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साहित्यकार परमानन्द श्रीवास्तव
परमानन्द श्रीवास्तव एक प्रतिष्ठित हिन्दी साहित्यकार थे, जिनका जन्म 10 फ़रवरी 1935 को गोरखपुर जिले के बाँसगाँव में हुआ था और उनकी मृत्यु 5 नवम्बर 2013 को हुई थी.
उन्होंने गोरखपुर के सेण्ट एण्ड्रूज कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की और बाद में वहीं पर प्रवक्ता बने. उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया और वहां हिन्दी विभाग के आचार्य थे. परमानन्द श्रीवास्तव ने हिन्दी साहित्य के विभिन्न शैलियों में योगदान दिया, जिसमें कविता, आलोचना और कहानी शामिल हैं.
उन्होंने ‘आलोचना’ नामक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन भी किया. उनकी कविताएं समकालीन मानवीय संकटों और संवेदनाओं की गहरी पड़ताल करती हैं. उन्हें 2006 में व्यास सम्मान और भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके प्रमुख प्रकाशित कृतियों में ‘उजली हँसी के छोर पर’, ‘अगली शताब्दी के बारे में’, ‘चौथा शब्द’, ‘एक अनायक का वृतान्त’ और ‘रुका हुआ समय’ शामिल हैं.
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कवि कुमार विश्वास
कुमार विश्वास एक प्रसिद्ध हिंदी कवि, लेखक, और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे भारतीय भाषाओं के मशहूर और प्रमुख कवियों में से एक हैं. कुमार विश्वास की कविताओं में साहसिकता, प्रेम, और समाज को लेकर उनके विचारों का प्रचार किया गया है. उनकी कविताओं का अधिकांश युवा पीढ़ी को प्रेरित करने वाला होता है.
कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी 1970 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के पिलखुआ में एक मध्यवर्गी परिवार में हुआ था. विश्वास ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के विभिन्न मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को व्यक्त किया है, जैसे कि राष्ट्रीय एकता, प्रेम, स्वतंत्रता, और समाज में बदलाव. उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति, भाषा, और समाज के विभिन्न पहलुओं का प्रतिबिम्ब मिलता है.
विश्वास ने विभिन्न कविता संग्रहों का निर्माण किया है और वे साहित्यिक आयोजनों में भाग लेते रहते हैं. उनकी कविताएँ और उनका व्यक्तित्व उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अभिनेताओं में से एक बना देते हैं.
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अभिनेत्री पायल सरकार
पायल सरकार एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से बॉलीवुड फिल्मों में काम करती हैं. उन्होंने अपनी पहचान फिल्म “लुक्का छुप्पी” में नजर आई, जिसमें उन्होंने मैन रोल में नजर आई और उनका प्रदर्शन काफी प्रशंसित हुआ था.
पायल सरकार का जन्म 10 फरवरी 1984 को कोलकाता पश्चिम बंगाल में हुआ था. अपने कैरियर की शुरुआत बतौर मॉडलिंग की थी. उन्होंने बॉलीवुड कैरियर की शुरुआत “लुक्का छुप्पी” के साथ की जिसमें उन्होंने कृति सेनन के साथ अभिनय किया थी. उसके बाद, उन्होंने कई अन्य फिल्मों में भी काम किया है, जैसे “मधुरा वाणी”, “मार्शल”, “मांगल पांडे”, “मिस्टरज़्” आदि.
पायल सरकार को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कारों और उपलब्धियों से सम्मानित किया गया है.
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अभिनेत्री दिव्यांशा कौशिक
दिव्यांशा कौशिक एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से साउथ इंडस्ट्री में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. दिव्यांशा कौशिक का जन्म 10 फरवरी 1997 को उत्तराखंड, मंसूरी में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत तेलगु फिल्म मजिली से की थी. दिव्यांशा की रिलीज हुई फिल्म माइकल है, जो एक पैन इंडिया फिल्म है.
दिव्यांशा कौशिक ने कई रोल्स में अच्छे अभिनय का प्रदर्शन किया है और उन्हें अपनी मेहनत और प्रतिभा के लिए सराहा जाता है.
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निर्देशक-निर्माता के सी बोकडि़या
के सी बोकडि़या एक प्रमुख भारतीय फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान बॉलीवुड में कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया है. बोकडि़या 80 के दशक से अबतक कई सुपरहिट फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं, जिनमे प्यार झुकता नहीं, मेरा सजन सजन साथ निभाना, जनता की अदालत जैसी फ़िल्में शामिल हैं.
