मुस्कुराता रहा बस यही सोचकर…
मुस्कुराता रहा बस यही सोचकर, मुझसे आओगे मिलने कभी लौटकर हम भुलाते रहे गम तेरा इसलिए, तुमको पाया है हमने जहां छोड़कर। सबने ठुकराया फिर भी शिकायत नहीं, आंख अब तक ना सोयी तुम्हें देखकर रातें बदनाम हैं, अब कोई क्या करे, कोई कैसे सुनेगा यहां जागकर। मेरी कविता हो तुम एक हक़ीक़त भी हो, आओ कब से खड़ा हूं यही सोचकर।
तेरी बेरुखी की वजह सही, तेरे हसरतों का जवाब हूं। मुझे कोई अपना क्यों कहे, मैं जरूरतों की किताब हूं।। जिसे पाठकों ने पढ़ा नहीं, मैं हूं। गर्दिशों का बखान हूं। नहीं इस जहां में शुमार मैं, ना किसी के दिल का करार हूं।।
मेरी आरज़ू नहीं थी, तो क्या गिला करें, तुम्हें मिल गया तुम्हारा, हम क्या तुम्हें कहें, मेरी नहीं थी हसरत ये तुम भी जानते हो, इल्ज़ाम क्या लगाना,क्यों बददुआ करें।
पतझड़ से सुने मन में कोई क्या बसंत लाये, रूठी है साख गुल से गुलशन को क्या बताएं, मेरी हसरतों की दुनिया वीरान हो चली है, कहीं बीच में भंवर के किश्ती ना डूब जाए।
नवीन कुमार
+2 हाई स्कूल, ओक्री.
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