तेरा जादू चल गया ओ जादूगर…
रविवार की सुबह स्वर कोकिला और भारत रत्न लता मंगेशकर दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्हें एक महीने पहले कोरोना संक्रमण के बाद मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किया गया था जहाँ रविवार की सुबह 08 बजकर 12 मिनट पर उन्होंने अंतिम साँस ली. भारत की ‘नाइटिंगेल’ के नाम से दुनियाभर में मशहूर लता मंगेशकर ने करीब पांच दशक तक हिंदी सिनेमा में फीमेल प्ले बैक सिंगिंग में एकछत्र राज किया. उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा जा चुका है. इसके अलावा उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
लता का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के गोमंतक मराठा समाज परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर था. लता की माता का नाम शेवन्ती देवी था. जो कि मूल रूप से गुजराती थी. शेवन्ती देवी दीनानाथ मंगेशकर की दूसरी पत्नी थी. इनकी पहली पत्नी का नाम नर्मदा देवी थी जिनकी मृत्यु के बाद इनकी शादी नर्मदा देवी की छोटी बहन सेवंती देवी से हुआ था. पंडित दीनानाथ मंगेशकर की सबसे बड़ी बेटी लता मंगेशकर थी. लता के बचपन का नाम हेमा था. लता के पिता रंगमंच एलजी के कलाकार और गायक थे. हालाँकि लता का जन्म इंदौर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र मे हुई. वह बचपन से ही गायिका बनना चाहती थीं.
बताते चलें कि, पंडित दीनानाथ का सरनेम हार्डीकर था. दीनानाथ ने अपना सरनेम बदलकर मंगेशकर रख लिया था क्योंकि पंडित दीनानाथजी गोवा में मंगेशी के रहने वाले थे इसी कारण उन्होनें अपना सरनेम बदल लिया था. लता जी के जन्म के समय इनका नाम हेमा था लेकिन पंडित दीनानाथ जी ने अपने नाटक “भावबंधन“ में एक महिला किरदार जिसका नाम लतिका था उस नाम के कारण हेमा का नाम लता रखा. लता के परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना.
लता की संगीत शिक्षा उनके घर से ही शुरू हुई थी, चुकी उनके पिता खुद ही संगीतकार थे और बच्चों को संगीत की शिक्षा भी देते थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू हुई थी. उनके संगीत के शिक्षक दीनानाथ मंगेशकर (पिता), उस्ताद अमानत अली खान, गुलाम हैदर, अमानत खान देवस्वाले और पंडित तुलसीदास शर्मा थे.
बचपन में कुन्दन लाल सहगल की एक फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेगी. पहली बार लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाया था. उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया. लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये थे.
लता जब 13 वर्ष की थी तभी उनके पिता की असामयिक मृत्यु हो गई, जिसके बाद पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा. उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फिल्मों में काम करना पड़ा. अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई. बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकलासंसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ीमाँ (1945),जीवनयात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी.
पिता के देहांत के बाद भाई बहिनों में बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ भी उनके कंधों पर आ गया था. दूसरी ओर उन्हें अपने करियर की तलाश भी थी. जिस समय लताजी ने (1948) में पार्श्वगायिकी में कदम रखा. जिस वक्त उन्होंने पार्श्वगायिकी में कदम रखा था उस वक्त इस क्षेत्र में नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी. ऐसे में उनके लिए अपनी पहचान बनाना इतना आसान नही था. लता का पहला गाना एक मराठी फिल्म कीति हसाल के लिए था, मगर वो रिलीज नहीं हो पाया.
वर्ष 1945 में उस्ताद ग़ुलाम हैदर (जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी) अपनी आनेवाली फ़िल्म के लिये लता को एक निर्माता के स्टूडियो ले गये जिसमे कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थी, वे चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिये पार्श्वगायन करे. लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी. वर्ष 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में में लता को गाने का मौका दिया. इस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई. इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों “अंग्रेजी छोरा चला गया” और “दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने”.
हालाँकि इसके बावज़ूद लता को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी. वर्ष 1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म “महल” के “आयेगा आनेवाला” गीत से मिला. इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था. इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.बताते चलें कि, लता मंगेशकर ने अब तक 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से अधिक गाने गा चुकी.
