
महाशिवरात्रि-2025.
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम महीना ‘फाल्गुन’ का महीना चल रहा है. फाल्गुनी नक्षत्र होने के कारण ही इस महीने का नाम फाल्गुन पड़ा. इस महीने से धीरे धीरे गरमी की शुरुआत होती हैऔर सर्दी कम होने लगती है. बसंत का प्रभाव होने से इस महीने में प्रेम और रिश्तों में मधुर संबंध होते हैं. वैसे तो इस महीने में कई पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं लेकिन, उनमे से प्रमुख पर्व में फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को भगवान् शिव की उपासना का महापर्व शिवरात्री और पूर्णिमा को रंगों का पर्व होली मनाया जाता है. महाशिवरात्रि का अर्थ है “शिव की महान रात्रि”, जो आध्यात्मिक जागरण और आत्मशुद्धि का प्रतीक है.
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, एक ऐसे भगवान जिनके कई नाम हैं और हर नाम की अलग-अलग विशेषता है जैसे रूद्र. रूद्र का अर्थ होता है रोनेवाला, उसी प्रकार उनका एक नाम है शिव. वैसे तो देखा जाय तो शिव की विवेचना ज्ञानी लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं. आखिर शिव का अर्थ है क्या? तार्किक दृष्टिकोण हो या वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से भी देखते है तो भी शिव का अर्थ और उसके मायने भी एक ही होते हैं. शिव का अर्थ होता है “ शिव” शब्द का अर्थ “शुभ, स्वाभिमानिक, अनुग्रहशील, सौम्य, दयालु, उदार, मैत्रीपूर्ण” होता है”. लोक व्युत्पत्ति में “शिव” की जड़ “शि” है जिसका अर्थ है जिन में सभी चीजें व्यापक है और “वा” इसका अर्थ है “अनुग्रह के अवतार”.
ऋग वेद में शिव शब्द एक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है, रुद्रा सहित कई ऋग्वेदिक देवताओं के लिए एक विशेषण के रूप में है. शिव शब्द ने “मुक्ति, अंतिम मुक्ति” और “शुभ व्यक्ति” का भी अर्थ दिया गया है. शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं. शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं. शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है. शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति, काल भैरव, भूतनाथ आदि.
भगवान शिव के मूल मंत्र में पांच मन्त्रों का समायोजन है, जिसे पंचाक्षर भी कहा जाता है. प्रकृति में मौजूद पांच तत्वों के प्रतीक को ही पंचाक्षर माना जाता है. जिस प्रकार मानव शरीर में पांच द्वार कहे गये है और पाँचों द्वार की शुद्धि की जाती है, और इन पांच केन्द्रों को जगाकर योग क्रिया की जाती है. पुरानों के अनुसार भगवान शिव एक लोटे जल और एक वेलपत्र से खुश या प्रसन्न हो जाते हैं. आखिर विल्वपत्र या वेल पत्र शिव को इतना प्रिय क्यों है? पौराणिक ग्रंथो के अनुसार, बेल के वृक्ष को सम्पूर्ण सिद्धियों का आश्रय स्थल भी कहा जाता है. चूकिं बेलपत्र को भगवान शिव के त्रिनेत्र रूप का प्रतीक भी माना जाता है या यूँ कहें कि, इसकी तीन पत्तियों को सत्व, रज और तम के रूप में भी जाना जाता है.
शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शिव मात्र एक लोटा जल, बेलपत्र, मंत्र जप से ही प्रसन्न हो जाते है. अत: मनुष्य अगर शिव का इतना भी पूजन कर लें तो पाप कर्मों से सहज मुक्ति प्राप्त हो जाती है. शिव की आराधना, साधना, उपासना से मनुष्य अपने पापों एवं संतापों से इसी जन्म में मुक्ति पा सकता है.
फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाने वाला महापर्व है महाशिवरात्रि. इस दिन त्रिदेवों के एक देव महादेव की उपासना की जाती है. पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान शंकर का ब्याह या यूँ कहें कि, विवाह माता पार्वती से हुआ था. माता पार्वती भी भगवान गंगाधर को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. उसके बाद माता का विवाह भगवान विशेश्वर से हुआ था. भगवान मृत्युंजय ने माता पार्वती से विवाह के दौरान सात वचन दिए थे, तभी से ये परम्परा वर्तमान समय तक चला आ रहा है.
वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी ‘शिवरात्रि’ कहलाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को ‘महाशिवरात्रि’कहा जाता है.पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, इस दिन शिवोपासना करने से भक्ति और मुक्ति दोनों ही देने वाली मानी जाती है. कहा जाता है कि, इस दिन की अर्धरात्रि के समय भगवान शिव लिंगरूप में प्रकट हुए थे,इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली त्रयोदशी ग्रहण करनी चाहिए. नारद संहिता के अनुसार, फाल्गुन कृष्णपक्ष की त्रयोदशी का व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है. जबकि, ईशान संहिता के अनुसार इस दिन ज्योतिर्लिग का प्रादुर्भाव हुआ था.
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को ही महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चंद्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं, जो जीवनीशक्ति में वृद्धि करती हैं यद्यपि त्रयोदशी का चंद्रमा क्षीण रहता है, लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं.
महाशिवरात्रि का सांस्कृतिक महत्व अत्यंत ही गहरा है. यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है. इस दिन देशभर में शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, सोमनाथ और महाकालेश्वर जैसे प्रमुख शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
महाशिवरात्रि एक ऐसा त्योहार है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक तीनों पहलुओं को समेटे हुए है. यह त्योहार न केवल भगवान शिव की आराधना का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है. महाशिवरात्रि का त्योहार हमें आध्यात्मिक जागरण, आत्मशुद्धि और समाज में समरसता स्थापित करने की प्रेरणा देता है. यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि भक्ति और समर्पण के माध्यम से हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं.