Dharm

बसंत या श्रीपंचमी…

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

हिन्दू संस्कृति में ज्ञान या यूँ कहें कि, विद्या की देवी माँ सरस्वती जो त्रिदेवियों में एक देवी है. उनकी पूजा आराधना माघ मास की पंचमी को किया जाता है जिसे वसंत पंचमी या श्रीपंचमी के नाम से जाना जाता है. बतातें चलें कि,सरस्वती पूजा भारत के अलावा पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल सहित कई देशों में धूम-धाम से मनाया जाता है.शास्त्रों के अनुसार, माघ मास की पंचमी से बसंत ऋतू का आगमन होता है. बसंत ऋतू और माघ पंचमी मिलकर बना है बसंत पंचमी.

बसंत ऋतू को ऋतुराज या यूँ कहें कि, ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है. अंग्रेजी महीने अनुसार यह ऋतू फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य में आता है. भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ऋतुओं में मैं बसंत हूँ. इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है, मौसम सुहावना हो जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं. इस ऋतु की विशेषता है की मौसम का गरम होना, फूलो का खिलना, पौधो का हरा भरा होना और बर्फ का पिघलना. पौराणिक कथाओं के अनुसार वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है. कवि देव ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है, पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है.

पौराणिक ग्रंथों में माँ सरस्वती का विस्तृत वर्णन दिया गया है. विष्णु पुराण के अनुसार वाग्देवी को चार भुजा युक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है. वहीं स्कन्द पुरानुसार, सरस्वती जटा-जुटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं. रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौभ्य व शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है. ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं. ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं. ऋग्वेद में भी माँ सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है. माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं. कहा जाता है कि, जिनकी  जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान् व कुशाग्र बुद्धि होते हैं.

जब सृष्टि का आरम्भ हुआ तब, भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की लेकिन, भगवान ब्रह्मा अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है. तब ब्रह्मा ने भगवान विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से पृथ्वी पर जल छिड़का, जल छिड़कते ही उसमें कंपन होने लगा और वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई. यह अद्भुत शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा था, अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी. ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया, जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई. पवन चलने लगी और जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया.

तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती, बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी कहा. ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं. पौराणिक ग्रन्थ ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है कि, ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं. हम में जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं. इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है.

प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है. वसंत पंचमी के दिन स्कूलों, कॉलेज, विद्यार्थियों व शिक्षाविद मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है. इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करें. 

यथा वु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामहः।
त्वां परित्यज्य नो तिष्ठंन, तथा भव वरप्रदा।।
वेद शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादिकं चरेत्।
वादितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धयः।।
लक्ष्मीर्वेदवरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभामतिः।
एताभिः परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वति।।

सर्वप्रथम एक साफ़ चौकी लें, उस पर पीले वस्त्र का आसन रखकर माँ सरस्वती देवी और भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करना चाहिए और माँ को पीत(पीले) पुष्पों से सजा कर पीले वस्त्र पहनाएं. उसके बाद पीले फल, मिठाई, नारियल व पान रखकर माँ की पूजा करनी चाहिए. बसंत पंचमी के दिन सम्पूर्ण प्रकृति में एक मादक उल्लास व आनन्द की सृष्टि हुई थी. इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सज़ा देती है. बताते चलें कि, पीला रंग परिपक्वता का प्रतीक माना जाता है. इस दिन घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है.

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Basant or Shri Panchami…

prano devee sarasvatee vaajebhirvajineevatee dheenaamanitrayavatu ।।

In Hindu culture, Mother Saraswati, the goddess of knowledge or learning, is one of the three goddesses. His worship and worship is done on Panchami of Magh month which is known as Vasant Panchami or Shri Panchami. Let us tell you that apart from India, Saraswati Puja is celebrated with great pomp in many countries including North-West Bangladesh, Nepal. According to the scriptures, Panchami of Magh month marks the arrival of spring season. Basant Panchami is made up of Basant Ritu and Magh Panchami.

