
जीएसटी सुधार से क्या घटेगी महंगाई?
भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) का लागू होना देश के इतिहास में एक बड़े कर सुधार के रूप में देखा जाता है. इसका प्राथमिक उद्देश्य ‘एक राष्ट्र, एक कर’ की अवधारणा को साकार करना, कर ढाँचे को सरल बनाना और अर्थव्यवस्था को एकीकृत करना था. लेकिन एक सवाल जो अक्सर उठता है, वह यह है कि क्या जीएसटी में किए जाने वाले सुधारों से आम जनता की जेब पर पड़ने वाला बोझ, यानी महंगाई, कम हो सकती है? इस प्रश्न का उत्तर सीधा नहीं है; यह एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है.
महंगाई मुख्यतः दो कारणों से होती है: – मांग-आपूर्ति का असंतुलन और लागत (Cost) में वृद्धि. जीएसटी सीधे तौर पर वस्तुओं और सेवाओं की लागत को प्रभावित करता है, क्योंकि यह एक अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) है जो अंतिम उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाता है. इसलिए, जीएसटी की दरों और ढाँचे में कोई भी बदलाव महंगाई को प्रभावित करेगा ही. कई तरीकों से जीएसटी परिष्करण (Refinement) महंगाई पर नियंत्रण में मददगार हो सकता है.
भारत में जीएसटी की कई स्लैब (0%, 5%, 12%, 18%, 28%) हैं. इसके अलावा कुछ वस्तुओं पर सीजीएसटी (Compensation Cess) भी लगता है. यह जटिल ढाँचा अनुपालन को कठिन बनाता है और करों के ऊपर कर (Tax on Tax) का effect देता है. जीएसटी काउंसिल द्वारा स्लैब की संख्या कम करके (जैसे मुख्यतः 3 स्लैब – 5%, 12/15%, और 28/30%) और अधिकतर items को न्यूनतम या मध्यम स्लैब में लाने का प्रस्ताव है.
अगर किसी वस्तु की दर 18% से घटाकर 12% की जाती है, तो उस वस्तु की कीमत सीधे तौर पर कम होगी, जिससे मुद्रास्फीति घटेगी. उदाहरण के लिए, कपड़े, फुटवियर, और रोजमर्रा की कई वस्तुओं पर दरें कम होने से आम आदमी को राहत मिलेगी. आईटीसी का पूरा लाभ न मिल पाना, विशेषकर एमएसएमई क्षेत्र के लिए, एक बड़ी चुनौती है. इसकी वजह से कारोबारों में अपनी लागत बढ़ने के कारण उपभोक्ताओं से अधिक कीमत वसूलते हैं.
डिजिटल नेटवर्क (जीएसटीएन) को और मजबूत बनाना, अनुपालन प्रक्रिया को सरल बनाना और धोखाधड़ी वाले आईटीसी का लाभ, संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला में कर के कैस्केडिंग प्रभाव (कर पर कर का प्रभाव) को कम करना. जब व्यवसायों को पूरा ITC मिलेगा, तो उनकी उत्पादन लागत घटेगी. इस लागत बचत का एक हिस्सा वे ग्राहकों को कम कीमतों के रूप में पास कर सकते हैं, जिससे महंगाई पर अंकुश लगेगा.
जीएसटी से पहले, हर राज्य की सीमा पर चेक-पोस्ट और अलग-अलग करों की वजह से ट्रकों की लंबी कतारें लगती थीं, जिससे समय और ईंधन की बर्बादी होती थी. जीएसटी ने पहले ही इस समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है. भविष्य के सुधार, जैसे ई-वे बिल को और efficient बनाना, logistics cost को और कम करेंगे. परिवहन लागत में कमी का सीधा असर वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है. सब्जियाँ, फल, और other perishable items समय पर पहुँचेंगे और सस्ते होंगे.
दरों और नियमों की जटिलता की वजह से businesses और कर विभाग के बीच विवाद उत्पन्न होते हैं, जिससे असमानता होती है और अनुपालन लागत बढ़ती है. पुराने को स्पष्ट और सरल बनाया जाएगा, और एक मजबूत विवाद समाधान तंत्र विकसित किया जाएगा जिससे कारोबारी माहौल बेहतर होगा. अनिश्चितता और विवादों में कमी से व्यवसायों की परिचालन लागत घटेगी, जिसका लाभ ग्राहकों को मिल सकता है.
हालाँकि सुधारों के फायदे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ और सीमाएँ भी हैं:- किसी भी वस्तु की कर दर घटाने से सरकार के राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. सरकार के लिए यह एक संतुलन बनाना जरूरी है कि महंगाई घटाने और राजस्व का लक्ष्य पूरा करने के बीच समन्वय कैसे बैठाया जाए. किस वस्तु को किस स्लैब में रखा जाए, इस पर हमेशा बहस होती रहती है. एक वस्तु की दर घटने से दूसरी वस्तु की दर बढ़ाने का दबाव बन सकता है.
महंगाई केवल जीएसटी पर निर्भर नहीं करती. अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें, मानसून, आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दे, और आरबीआई की मौद्रिक नीति जैसे कारकों का भी महंगाई पर गहरा प्रभाव पड़ता है. जीएसटी सुधार अकेले इन सभी कारकों का मुकाबला नहीं कर सकता.
कुल मिलाकर, जीएसटी सुधार निश्चित रूप से महंगाई को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन यह एक ‘सर्वाधिक समाधान’ (रामबाण) नहीं है. पुनर्भरण का युक्तिकरण, आईटीसी सिस्टम को मेट्रिक बनाना, और लॉजिस्टिक्स लागत में कमी जैसे सुधार पर दबाव (अपस्फीतिकारी दबाव) पैदा होगा. ये सुधार आपूर्ति शृंखला को कुशल आर्किटेक्चर की धारा में सहज दक्षता लाएगा.
कुल मिलाकर, जीएसटी ढांचे में प्रस्तावित बदलाव एक स्वागत योग्य कदम है. यह न केवल कर प्रणाली को सरल बनाएगा, बल्कि आम आदमी को महंगाई से राहत भी देगा. यह सुधार उपभोग को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था को गति देगा, जिससे व्यापार और आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा. यदि जीएसटी काउंसिल इन प्रस्तावों को स्वीकार कर लेती है, तो यह भारत की आर्थिक प्रगति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा.