एक महान हिन्दू योद्धा…
वैसे तो भारत में हमारे महान हिन्दू राजा योद्धाओं को भुला दिया गया और इतिहास में ऐसे महान योद्धाओं का नाम तक नहीं है पर आज हम आपको बताएँगे सम्राट मिहिरभोज के बारे में जो मौर्या वंश के राजा (चंद्रगुप्त, सम्राट अशोक) से भी महान थे, और उनके शासन काल से ही भारत सोने की चिड़िया कहलाया था। सम्राट मिहिरभोज एक ऐसे महान योद्धा थे जो अरबों का सबसे बडा दुश्मन थे जिसने लगभग 40 युद्ध कर अरबों को भारत से पलायन करने पर मजबूर कर दिया एवं सनातन धर्म की रक्षा की।सम्राट मिहिरभोज का जन्म विक्रम संवत 873 (816 ईस्वी) को हुआ था। सम्राट को कई नाम से जाना जाता है जैसे भोजराज, भोजदेव मिहिर, आदिवराह एवं प्रभास। भोजदेव मिहिर का राज्याभिषेक विक्रम संवत 893 यानी 18 अक्टूबर दिन बुधवार 836 ईस्वी में 20 वर्ष की आयु में हुआ था। और इसी दिन 18 अक्टूबर को ही हर वर्ष भारत में जयंती मनाई जाती है। इनके दादा का नाम नागभट्ट द्वितीय था उनका स्वर्गवास विक्रम संवत 890 (833 ईस्वी) भादो मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ। इनके पिता का नाम रामभद्र और माता का नाम अप्पादेवी था।सम्राट मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुल्तान से पश्चिम बंगाल और कश्मीर से उत्तर महाराष्ट्र तक था। राजा मिहिरभोज गुणी बलवान, न्यायप्रिय, सनातन धर्म रक्षक, प्रजा हितैषी एवं राष्ट्र रक्षक थे। सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। और उन्होंने मलेच्छों (अरब, मुगल, कुषाण, हूण) से पृथ्वी की रक्षा की थी। उन्हें वराह यानी भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। उनके द्वारा चलाये गये सिक्कों पर वराह की आकृति बनी हुई है।अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिला उत तारिका 851 ईस्वी में लिखी गयी। वह लिखता है की सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ( परिहार ) के पास उंटो, घोडों व हाथियों की बडी विशाल एवं सर्वश्रेष्ठ सेना है। उनके राज्य में व्यापार सोने व चांदी के सिक्कों से होता है। उनके राज्य में सोने व चांदी की खाने भी है। इनके राज्य में चोरों डाकुओं का भय नही है। भारत वर्ष में मिहिरभोज प्रतिहार से बडा इस्लाम का अन्य कोई शत्रु नहीं है। मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण के राष्ट्रकूटों के राज्य , पूर्व में बंगाल के शासक पालवंश और पश्चिम में मुल्तान के मुस्लिम शासकों से मिली हुई है।सम्राट मिहिरभोज के पूर्वज नागभट्ट प्रथम (730 – 760 ईस्वी) ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा जो सर्व प्रथम चलाई, वो मिहिरभोज के समय और पक्की होई गई थी। विक्रम संवत 972 ( 915 ईस्वी) में भारत भ्रमण आये बगदाद के इतिहासकार अलमसूदी ने अपनी किताब मिराजुल – जहाब में इस महाशक्तिशाली , महापराक्रमी सेना का विवरण किया है। उसने इस सेना की संख्या लाखों में बताई है। जो चारो दिशाओं में लाखो की संख्या में रहती है।प्रसिद्ध इतिहासकार के. एम. मुंशी ने सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की तुलना गुप्तवंशीय सम्राट समुद्रगुप्त और मौर्यवंशीय सम्राट चंद्रगुप्त से इस प्रकार की है। वे लिखते हैं कि सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार इन सभी से बहुत महान थे। क्योंकि तत्कालीन भारतीय धर्म एवं संस्कृति के लिए जो चुनौती अरब के इस्लामिक विजेताओं की फौजों द्वारा प्रस्तुत की गई। वह समुद्रगुप्त , चंद्रगुप्त आदि के समय पेश नही हुई थी और न ही उनका मुकाबला अरबों जैसे अत्यंत प्रबल शत्रुओं से हुआ था।भारत के इतिहास में मिहिरभोज से बडा आज तक कोई भी सनातन धर्म रक्षक एवं राष्ट्र रक्षक नही हुआ। एक ऐसा हिंदू क्षत्रिय योद्धा , अरबों का सबसे बडा दुश्मन जिसने लगभग 40 युद्घ कर अरबों को भारत से पलायन करने पर मजबूर कर दिया एवं सनातन धर्म की रक्षा की, ऐसे थे महान चक्रवर्ती सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जिसने भारत पर 50 वर्ष शासन किया।सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 18 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था।
