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व्यक्ति विशेष

भाग - 118.

स्वतंत्रता सेनानी विष्णु राम मेधी

विष्णु राम मेधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और असम के एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे. उन्होंने भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध कई आंदोलनों में भाग लिया और भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान दिया था.

विष्णु राम मेधी का जन्म 24 अप्रैल 1888 को असम के एक सम्मानित परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन को देश की सेवा में समर्पित कर दिया था और उनकी गतिविधियाँ आज भी असम और भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. वे न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक प्रभावशाली नेता भी थे जिन्होंने असम की राजनीति में भी अपने विचारों का प्रभाव छोड़ा. उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है और उनकी स्मृति में कई स्थानों पर समारोह का भी आयोजन किया जाता हैं.

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राजनीतिज्ञ वायलेट अल्वा

वायलेट अल्वा एक भारतीय राजनीतिज्ञ और वकील थीं, जिन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनका जन्म 24 अप्रैल 1908 को हुआ था और उनका निधन 20 नवंबर 1969 को हुआ. वायलेट अल्वा और उनके पति जो आकिम अल्वा दोनों ने मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और उसके बाद नई स्वतंत्र भारत की राजनीति में भी सक्रिय रहे थे.

अल्वा ने कानूनी शिक्षा प्राप्त की थी और वह एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में भी जानी जाती थीं. उन्होंने भारतीय संसद में विभिन्न पदों पर कार्य किया, जिसमें राज्य सभा की उपसभापति (1952 – 62 तक) और लोकसभा की अध्यक्ष (1962 -66 तक) के रूप में सेवा शामिल है.

उनके कार्यकाल में उन्होंने भारतीय संसद की कार्यवाही में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए और वे विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक न्याय के प्रचारक के रूप में सक्रिय रहीं. उन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई पहल की थीं और उनका नाम भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्वों में शुमार किया जाता है.

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कन्नड़ अभिनेता राजकुमार

कन्नड़ अभिनेता राजकुमार जिन्हें डॉ. राजकुमार के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के महान कलाकारों में से एक हैं. उनका जन्म 24 अप्रैल 1929 को हुआ था और उनका निधन 12 अप्रैल 2006 को हुआ. वे कर्नाटक राज्य के गौरव माने जाते हैं और कन्नड़ फिल्म उद्योग में उनका एक अत्यधिक सम्मानित स्थान है. राजकुमार ने अपने कैरियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया और विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में अभिनय करके व्यापक प्रशंसा प्राप्त की.

उन्हें उनकी गायन प्रतिभा के लिए भी जाना जाता है. राजकुमार ने कई फिल्मों में अपने गाने गाए हैं, जो आज भी कर्नाटक में बेहद लोकप्रिय हैं. उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी नवाजा गया है, जिसमें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और पद्म भूषण शामिल हैं. उनका जीवन और कैरियर कन्नड़ फिल्म उद्योग के इतिहास में एक युग के रूप में देखा जाता है.

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अभिनेत्री शम्मी

अभिनेत्री शम्मी जिन्हें शम्मी आंटी के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित कलाकार थीं. जिनका असली नाम नरगिस रबाड़ी था, और उनका जन्म 24 अप्रैल 1929 को हुआ था. शम्मी ने 1950 के दशक से लेकर 1990 के दशक तक हिंदी सिनेमा में अभिनय किया और अपने कैरियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया.

उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें वह कभी मुख्य नायिका, कभी सहायक अभिनेत्री और कभी कॉमिक रोल में नजर आईं. शम्मी को विशेष रूप से उनके कॉमेडी किरदारों के लिए याद किया जाता है. उन्होंने अपने चुटीले संवाद और अनोखे अभिनय शैली के द्वारा दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई थी.

उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में “कूली नंबर 1”, “खुशबू”, “हम”, और “द बर्निंग ट्रेन” शामिल हैं. उनका निधन 6 मार्च 2018 को हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनकी अद्वितीय भूमिकाएं आज भी उन्हें भारतीय सिनेमा की एक यादगार शख्सियत के रूप में जीवित रखती हैं.

