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बेटी…

सत्कर्मों का प्रतिफल बेटी, पर्वों का अभिनंदन है,

सूना जिसके बिन घर आँगन,माथे का शुभ चंदन है।

वर्षा जल की बूँदे पाकर, पादप ज्यों मुस्काता है,

बेटी को पा मातु पिता का,जीवन भी खिल जाता है,

खुशियों की परछाई बनती,नेहिल हिय स्पंदन है,

सूना जिसके बिन घर आँगन,माथे का शुभ चंदन है।

संस्कार की ओढ़ चुनरिया, चुनती कांटे राहों से,

निर्मल पावन गंगा जैसी, उतरी शिव की बाहों से,

भावों के कोमल धागों से, बांध रही हर बंधन है,

सूना जिसके बिन घर आँगन,माथे का शुभ चंदन है।

देवी का धर रूप धरा पर,आई धर्म निभाने को,

अनुजा,माता,भार्या बनकर,कुल का दीप जलाने को,

दो दो कुल का मान बढ़ाती, हरती भू का क्रंदन है।

सूना जिसके बिन घर आँगन,माथे का शुभ चंदन है।

ईश्वर की सुन्दर रचना में,बेटी एक वरदान है,

मानवता का मोल बताती, गीता और कुरान है,

मां दुर्गा की शक्ति है बेटी,करते शत शत वंदन है,

सूना जिसके बिन घर आँगन,माथे का शुभ चंदन है।

 प्रभाकर कुमार

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