50 के दशक में लता जी महान संगीतकारों के साथ काम किया जिसमें अनिल बिस्वास, एस डी बर्मन, जय किशन, मदनमोहन और नौशाद अली शामिल थे. लता जी ने नौशाद अली के लिए बैजू बावरा, कोहिनूर और मुगल-ए-आजम फिल्मों में बेहतरीन और सदाबहार गानें गायें. इसके अलावा लता जी ने एस डी बर्मन के लिए फिल्म साजा, देवदास और हाउस न0 420 के लिए गाना गाया. लता जी एस डी बर्मन की पसंदीदा पार्श्वगायिका थी. शंकर-जयकिशन के लिए लता जी ने फिल्म आह, श्री 420 और चोरी-चोरी के लिए बेहतरीन गानें गायें.
60 के दशक में लता जी ने कई सदाबहार गीत गायें जो इस प्रकार है :- सुनो सजना पपीहे ने, न जाने तुम कहाँ थे, महबूब मेरे महबूब मेरे, हमने देखी है इन आँखों की, वो शाम कुछ अजीब थी, आया सावन झूमके जैसे गानें गायें. किशोर दा के साथ लता जी ने एक सुपरहिट गाना गाया था जो आज भी लोंगों को आकर्षित करता है वह गाना है होठों पे ऐसी बात और इसके अलावा आज फिर जीने की तमन्ना है, गाता रहे मेरा दिल आदि गानें किशोर दा के ही थे जिसको लता जी ने अपनी सुरीली आवाज में गाकर अमर कर दिया.
70-80 के दशक में जो गाने गायें वह है :- गुम है किसी के प्यार में (रामपुर का लक्ष्मण), वादा करो नहीं छोड़ोगे तुम मेरा साथ (आ गले लग जा), वादा कर ले साजना (हाथ की सफाई), नहीं नही अभी नहीं (जवानी दीवानी), तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं (आँधी), मै जट यमला पगला दीवाना (प्रतिज्ञा), जाते हो जाने जाना (परवरिश), आज फिर तुम पे प्यार आया (दयावान), तुमसे मिलकर ना जाने क्यों (प्यार झुकता नहीं), जब हम जवां होगें (बेताब) जैसी फिल्मों में गाना गाया. इन दशकों में लता जी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, मदनमोहन, सलील चौधरी और हेमन्त कुमार जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया.
90 से अब तक का सफर में लता जी ने कई संगीतकारों के साथ काम किया. अस्सी के दशक में शिवहरि, अनु मलिक, आनंद मिलिंद, जैसे संगीतकारों ने भी लता जी के साथ काम करना पसंद किया. लता जी ने फिल्म वीर जारा (2004) में गाने के बाद गाने से संयास ले लिया.
फ़िल्म बंदिनी का गाना – ‘मोरा गोरा अंग लेइलो.’
फ़िल्म अनुपमा का वो गाना –‘कुछ दिल ने कहा, कुछ भी नहीं…’
फ़िल्म अनामिका का – ‘बाहों में चले आओ’
फ़िल्म इंतकाम – ‘आ जाने जा, तेरा ये हुसन जवाँ’
विशेष :- राष्ट्र कवि प्रदीप जी ने ये शब्द “ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है उनकी, जरा याद करो कुर्बानी” इन शब्दों को लता जी ने अपनी आवाज दी थी जिससे यह गाना सदा सदा के लिए अमर हो गया.इस गीत को लता ने पहली बार 27 जनवरी, 1963 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया था.
पुरस्कार:-
वर्ष 1958, 1962, 1965, 1969, 1993, 1994 – फिल्म फेयर पुरस्कार.
वर्ष 1972, 1975, 1990 – राष्ट्रीय पुरस्कार,
वर्ष 1966,1967 – महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार,
वर्ष 1969 – पद्म भूषण,
वर्ष 1974 – दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड,
वर्ष 1989 – दादा साहब फाल्के पुरस्कार,
वर्ष 1993 – फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार,
वर्ष 1996 – स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार,
वर्ष 1997 – राजीव गान्धी पुरस्कार,
वर्ष 1999 – एन.टी.आर. पुरस्कार,
वर्ष 1999 – पद्म विभूषण,
वर्ष 1999 – ज़ी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार,
वर्ष 2000 – आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार,
वर्ष 2001 – स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार,
वर्ष 2001 – भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न”
वर्ष 2001 – नूरजहाँ पुरस्कार,
वर्ष 2001 – महाराष्ट्र भूषण.