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व्यक्ति विशेष

भाग – 273.

स्वतंत्रता सेनानी ईश्वर चन्द्र विद्यासागर

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर भारत के महान समाज सुधारक, शिक्षाविद्, और स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर जिले में हुआ था. वे अपने जीवनभर भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ संघर्षरत रहे, और शिक्षा, महिलाओं के अधिकारों और समाज सुधार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं.

विद्यासागर ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार किए. वे संस्कृत के विद्वान थे और उन्होंने बंगाली भाषा और लिपि को भी सुधारने में योगदान दिया. उन्होंने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया और कई महिला स्कूलों की स्थापना की. विद्यासागर ने बाल विवाह और सती प्रथा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में अभियान चलाया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1856 में ‘विधवा पुनर्विवाह अधिनियम’ पारित हुआ.

विद्यासागर एक सादा जीवन जीते थे और उनके विचारों में गहरी मानवता थी. वे अपने समय के नेताओं और सुधारकों के साथ काम करते रहे और समाज के पिछड़े वर्गों को शिक्षित करने पर जोर दिया. यद्यपि विद्यासागर मुख्य रूप से समाज सुधारक थे, लेकिन उनकी शिक्षा और विचारधारा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई नेताओं को प्रेरित किया. उनके समाज सुधार के कार्यों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनजागरण पैदा करने में मदद की.

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का निधन 29 जुलाई 1891 को कोलकाता, बंगाल में हुआ था. ईश्वर चंद्र विद्यासागर को उनके असाधारण योगदान के लिए भारतीय समाज में सम्मानपूर्वक याद किया जाता है.

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अभिनेता और निर्माता देव आनंद

देव आनंद भारतीय सिनेमा के एक महान अभिनेता, निर्माता और निर्देशक थे, जिन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए याद किया जाता है. उनका असली नाम धरमदेव पिशोरीमल आनंद था और उनका जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब (अब पाकिस्तान में) के शंकरगढ़ में हुआ था.

देव आनंद वर्ष 1940- 70 के दशक के बीच हिंदी सिनेमा के सबसे प्रमुख और करिश्माई अभिनेताओं में से एक थे. उनकी पहली फिल्म “हम एक हैं” (1946) थी, लेकिन उन्हें असली पहचान फिल्म “जिद्दी” (1948) से मिली. इसके बाद उन्होंने “बाजी” (1951), “काला पानी” (1958), “काला बाज़ार” (1960), “गाइड” (1965), “जॉनी मेरा नाम” (1970), “हरे राम हरे कृष्णा” (1971) जैसी कई हिट फिल्में दीं. देव आनंद अपने अनोखे अभिनय शैली और संवाद अदायगी के लिए मशहूर थे. उनकी स्टाइल और फैशन सेंस को भी खूब सराहा गया, खासकर उनकी सिग्नेचर हेयर स्टाइल और रोमांटिक भूमिकाएं.

देव आनंद ने 1949 में अपने भाइयों चेतन आनंद और विजय आनंद के साथ मिलकर “नवकेतन फिल्म्स” की स्थापना की. इस बैनर के तहत उन्होंने कई हिट फिल्मों का निर्माण किया. उनकी फिल्म “गाइड” (1965), जो आर.के. नारायण के उपन्यास पर आधारित थी, ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त की. उन्होंने निर्देशक के तौर पर भी काम किया और “हरे राम हरे कृष्णा” (1971) जैसी फिल्में बनाईं, जिसमें उन्होंने ज़ीनत अमान को लॉन्च किया. यह फिल्म युवाओं के जीवनशैली और हिप्पी संस्कृति पर आधारित थी.

देव आनंद को उनके कैरियर में कई पुरस्कार मिले. उन्हें “काला पानी” (1958) के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला. उन्हें 2001 में भारत सरकार द्वारा “पद्म भूषण” और भारतीय सिनेमा में उनके जीवन भर के योगदान के लिए 2002 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. देव आनंद का व्यक्तिगत जीवन भी उनके फिल्मी कैरियर की तरह रंगीन रहा. उनकी एक बेहद चर्चित प्रेम कहानी अभिनेत्री सुरैया के साथ रही, लेकिन वह विवाह में नहीं बदल पाई. बाद में उन्होंने अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से विवाह किया.

देव आनंद का निधन 3 दिसंबर 2011 को लंदन में हुआ. उनकी मृत्यु से भारतीय सिनेमा में एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी फिल्मों और योगदान से वह हमेशा याद किए जाएंगे. देव आनंद को भारतीय सिनेमा के सबसे स्टाइलिश और चिरयुवा अभिनेताओं में गिना जाता है. उनका जोश, ऊर्जा और नए प्रयोग करने की चाह उन्हें बाकी अभिनेताओं से अलग बनाती है.

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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह

डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ हैं, जो दो बार भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. उनका कार्यकाल 2004 – 14 तक चला. डॉ. सिंह को उनकी शांत और सुलझी हुई छवि के लिए जाना जाता है. वे भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे और अपने नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक फैसले किए.

