
सत्ता सुख के लिए मार-मारी क्यूँ…?
वर्तमान समय में सत्ता सुख के लिए मची मार-मारी एक ज्वलंत प्रश्न है, जो हर जागरूक नागरिक के मन में उठता है। राजनीति, जो कभी लोकसेवा और जनकल्याण का माध्यम मानी जाती थी, आज अक्सर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और निहित स्वार्थों के अखाड़े में तब्दील होती दिखती है. हर स्तर पर – स्थानीय निकायों से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक – सत्ता हथियाने और उसे बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. इस तीव्र प्रतिस्पर्धा के पीछे कई जटिल और बहुआयामी कारण छिपे हैं, जिनका विश्लेषण करना आवश्यक है.
सत्ता अक्सर आर्थिक लाभ और संसाधनों पर नियंत्रण का प्रवेश द्वार बनती है। आज के भौतिकवादी युग में, धन और संपत्ति का महत्व सर्वोपरि है. सत्ता में बैठे व्यक्ति और समूह अक्सर सरकारी ठेकों, प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन और विभिन्न आर्थिक नीतियों को अपने लाभ के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपार धन अर्जित करने का मार्ग प्रशस्त करता है. यही कारण है कि सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं.
सत्ता न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करती है, बल्कि समाज में उच्च स्थान और विशिष्ट पहचान भी दिलाती है. एक शक्तिशाली व्यक्ति को समाज में सम्मान और रुतबा मिलता है. उसकी बात सुनी जाती है और उसके निर्णयों का महत्व होता है. यह सामाजिक प्रतिष्ठा की लालसा भी सत्ता के लिए संघर्ष को तीव्र करती है. लोग अपने व्यक्तिगत अहंकार और सामाजिक स्वीकृति की इच्छा को पूरा करने के लिए सत्ता की ओर आकर्षित होते हैं.
सत्ता में रहने का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने की क्षमता है। सत्ताधारी दल और नेता अपनी विचारधारा और प्राथमिकताओं के अनुसार नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन कर सकते हैं. यह क्षमता उन्हें अपने समर्थकों को लाभ पहुंचाने, अपने विरोधियों को हाशिए पर धकेलने और अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है. विभिन्न विचारधाराओं और हितों के टकराव के कारण, हर समूह सत्ता में आकर अपनी नीतियों को लागू करना चाहता है, जिससे सत्ता के लिए संघर्ष और तेज हो जाता है.
आधुनिक समाज में नैतिक मूल्यों का क्षरण और अवसरवादिता का बढ़ना भी सत्ता सुख के लिए मार-मारी का एक प्रमुख कारण है. सिद्धांतों और आदर्शों की बजाय, व्यक्तिगत लाभ और तात्कालिक सफलता को अधिक महत्व दिया जा रहा है. राजनीतिक दल और नेता सत्ता प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, चाहे वह झूठ बोलना हो, मतदाताओं को गुमराह करना हो या फिर अनैतिक गठबंधन बनाना हो। इस अवसरवादी रवैये ने सत्ता की दौड़ को और अधिक कटु और प्रतिस्पर्धी बना दिया है.
मीडिया और जनमत निर्माण की प्रक्रिया भी सत्ता की होड़ को प्रभावित करती है. शक्तिशाली मीडिया समूह अक्सर राजनीतिक दलों और नेताओं का समर्थन या विरोध करते हैं, जिससे जनमत उनके पक्ष या विपक्ष में बनता है. सत्ता हासिल करने के लिए मीडिया का प्रभावी उपयोग एक महत्वपूर्ण रणनीति बन गई है. सोशल मीडिया के उदय ने इस परिदृश्य को और जटिल बना दिया है, जहाँ गलत सूचनाओं और प्रोपगेंडा के माध्यम से मतदाताओं को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है.
राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता की मार-मारी वैश्विक प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक कारकों से भी प्रभावित होती है. एक मजबूत और स्थिर सरकार देश को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने और अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाती है. वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव और विभिन्न देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा भी राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता हथियाने की होड़ को बढ़ावा देती है.
वर्तमान समय में सत्ता सुख के लिए मची मार-मारी एक गहरी और जटिल समस्या है, जिसके मूल में आर्थिक लाभ की लालसा, सामाजिक प्रतिष्ठा की इच्छा, नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता, मूल्यों का क्षरण, मीडिया का प्रभाव और वैश्विक प्रतिस्पर्धा जैसे कई कारक मौजूद हैं. इस तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण राजनीति का मूल उद्देश्य – लोकसेवा और जनकल्याण – कहीं पीछे छूटता जा रहा है. यह आवश्यक है कि नागरिक समाज, बुद्धिजीवी वर्ग और स्वयं राजनीतिक नेतृत्व इस स्थिति पर गंभीरता से विचार करें और ऐसे मूल्यों और प्रणालियों को बढ़ावा दें जो सत्ता को सेवा का माध्यम बनाएं, न कि व्यक्तिगत सुख और स्वार्थ पूर्ति का साधन. सत्ता का उपयोग समाज और मानवता के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए.
संजय कुमार सिंह,
संस्थापक, ब्रह्म बाबा सेवा एवं शोध संस्थान निरोग धाम
अलावलपुर पटना.