सम्राट मिहिरभोज के रोचक पहलू एक महान हिन्दू योद्धा जिसने सनातन धर्म की रक्षा हेतु 40 युद्ध कर अरबों को चटाई थी धूल!! सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार!आइये जानते है हिन्दू क्षत्रिय शौर्य और बहादुरी से जुड़े “सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के रोचक पहलू काव्यों एवं इतिहास मे इन विशेषणो से वर्णित किया:- क्षत्रिय सम्राट,भोजदेव, भोजराज, वाराहवतार, परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, महानतम भोज, मिहिर महान।परिहार वंश ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है। प्रतिहारों ने अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित किया है। भारत देश हमेशा ही प्रतिहारो का ऋणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है। जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है। प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, अरबों, हूणों, से देश को बचाए रखा और देश की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।इनका राजशाही निशान वराह है। ठीक उसी समय मुश्लिम धर्म का जन्म हुआ और इनके प्रतिरोध के कारण ही उन्हे हिन्दुस्तान मे अपना राज कायम करने मे 300 साल लग गए। और इनके राजशाही निशान ” वराह ” विष्णु का अवतार माना है प्रतिहार मुश्लमानो के कट्टर शत्रु थे । इसलिए वो इनके राजशाही निशान ‘बराह’ से आजतक नफरत करते है।सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार वीरता, शौर्य और पराक्रम के प्रतीक हैं। उन्होंने विदेशी साम्राज्यो के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी पूरी जिन्दगी अपनी मलेच्छो से पृथ्वी की रक्षा करने मे बिता दी। सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक सम्राट थे। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया।व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार राजपूत साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे ‘सम्राट’ मिहिरभोज प्रतिहार की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे कई महान विशेषणों से वर्णित किया गया है।सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का नाम आदिवाराह भी है। ऐसा होने के पीछे यह मुख्य कारण हैं।जिस प्रकार वाराह (विष्णु जी) भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज ने मलेच्छों को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। इसीलिए इनहे आदिवाराह की उपाधि दी गई है।सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिरभोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50 वर्ष तक राज करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो कन्नौज की मुद्रा था उसको सम्राट मिहिरभोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था ।एक महान हिन्दू योद्धा जिसने सनातन धर्म की रक्षा हेतु 40 युद्ध कर अरबों को चटाई थी धूल!! सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार!!सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। इनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी । इनके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। इनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।
भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।
मिहिरभोज प्रतिहार की सैना में 8,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार, हजारों हाथी और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन बैस के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिरभोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।
