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व्यक्ति विशेष

भाग – 406.

स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान

स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान जिन्हें बाद में “बाचा ख़ान” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण संघर्षक थे और अपने नेतृत्व में पश्चिमी भारत के पठान क्षेत्र के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में जुटने के लिए प्रोत्साहित किया.

अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का जन्म 6 फ़रवरी 1890 को पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था. उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर असहमति सत्याग्रह और खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और अपने सजीव असहमति के लिए जाने जाते थे. अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का सबसे प्रमुख योगदान यह था कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान “खुदाइ खिदमतगार” (सर्वोधयक सेवक) संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ग्रामीण सेवाओं की प्रोत्साहन करना और असहमति सत्याग्रह के लिए लोगों को तैयार करना था. उन्होंने अपने संगठन के सदस्यों को अमरान्थ यात्रा और दांडी मार्च जैसे महत्वपूर्ण स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने के लिए मोबाइलाइज किया.

अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को “सरदार-ए-ख़दीम” (सेनानी का नेता) के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें गांधीजी के सबसे निष्कलंक सहयोगी में से एक माना जाता है. उन्होंने अपने जीवन में असहमति और अंधविश्वास के खिलाफ खड़े होकर महत्वपूर्ण योगदान किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने 20 जनवरी 1988 में अपने जीवन की आखिरी सांस ली.

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कवि प्रदीप

कवि प्रदीप का पूरा नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था. वे एक प्रमुख हिंदी कवि और समीक्षक थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को अपने लेखन से बहुत योगदान दिया. प्रदीप का जन्म  6 फ़रवरी, 1915 में मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर नामक क़स्बे में हुआ था.

कवि प्रदीप ने अपनी कविताओं में भारतीय समाज, संस्कृति, और भाषा के महत्व को प्रमोट किया और उनका योगदान हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी प्रमुख कविताओं में से कुछ प्रमुख हैं: –

ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से, मैं तो आरती उतारूँ, पिंजरे के पंछी रे, तेरे द्वार खड़ा भगवान, दूर हटो ऐ दुनिया वालों आदि.

कवि प्रदीप का निधन 11 दिसंबर 1968 को मुंबई में हुआ था. कवि प्रदीप ने अपने लेखन से साहित्यिक साक्षरता को बढ़ावा दिया और उनका योगदान भारतीय साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है.

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पार्श्वगायक और ग़ज़ल गायक भूपिंदर सिंह

भूपिंदर सिंह एक भारतीय पार्श्वगायक और ग़ज़ल गायक थे, जिन्होंने अपने विशिष्ट अंदाज और मधुर आवाज़ से भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में एक खास स्थान बनाया था. उनका जन्म 6 फरवरी 1940 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था. भूपिंदर सिंह का जन्म एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुआ था. उनके पिता, प्रोफेसर नाथ सिंह, एक प्रतिष्ठित संगीतकार और शिक्षक थे. भूपिंदर सिंह ने अपने पिता से ही संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की.

भूपिंदर सिंह ने ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली में एक संगीतकार और गायक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन के विभिन्न कार्यक्रमों में भी प्रदर्शन किया. भूपिंदर सिंह का बॉलीवुड कैरियर 1964 में शुरू हुआ जब संगीतकार मदन मोहन ने उन्हें फिल्म “हकीकत” में गाने का मौका दिया. उनका पहला गीत “हो के मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा” था, जिसे उन्होंने मोहम्मद रफी, मन्ना डे, और तलत महमूद के साथ गाया. इसके बाद उन्होंने कई हिट गाने गाए, जैसे “नाम गुम जाएगा” (किनारा), “बीती ना बिताई रैना” (परिचय), “दिल ढूंढता है” (मौसम), और “एक अकेला इस शहर में” (घरौंदा).

