
घर-घर में विभीषण कहाँ से आयेंगें इतने राम…
“घर-घर में विभीषण कहाँ से आयेंगे इतने राम पर,” एक सामाजिक और नैतिक टिप्पणी है. यह हमें उस दुर्लभता की ओर इशारा करती है जब कोई व्यक्ति अपने निहित स्वार्थों और अपने ही लोगों के प्रति निष्ठा से ऊपर उठकर सत्य और धर्म का साथ देता है, जैसा कि रामायण में विभीषण ने किया था. जब हर तरफ अन्याय और अधर्म का बोल-बाला हो, तो ऐसे व्यक्ति का मिलना मुश्किल होता है जो राम की तरह सत्यनिष्ठ और न्यायप्रिय हो, और फिर उस राम के लिए विभीषण की तरह अपने ही लोगों के विरुद्ध खड़ा होने का साहस दिखाए.
रामायण में विभीषण का चरित्र अद्वितीय है. वह रावण का भाई होते हुए भी, लंका में व्याप्त अन्याय और रावण के अहंकार के विरुद्ध खड़े होते हैं. उन्होंने सीता के हरण को गलत बताया और रावण को सत्य का मार्ग अपनाने की सलाह दी. जब उसकी बात नहीं मानी गई, तो उसने अपने परिवार और राज्य को त्याग कर राम का साथ दिया. विभीषण का यह कृत्य व्यक्तिगत संबंधों और स्वार्थ से ऊपर उठकर धर्म का पालन करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.
“इतने राम पर,” वर्तमान समाज में राम जैसे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और नैतिक मूल्यों वाले व्यक्तियों की कमी की ओर इशारा करता है. राम का चरित्र मर्यादा, कर्तव्यनिष्ठा और करुणा का प्रतीक है. आज के युग में, जहाँ भ्रष्टाचार, स्वार्थ और नैतिक पतन आम होते जा रहे हैं, ऐसे व्यक्तियों का मिलना दुर्लभ है जो हर परिस्थिति में धर्म और सत्य का पालन करें. जब नेतृत्व और समाज के विभिन्न स्तरों पर राम जैसे आदर्शों का अभाव हो, तो स्वाभाविक रूप से विभीषण जैसे व्यक्तियों के लिए प्रेरणा और समर्थन की कमी हो जाती है.
जब समाज में राम जैसे नैतिक आदर्शों का अभाव हो, तो विभीषण जैसे व्यक्तियों की तलाश करना और भी कठिन हो जाता है. विभीषण ने जिस साहस और त्याग का प्रदर्शन किया, वह आसान नहीं था. अपने ही परिवार और समुदाय के विरुद्ध जाना, सामाजिक बहिष्कार और खतरे को मोल लेना. ऐसे में, यदि समाज में व्यापक रूप से राम जैसे न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ नेता या व्यक्ति मौजूद न हों, तो विभीषण जैसे लोगों के लिए अपनी आवाज उठाना और सत्य का साथ देना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. उन्हें अकेले ही अन्याय से लड़ना पड़ सकता है, बिना किसी मजबूत नैतिक समर्थन के.
यह पंक्ति आज के समाज के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है. हम अक्सर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अन्याय की शिकायत करते हैं, लेकिन कितने लोग विभीषण की तरह इन बुराइयों के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाते हैं? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें “इतने राम” नहीं मिलते जो सत्य और न्याय के लिए दृढ़ता से खड़े हों और विभीषण जैसे लोगों को नैतिक बल प्रदान करें.
यदि हर स्तर पर ऐसे नेता और नागरिक हों जो राम के आदर्शों का पालन करें, तो विभीषण जैसे व्यक्तियों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और सत्य का साथ देने की प्रेरणा और साहस मिलेगा. एक ऐसे समाज में जहाँ सत्य और न्याय का सम्मान होता है, विभीषणों की संख्या स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी.
“घर-घर में विभीषण कहाँ से आयेंगे इतने राम पर” एक मार्मिक प्रश्न है जो हमें समाज में नैतिक नेतृत्व और व्यक्तिगत साहस के महत्व पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है. विभीषण जैसे चरित्र तभी सामने आते हैं जब उन्हें राम जैसे सत्यनिष्ठ व्यक्तियों का समर्थन मिलता है. इसलिए, यदि हम चाहते हैं कि हर घर में विभीषण हों जो अन्याय के खिलाफ खड़े हों, तो हमें पहले “इतने राम” बनाने की दिशा में काम करना होगा – ऐसे व्यक्ति जो अपने कार्यों और चरित्र से सत्य, न्याय और नैतिकता के आदर्श स्थापित करें. यह पंक्ति हमें एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए सामूहिक प्रयास करने का आह्वान करती है, जहाँ नैतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा जाए.