मिहिरभोज प्रतिहार बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे। एक बालक होने के बावजूद, देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते हुए उन्होंने युद्धकला और शस्त्रविधा में कठिन प्रशिक्षण लिया। राजकुमारों में सबसे प्रतापी प्रतिभाशाली और मजबूत होने के कारण, पूरा राजवंश और विदेशी आक्रमणो के समय देश के अन्य राजवंश भी उनसे बहुत उम्मीद रखते थे और देश के बाकी वंशवह उस भरोसे पर खरे उतरने वाले थे।मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट हुए उनके राजगद्दी पर बैठते ही जैसे देश की हवा ही बदल गई। मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दूनीया मे मशूहर हुए।विदेशी आक्रमणो के समय भी लोग अपने काम मे निडर लगे रहते है। गद्दी पर बैठते ही उन्होने देश के लुटेरे,शोषण करने वाले, गरीबो को सताने वालो का चुन चुनकर सफाया कर दिया। उनके समय मे खुले घरो मे भी चोरी नही होती थी।अरब यात्री सुलेमान – पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं: जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिरभोज के बारे में लिखता है कि इस सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिरभोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं था । मिहिरभोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। ये भी कहा जाता है।कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने थी ।एक ऐसा राजा जिसने अरब तुर्क आक्रमणकारियों को भागने पर विवश कर दिया और जिसके युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाया। मित्रों परिहार क्षत्रिय वंश के नवमीं शताब्दी में सम्राट मिहिरभोज भारत का सबसे महान शासक था। उसका साम्राज्य आकार, व्यवस्था , प्रशासन और नागरिको की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चक्रवर्ती गुप्त सम्राटो के समकक्ष सर्वोत्कृष्ट था। भारतीय संस्कृति के शत्रु म्लेछो यानि मुस्लिम तुर्को -अरबो को पराजित ही नहीं किया अपितु उन्हें इतना भयाक्रांत कर दिया था की वे आगे आने वाली एक शताब्दी तक भारत की और आँख उठाकर देखने का भी साहस नहीं कर सके। चुम्बकीय व्यक्तित्व संपन्न सम्राट मिहिर भोज की बड़ी बड़ी भुजाये एवं विशाल नेत्र लोगों में सहज ही प्रभाव एवं आकर्षण पैदा करते थे। वह महान धार्मिक, प्रबल पराक्रमी, प्रतापी, राजनीति निपुण, महान कूटनीतिज्ञ, उच्च संगठक सुयोग्य प्रशासक, लोककल्याणरंजक तथा भारतीय संस्कृति का निष्ठावान शासक था। ऐसा राजा जिसका साम्राज्य संसार में सबसे शक्तिशाली था। इनके साम्राज्य में चोर डाकुओ का कोई भय नहीं था। सुदृढ़ व्यवस्था व आर्थिक सम्पन्नता इतनी थी कि विदेशियो ने भारत को सोने की चिड़िया कहा।यह जानकर अफ़सोस होता है की ऐसे अतुलित शक्ति , शौर्य एवं समानता के धनी मिहिरभोज को भारतीय इतिहास की किताबो में स्थान नहीं मिला। सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के शासनकाल में सर्वाधिक अरबी मुस्लिम लेखक भारत भ्रमण के लिए आये और लौटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिक-दार्शनिक ज्ञान विज्ञानं , आयुर्वेद , सहिष्णु , सार्वभौमिक समरस जीवन दर्शन को अरब जगत सहित यूनान और यूरोप तक प्रचारित किया।
क्या आप जानते हे की सम्राट मिहिरभोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के जोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया , उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए की उन्हें छिपाने के लिए जगह ढूंढना कठिन हो गया था। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारो बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने 836 ई से 885 ई तक लगभग 50 वर्षो के सुदीर्घ काल तक शासन किया।सम्राट मिहिरभोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक थे। मिहिरभोज शिव शक्ति एवं भगवती के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिर भोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की।50 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो की मुद्रा थी उसको सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था। सम्राट मिहिरभोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। विक्रम संवत 945 ( 888 ईस्वी ) 72 वर्ष की आयु में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का स्वर्गवास हुआ।
