
एक दिन, राम खेलावन बीमार पड़ गया. वह बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था. गौरी उसके पास बैठी रहती, अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसे देखती, मानो उसकी बीमारी को महसूस कर रही हो.
कालू जब यह खबर सुनकर आया, तो वह भी उदास हो गया. वह राम खेलावन के पास खड़ा रहा और उसे चाटने लगा। राम खेलावन ने कमजोर हाथों से गौरी और कालू दोनों को सहलाया.
राम खेलावन जानता था कि उसका अंत करीब है. उसने गाँव के लोगों को बुलाया और उनसे गौरी और कालू की देखभाल करने की विनती की. उसने कहा कि ये दोनों बेजुबान हैं, लेकिन इनकी भावनाएँ इंसानों से कम नहीं हैं.
राम खेलावन की मृत्यु के बाद, गाँव वालों ने उसकी बात का सम्मान किया. गौरी और कालू की देखभाल पहले की तरह ही की गई. गौरी ने कुछ समय बाद एक प्यारी सी बछिया को जन्म दिया, जिसका नाम गाँव वालों ने ‘किस्मत’ रखा.
कालू अक्सर किस्मत से खेलने आता और गौरी उसे प्यार से देखती. राम खेलावन की अनकही विरासत गौरी और कालू की दोस्ती और उनकी भावनाओं के रूप में गाँव में हमेशा जीवित रही.
यह कहनी “बेजुबान के चोचलें” उन अनकही भावनाओं और रिश्तों की कहानी है जो इंसानों और जानवरों के बीच मौजूद होते हैं. यह हमें सिखाता है कि प्यार और करुणा की कोई भाषा नहीं होती, यह सिर्फ महसूस किया जा सकता है.