
आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारी गुरबख्श सिंह ढिल्लों
गुरबख्श सिंह ढिल्लों आजाद हिन्द फौज (इंडियन नेशनल आर्मी या INA) के प्रमुख अधिकारियों में से एक थे. आजाद हिन्द फौज की स्थापना नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने की थी, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश राज से भारत को आजाद कराना था.
गुरबख्श सिंह ढिल्लों का जन्म 18 मार्च 1914 को हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा लंदन में पूरी की और वहीं पर वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए. ढिल्लों ने आजाद हिन्द फौज में शामिल होकर कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं और बाद में वे इसके मुख्य अधिकारियों में से एक बने.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, वे बर्मा (म्यांमार) और अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय थे. युद्ध के बाद, जब आजाद हिन्द फौज के नेताओं पर मुकदमा चला, गुरबख्श सिंह ढिल्लों को भी रेड फोर्ट में आयोजित मुकदमे में अन्य INA अधिकारियों के साथ खड़ा किया गया. इन मुकदमों ने भारतीय जनमानस में व्यापक प्रभाव डाला और अंततः भारतीय स्वतंत्रता के लिए जनसमर्थन में वृद्धि हुई.
गुरबख्श सिंह ढिल्लों भारतीय स्वतंत्रता के बाद राजनीति में सक्रिय रहे और वे भारतीय राजनीतिक जीवन में भी योगदान देते रहे.आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारी गुरबख्श सिंह ढिल्लों का निधन 06 फरवरी 2006 को हुआ था.
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भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नागेन्द्र सिंह
डॉ. नागेन्द्र सिंह एक प्रतिष्ठित भारतीय व्यक्तित्व थे, जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई. उनका जन्म 18 मार्च 1914 को राजस्थान के डूंगरपुर में हुआ था. वे राजपूत सिसोदिया राजपरिवार से संबंधित थे. उनके पिता महाराजा सर विजय सिंह और माता महारानी देवेन्द्र कुंवर साहिबा थीं.
डॉ. नागेन्द्र सिंह ने सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज से शिक्षा प्राप्त की और भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए. वे 1 अक्टूबर 1972 से 6 फरवरी 1973 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे. इसके अलावा, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग में भी सेवा की और वर्ष 1985 – 88 तक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.
उन्हें वर्ष 1973 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया. उनके योगदान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया. डॉ. नागेन्द्र सिंह का निधन 11 दिसंबर 1988 को नीदरलैंड में हुआ था.
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अभिनेता शशि कपूर
शशि कपूर, एक भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपनी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 18 मार्च, 1938 को हुआ था, और वे प्रतिष्ठित कपूर परिवार के सदस्य थे. उन्होंने अपने कैरियर में अनेक हिट फिल्मों में काम किया, जैसे कि ‘दीवार’, ‘कभी कभी’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ और ‘नमक हलाल’.
शशि कपूर ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1948 में अपने भाई राज कपूर की पहली निर्देशित फ़िल्म आग से एक बाल कलाकार के रूप में की थी, और वर्ष 1961 में यश चोपड़ा की राजनीतिक ड्रामा धर्मपुत्र में एक वयस्क के रूप में उनकी पहली भूमिका थी. शशि कपूर ने अपनी अभिनय क्षमता से न केवल भारतीय दर्शकों का दिल जीता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी उनकी पहचान बनाई. वे ऐसे पहले भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने विदेशी फिल्मों में काम किया.
शशि कपूर को उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार शामिल हैं. उनके अभिनय का जादू आज भी दर्शकों पर छाया हुआ है. उन्होंने 04 दिसंबर 2017 को दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी फिल्में और उनका काम आज भी उन्हें जीवंत रखते हैं.
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राजनीतिज्ञ डी. वी. सदानंद गौड़ा
डी. वी. सदानंद गौड़ा एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) से संबंधित हैं. उनका जन्म 18 मार्च 1953 को हुआ था। गौड़ा कर्नाटक राज्य के प्रमुख राजनीतिक चेहरों में से एक हैं और उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया है.
उनका राजनीतिक कैरियर कई महत्वपूर्ण पदों के साथ जुड़ा हुआ है. सदानंद गौड़ा ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में मंत्री के रूप में कार्य किया है, जैसे कि रेल मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय, और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय. वे कर्नाटक की राजनीति में एक अहम आवाज हैं और विभिन्न विकासात्मक और सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं.
डी. वी. सदानंद गौड़ा अपनी प्रशासनिक क्षमता और जनता से जुड़ने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में कई विकासात्मक परियोजनाओं की शुरुआत और निर्माण किया है, जिससे उनके क्षेत्र और राज्य की आम जनता को लाभ हुआ है.
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अभिनेत्री रत्ना पाठक
रत्ना पाठक शाह भारतीय सिनेमा और टेलीविजन की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री हैं, जिनका जन्म 18 मार्च 1957 को मुंबई, भारत में हुआ था. वे एक ऐसे परिवार से आती हैं, जो कला और अभिनय के क्षेत्र में गहरी रुचि रखता है. उनकी मां दीना पाठक भी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं, और उनकी बहन सुप्रिया पाठक भी अभिनय जगत में सक्रिय हैं.