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब (अब पाकिस्तान में) के एक छोटे से गाँव में हुआ था. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल. (डॉक्टरेट) की डिग्री हासिल की. वे भारतीय आर्थिक सेवा में शामिल हुए और बाद में कई प्रमुख आर्थिक और सरकारी पदों पर कार्य किया.

डॉ. सिंह का आर्थिक योगदान 1991 में सबसे प्रमुख रूप से देखा गया, जब वे भारत के वित्त मंत्री बने. उस समय भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, और डॉ. सिंह ने उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक सुधारों की शुरुआत की. वर्ष 1991 का भारतीय आर्थिक सुधार कार्यक्रम, जो विदेशी निवेश, व्यापार उदारीकरण और वित्तीय स्थिरता पर केंद्रित था, डॉ. सिंह के नेतृत्व में ही शुरू हुआ. इसके परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल होने में मदद मिली.

प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (2004-14)

वर्ष 2004-2009 (पहला कार्यकाल): – डॉ. सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में गठित यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार के प्रधानमंत्री बने. इस कार्यकाल में भारत की आर्थिक विकास दर तेजी से बढ़ी और देश में आईटी, सेवा और औद्योगिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई.

परमाणु समझौता: –  वर्ष 2008 में, डॉ. सिंह की सरकार ने अमेरिका के साथ एक ऐतिहासिक असैनिक परमाणु समझौता किया, जिससे भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग मिला.

वर्ष 2009-2014 (दूसरा कार्यकाल): –  यूपीए सरकार फिर से सत्ता में आई, और डॉ. सिंह का दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ. हालांकि इस अवधि में कुछ घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप सरकार पर लगे, जैसे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला आदि, जिसके कारण सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. हालांकि, डॉ. सिंह का आर्थिक नेतृत्व और नीतिगत दृष्टिकोण देश को वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभावों से बचाने में मददगार रहा.

डॉ. मनमोहन सिंह की पहचान एक विद्वान और विनम्र नेता के रूप में है, जिन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना. उन्हें 2007 में “टाइम्स” पत्रिका ने दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में शुमार किया. उन्हें 1987 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

डॉ. मनमोहन सिंह का शांत, सुलझा हुआ और बौद्धिक व्यक्तित्व भारतीय राजनीति में अद्वितीय रहा है. उनके द्वारा लाए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को एक नई दिशा दी और उनका योगदान देश के आर्थिक विकास में हमेशा याद रखा जाएगा.

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उद्योगपति लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर

लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर भारतीय उद्योगपति और “किर्लोस्कर ग्रुप” के संस्थापक थे, जो आज भारत की प्रमुख औद्योगिक कंपनियों में से एक है. किर्लोस्कर ने भारतीय औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कृषि उपकरण और मशीनरी निर्माण के क्षेत्र में अग्रणी रहे.

लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर का जन्म 20 जून 1869 को महाराष्ट्र के लातूर जिले के गुरहल में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उन्होंने आरंभ में कला और चित्रकला में दिलचस्पी दिखाई, लेकिन बाद में उन्होंने इंजीनियरिंग और औद्योगिक क्षेत्र में रुचि विकसित की. उन्हें पेंटिंग में भी रुचि थी, और उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन जल्द ही उन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कदम रखा.

लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर ने वर्ष 1888 में एक छोटी सी साइकिल मरम्मत की दुकान के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की. यह दुकान जल्द ही “किर्लोस्कर ब्रदर्स” के रूप में विकसित हुई. वर्ष 1910 में, उन्होंने महाराष्ट्र के कर्नाटक सीमा के पास “किर्लोस्करवाड़ी” नामक एक बंजर भूमि पर अपनी कंपनी की नींव रखी. इस क्षेत्र में उन्होंने मशीनरी और औद्योगिक उत्पादों का निर्माण शुरू किया. किर्लोस्कर ने भारत के किसानों के लिए सस्ती और टिकाऊ कृषि उपकरण बनाए, जिससे भारतीय कृषि को एक नई दिशा मिली.

किर्लोस्कर ने भारत में कृषि को आधुनिक बनाने का सपना देखा. उन्होंने भारतीय किसानों के लिए आधुनिक और सस्ते कृषि उपकरण बनाए, जैसे पानी की पंपिंग मशीनें, लोहे के हल, आदि. उन्होंने सिर्फ एक फैक्ट्री ही नहीं, बल्कि एक पूरे औद्योगिक नगर का निर्माण किया. किर्लोस्करवाड़ी भारत में सबसे पहले औद्योगिक शहरों में से एक था, जहां कर्मचारी और उनके परिवारों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं दी गईं. उनके द्वारा शुरू किया गया “किर्लोस्कर ग्रुप” आज भी भारत में विभिन्न प्रकार के औद्योगिक उत्पादों का निर्माण करता है, जैसे पंप, इंजन, मशीन टूल्स, और बिजली उत्पादन उपकरण. यह समूह विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है और वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुका है.

लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर का जीवन सादगी और परिश्रम का प्रतीक था. वे अपने कर्मचारियों और समाज के प्रति कर्तव्यनिष्ठा में विश्वास रखते थे. उन्होंने उद्योग को सिर्फ मुनाफे का साधन नहीं माना, बल्कि इसे समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाया.

लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर ने भारतीय औद्योगिकीकरण में जो योगदान दिया, उसे आज भी बड़े आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है. उनकी कंपनी “किर्लोस्कर ग्रुप” आज भी भारतीय उद्योग में एक प्रमुख नाम है. उनकी दूरदर्शिता और उद्यमशीलता ने भारतीय कृषि और औद्योगिक विकास को एक नई दिशा दी, और वे भारतीय उद्योग के अग्रदूतों में से एक माने जाते हैं.

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पार्श्वगायक और संगीतकार हेमन्त कुमार

हेमन्त कुमार जिन्हें हेमन्त मुखोपाध्याय के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध पार्श्वगायक और संगीतकार थे. वे हिंदी और बंगाली सिनेमा में अपने योगदान के लिए विशेष रूप से पहचाने जाते हैं. हेमन्त कुमार की गहरी, भावपूर्ण आवाज़ और उनकी संगीत रचनाएं आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.

हेमन्त कुमार का जन्म 16 जून 1920 को वाराणसी में हुआ था, लेकिन उनका परिवार बंगाल से था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की. शुरू में वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन संगीत के प्रति उनकी गहरी रुचि के कारण उन्होंने इसे छोड़ दिया और संगीत को ही अपना कैरियर बना लिया. उन्हें रवीन्द्र संगीत (रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीतों) के विशेषज्ञ के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने बचपन से ही रवीन्द्र संगीत का अभ्यास किया और इसे अपने गायन शैली में ढाला.

हेमन्त कुमार की आवाज़ की गहराई और भावनात्मक अपील ने उन्हें एक खास पहचान दिलाई. उनके गाए हुए गाने आज भी सदाबहार हैं.

प्रसिद्ध गाने: – 

“ये रात ये चांदनी फिर कहां” (फिल्म: जाल, 1952)

“ना तुम हमें जानो” (फिल्म: बात एक रात की, 1962)

“जिंदगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात” (फिल्म: बरसात की रात, 1960)

“तुम पुकार लो” (फिल्म: खामोशी, 1969)

“छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा” (फिल्म: मेरा साया, 1966)

हेमन्त कुमार ने न केवल पार्श्वगायन किया, बल्कि उन्होंने कई हिट फिल्मों के लिए संगीत भी दिया. उनके संगीत की विशेषता उसकी सादगी और मधुरता थी.

फिल्मों में संगीत निर्देशन: –

नागिन (1954) – इस फिल्म का गाना “मन डोले मेरा तन डोले” बेहद लोकप्रिय हुआ और इसमें बीन की धुन का प्रयोग बहुत मशहूर हुआ.

बीस साल बाद (1962) – इस फिल्म का गाना “कहीं दीप जले कहीं दिल” आज भी लोकप्रिय है.

साहिब बीबी और गुलाम (1962) – फिल्म में उनके संगीत को काफी सराहा गया, खासकर गाने “ना जाओ सैंया” और “पिया ऐसो जिया में“.

हेमन्त कुमार बंगाली सिनेमा में भी एक प्रमुख गायक और संगीतकार थे. उन्होंने बंगाली में कई हिट गाने गाए और संगीत दिया. उनका रवीन्द्र संगीत के प्रति गहरा जुड़ाव था, और उन्होंने इसे बंगाली और हिंदी फिल्मों में लोकप्रिय किया.

 हेमन्त कुमार ने रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीतों को अपनी मधुर आवाज़ और संगीत निर्देशन से और भी लोकप्रिय बनाया. उन्होंने हिंदी और बंगाली दोनों भाषाओं में काम किया और दोनों सिनेमा इंडस्ट्री में समान रूप से सफल रहे. उनकी गहरी और मर्मस्पर्शी आवाज़ ने उन्हें एक विशेष पहचान दी. रोमांटिक और भावनात्मक गानों में उनकी आवाज़ का जादू अद्वितीय था.

हेमन्त कुमार को कई राष्ट्रीय और फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनके गाने और संगीत आज भी विभिन्न मंचों पर सराहे जाते हैं और नई पीढ़ी के गायकों द्वारा गाए जाते हैं.

हेमन्त कुमार का विवाह बेला मुखोपाध्याय से हुआ था. उनके बेटे जयंत मुखोपाध्याय और बेटी रितु मुखोपाध्याय भी संगीत से जुड़े रहे हैं. उनका निधन 26 सितंबर 1989 को कोलकाता में हुआ, लेकिन उनकी आवाज और संगीत आज भी श्रोताओं के दिलों में जीवित है. हेमन्त कुमार को उनकी बहुमुखी प्रतिभा, गहरी और मधुर आवाज़, और सादगीपूर्ण संगीत के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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