भूपिंदर सिंह ने पार्श्वगायकी के अलावा ग़ज़ल गायकी में भी अपनी पहचान बनाई. उनकी आवाज़ और ग़ज़लों की प्रस्तुति ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया. उनकी पत्नी मिताली सिंह भी एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका हैं, और दोनों ने मिलकर कई ग़ज़ल एल्बम प्रस्तुत किए. उनके ग़ज़ल एल्बम जैसे “वो क्या दिन थे,” “आशियाना,” और “करचियाँ” बहुत लोकप्रिय हुए.

भूपिंदर सिंह ने संगीतकार के रूप में भी काम किया और कई गानों और एल्बमों का संगीत निर्देशन किया. उनकी संगीत शैली में शास्त्रीय संगीत का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है. उनकी आवाज़ में एक गहरी भावनात्मकता और विशिष्टता थी, जो उनके गानों को एक अलग पहचान देती थी. उनके गाने और ग़ज़लें आज भी संगीत प्रेमियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं.

भूपिंदर सिंह ने ग़ज़ल गायिका मिताली सिंह से शादी की. दोनों ने कई ग़ज़ल कॉन्सर्ट्स और एल्बम्स में एक साथ काम किया. भूपिंदर सिंह का निधन 18 जुलाई 2022 को मुंबई में हुआ. उनके निधन से भारतीय संगीत जगत ने एक महान कलाकार को खो दिया. उनका  योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य है. उनकी आवाज़ और गायकी की शैली ने उन्हें एक अमर कलाकार बना दिया है. उनकी ग़ज़लें और गाने सदियों तक संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजते रहेंगे.

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क्रिकेट खिलाड़ी एस. श्रीसंत

एस. श्रीसंत एक पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। उनका पूरा नाम शंकर श्रीसंत है, और वे 6 फरवरी 1983 को कोठामंगलम, केरल में पैदा हुए थे. उनका पूरा नाम शान्ताकुमारन श्रीसंत है.

श्रीसंत क्रिकेट के माध्यम से अपनी कैरियर की शुरुआत करते समय भारतीय दाहिने हाथ के तेज़-मध्यम गेंदबाज है. श्रीसंत ने भारतीय क्रिकेट की तीन विभागों में खेला – टेस्ट क्रिकेट, वनडे इंटरनेशनल, और टी20 इंटरनेशनल, लेकिन उनका प्रमुख योगदान वनडे और टी20 क्रिकेट में रहा. उन्होंने भारतीय टीम के साथ कई महत्वपूर्ण खिलाड़ियों के साथ खेला और महत्वपूर्ण मोमेंट्स में भाग लिया।

हालांकि, उनकी क्रिकेट कैरियर में विवादों और संयमित रूप से उनके व्यवहार के कारण कुछ समय के लिए बाहर जाना पड़ा, लेकिन फिर भी वे एक महत्वपूर्ण भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं.

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अभिनेत्री नोरा फतेही

नोरा फतेही एक लोकप्रिय कनाडाई-मोरक्कन डांसर, अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो भारतीय फिल्म उद्योग में अपने शानदार डांस मूव्स और आकर्षक स्क्रीन प्रेजेंस के लिए जानी जाती हैं.

नोरा फतेही का जन्म 6 फरवरी 1992 को मॉन्ट्रियल, कनाडा में हुआ था. वो एक भिनेत्री, डांसर, मॉडल है.  नोरा ने अपने कैरियर की शुरुआत 2014 में बॉलीवुड फिल्म Roar: Tigers of the Sundarbans से की थी. हालांकि, उन्हें असली पहचान आइटम सॉन्ग्स और डांस परफॉर्मेंस के जरिए मिली.

फिल्में और गाने:

“दिलबर” (सत्यमेव जयते, 2018) – यह उनका ब्रेकआउट गाना था, जिसने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार बना दिया.

 “गर्मी” (स्ट्रीट डांसर 3D, 2020) – इस गाने में उनका जबरदस्त डांस परफॉर्मेंस चर्चा का विषय बना.

