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व्यक्ति विशेष

भाग - 105.

क्रान्तिकारी ज्योतिबा फुले

ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योतिराव गोविन्दराव फुले है. वो 19वीं सदी के एक प्रमुख भारतीय समाज सुधारक, विचारक, और शिक्षाविद् थे. उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र में हुआ था और उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक न्याय और समानता के लिए समर्पित कर दिया था. ज्योतिबा फुले विशेष रूप से निचली जातियों और महिलाओं के उत्थान के लिए जाने जाते हैं.

फुले ने शिक्षा को समाज में परिवर्तन लाने का एक मुख्य साधन माना। उन्होंने 1848 में पुणे में भारत की पहली लड़कियों के लिए स्कूल की स्थापना की. उनकी पत्नी, सावित्री बाई फुले भी एक प्रमुख समाज सुधारक थीं और उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिबा का बहुत समर्थन किया। उन्होंने दलितों और अछूतों के लिए भी स्कूल खोले।

ज्योतिबा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना भी की थी, जिसका उद्देश्य जातिवाद और सामाजिक असमानताओं को खत्म करना था. वे जाति प्रथा, अंधविश्वास, और धार्मिक कट्टरता के विरोधी थे. फुले ने अपने जीवनकाल में कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें ‘गुलामगिरी’ उनके सबसे प्रसिद्ध कार्यों में से एक है.

ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर 1890 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय समाज में समानता और न्याय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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कस्तूरबा गाँधी

कस्तूरबा गांधी जिन्हें प्यार से ‘बा’ के नाम से भी जाना जाता है. महात्मा गांधी की पत्नी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख महिला नेता थीं. उनका जन्म 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था. कस्तूरबा की शादी मोहनदास करमचंद गांधी से 1883 में हुई थी, जब वे केवल 13 वर्ष की थीं और मोहनदास भी उसी उम्र के थे.

कस्तूरबा ने गांधीजी के साथ मिलकर सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलते हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने स्वच्छता, शिक्षा और महिला उत्थान के क्षेत्र में भी काम किया। कस्तूरबा ने गांधीजी के सभी आंदोलनों में उनका साथ दिया और खुद भी कई बार जेल गईं.

कस्तूरबा की शांति, धैर्य और साहस ने उन्हें न केवल गांधीजी की संगिनी के रूप में, बल्कि एक स्वतंत्र नेता के रूप में भी पहचान दिलाई। वे अपने पति के साथ सत्य और अहिंसा के पथ पर चलीं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया।

कस्तूरबा का निधन 22 फरवरी 1944 को आगा खान पैलेस, पुणे में हुआ, जहाँ वे नजरबंद थीं. उनकी मृत्यु ने गांधीजी को गहरा दुःख पहुँचा, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति को सम्मानित करते हुए अपने कार्य को जारी रखा. कस्तूरबा की विरासत उनके समर्पण, दृढ़ता और साहस के रूप में आज भी जीवित है.

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चित्रकार जामिनी रॉय

जामिनी रॉय एक भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने आधुनिक भारतीय कला में एक अनूठी पहचान स्थापित की. उनका जन्म 11 अप्रैल, 1887 को बेलियातोर, बंकुरा जिले, पश्चिम बंगाल में हुआ था. रॉय ने कोलकाता के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट में अध्ययन किया और शुरुआत में पश्चिमी शैली में चित्रकारी की, लेकिन बाद में उन्होंने भारतीय लोक कला, विशेषकर बंगाल की ‘कालीघाट पट’ शैली में दिलचस्पी विकसित की.

जामिनी रॉय ने भारतीय परंपरागत कला शैलियों का अध्ययन किया और उन्हें अपनी चित्रकारी में अपनाया. उनके चित्रों में आमतौर पर ग्रामीण भारत के जीवन, पौराणिक कथाएं, और धार्मिक थीम्स का चित्रण किया जाता था. उनका काम सरल रेखाओं, बोल्ड रंगों और ग्राफिक विशेषताओं से परिपूर्ण होता था, जो उन्हें उनके समकालीनों से अलग करता था.

रॉय की कला में एक विशिष्ट शैली और संवेदना होती थी, जिसने उन्हें भारतीय कला जगत में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया. उन्होंने पारंपरिक भारतीय कला माध्यमों जैसे कि मिट्टी और प्राकृतिक डाई का उपयोग किया, जो उनकी कला को एक अनूठी पहचान और गहराई प्रदान करती थी.

उनके योगदान के लिए, जामिनी रॉय को 1954 में भारतीय सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उनकी कला आज भी विश्वभर की कला प्रदर्शनियों और संग्रहालयों में प्रशंसित और प्रदर्शित की जाती है, जो उनकी अमर कृतियों की गवाही देती है.

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गायक और अभिनेता कुन्दन लाल सहगल

कुन्दन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के एक गायक और अभिनेता थे. उनका जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में हुआ था और उनका निधन 18 जनवरी 1947 को हुआ. सहगल भारतीय संगीत और सिनेमा के स्वर्ण युग के एक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व थे.

