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पहचान व संस्कृति से दूर हो गए…

हाड़-मांस के पुतले को मानव कहते हैं तो………पुराणों में वर्णन जिस मानव की चर्चा की गई है वो मानव कौन हैं,कैसे होते हैं,क्या वर्तमान समय में जो हाड़-मांस के पुतले हैं वही मानव है या उसी का वर्णन किया गया है….? आधुनिकता का आलम ये है कि आज के मानव……मानव नही अतिआधुनिक मशीन है या यूँ कहें स्वार्थ से लबरेज शरीर की छाया है……..जो हर समय डंक रूपी विष से हर किसी को जहर पिलाते रहते है.कुछ लोग जहर पीने के लिए बने होते हैं…….या मजबूर किए जाते हैं.मानव जीवन में लालच,जलन व इर्ष्या गहरी पैठ बना चुकी है,जड़ो को दीमक के ऐसा खोखली कर दिया है…या खोखला कर रहा है.

बिना स्वार्थ के सम्बन्ध नहीं बनते हैं…….स्वार्थ अगर न हो तो माता-पिता भी दुश्मन हो जाते हैं…..बाकि सम्बन्ध तो दिखावे के होते हैं. पुरातन हिन्द में संयुक्त परिवार हुआ करता था…….लेकिन वर्तमान समय में दिखावे का सम्बन्ध होता है. पुरातन व्यवस्था सौ टके अच्छी होती थी,जिसमे परिवार के सुख-दुःख में शामिल परिवार का हर सदस्य शामिल होता था…..? लेकिन वर्तमान समय की व्यवस्था में सौ प्रतिशत जलन व मानसिक उत्पीडन होता है. कुछ आबादी संयुक्त परिवार के स्वरूप को आधुनिक बना कर संयुक्त परिवार के मायने व स्वरूप ही बदल दिए है…..? समाज का बड़ा वर्ग एकल परिवारवाद का समर्थन करता है ……….कुछ लोग स्वार्थवश या दिखावे के लिए संयुक्त परिवार का समर्थन  करते हैं….?

जिस देश में अंग्रेजो के शासन के पहले साक्षरता दर सौ प्रतिशत थी……..वहीं गुलामी के बाद आजाद भारत की साक्षरता की आलम ये है कि घर-घर में डिग्री की दुकाने खुल गई है. सरकार की तमाम उपाय के बाद भी निरक्षर लोगों की संख्या घटने के वजाय बढ़ ही रही है. पुरातन भारत के संस्कृति के चर्चे पुरे विश्व में होते थे,पुरातन भारत की विज्ञान,सोच व धर्म के चर्चे पुरे विश्व में होते थे………..लेकिन आधुनिक भारत में खाने-पीने से लेकर हर छोटी  बड़ी जरूरत के लिए निर्यात पर निर्भर रहना पड़ता है? वर्तमान समय में धर्म व संस्कृति विकाऊ बैल के समान हो गई है.

पश्चिमी संस्कृति के लोग भारतीय संस्कृति व विज्ञान के दीवाने हो रहे है…..या यूँ कहें दीवाने है……वहीं आधुनिक भारतीय पश्चिमी संस्कृति के दीवाने हो रहें है…….हम सभी लोग फास्टफूड संस्कृति का हिस्सा बनते जा रहे है.शरद ऋतू बीतने व ग्रीष्म ऋतू के आगवन तथा नई फसल आने के बाद होली का पर्व मनाया जाता था…..जिसमें गली-नुक्कड़ों,चौपालों पर लोकगीत गाते-बजाते थे…….ढोल-मंजीरे की थाप से वातावरण गुन्जामयन होता था. आपसी भाईचारे का यह पर्व…….पश्चिमी संस्कृति के दीवानों के बीच यह प्राय: लुप्त ही हो गया है……? आजादी के एक अरसे के बाद भी गुलामी की जंजीर पहनने को मजबूर हो रही है भारतीय संस्कृति……..? रंग-गुलाल लगा कर नये साल में प्रवेश करते थे…….वहीं वर्तमान समय में दिसम्बर की आखरी तारीख के अर्द्धरात्रि के बाद ही एक-दुसरे को नये साल की बधाई देना शुरु कर देते हैं,पूरा जनवरी माह एक-दुसरे को बधाई देते है…….? अगर वर्तमान समय में भी आधुनिक भारतीय भी संयुक्त परिवार की अहमियत को  समझते तो पश्चिमी संस्कृति हावी तो न होती…..? आधुनिक भारतीय अपनी पहचान खो रहें हैं या आधुनिक बनने का दिखावा में मरे जा रहे हैं.वर्तमान समय में भी सरकार का सालाना बजट मार्च महीने में यानि होली के बाद ही आता है पर आवाम दो महीने पहले ही पुराने साल में नये साल का जश्न मनाने के बाद इतिश्री कर लेते हैं. संयुक्त परिवारवाद की परम्परा को तोड़ने का सबसे बड़ा फायदा तो यह हुआ कि हम सभी भारतीय अपनी पहचान व संस्कृति से दूर हो गए. पुरातन ग्रंथो में दोस्ती के कई उदाहरन दिए गये हैं…..लेकिन वर्तमान समय में स्वार्थ का दूसरा नाम है दोस्ती.वर्तमान समय में दोस्ती के मायने व स्वरूप ही बदल गये हैं……जबतक आपसे काम निकलना है तभी तक ही दोस्ती होती है स्वार्थ सिद्ध होते ही दोस्त आपके जान के दुश्मन हो जाते है.जब तक कार्य सिद्ध न हो तो दोस्त तो भगवान ही होता है…… कार्य सिद्ध होने बाद ही………आपसे घटिया इन्सान और दूसरा कोई नहीं होता है…..लड़ाई भी ऐसी नहीं जो आपसी भाईचारे को तार-तार कर देते हैं. वर्तमान समय में दोस्ती व परिवार का दूसरा नाम “स्वार्थ” ही है. अगर आपसे स्वार्थ है तो सारे तरह के सम्बन्ध जायज हैं………..लेकिन स्वार्थ पूर्ण होते ही सारे सम्बन्ध नाजायज हो जाते हैं व एक-दुसरे के लहु के प्यासे भी हो जाते हैं………? आज हमारी सोच निचले स्तर पर पहुंच गई है…………? कहीं ऐसा तो नहीं संयुक्त परिवार के विघटन के कारण सोच भी संकुचित हो गई हो…….?