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अभिनेता मैक मोहन

मैक मोहन जिनका असली नाम मोहन मखीजानी था. वो भारतीय सिनेमा में एक प्रसिद्ध कलाकार थे जिन्होंने विशेष रूप से हिन्दी फिल्मों में अपनी पहचान बनाई थी.  उनका जन्म 24 अप्रैल 1938 को हुआ था और उनका निधन 10 मई 2010 को हुआ. मैक मोहन को आमतौर पर उनके सहायक अभिनय के लिए जाना जाता है, और वे अक्सर विलेन के रोल्स में नजर आए.

उन्होंने अपने कैरियर के दौरान 200 से अधिक फिल्मों में काम किया। मैक मोहन को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली फिल्म ‘शोले’ में उनके चरित्र ‘सांभा’ के रूप में, जिसमें उन्होंने गब्बर सिंह के गिरोह के एक सदस्य की भूमिका निभाई थी. इस भूमिका के लिए उनका डायलॉग “पूरे पचास हज़ार” बेहद लोकप्रिय हुआ था.

मैक मोहन ने न केवल खलनायक के रूप में बल्कि अन्य विभिन्न सहायक भूमिकाओं में भी अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी। उनके अभिनय की शैली और उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए पात्र उन्हें एक यादगार कलाकार बनाते हैं, जिन्हें आज भी उनकी विशिष्ट फिल्मी भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है.

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तीजनबाई

तीजनबाई एक भारतीय लोक कलाकार हैं जो छत्तीसगढ़ की विशिष्ट लोक शैली पंडवानी की माध्यम से महाभारत की कहानियों का प्रस्तुतिकरण करती हैं. पंडवानी एक गायन शैली है जिसमें एकल कलाकार, महाभारत की कथाओं को गाते हुए विभिन्न पात्रों को जीवंत करता है. तीजनबाई का जन्म 24 अप्रैल 1956 को गाँव गनियारी, बिलासपुर जिला, छत्तीसगढ़ में हुआ था.

तीजनबाई ने अपने दादा से पंडवानी गायन सीखा और बहुत कम उम्र से ही इस कला का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. उनके प्रदर्शन में विशेषता यह है कि वे स्वयं कथावाचक के रूप में और विभिन्न पात्रों के रूप में अभिनय करती हैं, जिससे कथा में एक अद्वितीय जीवंतता आती है.

तीजनबाई की कला को उनके अद्वितीय गायन और अभिनय कौशल के लिए व्यापक सराहना प्राप्त है. उन्हें भारतीय सरकार से पद्म भूषण, पद्म श्री, और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जैसे कई राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया है. तीजनबाई ने अपनी कला के माध्यम से न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को प्रसारित किया है.

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क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर जिन्हें “क्रिकेट का भगवान” के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय क्रिकेट के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक हैं. उनका जन्म 24 अप्रैल 1973 को मुंबई में हुआ था. सचिन ने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू नवंबर 1989 में महज 16 साल की उम्र में पाकिस्तान के खिलाफ किया था, और तब से उन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई रिकॉर्ड्स भी बनाये थे.

सचिन तेंदुलकर ने अपने 24 वर्षीय कैरियर में 200 टेस्ट मैचों में 15921 रन और 463 वनडे मैचों में 18426 रन बनाए, जिसमें उन्होंने क्रमशः 51 और 49 शतक लगाए. वे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक लगाने वाले पहले और एकमात्र खिलाड़ी हैं.

सचिन की प्रतिभा और उपलब्धियों की वजह से उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें भारत रत्न, पद्म विभूषण, और पद्म श्री शामिल हैं. सचिन ने न केवल भारतीय क्रिकेट में बल्कि विश्व क्रिकेट में भी अपना एक अमिट चिन्ह छोड़ा है. उनकी तकनीक, धैर्य, और खेल के प्रति समर्पण युवा क्रिकेटरों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं.