के. एल. सहगल ने 1930 – 40 के दशक में अपने कैरियर की ऊंचाईयों पर रहते हुए, हिंदी सिनेमा में अपनी गायकी और अभिनय से एक अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और उनके गीतों ने उन्हें उस समय के सबसे प्रशंसित और लोकप्रिय गायकों में से एक बना दिया. सहगल की आवाज में एक विशेष प्रकार की गहराई और भावुकता थी, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी.

उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध गाने “जब दिल ही टूट गया”, “दो नैना मतवारे तिहारे”, और “घम दिए मुस्तक़िल” जैसे गीत हैं, जिन्होंने उन्हें अमरता प्रदान की. सहगल की गायकी की शैली ने आने वाली कई पीढ़ियों के गायकों को प्रेरित किया.

उनका जीवन और  कैरियर, जो उस समय के संगीत और सिनेमा की दुनिया में उनके योगदान को दर्शाता है, आज भी कई लोगों द्वारा याद किया जाता है. के. एल. सहगल ने भारतीय संगीत को एक नई पहचान दी, और उनका काम आज भी उन्हें संगीत और सिनेमा के एक अद्वितीय कलाकार के रूप में सम्मानित करता है.

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अभिनेता नवीन निश्चल

नवीन निश्चल एक भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने 1970 – 80 के दशक में भारतीय सिनेमा में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई. उनका जन्म 18 मार्च 1946 को लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में हुआ था, और उनका निधन 19 मार्च 2011 को हुआ.

नवीन निश्चल ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 1970 में फिल्म “सावन भादो” से की जो एक बड़ी हिट साबित हुई. इस फिल्म के बाद, उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया जैसे कि “धर्मात्मा”, “विक्टोरिया नं. 203”,और “परवाना”. उनके अभिनय की रेंज विस्तृत थी, और उन्होंने नायक, सह-नायक, और चरित्र भूमिकाओं में समान दक्षता दिखाई.

नवीन निश्चल की शैली और अभिनय क्षमता ने उन्हें अपने समय के सबसे सम्मानित और लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक बना दिया. उनकी फिल्मों में उनके शांत और सजीव अभिनय ने दर्शकों का दिल जीता. उन्होंने न केवल हिंदी सिनेमा में, बल्कि टेलीविजन शोज में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जिससे उनकी लोकप्रियता में और वृद्धि हुई.

नवीन निश्चल ने अपने जीवनकाल में सिनेमा को अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं से समृद्ध किया और उनकी मृत्यु के बाद भी उनके काम को सराहा जाता रहा है.

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अभिनेत्री रोहिणी हट्टंगड़ी

रोहिणी हट्टंगड़ी एक अनुभवी भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने थिएटर, फिल्म और टेलीविजन में अपनी विशिष्ट भूमिकाओं के लिए प्रशंसा प्राप्त की है. उनका जन्म 11 अप्रैल 1951 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था. रोहिणी हट्टंगड़ी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, नई दिल्ली से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट में भी अध्ययन किया.

रोहिणी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी भूमिका के लिए व्यापक रूप से पहचाना जाता है जो उन्होंने ऑस्कर विजेता फिल्म “गांधी” (1982) में कांति बा की भूमिका निभाई थी. उनकी इस भूमिका के लिए उन्हें काफी सराहना मिली और वह एक विश्व स्तरीय कलाकार के रूप में स्थापित हुईं.

इसके अलावा, रोहिणी हट्टंगड़ी ने हिंदी और मराठी सिनेमा में भी कई यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं. उन्होंने विविध प्रकार की भूमिकाएँ निभाई हैं, जिनमें से कुछ में वे एक कठोर मातृ शक्ति के रूप में दिखाई दीं, तो कुछ में एक दयालु और समझदार चरित्र के रूप में. उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में “अर्थ”, “सारांश”, “मुंबई मेरी जान”, और “जोधा अकबर” शामिल हैं.

थिएटर में भी रोहिणी हट्टंगड़ी का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा है. उन्होंने विभिन्न मराठी और हिंदी नाटकों में काम किया है और अपने शक्तिशाली प्रदर्शनों के लिए जानी जाती हैं. अपने लंबे और समृद्ध कैरियर के दौरान रोहिणी हट्टंगड़ी ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिसमें उनकी असाधारण अभिनय क्षमता और कला के प्रति समर्पण को मान्यता दी गई है.

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मॉडल पूनम पांडे

पूनम पांडे एक मॉडल और अभिनेत्री हैं जो अपने बोल्ड अवतार और सोशल मीडिया पर अपनी आकर्षक तस्वीरों के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने कई मॉडलिंग कैंपेन और विज्ञापनों में काम किया है और बॉलीवुड फिल्मों में भी दिखाई दी हैं. पूनम पांडे ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी और उन्होंने कई मॉडलिंग प्रतियोगिताओं में भाग लिया था.