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By the way, our great Hindu kings and warriors were forgotten in India and there is no name of such great warriors in history, but today we will tell you about Emperor Mihirbhoj who was greater than the Maurya dynasty king (Chandragupta, Emperor Ashoka). And since his reign, India was called the golden bird. Emperor Mihirbhoj was a great warrior who was the biggest enemy of the Arabs, they forced the Arabs to flee from India by fighting about 40 wars and protected Sanatan Dharma. Emperor Mihirbhoj was born on Vikram Samvat 873 (816 AD) . The emperor is known by many names such as Bhojraj, Bhojdev Mihir, Adivaraha, and Prabhasa. Bhojdev Mihir was coronated at the age of 20 in Vikram Samvat 893 i.e. 18 October, Wednesday 836 AD. And on this day itself, on 18 October, Jayanti is celebrated every year in India. His grandfather’s name was Nagabhatta II. He died in Vikram Samvat 890 (833 AD) on Panchami of Shukla Paksha of Bhado month. His father’s name was Rambhadra and his mother’s name was Appadevi. Emperor Mihirbhoj’s empire extended from today’s Multan to West Bengal and from Kashmir to North Maharashtra. King Mihirbhoj was the virtuous, strong, justice-loving, protector of Sanatan Dharma, a well-wisher of the people, and a protector of the nation. Emperor Mihirbhoj Pratihar was a worshiper of Shiva Shakti. And he protected the earth from the Malechhas (Arabs, Mughals, Kushans, Huns). He has also been described as Varah i.e. the incarnation of Lord Vishnu. The shape of Varah is made on the coins run by them. Arab traveler Sulaiman wrote his book Silsila ut Tarika in 851 AD. He writes that Emperor Mihirbhoj Pratihar (Parihar) has a huge and best army of camels, horses, and elephants. Trade in his kingdom is done with gold and silver coins. There are mines of gold and silver in his kingdom. There is no fear of thieves and dacoits in his kingdom. There is no bigger enemy of Islam in India than Mihirbhoj Pratihar. Mihirbhoj’s kingdom was bordered by the kingdom of Rashtrakutas in the south, Palavansh, the ruler of Bengal in the east, and the Muslim rulers of Multan in the west. Nagabhatta I (730 – 760 AD), the ancestor of emperor Mihirbhoj, organized a permanent army and paid him a cash salary. The practice that was started first, was further confirmed at the time of Mihirbhoj. Baghdad’s historian Alamsudi, who visited India in Vikram Samvat 972 (915 AD), has described this superpowerful, mighty army in his book Mirazul-Zahab. He has told the number of this army in lakhs. Which lives in lakhs in all four directions. Famous historian K.K. M. Munshi has compared Emperor Mihirbhoj Pratihar with Gupta Dynasty Emperor Samudragupta and Mauryan Dynasty Emperor Chandragupta in this way. He writes that Emperor Mihirbhoj Pratihar was much greater than all of them. Because the challenge to the then-Indian religion and culture was presented by the armies of the Arab Islamic conquerors. It was not present at the time of Samudragupt, Chandragupta, etc., nor did they face very strong enemies like Arabs. In the history of India, no one has been the greater protector of Sanatan Dharma and a protector of the nation than Mihirbhoj. One such Hindu Kshatriya warrior, the biggest enemy of the Arabs, who forced the Arabs to flee from India by fighting about 40 wars and protected Sanatan Dharma, was the great Chakraborty Emperor Mihirbhoj Pratihar who ruled India for 50 years. Emperor Mihirbhoj Pratihara ruled for 50 years from 18 October 836 AD to 885 AD. Mihir Bhoj’s empire extended from today’s Multan to West Bengal and from Kashmir to Karnataka.