“ओ साकी साकी” (बाटला हाउस, 2019) – यह भी एक हिट आइटम नंबर साबित हुआ।

 “कमरिया” (स्त्री, 2018) – इस गाने ने भी काफी पॉपुलैरिटी हासिल की.

 “मानिके” (थैंक गॉड, 2022) – इस श्रीलंकाई गाने के हिंदी वर्जन में उन्होंने सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ स्क्रीन शेयर की.

नोरा इस सीजन में वाइल्ड कार्ड एंट्री के रूप में शामिल हुई थीं. उन्होंने झलक दिखला जा 9 डांस रियलिटी शो में भी भाग लिया था.  इंडियाज बेस्ट डांसर, डांस दीवाने जूनियर्स में नोरा जज के रूप में भी नजर आईं थी.

नोरा अपने फैशन सेंस और स्टाइल के लिए भी जानी जाती हैं. उनका नाम कई बार अफवाहों में बॉलीवुड स्टार्स के साथ जोड़ा गया है, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने कैरियर को प्राथमिकता दी है.  नोरा को बॉलीवुड की “डांसिंग क्वीन” कहा जाता है. वो हिप-हॉप, बेली डांस और कंटेम्पररी डांस फॉर्म्स में एक्सपर्ट हैं. मोरक्कन मूल की होने के बावजूद, उन्होंने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कमाल की पकड़ बना ली है.

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राजनीतिज्ञ मोतीलाल नेहरू

मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे जो ब्रिटिश भारत में अपने समय के दौरान उल्लेखनीय रूप से सक्रिय रहे. वे जवाहरलाल नेहरू के पिता थे, जो बाद में भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई 1861 को हुआ था और उनकी मृत्यु 6 फरवरी 1931 को हुई थी. वे एक योग्य वकील भी थे और उन्होंने अपने वकालती कैरियर से खासी प्रतिष्ठा और संपत्ति अर्जित की थी.

मोतीलाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दो बार इसके अध्यक्ष के रूप में सेवा की. उन्होंने नेहरू रिपोर्ट (1928) का नेतृत्व किया, जिसमें भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस की मांग की गई थी, जो उस समय भारतीय स्वराज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता था. उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में काफी महत्वपूर्ण रहा है.

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उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और चिकित्सक थे, जिन्होंने विशेष रूप से कालाजार की दवा बनाकर लाखों की जिंदगी बचाई. फिर भी उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिल सका.

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी का जन्म 19 दिसम्बर, 1873 को बिहार के मुंगेर जिले के जमालपुर कस्बे में हुआ था. उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी ने 1899 में राज्य चिकित्सा सेवा में प्रवेश किया और ढाका मेडीकल कॉलेज में औषधि के शिक्षक के रूप में चार वर्षों तक काम किया. सेवानिवृति के बाद उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी अवैतनिक प्रोफेसर के रूप में  कोलकाता विश्वविद्यालय के विज्ञान महाविद्यालय में जैवर सायन विभाग में सेवा देते रहे. कई प्रयासों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी ने कालाजार को नियंत्रित करने वाली दवा तैयार किया और उसका नाम ‘यूरिया स्टीबामीन’ नाम दिया.

भारत की तरफ से सबसे पहले 1929 में दो  भारतीयों का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था जिनमें एक नाम उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी का भी था. उसके बाद 1942 में दोबारा नोबेल पुरस्कार के लिए नामित हुआ लेकिन, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के कारण उस साल नोबेल पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया.

उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी पेशे से डॉक्टर थे और वे अनुसंधान द्वारा उपचार को सहज व पूर्ण प्रभावी बनाने में विश्वास करते थे. उनका निधन 6 फरवरी 1946 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था.