के सी बोकडि़या का जन्म 10 फरवरी 1949 को मेड़ता टाउन, नागौर जिला, राजस्थान में हुआ था. के सी बोकाडिया ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1972 में फिल्म रिवाज से की थी.
प्रमुख फ़िल्में – ( निर्माता व निर्देशक) :- आज का अर्जुन, फूल बने अंगरे, पुलिस और मुजरिम’, लाल बादशाह और प्यार में जिंदगी है, इंसानियत के देवता , मोहब्बत की आरज़ू , ज़ुल्म-ओ-सीतम, दीवाना मैं दीवाना और डर्टी पॉलिटिक्स.
इसके अलावा तमिल फिल्म ‘रॉकी: द रिवेंज’ (2019) और तेलुगु फिल्म ‘नमस्ते नेस्टामा’ (2020) का भी निर्देशन किया है.
के सी बोकडि़या को उनके फिल्मों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी अद्वितीय और प्रभावशाली पहचान बनाई है और उन्हें फिल्म उद्योग में एक अहम स्थान प्राप्त है.
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राजा बख्तावर सिंह स्वतन्त्रता संग्राम के सिपाही थे. जिन्होंने वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे. अंतत: अंग्रेजों ने छल करके राजा बख्तावर सिंह को कैद कर इंदौर के महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर में एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटका दिया था.
राजा बख्तावर सिंह मध्य प्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे (मध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्य पर्वत की सुरम्य श्रृंखलाओं के बीच द्वापरकालीन ऐतिहासिक) के शासक थे. राजा बख्तावर सिंह ने तीन जुलाई, वर्ष 1857 को भोपावर छावनी पर हमला कर उसे कब्जे में ले लिया. इससे घबराकर कैप्टेन हचिन्सन अपने परिवार सहित वेश बदलकर झाबुआ भाग गया. राजा ने मानपुर गुजरी की छावनी पर तीन ओर से हमलाकर उसे भी अपने अधिकार में ले लिया.
अंग्रेजों ने राजा बख्तावर सिंह को 10 फ़रवरी 1858 इंदौर के महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर में एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटका दिया था.
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कवि सुदामा पांडेय ‘धूमिल’
कवि सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ एक प्रमुख हिंदी कवि थे जिनकी कविताएं उनके विशेष भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने अपनी रचनाओं में जनसाहित्य, जनसंघर्ष, और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अपने विचारों को प्रकट किया.
सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ का जन्म 9 नवंबर 1936 को वाराणसी के निकट गाँव खेवली में हुआ था. उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से गरीबी, असमानता, और समाज में जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई. उनकी कविताओं में अद्वितीय शैली और गहरे भाव होते हैं.
रचनाएं: – संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे, धूमिल की कविताएं और सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र आदि.
धूमिल की कविता नये विम्ब विधान व नये संदर्भो में जनता के संघर्ष के स्वर में स्वर मिलाती है. हिंदी कविता को नए तेवर देने वाले इस जनकवि का योगदान चिरस्मरणीय है. सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ का निधन 10 फरवरी 1975 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था.
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साहित्यकार गुलशेर ख़ाँ शानी
गुलशेर ख़ाँ शानी एक कथाकार एवं साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ और ‘साक्षात्कार’ के संस्थापक-संपादक थे. उनका जन्म 16 मई 1933 को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, बस्तर में हुआ था. वो हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक माने जाते हैं.
उन्होंने अपनी शिक्षा जगदलपुर और बाद में विक्रम विश्वविद्यालय से पूरी की. शानी ने विभिन्न नौकरियां कीं और अंततः साहित्य अकादमी में हिंदी संपादक के रूप में काम किया. वे आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख मुस्लिम लेखकों में से एक थे और उन्होंने भारतीय मुसलमानों के जीवन को अपनी रचनाओं में चित्रित किया.
शानी ने कई प्रसिद्ध उपन्यास और कहानी संग्रह लिखे, जिनमें ‘काला जल’, ‘फूल तोड़ना मना है’, और ‘साँप और सीढ़ी’ शामिल हैं. उनकी लेखनी में सामाजिक और पारिवारिक संबंधों पर गहराई से चिंतन किया गया है. उनकी कहानियाँ और उपन्यास सामाजिक यथार्थ को दर्शाते हैं और उन्होंने हिंदी साहित्य में विषयगत रूढ़ियों से हटकर नई प्रवृत्तियों की शुरुआत की. उन्होंने अपनी कृतियों में विशेष रूप से भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन का चित्रण किया, जो उन्हें विशिष्ट बनाता है. गुलशेर ख़ाँ शानी का निधन 10 फ़रवरी 1995 को हुआ था.