Interesting aspects of Samrat Mihirbhoj, a great Hindu warrior who fought 40 wars to protect Sanatan Dharma and licked the dust of Arabs!! Emperor Mihirbhoj Pratihar! Let us know the interesting aspects of Hindu Kshatriya valor and bravery related to “Emperor Mihirbhoj Pratihar described in poetry and history with these epithets:- Kshatriya Samrat, Bhojdev, Bhojraj, Varahavatar, Parambhattarak, Maharajadhiraj, Parmeshwar, Greatest Bhoj, Mihir Mahan. Parihar dynasty fought more than 200 wars with Arabs for 300 years, as a result of which we are safe here today. Pratihars surprised everyone by displaying their bravery, valor, and art. The country of India will always be indebted to the Pratihars for the amazing bravery and valor that they have sacrificed for their motherland. Which is also accepted by all the scholars. The Pratihara Empire saved the country from dacoits, dacoits, Arabs, and Huns and the freedom of the country did not come to an end. Their royal symbol is Varah. At the same time, the Muslim religion was born and it was because of their resistance that it took them 300 years to establish their rule in India. And their royal symbol “Varaha” is considered to be an incarnation of Vishnu. Pratiharas were staunch enemies of Muslims. That’s why they hate their royal symbol ‘Barah’ to date. Emperor Mihirbhoj Pratihar is a symbol of bravery, bravery, and bravery. He fought against foreign empires and spent his entire life protecting the earth with his malechha. Emperor Mihirbhoj was a strong, justice-loving, and religious-protective emperor. As soon as he sat on the throne, Mihirbhoj, first of all, streamlined the system of the Kannauj state, and harshly punished the feudatories who oppressed the subjects and the lazy employees who took bribes. So many facilities were provided for trade and agriculture that the whole empire became wealthy. Woke up from Mihirbhoj brought the Pratihara Rajput kingdom to its climax with wealth and glory. In his heyday, he got the title of ‘Emperor’ Mihirbhoj Pratihar. He has been described with many great epithets in many poems and history. On the coin of Emperor Mihir Bhoj the great Varah God who is known as the incarnation of Lord Vishnu. Lord Varah had protected the earth by killing the demon Hiranyaksha and taking it out of the underworld. Emperor Mihirbhoj Pratihar’s name is also Adivarah. This is the main reason behind this happening. The way Lord Varah (Vishnu ji) protected the earth and killed Hiranyaksha, in the same way, Mihirbhoj protected his motherland by killing Malechhas. That is why he has been given the title of Adivarah. Emperor Mihirbhoj Pratihar was a worshiper of Shiva Shakti. The Prabha’s section of the Skandha Purana mentions Shivalayas and Peethas located in Prabha’s area of Lord Shiva. Somnath was considered one of the major pilgrimage places in India during the period of the Pratihara Empire. The prestige of Prabhas Kshetra was similar to that of Kashi Vishwanath. Details about the life of Emperor Mihirbhoj Pratihara are found in Prabha’s section of Skandha Purana. Regarding Mihirbhoj, it is said that he was the supreme devotee of Somnath, he was also married in Saurashtra. He protected the earth from the Malechhas. After ruling for 50 years, he handed over the throne to his son Mahendrapal Pratihar and went to the forest for retirement. Emperor Mihirbhoj’s coin, which was the currency of Kannauj, was used by Emperor Mihirbhoj to make Kannauj the capital of the country in 836 AD. A great Hindu warrior who fought 40 wars to protect Sanatan Dharma and killed the Arabs!! Samrat Mihirbhoj Pratihar!! On the coins of Emperor Mihirbhoj Pratihar Mahan, Lord Varaha is known as an incarnation of Lord Vishnu. His ancestor Emperor Nagabhatta I started the practice of organizing a permanent army and giving it a cash salary, it became even more confirmed during this time and the great army of the Pratihara Empire stood up. This is the first instance in Indian history when an army was paid in cash. Mihir Bhoj had the best army in the world of camels, elephants, and horsemen. Trade in their state is done with gold and silver coins. There were mines of gold and silver in his kingdom.
Bhoj first of all streamlined the system of the Kannauj state, and harshly punished the feudal lords who oppressed the subjects and the lazy employees who took bribes. So many facilities were provided for trade and agriculture that the whole empire flourished with wealth. Mihirbhoj brought the Pratihara empire to its climax with wealth and glory.
Mihirbhoj Pratihar’s army had more than 8,00,000 foot soldiers, about 90,000 horsemen, thousands of elephants, and thousands of chariots. Gold and silver were scattered on the roads in Mihirbhoj’s kingdom – but no one was afraid of theft and robbery. Just compare it with the reign of Harshavardhan Bais. In Harshvardhan’s kingdom, people did not lock their houses, but in Mihirbhoj’s kingdom, there was no fear of theft even in open places.
