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अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य…

संधि काल के समय में भारतवर्ष के पूरब में बसा पौराणिक राज्य बिहार में एक विशेष पर्व का आयोजन घर-घर में हो रहा है. वैसे तो इस पर्व की चर्चा पौराणिक ग्रंथों में भी की गई है. सनातन धर्म के प्रत्यक्ष देवता भगवान् अच्युत, रवि, तेजोरूप, हिरण्यगर्भ्, दीप्तमूर्ती, भानु, विश्वरूप की पूजा व आराधना की जा रही है. ज्योतिष और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. लेकिन, सूर्य जो ग्रहों का राजा है उसकी आराधना संधि काल के समय में ही होती है. चार दिवसीय महापर्व छठ के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन में प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ भागों में “टिकरी” के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है. शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य के साथ छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है.

संकलन:-             ज्ञानसागरटाइम्स टीम.

Video Link: –    https://youtu.be/XkUBplMXfUI

 

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