सोशल मीडिया पर उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण, पूनम पांडे ने फिल्मों में कदम रखा। उन्होंने “नशा” जैसी फिल्मों में काम किया है, जिसमें उनके अभिनय और उनके चरित्र को खूब सराहा गया. उनकी यह फिल्म उन्हें काफी चर्चा में ले आई, लेकिन साथ ही साथ विवादों से भी घिरी रही.

पूनम पांडे सोशल मीडिया पर अपने बोल्ड और साहसिक कंटेंट के लिए जानी जाती हैं. उनकी बोल्ड इमेज ने उन्हें सोशल मीडिया पर एक बड़ी फैन फॉलोइंग दिलाई है. पूनम ने कई बार अपने विवादित बयानों और कार्यों से मीडिया में सुर्खियां बटोरी हैं.

हालांकि पूनम पांडे को उनके कैरियर में कई विवादों का सामना करना पड़ा है, उन्होंने हमेशा अपने काम और पेशेवर जीवन पर ध्यान केंद्रित रखा है. वे एक ऐसी हस्ती हैं जो अपनी बोल्ड छवि के बावजूद अपने फैंस के बीच काफी लोकप्रिय हैं.

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साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु

फणीश्वरनाथ रेणु एक हिंदी साहित्यकार थे जिन्होंने मुख्य रूप से अपनी लघु कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया. उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के औराही हिंगना गाँव में हुआ था और उनका निधन 11 अप्रैल 1977 को हुआ. रेणु अपनी विशिष्ट शैली के लिए जाने जाते हैं जिसमें ग्रामीण भारत के जीवन, उसकी संस्कृति, और सामाजिक मुद्दों का चित्रण किया गया है.

उनके सबसे प्रसिद्ध कृतियों में “मैला आँचल” शामिल है, जो 1954 में प्रकाशित हुई और भारतीय साहित्य में एक मील का पत्थर मानी जाती है. यह उपन्यास ग्रामीण भारत के जीवन को बहुत ही यथार्थवादी और सजीव तरीके से प्रस्तुत करता है. “परती परिकथा” और “ठुमरी” जैसे उनके अन्य प्रमुख कार्य भी हैं, जिन्होंने साहित्यिक जगत में उनकी प्रतिष्ठा को और बढ़ाया.

रेणु की कहानियों में ग्रामीण परिवेश के साथ-साथ आधुनिक भारत की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का भी वर्णन होता है. उनकी कृतियों में उनका प्रेम, विडंबना, और समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से झलकती है. फणीश्वरनाथ रेणु ने न केवल साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान दिया, बल्कि वे एक सक्रिय समाजिक कार्यकर्ता भी थे. उन्होंने भारतीय समाज में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठाई.

उनके साहित्यिक कार्यों के माध्यम से, रेणु ने न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया बल्कि ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को भी उजागर किया, जिससे उनकी कृतियाँ आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई हैं.

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साहित्यकार विष्णु प्रभाकर

विष्णु प्रभाकर एक उल्लेखनीय हिंदी साहित्यकार थे, जिनका जन्म 21 जून 1912 को ब्रिटिश भारत के मीरापुर, मुजफ्फरनगर जिले (अब उत्तर प्रदेश में) हुआ था, और उनका निधन 11 अप्रैल 2009 को हुआ. उन्होंने हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं में योगदान दिया, जिसमें उपन्यास, नाटक, आत्मकथा, और जीवनी शामिल हैं. विष्णु प्रभाकर की साहित्यिक रचनाओं में गहरी मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक चेतना की झलक मिलती है.

उनके सबसे प्रसिद्ध कार्यों में से एक उपन्यास “आवारा मसीहा” है, जो प्रसिद्ध बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ ठाकुर की जीवनी पर आधारित है. यह कृति न केवल प्रभाकर की लेखनी का परिचायक है बल्कि यह भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण जीवनी के रूप में भी स्थान रखती है. “आवारा मसीहा” को व्यापक रूप से सराहा गया और यह उनकी सबसे लोकप्रिय और प्रशंसित कृतियों में से एक बनी.

प्रभाकर की अन्य उल्लेखनीय कृतियों में “स्वप्नमयी”, “अर्धनारीश्वर”, और “शिकस्त की आवाज़” शामिल हैं. उन्होंने समाज की विभिन्न समस्याओं पर गहराई से प्रकाश डाला और मानवीय संवेदनाओं को अपने लेखन के माध्यम से उजागर किया. विष्णु प्रभाकर ने अपने साहित्यिक कैरियर में विभिन्न पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है, जो उन्हें उनकी आत्मकथा “अर्धनारीश्वर” के लिए 1982 में प्रदान किया गया था.

विष्णु प्रभाकर का साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उन्हें एक विशेष स्थान प्रदान करता है. उनकी कृतियाँ न केवल पाठकों को गहरी सामाजिक और मानवीय समझ प्रदान करती हैं बल्कि भारतीय साहित्य में उनकी अमिट छाप भी छोड़ती हैं.

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