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शास्त्रीय संगीतज्ञ दीनानाथ मंगेशकर

दीनानाथ मंगेशकर एक भारतीय शास्त्रीय गायक और थियेटर कलाकार थे, जिन्होंने मराठी म्यूजिकल थियेटर के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका जन्म 29 दिसंबर 1900 को हुआ था और उनका निधन 24 अप्रैल 1942 को हुआ. वे लता मंगेशकर, आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मीना खाडिलकर और हृदयनाथ मंगेशकर के पिता थे.

दीनानाथ ने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत मराठी नाटकों में अभिनय करके और गान गा कर की थी. उनकी गायन शैली ख्याल और भजन में गहराई तक पैठी हुई थी, जिसमें उन्होंने ग्वालियर, आग्रा और जयपुर घराने के गायकी के तत्वों का समावेश किया था. उनके गायन में भावनात्मक गहराई और तकनीकी कुशलता का बेजोड़ संयोजन था, जिसे आज भी संगीत प्रेमी सराहते हैं.

दीनानाथ मंगेशकर ने नाट्य संगीत की शैली में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके द्वारा प्रस्तुत नाटकों में ‘संगीत सौभद्र’, ‘संगीत मानापमान’, और ‘संगीत संशय कल्लोळ’ जैसे नाटक शामिल हैं, जिनमें उन्होंने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी संगीत विरासत उनके बच्चों के माध्यम से जीवित रही, जिन्होंने भारतीय संगीत के क्षेत्र में अपने-अपने योगदान से उनके नाम को और भी ऊँचा किया.

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क्रान्तिकारी शिवप्रसाद गुप्त

शिवप्रसाद गुप्त एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, और पत्रकार थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म  28 जून, 1883 को  बनारस, उत्तर प्रदेश के एक समृद्ध वैश्य परिवार में  हुआ था और उन्होंने अपने जीवन के दौरान ब्रिटिश राज के खिलाफ कई आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया था.

शिवप्रसाद गुप्त ने विशेष रूप से मीडिया और प्रकाशन के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने में योगदान दिया। उन्होंने कई पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की स्थापना की, जिनके माध्यम से उन्होंने जनता को शिक्षित करने और उन्हें ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ संगठित करने का प्रयास किया.

उनकी गतिविधियों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहन दिया, बल्कि सामाजिक सुधारों की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके कार्यों में सामाजिक बराबरी, जाति व्यवस्था में सुधार, और महिला शिक्षा के प्रोत्साहन जैसे मुद्दे शामिल थे.

शिवप्रसाद गुप्त का जीवन और कार्य उनकी मृत्यु के बाद भी भारतीय समाज में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है, और उन्हें एक क्रांतिकारी नेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता और समृद्धि के लिए अपना जीवन समर्पित किया.

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चित्रकार जामिनी रॉय

जामिनी रॉय भारतीय चित्रकला के प्रमुख चित्रकारों में से एक हैं. जिन्होंने 20वीं सदी के भारतीय आधुनिक कला आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. उनका जन्म 11 अप्रैल 1887 को बेलियातोर, बंकुरा जिला, पश्चिम बंगाल में हुआ था और उनकी मृत्यु 24 अप्रैल 1972 को हुई थी. जामिनी रॉय कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ाई करने के बाद आधुनिक भारतीय कला के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरे।

 रॉय ने पश्चिमी शैलियों की शिक्षा प्राप्त की थी, लेकिन उन्होंने अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए भारतीय लोक कलाओं की ओर रुख किया. विशेष रूप से, उन्होंने बंगाल की कालीघाट पट शैली से प्रेरणा ली और उसे अपनी पेंटिंग्स में अपनाया. उनकी कला में जीवन्त रंगों का उपयोग, सरलीकृत आकृतियां, और मजबूत लाइनें प्रमुख थीं, जो उन्हें भारतीय कला के आधुनिकतावादी प्रतिपादकों में स्थान दिलाती हैं.