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 वैज्ञानिक आत्मा राम

डॉ. आत्मा राम भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाविद थे, जिन्होंने भारतीय विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे भौतिक रसायनशास्त्र (Physical Chemistry) के विशेषज्ञ थे और भारतीय कांच उद्योग के विकास में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. आत्मा राम भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे और उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए कई नीतियों का निर्माण किया.

डॉ. आत्मा राम का जन्म 12 अक्टूबर सन 1908 में उत्तर प्रदेश राज्य के बिजनौर ज़िले में पीलाना नामक स्थान पर हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से प्राप्त की और उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) गए, जहां उन्होंने भौतिक विज्ञान (Physics) में स्नातक और परास्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.

डॉ. आत्मा राम को भारतीय कांच उद्योग के विकास में उनके कार्यों के लिए जाना जाता है. उन्होंने कांच की तकनीकी गुणवत्ता में सुधार किया, जिससे भारत आत्मनिर्भर हो सका. उनका शोध कांच के विभिन्न प्रकारों, जैसे ऑप्टिकल ग्लास और फाइबर ग्लास, के निर्माण और उपयोग पर केंद्रित था. आत्मा राम वर्ष 1966-71 तक काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के महानिदेशक रहे. इस दौरान उन्होंने वैज्ञानिक शोध और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई कदम उठाए. उनके कार्यकाल में सीएसआईआर ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शोध कार्य किए.

आत्मा राम ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस (Indian Science Congress) में भी प्रमुख भूमिका निभाई और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को एकजुट किया. वे प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे और उन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी नीतियों के विकास में योगदान दिया, जो भारत के औद्योगिक और तकनीकी विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ.

डॉ. आत्मा राम को उनके योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें वर्ष 1961 में विज्ञान और इंजीनियरिंग में पद्म श्री पुरस्कार भी शामिल है. उनके नाम पर भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कई प्रतिष्ठित सम्मान और संस्थान हैं, जो उनके वैज्ञानिक योगदान को याद करते हैं. डॉ. आत्मा राम का जीवन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत है, और उनके कार्यों ने देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर किया.

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स्वतंत्रता सेनानी प्रताप सिंह कैरों

प्रताप सिंह कैरों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी, राजनेता और पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री थे. उनका जन्म 1 अक्टूबर 1901 को पंजाब के अमृतसर जिले के करनाल गांव में हुआ था. स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े. कैरों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, जिसके कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा.

प्रताप सिंह कैरों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया. उन्होंने किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया. स्वतंत्रता के बाद, वे भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे और पंजाब के विकास के लिए समर्पित रहे.

प्रताप सिंह कैरों 1956 – 64 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. उनके नेतृत्व में पंजाब ने कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में काफी प्रगति की. उन्होंने शिक्षा, सिंचाई और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की, जिससे हरित क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ.

प्रताप सिंह कैरों को एक प्रगतिशील नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने आधुनिक पंजाब के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. 6 फरवरी 1965 को उनकी हत्या कर दी गई थी, जो भारतीय राजनीति में एक दुखद घटना के रूप में जानी जाती है. उनका जीवन और कार्य आज भी पंजाब के विकास और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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नायक यदुनाथ सिंह

यदुनाथ सिंह भारतीय सेना के एक वीर जवान थे, जिन्हें उनकी बहादुरी और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र, भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, से नवाजा गया. वह 13वीं राजपूताना राइफल्स के एक बहादुर सैनिक थे. नायक यदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1916 को शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) के गाँव खजूरी में हुआ था. इनके पिता बीरबल सिंह एक किसान थे. यदुनाथ सिंह बचपन से ही देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक माने जाते थे.