Mihirbhoj Pratihar was considered brave since childhood. Despite being a child, realizing his responsibility towards the country, he underwent rigorous training in the art of warfare and weaponry. Being the most brilliant, talented, and strong among the princes, the whole dynasty and other dynasties of the country also had a lot of hope for him at the time of foreign invasions and the rest of the country’s dynasty was going to live up to that trust. Mihirbhoj became the most glorious emperor of the Pratihara Rajput Empire. As soon as he sat on the throne, the air of the country changed. The stories of Mihirbhoj’s bravery became famous all over the world. Even in the time of foreign invasions, people remained fearless in their work. As soon as he sat on the throne, he selectively eliminated the country’s robbers, exploiters, and those who persecuted the poor. In his time there was no theft even in open houses. Arab traveler Sulaiman – Book Silsiliut Tuarikh 851 AD: When he came on a tour of India. Sulaiman writes about Emperor Mihirbhoj and that this emperor has a huge army. No king has such a large army as he does. Sulaiman has also written that there was no greater enemy of Islam in India than Emperor Mihirbhoj. Mihirbhoj has the best army of camels, elephants, and horsemen. Trade in its state is done with gold and silver coins. It is also said that there were mines of gold and silver in his kingdom. A king who forced the Arab Turk invaders to flee and in whose era India was called the golden bird. Friends, Emperor Mihirbhoj was the greatest ruler of India in the ninth century of the Parihar Kshatriya dynasty. His empire was the best equivalent of Chakravarti Gupta emperors for size, order, administration, and religious freedom of citizens. He not only defeated the Mlechos i.e. Muslim Turko-Arabs, the enemies of Indian culture but had terrified them so much that they could not even dare to look at India for the next century. Emperor Mihir Bhoj’s big arms and huge eyes easily created influence and attraction among the people. He was a great religious, mighty mighty, majestic, political expert, great diplomat, high organizer, able administrator, public welfare, and loyal ruler of Indian culture. A king whose empire was the most powerful in the world. There was no fear of thieves and dacoits in his empire. The strong system and economic prosperity were so much that foreigners called India a golden bird. It is sad to know that Mihirbhoj, rich in such incomparable power, bravery, and equality, did not find a place in the books of Indian history. During the reign of Emperor Mihirbhoj Pratihar, most Arabic Muslim writers came to visit India and after returning, they propagated Indian culture, civilization, spiritual-philosophical knowledge, science, Ayurveda, tolerant, universal harmonious life philosophy to Greece and Europe including the Arab world.
Do you know that Emperor Mihirbhoj was such a ruler who did not allow such Arab Turkish Muslim invaders to set foot on the land of India, who occupied more than half of the world on the strength of their sword, stood in front of them as a strong wall. They were so intimidated by its power and resistance that it was difficult to find a place to hide. This has not been written by any Indian writer but by Muslim historians Biladuri Salman and Alamsudi. Such great emperor Mihirbhoj ruled for a long period of 50 years from 836 AD to 885 AD. Emperor Mihirbhoj was strong, just, and a protector of religion. Mihirbhoj was a worshiper of Shiva Shakti and Bhagwati. The Prabha’s section of the Skandha Purana mentions Shivalayas and Peethas located in Prabha’s area of Lord Shiva. Somnath was considered one of the major pilgrimage places in India during the period of the Pratihara Empire. The prestige of Prabhas Kshetra was similar to that of Kashi Vishwanath. Details about the life of Emperor Mihir Bhoj are found in Prabha’s section of Skandha Purana. In relation to Mihir Bhoj, it is said that he was the supreme devotee of Somnath, he was also married in Saurashtra. had gone to the forest. Emperor Mihirbhoj’s coin, which was the currency, was used by Emperor Mihirbhoj in 836 AD to make Kannauj the capital of the country. On the coin of Emperor Mihirbhoj the great, the Varaha God who is known as the incarnation of Lord Vishnu. Lord Varah had protected the earth by killing the demon Hiranyaksha and taking it out of the underworld. Emperor Mihirbhoj Pratihar died at the age of 72 in Vikram Samvat 945 (888 AD).
Prabhakar Kumar.