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Away from identity and culture.

If the effigy of flesh and bone is called a human…..the human who has been described in the Puranas, who is the human, how are they, are the effigies of flesh and bone present in the present time the same? Is it human or has it been described….? The condition of modernity is that today’s human is not a human, it is an ultra-modern machine, or rather it is a shadow of a selfish body, which always poisons everyone with stinging poison. Some people are made to drink poison……or are forced to. Greed, Jealousy, and Jealousy have made deep inroads in human life, and have made the roots hollow like termites.. .or hollowing out.

Relationships are not made without selfishness…..if there is no selfishness then parents also become enemies….rest of the relations are to show off. In ancient India, there used to be a joint family.. ….. But in the present time, there is a relation between appearances. The ancient system used to be hundred times better, in which every member of the family was involved in the happiness and sorrow of the family…..? But in the present time system, there is a hundred percent jealousy and mental harassment. Some population has changed the meaning and form of the joint family by modernizing the form of joint family…..? A large section of society supports nuclear familyism………. some people selfishly or to show off support joint family….?

In a country where the literacy rate was 100% before the British rule, whereas after slavery, the condition of literacy in independent India is that degree shops have opened in every house. Despite all the measures taken by the government, the number of illiterate people is increasing instead of decreasing. The culture of ancient India used to be discussed all over the world, and the science, thought, and religion of ancient India used to be discussed all over the world………..but in modern India everything from eating and drinking to small and big Needs to depend on exports? In the present times, religion and culture have become like bulls for sale.

People of western culture are getting crazy about Indian culture and science…..or rather they are crazy…… whereas modern Indians are getting crazy about western culture…… They are becoming a part of the culture. Holi festival was celebrated after the passing of the autumn season and the arrival of the summer season and new crops….. In which folk songs were sung and played on street corners, chaupaalon… The atmosphere used to reverberate with the beats of Dhol-Manjeera. This festival of mutual brotherhood…… has almost disappeared among the lovers of western culture……? Indian culture is being forced to wear the chains of slavery even after a long time of independence……..? Used to enter the new year by applying color and gulal….whereas in the present time only after the midnight of the last date of December, do they start congratulating each other for the new year, the whole month of January is one- Do you congratulate others…….? If modern Indians also understood the importance of joint family even in present times, then western culture would not have dominated…..? Modern Indians are losing their identity or are dying in the pretense of being modern. Even at present, the annual budget of the government comes in March i.e. after Holi, but the people celebrate the new year in the old year two months in advance. After that let’s do Itishree. The biggest advantage of breaking the tradition of joint familyism was that we all Indians got away from our identity and culture. Many examples of friendship have been given in ancient texts…..but in the present time, the other name for selfishness is friendship. In the present time, the meaning and form of friendship have changed……as long as you have to work, then only Friendship lasts only till selfishness is proven, and friends become enemies in your life. Until the work is not proven, God is the friend……Only after the work is proven…….. There is no other person worse than you….. Even the fight is not such that it destroys the mutual brotherhood. In the present times, the second name of friendship and family is “selfishness”. If there is selfishness with you, then all kinds of relations are justified………..but as soon as selfishness is fulfilled, all the relations become illegitimate and they also become thirsty for each other’s blood….. ….? Today our thinking has reached the lowest level…………? Is it not that due to the disintegration of the joint family, the thinking has also become narrow…….?

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