
बनारस की संकरी गलियों में, गंगा के किनारे बसा ‘गंगा निवास’ सदियों से श्रीवास्तव परिवार का घर रहा था। इस घर की दीवारों ने कई पीढ़ियों के सुख-दुख, हँसी-आँसू देखे थे. वर्तमान में, इस घर के मुखिया थे पंडित सूर्य नारायण श्रीवास्तव, एक कर्मठ और सिद्धांतों के पक्के व्यक्ति. उनकी पत्नी, मनोरमा देवी, शांत और सहनशील थीं, जिन्होंने अपने तीन बेटों – आदर्श, अमन और अर्जुन – को स्नेह और अनुशासन के साथ पाला था.
आदर्श, सबसे बड़ा बेटा, एक सफल डॉक्टर था. वह जिम्मेदार और गंभीर स्वभाव का था, हमेशा परिवार की प्रतिष्ठा और सम्मान को सर्वोपरि मानता था. अमन, मंझला बेटा, एक उत्साही और मिलनसार युवक था, जिसने पारिवारिक व्यवसाय को आधुनिक तरीके से आगे बढ़ाने का सपना देखा था. अर्जुन, सबसे छोटा, एक आज़ाद ख्याल का लेखक था, जिसकी रचनात्मकता अक्सर घर के पारंपरिक माहौल से टकराती थी.
बाहर से ‘गंगा निवास’ एक खुशहाल और एकजुट परिवार का प्रतीक था. लेकिन समय के साथ, इस परिवार की नींव में भी कुछ सूक्ष्म दरारें आने लगी थीं, जिन्हें अनदेखा किया जा रहा था.
यह दरार तब स्पष्ट रूप से दिखने लगी जब अर्जुन ने एक ऐसी लड़की से शादी करने का फैसला किया जिसे परिवार ने कभी स्वीकार नहीं किया था. रिया, एक थिएटर कलाकार थी, जो आधुनिक विचारों वाली और पारंपरिक बंधनों से मुक्त थी. पंडित सूर्य नारायण श्रीवास्तव के लिए यह रिश्ता अस्वीकार्य था. उनकी रूढ़िवादी सोच और सामाजिक प्रतिष्ठा को यह मेल पसंद नहीं आया. मनोरमा देवी ने अपने छोटे बेटे का समर्थन किया, लेकिन उनके मन में भी कहीं न कहीं समाज का डर और परिवार में संभावित कलह की आशंका थी.
आदर्श, हमेशा की तरह, संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा था. वह अपने भाई की पसंद का सम्मान करता था, लेकिन पिता की भावनाओं को भी समझता था. अमन, जिसने हमेशा अपने परिवार को एकजुट देखा था, इस नए तनाव से परेशान था. उसे लगता था कि अर्जुन ने जल्दबाजी में ऐसा कदम उठाया जिससे परिवार में फूट पड़ सकती है.
रिया के ‘गंगा निवास’ में आने से घर का माहौल बदल गया. परंपरा और आधुनिकता के बीच एक अघोषित युद्ध शुरू हो गया. पंडित जी की चुप्पी और उनकी आँखों में झलकती अस्वीकृति हर पल रिया को पराई होने का एहसास दिलाती थी. अर्जुन अपने पत्नी और अपने परिवार के बीच फँस गया था, दोनों को खुश रखने की उसकी कोशिशें अक्सर विफल हो जाती थीं.
शेष भाग अगले अंक में…,