यदुनाथ सिंह ने 6 फरवरी 1948 को जम्मू-कश्मीर में नौशेरा के युद्ध में अद्वितीय बहादुरी दिखाई. पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों ने नौशेरा पर हमला किया, और लेफ्टिनेंट यदुनाथ सिंह की कंपनी को उस हमले को रोकने की जिम्मेदारी दी गई. उनकी कंपनी के अधिकांश सैनिक शहीद हो चुके थे, लेकिन यदुनाथ सिंह ने अकेले ही मोर्चा संभालते हुए दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया. दुश्मन की भारी गोलीबारी के बावजूद, उन्होंने न केवल पोस्ट की रक्षा की बल्कि दुश्मन के हमले को विफल भी कर दिया. इस वीरता के दौरान, उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी.

उनकी अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन्हें मरणोपरांत प्रदान किया गया, और उनकी वीरता को आज भी भारतीय सेना और देशवासियों द्वारा सलाम किया जाता है. यदुनाथ सिंह की कहानी न केवल देशभक्ति का उदाहरण है, बल्कि हर भारतीय को प्रेरणा देती है. उनके बलिदान को इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा.

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पार्श्वगायिका लता मंगेशकर

लता मंगेशकर भारतीय सिनेमा की सबसे महान पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं, जिन्हें “सुर सम्राज्ञी” और “भारत की कोकिला” के नाम से भी जाना जाता है. उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. लता मंगेशकर ने अपने संगीत कैरियर में हजारों गीत गाए और वे भारतीय फिल्म संगीत का एक अविभाज्य हिस्सा बन गईं. उनकी अद्वितीय आवाज़ और संगीत में गहराई के कारण उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक विशेष स्थान प्राप्त है.

लता मंगेशकर का जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था. उनके पिता, दीनानाथ मंगेशकर, एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक और रंगमंच कलाकार थे. लता ने छोटी उम्र में ही अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया. उनके पिता की अचानक मृत्यु के बाद, परिवार के भरण-पोषण के लिए लता ने बहुत कम उम्र में फिल्मों में गायन और अभिनय शुरू किया.

लता मंगेशकर का पहला बड़ा ब्रेक वर्ष 1949 में फिल्म “महल” के गीत “आएगा आनेवाला” से मिला, जिसे आज भी एक ऐतिहासिक गीत माना जाता है. इसके बाद लता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने कैरियर में विभिन्न भाषाओं में 25,000 से अधिक गीत गाए. हिंदी के अलावा, उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और अन्य कई भाषाओं में भी गाने गाए. उनकी आवाज़ में हर भाव और हर मूड को सहजता से व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता थी, चाहे वह रोमांटिक गाने हों, भक्ति गीत, देशभक्ति गीत या शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत.

लता मंगेशकर ने भारतीय सिनेमा के लगभग सभी प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें सचिन देव बर्मन, शंकर-जयकिशन, नौशाद, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन आदि शामिल हैं. उनकी आवाज़ ने कई अभिनेत्रियों को पर्दे पर अमर कर दिया, और वे सभी उम्र के दर्शकों और श्रोताओं के दिलों में बस गईं.

प्रमुख गाने : –

“लग जा गले” (वो कौन थी, 1964),

“प्यार किया तो डरना क्या” (मुगल-ए-आज़म, 1960),

“ऐ मेरे वतन के लोगों” (1963, देशभक्ति गीत),

“तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा” (आंधी, 1975),

“सत्यम शिवम सुंदरम” (सत्यम शिवम सुंदरम, 1978).

लता मंगेशकर को भारतीय संगीत और सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उन्हें भारतरत्न (2001), पद्म भूषण (1969), पद्म विभूषण (1999) और दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1989) से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्होंने कई फिल्मफेयर और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीते.

लता मंगेशकर एक सरल और सादगी भरा जीवन जीती थीं. संगीत के प्रति उनका समर्पण और योगदान उन्हें विश्व भर में एक सम्मानित स्थान दिलाता है. उनका नाम भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है. 6 फरवरी 2022 को लता मंगेशकर का निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज़ और उनके गीत अनंत काल तक गूंजते रहेंगे. उनका संगीत भारतीय सिनेमा और संगीत प्रेमियों के दिलों में अमर रहेगा.

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