी कपड़ों की लाइन लॉन्च की है और वे अपने अनूठे और स्टाइलिश डिज़ाइन के लिए जानी जाती हैं. मंदिरा अपनी व्यक्तिगत और पेशेवर जिंदगी में बहुत सक्रिय रहती हैं और सामाजिक मीडिया पर भी उनकी मजबूत उपस्थिति है. उनका जीवन और करियर युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है.

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दरोगा प्रसाद राय

दरोगा प्रसाद राय बिहार के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और जनता दल के नेता थे. उनका जन्म 2 सितंबर 1922 को हुआ था और उनकी मृत्यु 15 अप्रॅल 1981 को हुई थी.  उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया।

दरोगा प्रसाद राय का कार्यकाल विशेष रूप से छोटा था, मात्र फरवरी 1970 से जून 1971 तक, लेकिन इस दौरान उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण पहलें कीं. वे ग्रामीण विकास और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय रहे. उनके शासन काल में कई सुधारात्मक नीतियां और योजनाएँ लागू की गईं, जिन्होंने बिहार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार किया.

उनकी मृत्यु के बाद, उनकी स्मृति में उनके योगदान और प्रयासों को याद किया जाता रहा है. दरोगा प्रसाद राय की विरासत उनके द्वारा किए गए सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में निहित है, जिन्होंने बिहार के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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वैज्ञानिक शंभुनाथ डे

 डॉ. शंभुनाथ डे एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने चोलेरा के विषाणु (बैक्टीरियल एंडोटॉक्सिन) की खोज की, जिसे “कॉलरा टॉक्सिन” के नाम से जाना जाता है. उनकी यह खोज कॉलरा के उपचार और रोकथाम में एक महत्वपूर्ण प्रगति थी और इसने बीमारी के नियंत्रण में बड़ी सहायता की.

डे का जन्म 1917 में हुआ था, और उन्होंने कोलकाता मेडिकल कॉलेज से अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की. बाद में वे कलकत्ता स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में शामिल हो गए, जहां उन्होंने अपने अध्ययन और अनुसंधान के दौरान कॉलरा पर काम किया।

डॉ. डे ने 1959 में यह प्रदर्शित किया कि कॉलरा बैक्टीरिया Vibrio cholerae, एक विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करता है जो आंतों में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स के अत्यधिक स्राव का कारण बनता है, जिससे अत्यधिक दस्त और निर्जलीकरण होता है. इस खोज से कॉलरा के उपचार के लिए ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी (ORT) का विकास संभव हुआ, जिसने लाखों जीवनों को बचाने में मदद की.

उनके काम ने वैश्विक स्वास्थ्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया. डॉ. शंभुनाथ डे की मृत्यु 1985 में हुई, लेकिन उनकी वैज्ञानिक विरासत आज भी जीवित है और उनकी खोजें आज भी चिकित्सा विज्ञान में प्रयोग की जाती हैं.

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