
छात्रवृत्ति मिलने की खबर मीरा के लिए किसी सपने के सच होने जैसा था. गाँव की धूल भरी गलियों से निकलकर शहर के कोलाहल और रोशनी भरी दुनिया में कदम रखना उसके लिए एक बिल्कुल नया अनुभव था. जब वह पहली बार रेलवे स्टेशन पर उतरी, तो गाड़ियों की आवाज़, लोगों की भीड़ और ऊँची इमारतों को देखकर वह थोड़ी घबरा गई थी, लेकिन उसके दिल में एक अटूट उत्साह भी था.
शहर का जीवन गाँव से बहुत अलग था. यहाँ हर कोई अपनी धुन में भागा जा रहा था. मीरा को शुरू में थोड़ी मुश्किल हुई. उसे रहने के लिए एक छोटा सा कमरा मिला जो कॉलेज से थोड़ा दूर था. उसे खुद ही खाना बनाना पड़ता था और अपने बाकी के खर्चों का भी ध्यान रखना पड़ता था. छात्रवृत्ति उसकी पढ़ाई की फीस और कुछ ज़रूरी खर्चों के लिए तो पर्याप्त थी, लेकिन उसे अपने निजी खर्चों के लिए भी कुछ न कुछ करना पड़ता था.
मीरा ने हार नहीं मानी. वह जानती थी कि यह उसके सपनों को पूरा करने का सुनहरा अवसर है और वह इसे किसी भी कीमत पर गँवाना नहीं चाहती थी. उसने कॉलेज के बाद एक छोटे से कोचिंग सेंटर में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. इससे उसे कुछ अतिरिक्त पैसे मिल जाते थे जिससे वह अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाती थी.
पढ़ाई का दबाव भी बहुत था. शहर के कॉलेज में दूर-दूर से प्रतिभाशाली छात्र आते थे और प्रतियोगिता बहुत कड़ी थी. मीरा ने दिन-रात मेहनत की. वह लाइब्रेरी में घंटों बिताती, शिक्षकों से सवाल पूछती और अपने साथियों के साथ मिलकर पढ़ाई करती. उसकी लगन और मेहनत रंग लाई और वह धीरे-धीरे अपनी कक्षा की मेधावी छात्रों में गिनी जाने लगी.
शहर में रहकर मीरा ने बहुत कुछ सीखा. उसने अलग-अलग तरह के लोगों से मुलाकात की, नई संस्कृतियों को जाना और दुनिया को एक नए नजरिए से देखा व सीखा. गाँव की सीधी-सादी मीरा अब एक आत्मविश्वास से भरी युवती बन रही थी, जिसके पास अपने विचार थे और अपने सपनों को साकार करने का दृढ़ संकल्प था.
हालांकि शहर का जीवन व्यस्त और चुनौतीपूर्ण था, मीरा कभी भी अपने गाँव और अपने परिवार को नहीं भूली. वह अक्सर अपने माता-पिता को पत्र लिखती थी और जब भी उसे समय मिलता, वह उनसे मिलने गाँव जाती थी. उसे पता था कि उनके आशीर्वाद और समर्थन के बिना वह यहाँ तक नहीं पहुँच पाती.
अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मीरा ने आगे की शिक्षा के लिए भी छात्रवृत्ति प्राप्त की. उसने अपनी पसंद के विषय में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और फिर एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी मिल गई. आज मीरा एक सफल और आत्मनिर्भर महिला है. उसने न सिर्फ अपने सपनों को पूरा किया, बल्कि अपने परिवार को भी बेहतर जीवन देने में मदद की.
शहर में अपने शुरुआती दिनों की कठिनाइयों को मीरा कभी नहीं भूली. वह जानती थी कि, अगर उसके भीतर वह अनकही चीख न होती, वह अपने सपनों को पाने की तीव्र इच्छा न होती, तो शायद वह कभी इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाती. उसकी कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपनी परिस्थितियों से मजबूर होकर अपने सपनों को छोड़ देते हैं. मीरा ने दिखाया कि अगर दिल में सच्ची लगन हो तो बेबसी की दीवारों को भी तोड़ा जा सकता है और सफलता की ऊँचाइयों को छुआ जा सकता है.
शेष भाग अगले अंक में…,