
गौरी और कालू का बंधन दिन-ब-दिन मजबूत होता गया. वे दोनों अक्सर एक साथ घूमते, खेलते और एक-दूसरे को अपनी मौन भाषा में अपनी भावनाएँ व्यक्त करते. गौरी अपनी आँखों के भावों से कालू को डाँटती, प्यार करती और उसे खतरे से आगाह करती. कालू अपनी शरारतों और उछल-कूद से गौरी को खुश रखता.
राम खेलावन अक्सर उन्हें देखकर मुस्कुराता. उसे लगता था कि गौरी और कालू एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं. उनकी दोस्ती ने उसे बेजुबान जानवरों के प्रति और भी संवेदनशील बना दिया था.
गाँव के कुछ लोग गौरी और कालू की दोस्ती पर हैरानी जताते थे. उन्हें यह अजीब लगता था कि एक गाय और एक बछड़ा इस तरह से घुल मिल सकते हैं. लेकिन राम खेलावन जानता था कि प्यार और दोस्ती किसी बंधन या प्रजाति के मोहताज नहीं होते.
एक बार गाँव में एक बीमार गाय आ गई. वह बहुत कमजोर थी और चल भी नहीं पा रही थी. गौरी उसके पास जाकर बैठ गई और उसे चाटने लगी. कालू भी उसके पास खड़ा रहा, अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसे देखता रहा. गौरी और कालू ने उस बीमार गाय की देखभाल की, और धीरे-धीरे वह ठीक हो गई.
इस घटना ने गाँव वालों को यह दिखाया कि बेजुबान जानवर भी करुणा और सहानुभूति की भावना रखते हैं.
शेष भाग अगले अंक में…,