जामिनी रॉय ने अपने कैरियर के दौरान कई विषयों का चित्रण किया, जिसमें भारतीय पौराणिक कथाओं के पात्र, ग्रामीण जीवन, जानवरों की छवियाँ, और ईसाई धर्मग्रंथों के दृश्य शामिल हैं. उनकी कला ने भारतीय संस्कृति की सरलता और गहराई को चित्रित किया, जिससे उन्हें व्यापक रूप से सराहना मिली.

जामिनी रॉय की कला ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई. उन्हें उनके योगदान के लिए विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया, और उनकी कलाकृतियाँ विश्व भर के म्यूजियमों में प्रदर्शित की जाती हैं.

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कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ भारतीय साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिन्होंने हिंदी कविता को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की. उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया, मुंगेर (बिहार) में हुआ था, और उनका निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ. दिनकर जी को उनकी ओजपूर्ण और प्रेरणादायक कविताओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.

दिनकर की कविताएं अक्सर राष्ट्रीयता, बहादुरी, और सामाजिक न्याय के विषयों पर केंद्रित होती हैं. उनकी प्रमुख कृतियों में “रश्मिरथी”, “कुरुक्षेत्र”, और “उर्वशी” शामिल हैं. “रश्मिरथी” में उन्होंने कर्ण के जीवन को कविता के माध्यम से बयान किया, जिसमें कर्ण की वीरता और त्रासदी का बेहद मार्मिक चित्रण किया गया है. “कुरुक्षेत्र” में उन्होंने महाभारत के युद्ध को एक आधुनिक संदर्भ में पुनः प्रस्तुत किया, जिसमें युद्ध के नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर गहराई से विचार किया गया.

दिनकर ने अपने साहित्यिक कैरियर में कई सम्मान प्राप्त किए, जिनमें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी शामिल है. उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास में अपने योगदान के माध्यम से भारतीय साहित्यिक जगत में एक विशेष स्थान प्राप्त किया. उनकी कविताएँ आज भी बहुत से लोगों को प्रेरणा देती हैं और भारतीय साहित्य के पाठ्यक्रमों में उन्हें पढ़ाया जाता है.

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आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा

सत्य साईं बाबा जिनका जन्म 23 नवंबर 1926 को भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के पुट्टपर्थी गांव में हुआ था. आध्यात्मिक गुरु और शिक्षक के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध हैं सत्य साईं बाबा. उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की और घोषित किया कि वे शिरडी साईं बाबा के पुनर्जन्म हैं.

सत्य साईं बाबा ने अपने जीवन को धर्मार्थ कार्यों, शिक्षा की पहुंच बढ़ाने, और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने में समर्पित किया. उन्होंने विशेष रूप से पुट्टपर्थी में सत्य साईं संस्थान की स्थापना की, जहाँ उन्होंने एक विश्वविद्यालय, एक अस्पताल, और विभिन्न शैक्षिक संस्थान स्थापित किए. उनकी धार्मिक और समाज सेवा की पहलों में लोगों को नि:शुल्क शिक्षा, चिकित्सा सेवाएं, और पीने का स्वच्छ पानी प्रदान करना शामिल था.

सत्य साईं बाबा की शिक्षाएं मुख्य रूप से प्रेम, शांति, और धर्मनिष्ठा पर केंद्रित थीं. वे यह भी सिखाते थे कि सभी प्रमुख धर्मों के मूल में एक ही सत्य है, और उन्होंने अपने अनुयायियों को विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमियों का सम्मान करने की शिक्षा दी थी.

उनके निधन के बाद सत्य साईं बाबा के अनुयायी उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं और विश्वभर में उनके द्वारा स्थापित विभिन्न धर्मार्थ संस्थानों के माध्यम से समाज सेवा के कार्यों को जारी रखें  हैं.

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