रत्ना पाठक ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में टेलीविजन और फिल्मों में अपनी पहचान बनाई. वर्ष 1980 के दशक में, वे लोकप्रिय टीवी शो “इधर उधर” में नजर आईं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा पहचान “साराभाई वर्सेस साराभाई” में माया साराभाई की भूमिका से मिली. इस शो में उनकी भूमिका ने उन्हें एक कुशल और प्रभावशाली अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया.
फिल्मों की बात करें तो रत्ना पाठक ने “जाने तू या जाने ना,” “गोलमाल 3,” “कपूर एंड सन्स,” और “लिपस्टिक अंडर माय बुर्का” जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाई हैं. उनकी अभिनय शैली में गहराई और सहजता है, जो उनके किरदारों को जीवंत बनाती है.
रत्ना पाठक ने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह से विवाह किया है, और उनके दो बेटे हैं—इमाद शाह और विवान शाह. वे न केवल एक अभिनेत्री हैं, बल्कि थिएटर और कला के क्षेत्र में भी सक्रिय योगदान देती हैं. उनकी अभिनय यात्रा प्रेरणादायक है और उन्होंने भारतीय सिनेमा और टेलीविजन को समृद्ध किया है.
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फिल्म निर्माता हिरू यश जौहर
हिरू यश जौहर भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रमुख निर्माता और धर्मा प्रोडक्शंस के संस्थापक थी. उनका जन्म 6 सितंबर 1929 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था. यश जौहर ने अपने कैरियर की शुरुआत टाइम्स ऑफ इंडिया में एक फोटोग्राफर के रूप में की, लेकिन उनका झुकाव फिल्म निर्माण की ओर था.
उन्होंने देव आनंद के प्रोडक्शन हाउस ‘नवकेतन फिल्म्स’ में 12 वर्षों तक काम किया और फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं को सीखा. वर्ष 1976 में, उन्होंने धर्मा प्रोडक्शंस की स्थापना की और अपनी पहली फिल्म “दोस्ताना” का निर्माण किया, जिसमें अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा मुख्य भूमिकाओं में थे. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और धर्मा प्रोडक्शंस को एक मजबूत शुरुआत मिली.
यश जौहर अपनी फिल्मों में भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों को दर्शाने के लिए जाने जाते थे. उनकी फिल्मों में “कभी खुशी कभी ग़म,” “कुछ कुछ होता है,” और “कभी अलविदा ना कहना” जैसी यादगार फिल्में शामिल हैं.
उनका व्यक्तित्व भी उतना ही प्रभावशाली था जितनी उनकी फिल्में. वे अपने नरम स्वभाव और उदारता के लिए फिल्म उद्योग में सम्मानित थे. 26 जून 2004 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत उनके बेटे करण जौहर और धर्मा प्रोडक्शंस के माध्यम से आज भी जीवित है.
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पार्श्व गायिका राजकुमारी दुबे
राजकुमारी दुबे एक प्रसिद्ध भारतीय पार्श्व गायिका थीं. उनका जन्म 1924 में वाराणसी, ब्रिटिश इंडिया में हुआ था. राजकुमारी को संगीत की औपचारिक शिक्षा तो नहीं मिली, पर उनका परिवार हमेशा उनके कला के प्रति समर्थन और प्रोत्साहित करता था. उन्होंने मात्र दस वर्ष की आयु में अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया था. उनका कैरियर वर्ष 1934 में शुरू हुआ जब उन्होंने एचएमवी के लिए गाना गाया और बाद में प्रकाश पिक्चर्स में अभिनेत्री और गायिका के रूप में काम किया.
राजकुमारी ने अपने कैरियर की शुरुआत विभिन्न मंचों पर गाने से की और तीस के दशक में, जब मूल रूप से अभिनेत्रियां अपने गीत खुद गाती थीं, उन्होंने पार्श्वगायन के क्षेत्र में एक बड़ा नाम बना लिया. उनकी प्रतिभा की मांग के चलते कई संगीतकारों ने उनकी आवाज का इस्तेमाल किया और वह एक चमकता हुआ पार्श्वगायन सितारा बन गईं. उनकी आवाज में ‘सुन बैरी बलम सच बोल रे’, ‘घबरा के जो हम सर को टकराए’, और ‘नज़रिया की मारी’ जैसे कई कालजयी गीत हैं.
राजकुमारी दुबे की मौत वर्ष 2000 में दरिद्रता के बीच हुई थी. उनका जीवन और कैरियर हिंदी सिनेमा के पार्श्वगायन के क्षेत्र में उनके योगदान को दरशोधकर्ता और इतिहासकारों के लिए राजकुमारी दुबे का जीवन और कैरियर भारतीय संगीत और सिनेमा के विकास की एक झलक प्रदान करते हैं. उनकी अद्वितीय आवाज़ और उनकी संगीत प्रतिभा ने उन्हें हिंदी सिनेमा के उस युग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया जब पार्श्वगायन ने अभिनेत्रियों द्वारा गायन की परंपरा को बदल दिया. उनका कैरियर, जो बचपन में ही शुरू हुआ था, उनकी आत्मनिर्भरता और कला के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है.