Spring season is also called Rituraj or in other words, the king of seasons. According to the English months, this season falls between February, March and April. Lord Krishna has said in Geeta that I am spring among the seasons. With the arrival of this season, the cold subsides, the weather becomes pleasant, new leaves start growing on the trees, mango trees are laden with blossoms and the fields appear yellow filled with mustard flowers. The specialty of this season is the warming of the weather, blooming of flowers, greenness of plants and melting of snow. According to mythology, Vasant has been called the son of Kamadeva. Poet Dev, while describing the spring season, has said that as soon as the news of the birth of a son comes to the house of Kamadeva, the god of beauty and beauty, nature rejoices, the trees put a cradle of new pallava for him, flowers dress him in clothes, the wind swings him and the cuckoo cradles him. She entertains by singing songs.

A detailed description of Mother Saraswati has been given in mythological texts. According to Vishnu Purana, Vagdevi is depicted with four arms and adorned with jewellery. Whereas, according to Skanda Purana, Saraswati is said to have matted hair, half moon on her head, adorned in lotus position, blue neck and three eyes. In Roop Mandan, Vagdevi is described as calm, graceful and scriptural. According to Brahmin texts, Vagdevi Saraswati is the representative of Brahmaswarupa, Kamdhenu and all the gods. She is the goddess of knowledge, wisdom and knowledge. Rigveda also describes the immense influence and glory of Goddess Saraswati. Mother Saraswati is the presiding deity of education and knowledge. It is said that those on whose tongue Goddess Saraswati resides are extremely learned and intelligent.

When the creation began, Brahma created the universe with the permission of Lord Vishnu, but Lord Brahma was not satisfied with his creation. He felt that something was missing due to which there was silence all around. Then Brahma, after taking permission from Lord Vishnu, sprinkled water on the earth from his kamandalu. As soon as the water was sprinkled, it started vibrating and a wonderful power appeared from among the trees. This amazing power belonged to a four-armed beautiful woman who had a veena in one hand and Vara Mudra in the other hand, and a book and a rosary in the other two hands. Brahma requested the goddess to play the veena, as soon as the goddess made the melodious sound of the veena, all the living beings in the world got speech. The wind started blowing and there was noise in the water stream.

Then Brahma called that goddess Saraswati, the goddess of speech, Bagishwari, Bhagwati, Sharda, Veenavadni and Vagdevi. He is the provider of knowledge and wisdom. While describing Goddess Saraswati in the mythological text Rigveda, it is said that she is the supreme consciousness. In the form of Saraswati, she is the protector of our intelligence, wisdom and attitudes. Bhagwati Saraswati is the basis of our morals and intelligence. Their richness and grandeur of form is amazing.

Since ancient times, it is considered to be the birthday of Mother Saraswati, the goddess of knowledge and art. On the day of Vasant Panchami, schools, colleges, students and educationists worship Goddess Sharda and pray to her to become more knowledgeable. By worshiping Mother Saraswati on the day of Basant Panchami, speech becomes sweet, memory power becomes sharp, living beings get good fortune and knowledge is gained. On this day, worship Bhagwati Gayatri adorned with all the ornaments, veena, akshamala, kamandal and book, after getting Swasti recited by a Brahmin with devotion, with remedies like scent, Akshat, white flower garland, white clothes etc.

Yatha Vu Devee Bhagavaan Brahma Lokapitaamahah:

Tvan Parityajy No Yishthann, Tatha Bhav Varaprada।।

Ved Shaastraani Sarvaani Nrity Geetaadikan Charet

Vaditan Yat Tvaya Devee Tatha Me Santusiddhayah।।

Lakshmeervedavar Rshitragauree Tushtih Prabhaamatih

Etaabhih Parihattanurishtabhirma Sarasvatee।।

First of all, take a clean stool, place a seat of yellow cloth on it and install the idol of Goddess Saraswati and Lord Ganesha and decorate the mother with yellow flowers and make her wear yellow clothes. After that, mother should be worshiped by keeping yellow fruits, sweets, coconut and betel leaves. On the day of Basant Panchami, an intoxicating joy and happiness was created in the entire nature. On this day everything appears yellow and nature decorates the fields with yellow-golden color. Let us tell you that yellow color is considered a symbol of maturity. On this day, food is also cooked in yellow color in homes.

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