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‘ठाकुर’ कहां हो तुम !

भगवान् तेरे बनाये संसार की क्या अजीब पहेली है…? जब राम को हृदय में बसा कर आत्मसात करने की जरूरत है तो वहीं लोग “तेरे न्योते” के लिए मारा-मारी कर रहें है तो, कहीं मान-मैन्युअल का दौर चल रहा है. वहीं दूसरी तरफ, आवाम की विकृत सोच और मानसिकता का दौर अब घर-घर की कहानी बन चुकी है.

वो भी एक दौर बीत गया जहाँ राज-काज में आचार्यों – महर्षियों का बोल –बाला था जहाँ सामजिक कामकाज में आचार्यों – महर्षियों के राय –विचार के वगैर कोई भी काम नहीं होता था. लेकिन अब कलयुग है भाई… अब के आचार्यों – महर्षि उपेक्षा के दौर में जीवन यापन कर रहें हैं.

विगत वर्ष पहले महामारी के दौर में आधुनिक युग में लोग अपने घरों में प्रतिदिन रामायण व महाभारत सहित के तरह के धार्मिक सीरियल देख रहें हैं. क्या आप बता सकते हैं कि, कितने लोग देख कर आत्मसात कर रहें हैं ! वहीं दूसरी तरफ आचार्यों व विद्वानों की टोली समस्त जगत में घूम-घूमकर धर्म का प्रचार –प्रसार कर रहें हैं. धर्म प्रचार के लिए तमाम तरह के हथकंडे का भी प्रयोग किया जाता है फिर भी वर्तमान समय की आवाम पर …

जब ईश्वर एक है और इनके कई नाम है… ठीक उसी तरह ईश्वर की आराधना के तरीके भी अलग –अलग क्यूँ ! मुझे ऐसा महसूस होता है कि, वर्तमान समय की आवाम मत-भिन्नता के शिकार हो रहें हैं या शिकार हो चुके हैं.

पौराणिक ग्रंथों में त्रिदेव व त्रिदेवीयों का जिक्र मिलता है. जब राम और शिव में भेद नहीं है ठीक उसी तरह दुर्गा और लक्ष्मी में भेद नहीं है तो फिर तमाम तरह के आचार्य धर्म प्रचार व प्रसार में मत भिन्नता का प्रयोग क्यूँ करते हैं? मुझे ऐसा महसूस होता है कि वर्तमान समय में आचार्यों व विद्वानों की टोली ने समस्त जगत को भय से आक्रांत कर दिया है. सभी एक सुर में यही कहते हैं कि … मेरे राम, मेरे कृष्ण और मेरे भोलेनाथ ! भाई ये क्या हो रहा है…?

हम सभी बाते बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन “ अमल” करना भूल गए हैं. आरोप-प्रत्यारोप के दौर में “मेरे और हमारे या यूँ कहें कि, हम सभी के” .. को भूल गए हैं. जिसने जगत को बनाया होगा ..आज उसे भी शर्मसार होना पड़ रहा होगा कि “मैंने जगत क्यूँ बनाया” !

वर्तमान समय के दौर में हम सभी लोग धर्म के नाम पर तामम तरह के  डींगे हाँकते हैं परन्तु “ धर्म “ की जगह उसके “मर्म “ को समझाया या बताया जाता तो आज ‘मेरे और तेरे’ की लड़ाई से कोसों दूर एक स्वर्णिम भारत की स्वर्णिम उंचाईयों की ओर अग्रसर होते.   

सांस्कृतिक विविधताओं के देश में ‘राम’ तेरा हाल –बेहाल है… कभी तो तू पुरुषोत्तम, छलिया और ना जाने कितने तेरे नाम थे पर स्वार्थ की आंधी में ‘राम’ तेरा हाल –बेहाल है. आज ‘राम’ की लड़ाई नहीं –नहीं ‘राम’ के लिए लड़ाई का दौड़ चल रहा है… कहीं ये ‘माता’ के छोड़ने का असर तो नहीं. जिस देश में कभी ‘सीता –राम’ हुआ करते थे परन्तु आज “राम” अकेले हो गए ! 

हे क्लीक, ये तेरी कैसी माया है तेरे शासन में ‘राम’ के लिए उलझ गए परन्तु ‘सीता मैया’ को भूल गए. लव-कुश तो याद आए परन्तु “सीता मैया” को भूल गए. हे कौशल्या नन्दन अयोध्या की हर गली में तेरे चरणों के चिन्ह मौजूद है फिर हम सभी न्योते के इन्तजार में ….!

इस देश की परम्परा रही है. कभी आवाहन कर आपको बुलाते थे यदाशक्ति आपकी सेवा करते थे परन्तु आज हे कैकेयी नन्दन तू हम सभी को न्योता देना भूल गये. हे राम ! नया घर और नई रूप मिलते ही तू हम सबको भूल गये ? कही परम्परा का उलाहना दिया जा रहा है तो कहीं तेरे वजूद का. राम तूने पहले माता सीता को भुला उसके बाद न्योता देना भूल गये. 

‘राम’ कभी सबके आराधक थे परन्तु आज सेवक कैसे हो गये ! संस्कृति की बात तो हम सभी करते हैं परन्तु पालन कौन करता हैं. घर-घर में बसने बाले ठाकुर आज तेरा हाल –बेहाल हो गया है. तू पत्थर की मूरत पहले ही ठीक था देख तेरे नाम का क्या हाल हो रहा है. 

ज्ञानसागरटाइम्स परिवार की ओर से आप सभी पाठकों को लोहड़ी व मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ .                                             

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